Jun ०६, २०१७ १५:४५ Asia/Kolkata

दुनिया के आधे से अधिक बच्चे अर्थात एक अरब से अधिक बच्चे यातनाओं,शारीरिक पीड़ा और मार पीट का शिकार बनते हैं।

सशस्त्र झड़पों में बच्चों की स्थिति या युद्धों में उनका जनसंहार विशेषकर अतिक्रमणकारी युद्धों और क्षेत्र के छद्म युद्धों में बहुत ही दयनीय है। हम तीसरी सहसत्राब्दी के आरंभ से दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में दसियों हज़ार बच्चों के निर्दयतापूर्ण जनसंहार के साक्षी रहे हैं। बड़े खेद की बात यह है कि विश्व समुदाय एक बार फिर इन जनसंहारों पर चुप्पी साधे हुए है जिसके कारण हम पूरी दुनिया में मानवाधिकारों के घोर हनन और मानवाधिकारों की खिल्ली उड़ती देख रहे हैं। बच्चों का जनसंहार और सशस्त्र झड़पों में उनको प्रयोग करने के साथ साथ विस्थापन, अपंगता, भुखमरी और अकाल जैसे अन्य अपराध उन पर किए जा रहे हैं।

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बच्चे युद्ध से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं जिनका हम आज अंतर्राष्ट्रीय और आंतरिक स्तर पर घोर जनसंहार देख रहे हैं। वर्तमान समय में सीरिया, यमन और फ़िलिस्तीन में सबसे अधिक बलि बच्चों की चढ़ रही है। जिस चीज़ पर सबसे अधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है वह बच्चों के अधिकारों की रक्षा के बारे में मानवता प्रेमी संस्थाओं, अंतर्राष्ट्रीय समझौतों की भूमिका और सरकारों की ज़िम्मेदारियों पर ध्यान केन्द्रित किया जाना है। यह ऐसी भूमिका है जिसकी डालर की चमक के कारण विश्व समुदाय की ओर से अनदेखी कर दी गयी है। वर्तमान समय में हमारे सामने एक ऐसी कटु वास्तविकता है कि हमलावरों को सज़ाए दिलाने के बारे में विश्व की कुछ सरकारों और शक्तियों के राजनैतिक हितों के कारण कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है और सरकारें युद्ध के दौरान आम लोगों विशेषकर महिलाओं और बच्चों की रक्षा के बारे में अपनी ज़िम्मेदारियों की अनदेखी कर देती हैं।

अंतर्राष्ट्रीय मानवता प्रेमी अधिकारों और मानवाधिकारों के सम्मान की एक जगह, सशस्त्र झड़पों में बच्चों के अधिकारों के सम्मान और ख़तरों तथा आपदाओं से उनको सुरक्षित रखना है। इस बात को आज आम जनमत स्वीकार करने को तैयार है। सरकारों द्वारा युद्धों में बच्चों के जनसंहार को रोकने और सैनिकों के रूप में बच्चों को प्रयोग करने से रोकने की बात को अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों में बयान किया गया है। कुछ दशक पहले तक सशस्त्र झड़पों में बच्चों के अधिकारों का हनन, अंतर्राष्ट्रीय अपराध समझा जाता था। इन सबके बावजूद वर्तमान समय में युद्धों में सबसे अधिक बलि बच्चों की चढ़ रही है। युद्धों के दौरान बच्चों की रक्षा के बारे में सरकारों के वादे आज के सबसे महत्वपूर्ण मामले हैं जिन्हें भुला दिया गया है। विश्व समुदाय यह वास्तविकता स्वीकार करता है कि समाज में सबसे अधिक हानि उठाने वाले वर्ग के रूप में बच्चे समाज में मानसिक व शारीरिक समस्याओं का शिकार होते हैं इसीलिए इस समस्या से मुक़ाबले के लिए कोई मज़बूत दस्तावेज़ का पास किया जाना आवश्यक है।

सऊदी अरब की सरकार ने दो वर्ष पूर्व यमन की निहत्थी जनता के विरुद्ध अपने अपराधों का क्रम आरंभ किया। इस दौरान यमन की महिलाओं और बच्चों का व्यापक स्तर पर जनसंहार किया गया, यमन की जनता का चौतरफ़ा परिवेष्टन कर दिया, इस देश की जनता के पास स्वच्छ पीने के पानी और खाने तथा स्वास्थ्य की मूल सुविधाएं नहीं हैं और इस देश की जनता के पास आवश्यकता की दवाएं तक नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के आधार पर यमन की 82 प्रतिशत से अधिक जनता को मानवीय सहयताओं की आवश्यकता है। वहां पर हज़ारों बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। यूनीसेफ़ ने अपने बयान में कबहा है कि कम से कम हर दस मिनट पर एक यमनी बच्चा मौत की नींद सो जाता है। इस बयान में यमनी बच्चे के हताहत होने का कारण यह बताया गया है कि यह बच्चे दस्त, कुपोषण और सांस लेने की नलिका में संक्रमण जैसी बीमारियों के कारण मर जाते हैं। विश्व खाद्य कार्यक्रम ने भी बल दिया है कि यमन के आधे से अधिक बच्चों का विकास रूक गया है और यह बच्चे अपनी आयु के दूसरे देशों के बच्चों की तुलना में शरीर और लंबाई चौड़ाई के हिसाब बहुत छोटे दिखते हैं इससे पता चलता है कि यमन में कुपोषण कितना फैला हुआ है।

