May २८, २०१७ १४:०५ Asia/Kolkata

यद्यपि सऊदी अरब ने यमन पर अपने हमले के आरंभ में इस बात की कोशिश की कि एक गठजोड़ बना कर अन्य देशों को भी इस हमले में अपने साथ मिला ले लेकिन पिछले दो साल में यमन की ज़मीनी सच्चाई इस बात की सूचक है कि सऊदी अरब की ओर से गठजोड़ बनाने की नीति विफल हो चुकी है और आले सऊद सरकार के पास युद्ध अपराधों, निर्दोष बच्चों व महिलाओं के जनसंहार और दसियों लाख लोगों को बेघर करने के अलावा और कोई कर्मपत्र नहीं है।

पश्चिमी एशिया के अत्यंत ग़रीब अरब देश यमन पर सऊदी अरब के हमले के दो वर्षों के दौरान जो कुछ हुआ है वह जातीय सफ़ाए और मानवता के विरुद्ध अपराध जैसे जघन्य अपराधों का खुला नमूना है। यमन में मारे जाने वालों, घायलों और बेघर होने वालों के आंकड़े और इसी तरह बुनियादी ढांचे की तबाही और जर्जर मानवीय स्थिति इस बात की सूचक है कि आले सऊद पर जातीय सफ़ाए और मानवता के विरुद्ध अपराध के कारण मुक़द्दमा चलाया जाना चाहिए।

मानवता के विरुद्ध अपराध उन कामों में से है जो रोम संधि के सातवें अनुच्छेद के अंतर्गत अपराध माना जाता है। इस अनुच्छेद के अनुसार मानवता के विरुद्ध अपराध उन कार्यों को कहा जाता है जो एक सरकार अपने लक्ष्यों के लिए आम नागरिकों के ख़िलाफ़ करती है। बच्चों और महिलाओं समेत आम नागरिकों का जनसंहार उन कृत्यों में से है जिन्हें यमन में मानवता के विरुद्ध अपराध का स्पष्ट नमूना कहा जा सकता है।

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निश्चित रूप से जातीय सफ़ाए या मानवता के विरुद्ध अपराध की सबसे अहम निशानियों में से एक, जिसका वर्णन इन अपराधों की परिभाषा में भी हुआ है, मृतकों और घायलों की संख्या है। यमन में संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवताप्रेमी मामलों के समनव्यक जिमी मैक गोल्ड ने अगस्त 2016 में इस बात का उल्लेख करते हुए कि यमन में मारे जाने वालों के सही आंकड़े मौजूद नहीं हैं, कहा कि पहले यह अनुमान लगाया जा रहा था कि अगस्त 2015 के बाद यमन में 6 हज़ार से अधिक लोग मारे गए हैं जबकि अब आंकड़ों से पता चलता है कि मरने वालों की संख्या 10 हज़ार से भी ज़्यादा है। सनआ में स्थित क़ानून व विकास केंद्र ने भी फ़रवरी 2017 में एक रिपोर्ट में बताया था कि सात सौ दिन में सऊदी अरब व उसके घटकों के हमलों में 12041 लोग मारे गए हैं जिनमें 7063 पुरुष, 1870 महिलाएं और 2568 बच्चे हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार यमन के ख़िलाफ़ सऊदी अरब व उसके घटकों के हमलों में 700 दिन में 20 हज़ार से अधिक लोग घायल हुए हैं जिनमें 15687 पुरुष, 1960 महिलाएं और 2356 बच्चे हैं। ये आंकड़े स्पष्ट रूप से इस बात के सूचक हैं कि सऊदी अरब ने यमन पर थोपे गए युद्ध में जातीय सफ़ाया और मानवता के विरुद्ध अपराध किया है।

अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने यमन के ख़िलाफ़ सऊदी अरब के युद्ध के बारे में जो रिपोर्टें जारी की हैं वे इस बात की सूचक हैं कि यमन मानवीय दृष्टि से अत्यंत जर्जर स्थिति में है और यह भी इस देश में सऊदी अरब की ओर से जातीय सफ़ाए और मानवता के विरुद्ध अपराध का एक अन्य उदाहरण है। संयुक्त राष्ट्र संघ बाल कोष (यूनीसेफ़) की ओर से जनवरी 2017 में जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2016 में कुवैत वार्ता की विफलता के बाद यमन पर सऊदी अरब और उसके घटकों के हमलों में वृद्धि हो गई। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यमन की जनता पर सऊदी अरब के हमलों के चलते लगभग एक करोड़ नब्बे लाख लोगों अर्थात इस देश की 70 प्रतिशत आबादी को मानवीय सहायता की ज़रूरत है जिसमें 96 लाख बच्चे शामिल हैं। यूनीसेफ़ की रिपोर्ट के अनुसार 33 लाख बच्चे और गर्भवती महिलाएं भारी कुपोषण का शिकार हैं जिनमें से 5 साल से कम आयु के चार लाख 60 हज़ार बच्चों की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है।

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मार्च 2015 में यमन पर सऊदी अरब के हमले शुरू होने से पहले इस देश में स्वास्थ्य की उचित संभावनाओं तक लगभग 85 लाख लोगों की पहुंच नहीं थी लेकिन सऊदी अरब का हमला शुरू होने के बाद इस संख्या में 67 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह एक करोड़ 41 लाख तक पहुंच गई जिसमें लगभग 83 लाख बच्चे हैं। मार्च 2015 में युद्ध शुरू होने से पहले तक यमन के एक करोड़ 34 लाख लोग पीने के स्वस्थ व स्वच्छ पानी से वंचित थे लेकिन सऊदी अरब के हमले के बाद इस संख्या में 44 प्रतिशत की वृद्धि हो गई और यह एक करोड़ 93 लाख तक पहुंच गई जिसमें एक करोड़ से अधिक बच्चे हैं। विश्व खाद्य संगठन ने भी सितम्बर 2016 में एक रिपोर्ट जारी करके घोषणा की थी कि यमन में एक करोड़ 41 लाख लोग अर्थात इस देश की जनसंख्या का आधे से अधिक भाग खाद्य असुरक्षा में ग्रस्त है। यह संख्या सऊदी अरब द्वारा युद्ध शुरू किए जाने से पहले की तुलना में 355 प्रतिशत अधिक है। यह सारी बातें, किसी देश के लोगों को खाने-पीने की वस्तुओं से वंचित करने की एक संगठित कार्यवाही के अंतर्गत आती हैं और अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय की धारा 7 के अनुसार मानवता के विरुद्ध अपराध का एक नमूना हैं।

सशस्त्र आंतरिक झड़पों के मामले में भी और अंतर्राष्ट्रीय टकराव और युद्ध में भी मानवता प्रेमी अधिकारों का एक मूल सिद्धांत यह है कि हमले पूरी तरह से सिर्फ़ सैन्य लक्ष्यों तक सीमित होने चाहिए। 1977 के पहले पूरक प्रोटोकोल के अनुच्छेद 52 में कहा गया है कि हमले केवल सैन्य लक्ष्यों तक सीमित होने चाहिए। जहां तक संपत्ति की बात है, सैन्य लक्ष्य उन संपत्तियों तक सीमित हैं जो स्थान की प्रवृत्ति, लक्ष्य की उपयोगिता की दृष्टि से सैन्य कार्यवाहियों में प्रभावी भाग रखती हों या उन्हें आंशिक या पूर्ण रूप से ध्वस्त करना, उन पर क़ब्ज़ा करना या उन्हें निष्क्रिय बनाना, वर्तमान हालात में एक निर्धारित सैन्य बढ़त समझा जाता हो।

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इन बातों के दृष्टिगत यमन के ख़िलाफ़ सऊदी अरब के युद्ध में जो बिंदु स्पष्ट है वह यह है कि सऊदी अरब के युद्धक विमानों ने बारंबार यमन के असैन्य क्षेत्रों और इमारतों विशेष कर स्वास्थ्य व शिक्षा केंद्रों पर बमबारी की है। इस प्रकार से कि यमन के विभिन्न क्षेत्रों में लगभग 80 प्रतिशत बुनियादी ढांचा तबाह हो गया है। उदाहरण स्वरूप सऊदी अरब के युद्धक विमानों ने कई बार यमन के विभिन्न प्रांतों में स्कूलों पर हमला किया है। दस जनवरी 2017 में राजधानी सनआ के नेहम क्षेत्र में एक स्कूल पर हुई बमबारी में 8 यमनी विद्यार्थी हताहत और 15 घायल हो गए। स्वतंत्र नागरिक संगठनों की रिपोर्टों के अनुसार यमन पर सऊदी अरब के हमलों को 600 दिन बीत जाने के बाद इस देश के 720 स्कूल और 120 उच्च शिक्षा केंद्र तबाह हो गए हैं जिससे पता चलता है कि सऊदी अरब सैन्य और असैन्य लक्ष्यों पर समान रूप से हमले कर रहा है।

