हम और पर्यावरण-39
हमने कहा था कि आज पर्यावरण की रक्षा को टिकाऊ विकास के स्तंभ के रूप में देखा जाता है और लोगों की वास्तविक भागीदारी और जानकारी के बिना यह संभव नहीं है।
इस आधार पर लोगों की भागीदारी के लिए भूमि प्रशस्त करना हर सरकार की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है। समाज में रहने वाले समस्त पुरुष, महिलाएं, युवा और बच्चे शामिल हैं किन्तु इस बीच शोधकर्ताओं का मानना है कि पर्यावरण की रक्षा के लिए महिलाएं बहुत बड़ी पूंजी हैं। प्रकृति और पर्यावण भी ईश्वरीय अमानत है। पूरे इतिहास में पर्यावरण की रक्षा में महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्राचीन काल की पौराणिक कहानियों में बहुत से प्राकृतिक प्रतीकों का संबंध महिलाओं से बताया गया है। जैसे जीवन प्रदान करने वाली, बच्चे को दूध पिलाने वाली, कठिनाइयों को सहन करने वाली, चुप रहने वाली, दूसरों के लिए स्वयं को कुर्बान कर देने वाली और जन्म देने वाली, पृथ्वी माता और सुन्दरता की देवी, स्वास्थ्य की देवी, खेती की देवी आदि नामों से महिलाओं को जाना जाता था। ये कुछ एतिहासिक नमूने हैं जो पर्यावरण की रक्षा में महिलाओं की भूमिका के सूचक हैं।

आज भी पर्यावरण की रक्षा और टिकाऊ विकास में महिलाओं की भूमिका की बात की जाती है। 21वीं शताब्दी की कार्यसूची में भी, जिसे पर्यावरण की सुरक्षा का सबसे बेहतरीन मसौदा करार दिया गया है, महिलाओं को पर्यावरण की रक्षा करने में सबसे अधिक प्रभावी करार दिया गया है। क्योंकि महिलाओं की पारिवारिक और सामाजिक भूमिका होती है, उनकी बातों का प्रभाव होता है और उनका जो आध्यात्मिक व नैतिक व्यवहार होता है उसे सदैव बड़े उद्देश्यों को आगे बढ़ाने और प्राप्त करने का महत्वपूर्ण कारक समझा जाता रहा है और महिलाओं को एक प्रकार के मार्गदर्शक नेता के रूप में याद किया जाता है।
घर के कार्यों को अंजाम देने, बच्चों की शिक्षा- प्रशिक्षा, संस्कृति और पर्यावरण की रक्षा के ज्ञान को भावी पीढ़ियों तक स्थानांतरित करने में आम तौर पर महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बच्चों की प्रशिक्षा की ज़िम्मेदारी प्रायः महिलाओं की होती है और बच्चे जन्म के समय से ही पर्यावरण के साथ संबंध को अपनी मां से सिखते हैं। अगर महिलाएं पर्यावरण के महत्व और उसके संकट की गहराई को समझें तो जरूरी जानकारी को परिवार के सदस्यों और जो लोग उसके परिवार से जुड़े हैं सबको स्थानांतरित कर देंगी विशेषकर यह मूल्यवान धरोहर अपने बच्चों तक हस्तांतरित कर देंगी। गांव-देहात में रहने वाली महिलाएं कृषि के कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के अलावा पर्यावरण व प्राकृतिक स्रोतों की रक्षा और उसे दूषित होने से बचाने में उल्लेखनीय भूमिका निभा सकती हैं। इस आधार पर इस समय पर्यावरण और प्राकृतिक स्रोतों की रक्षा और टिकाऊ विकास के लिए महिलाओं की इस भूमिका में वृद्धि के मार्गों की पहचान महत्वपूर्ण हो गया है।