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अप्रैल के महीने जारी होने वाली यूनीसेफ़ की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो वर्षों के दौरान यमन पर सऊदी अरब के हवाई हमलों के दौरान कम से कम 1546 बच्चे मर गये और 2450 अन्य बच्चे अपंग हो गये। इसी प्रकार बैरूत में एमनेस्टी इन्टरनेश्नल के क्षेत्रीय कार्यालय के प्रबंधिक लेन मालूफ़ ने जारी वर्ष के आरंभ में एक बयान जारी करके कहा कि यमन में युद्ध से तीस लखा लोग अपने घर बार छोड़ने पर विवश हो गये और हज़ारों आम नागरिकों का जीवन ख़तरे में पड़ गया है। इस प्रकार से कि एक करोड़ अस्सी लाख यमनियों को मानवता प्रेमी सहायताओं की आवश्यकता है।

यमन में संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिनिधि जूलियान हारेंस ने पिछले वर्ष एक बयान में कहा था कि संभावित रूप से यमन में मारे गये बच्चों की संख्या इससे कहीं अधिक है। संयुक्त राष्ट्र संघ के इस अधिकारी ने अपने बयान में कहा कि यमन के बच्चे, बमबारियों और गोली बारियों की भारी क़ीमत अदा कर रहे हैं।

सऊदी अरब ने 26 मार्च 2015 से यमन पर हमले आरंभ किए। इन हमलों में अब तक हज़ारों आम नागरिक हताहत और लाखों विस्थापित हो चुके हैं। इन हमलों में यमन के स्कूलों, स्वास्थ्य केन्द्रों और उपचार सेन्टरों सहित इस देश के आधार भूत ढांचे तबाह हो चुके हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि सऊदी अरब द्वारा यमन के परिवेष्टन और इस देश पर हमले के कारण अब तक हज़ारों यमनी बच्चे मारे जा चुके हैं किन्तु विश्व समुदाय ने सऊदी अरब के अपराधों पर कोई भी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की और सदा से ही बचाव की स्थिति में रहा है। सऊदी अरब ने 26 मार्च 2015 से अमरीका के इशारे पर यमन पर अपने हवाई और तोपख़ानों से हमले आरंभ किए। इन हमलों में अस्पतालों सहित आधार भूत ढांचे भी तबाह हो गये और महिलाओं तथा बच्चों सहित दस हज़ार से अधिक यमनी मारे गये।

यमन में सऊदी अरब ने बच्चों और महिलाओं के विरुद्ध बहुत अपराध किए हैं। इस देश द्वारा यमन के निर्दोष और मासूम बच्चों पर किये जा रहे अपराधों पर संयुक्त राष्ट्र संघ मौन साधे हुए है। पिछले दो वर्ष के दौरान हज़ारों यमनी बच्चे सऊदी बमबारी शिकार हो गये किन्तु खेद की बात यह है कि डालर की चमक ने दुनिया तक यमनी बच्चों की चीख़ व पुकार पहुंचने नहीं दी। इसी परिधि में संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव ने बच्चों के अधिकारों का हनन करने वालों की सूचि से सऊदी अरब का नाम निकाल कर इस शासन को अधिक दुसाहसी कर दिया है।

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इस कार्यवाही से पता चलता है कि विश्व मानवाधिकार संस्था के निकट मानवाधिकार के मापदंड और अर्थ में काफ़ी परिवर्तन हो गया है। सऊदी अरब वर्ष 2013 से इस परिषद का सदस्य है और रोचक बात यह है कि पिछले वर्ष और यमन में इस देश द्वारा किए जाने वाले बच्चों के जनसंहार के बारे में संयुक्त राष्ट्र सं घकी विभिन्न रिपोर्टें सामने आने के बाद भी सऊदी अरब को मानवाधिकार परिषद के स्वतंत्र विशेषकर आयोग का प्रमुख बना दिया गया। यह ऐसी स्थिति में है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार परिषद के 8वें अनुच्छेद के आधार पर यदि इस परिषद के किसी भी सदस्य ने युद्ध अपराध किया तो उसकी सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी किन्तु यमन में इस शासन के घोर अपराधों के बावजूद इस शासन के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही नहीं की गयी।

इन सब बातों से पता चलता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार परिषद ने सऊदी अरब को अपराध करने के लिए सुरक्षित रास्ता दे दिया है और सऊदी अरब इन समर्थनों से धड़ल्ले से बिना किसी रोक टोक के अपने अपराधों को जारी रखेगा।