 

ब्रिटेन के गार्डियन समाचारपत्र ने 16 सितम्बर 2016 को अपनी एक रिपोर्ट में अपने जांच दल के अध्ययन के आधार पर लिखा था कि सऊदी अरब के हर तीन में से एक हमला, यमन के स्कूलों, अस्पतालों, मस्जिदों, बाज़ारों और आर्थिक केंद्रों सहित असैन्य ठिकानों पर होता है। मार्च 2015 से लेकर अगस्त 2016 तक यमन पर 8600 से अधिक हवाई हमले हुए जिनमें से 3577 सैन्य क्षेत्रों पर, 3158 असैन्य क्षेत्रों पर और 1882 उन क्षेत्रों पर हुए जिनके बारे में स्पष्ट नहीं है कि वे सैन्य क्षेत्र थे या असैन्य।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यू एच ओ ने भी फ़रवरी 2017 में अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि यमन पर सऊदी अरब के हमलों के नतीजे में इस देश के 274 चिकित्सा केंद्र तबाह हो गए हैं और इस समय इस देश की केवल 45 प्रतिशत चिकित्सा संभावनाएं इस्तेमाल योग्य रह गई हैं। डब्ल्यू एच ओ का कहना है कि दवाओं और खाद्य पदार्थों की कमी के कारण चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोग सभी बीमारों को सेवाएं प्रदान नहीं कर पा रहे हैं। विश्व बैंक की ओर से जारी होने वाले आंकड़ों के अनुसार यमन सिर्फ़ 2015 में ही अपने घरेलू सकल उत्पाद के 28 प्रतिशत से अधिक भाग से हाथ धो बैठा था। इस प्रकार से कि वर्ष 2014 में उसका घरेलू सकल उत्पाद 43229 अरब डालर था जबकि 2015 में वह घट कर सिर्फ़ 37734 अरब डालर रह गया। विश्व मुद्रा कोष ने भी बताया है कि सऊदी अरब की ओर से थोपे गए युद्ध ने यमन के मूलभूत ढांचे को 20 अरब डालर से अधिक का नुक़सान पहुंचाया है। ये आंकड़े उस देश पर सऊदी अरब के हमलों के विध्वंस को दर्शाते हैं जो पश्चिमी एशिया का सबसे ग़रीब अरब देश है।

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लोगों का बेघर या शरणार्थी होना, उन्हें देश निकाला देने या उनके रहने के स्थान से ज़बरदस्ती बाहर निकालने के अर्थ में है और यह भी मानवता के विरुद्ध अपराध है। वस्तुतः युद्ध के कुपरिणामों में से एक बड़ी संख्या में लोगों का बेघर होना और अपना घर बार छोड़ने पर विवश होना है जिसके चलते या तो वे अपने ही देश में भटकते रहते हैं या अन्य देशों में शरण लेते हैं। सऊदी अरब द्वारा थोपे गए युद्ध के कारण यमन की जनता को यह पीड़ा भी सहन करनी पड़ी है। अगस्त 2015 में यूनीसेफ़ की ओर से जारी होने वाली रिपोर्ट में कहा गया था कि सऊदी अरब द्वारा शुरू की गई लड़ाई के सिर्फ़ आरंभिक तीन महीनों में यमन के 13 लाख लोगों को अपना घर-बार छोड़ने पर विवश होना पड़ा। यूनीसेफ़ ने ही जनवरी 2017 में रिपोर्ट दी कि 22 लाख से अधिक यमनी नागरिक अपने ही देश में दरबदर भटक रहे हैं जिनमें आधी संख्या बच्चों की है। सऊदी अरब के युद्ध के कारण यमन के शरणार्थियों की संख्या में 77 गुना की वृद्धि हो गई।