आज वैज्ञानिक और अध्ययन संबंधी बहुत सारे प्रमाण मौजूद हैं जो ज्ञान- विज्ञान, विचार और पर्यावरण की रक्षा और टिकाऊ विकास सहित विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में महिलाओं की प्रभावी भूमिका के सूचक हैं। इस बात की अनदेखी करते हुए कि बहुत से समाजों में महिलाएं कार्यक्रम बना रही हैं और छोटे- बड़े मामलों का प्रबंधन कर रही हैं, यह भी उनके क्रिया- कलापों से हासिल दूसरे महत्वपूर्ण प्रभाव हैं। जैसे दुनिया में सबसे अधिक खरीदारी महिलाएं करती हैं। परिवार में पति और बच्चों की ज़रूरतों का ध्यान रखना एक ओर और दूसरी ओर विश्व में पूंजीवादी धारणा के आधार पर उपभोगवाद वह चीज़ है जिसका पर्यावरण पर प्रभाव पड़ सकता है। क्योंकि प्रकृति और पर्यावरण आज इंसान के उपभोगवाद विशेषकर पूंजीवाद की भेंट चढ़ गया है और धीरे- 2 उसका संतुलन समाप्त हो गया है। आज के इंसान का जो उपभोगवाद है उसका विश्व में पर्यावरण के विध्वंस पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
पर्यावरण की रक्षा में ग्रामीण परिवारों की महिलाओं की जो भूमिका है उसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती। विश्व के अधिकांश देशों में पानी इकट्ठा करने, उसकी सुरक्षा, ईंधन और चारे की ज़िम्मेदारी महिलाओं की होती है। इसी प्रकार यह भी संभव है कि महिलाएं मछली पकड़ने और खेती का काम भी करें। जंगलों, तालाबों और खेती की ज़मीनों में उनकी गतिविधियों का प्रभाव पड़ता है। प्राकृतिक स्रोतों के साथ महिलाओं का जो निकट संबंध है उससे पर्यावरण की रक्षा की जा सकती है और साथ ही पर्यावरण के परिवर्तनों के साथ समन्वय बनाने में मदद भी मिल सकती है। जंगलों में रहने वाले परिवारों के भोजन, ईंधन, चारे और जीवन की दूसरी आवश्यक चीजों की आपूर्ति पेड़ों से होने वाली आमदनी से होती है। इसी कारण इन क्षेत्रों में रहने वाली महिलाएं जंगल के स्रोतों में कमी से बहुत चिंतित हैं क्योंकि जंगलों के नष्ट हो जाने की स्थिति में उन्हें इस बात की चिंता है कि ईंधन और चारा प्राप्त करने के लिए उन्हें अधिक दूर जाना पड़ेगा और भारी बोझ के साथ दोबारा उन्हें इसी रास्ते को तय करना पड़ेगा।

पानी के स्रोतों के बारे में भी महिलाओं की इसी प्रकार की ज़िम्मेदारी है। अधिकांश गावों और वंचित क्षेत्रों में पानी का प्रबंध प्रायः महिलाएं और बच्चे करते हैं। पानी के स्रोतों के कम हो जाने की स्थिति में पानी का प्रबंध करने के लिए उन्हें लंबा रास्ता तय करना पड़ता है। चूंकि महिलाएं और बच्चे घर के पानी का सबसे अधिक प्रयोग करते हैं इसलिए वे इस ईश्वरीय नेअमत का मूल्य अधिक समझते हैं। दूसरी ओर पर्यावरण के दूषित होने से पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को अधिक आघात पहुंचता है। उदारहण स्वरूप ग्रीन हाउस गैसे अधिक हो जाने जलवायु परिवर्तित हो जाने एवं पर्यावरण के दूषित हो जाने से बहुत सी महिलाओं विशेषकर खेतों में काम करने वाली महिलाओं के जीवन और उनके स्वास्थ्य पर सीधा व बुरा प्रभाव पड़ता है। महिलाओं में विशेष कैंसर में वृद्धि को इसके नमूने के रूप में देखा जा सकता है।
इस आधार पर अब इस बात में कोई संदेह नहीं है कि पर्यावरण की रक्षा के बिना इंसान का विकास संभव नहीं है और महिलाओं की गम्भीर उपस्थिति के बिना पर्यारण की रक्षा संभव नहीं है। इसी कारण 80 के दशक में सरकारों और राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय नीति निर्धारकों ने पर्यावरण की रक्षा में महिलाओं की भूमिका पर विशेष ध्यान दिया है। वर्ष 1985 में नैरोबी में महिलाओं की जो तीसरी अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेन्स हुई थी उसमें पर्यावरण की रक्षा में महिलाओं की भूमिका को मान्यता दी गयी थी। वर्ष 1991 में महिलाओं और पर्यावरण के संबंध में (women in environment and development ) अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेन्स हुई थी। इस कांफ्रेन्स का विषय महिला और पर्यावरण था। इसी प्रकार वर्ष 1992 में पर्यावरण और टिकाऊ विकास के संबंध में संयुक्त राष्ट्रसंघ की जो कांफ्रेन्स हुई थी उसमें टिकाऊ विकास के मूल कारक के रूप में महिलाओं को मान्यता दी गयी। उस कांफ्रेन्स में टिकाऊ विकास के लिए महिलाओं की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता पर बल दिया गया और जिन देशों में महिलाओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया है वहां टिकाऊ विकास की दिशा में ध्यान योग्य कार्य हुए हैं।
आज पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि अगर महिलाओं को शिक्षित किया जाये और प्राकृतिक स्रोतों के उपभोग की उचित संस्कृति उनके पास हो तो वे इस संस्कृति को परिवार के सदस्यों को हस्तांतरित करके पर्यावरण और प्राकृतिक स्रोतों को मजबूत व टिकाऊ बनाने की भूमि प्रशस्त कर सकती हैं। वास्तव में महिलाएं पर्यावरण की रक्षा में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं। इसी कारण विश्व के बहुत से देशों में महिलाओं को शिक्षित बनाने को कार्यक्रम में प्राथमिकता प्राप्त है। पर्यावरण के संबंध में महिलाओं को शिक्षित बनाने का पहला लक्ष्य पर्यावरण की रक्षा और इंसान की ज़िन्दगी को बेहतर बनाना है। पर्यावरण के मामलों की शिक्षा देने का सामाजिक उद्देश्य यह होना चाहिये कि इंसान की उम्र लंबी हो। पर्यावरण की शिक्षा का एक उद्देश्य पर्यावरण और उसमें मौजूद नेअमतों की रक्षा और पर्यावरण तथा उसे दूषित करने वाले वाले कारकों की पहचान के लिए कार्यक्रम का बनाना हो सकता है। इस आधार पर पर्यावरण के संबंध में महिलाओं को शिक्षित बनाने का मूल लक्ष्य पर्यावरण की रक्षा के संबंध में पर्याप्त कारण उत्पन्न करना और उन्हें इस योग्य बनाना है कि वे उन समस्याओं का समाधान कर सकें जो उनके स्वास्थ्य, परिवार और समाज के लिए चुनौती बनी हुई हैं। पर्यावरण की समस्याओं के समाधान के लिए महिलाओं को सक्षम बनाने का अर्थ समाज को सक्षम व मजबूत बनाना है। महिलाओं को सक्षम बनाकर और आवश्यक शिक्षा देकर पर्यावरण की रक्षा में अपनी भूमिका का निर्वाह किया जा सकता है।
दूसरी ओर पर्यावरण से संबंधित मामलों में निर्णय लेने में महिलाओं की भागीदारी की महत्वपूर्ण भूमिका है। आज विश्व के बहुत से क्षेत्रों में महिलाएं पर्यावरण विशेषज्ञ, शिक्षक, नई -2 चीज़ें सामने लाने वाली और पर्यावरण आंदोलनों की नेता हैं। कीनिया में दिवंगत वानगारी ने “ग्रीन बेल्ट मुमेन्ट” की बुनियाद रखी और वर्ष 2004 में उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
पेरू में सामाजिक काम दिलाने वाली आलबिना रूईज़ ने “सुरक्षित शहर” नाम की एक संस्था बनाई है जो पर्यावरण की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इसी प्रकार अफगानिस्तान के बामियान प्रांत की पहली गवर्नर महिला हबीबे सराबी हैं जिन्होंने “बंद अमीर” नाम के पहले नेशनल पार्क की बुनियाद रखी है। इसी प्रकार “फ्रांसीस बिन्की” अमरिकी महिला हैं जो प्राकृतिक स्रोतों की रक्षा परिषद की प्रमुख हैं और उन्होंने पर्यावरण की रक्षा के संबंध में नीति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्पष्ट है कि यह पर्यावरण रक्षा के संबंध में महिलाओं की ओर से की जाने वाले कुछ कामों का संक्षिप्त परिचय है। पूरी दुनिया में बहुत सी महिलाएं व लोग हैं जो पूरे साहस के साथ पर्यावरण की रक्षा के संबंध में व्यस्त हैं यहां तक कि उनका नाम भी नहीं लिया जाता है।