Jul ११, २०१७ १३:०४ Asia/Kolkata

बच्चों को विश्व का सबसे बड़ा मानव समूह माना जाता है।

विश्व में बच्चों की संख्या 30 प्रतिशत है। विकासशील देशों में यह संख्या 50 प्रतिशत है। बच्चे वर्तमान नस्ल को आने वाली नस्लों के बीच संबंध स्थापित करते हैं, लेकिन कल को प्रभावित करने वाले आज के फ़ैसलों में उनकी कोई भूमिका नहीं होती है। ऐसे फ़ैसले जिनके परिणाम स्वरूप पर्यावरण प्रदूषित होता है। पर्यावरण को प्रदूषित करने में बच्चों की कोई भूमिका नहीं होती है, इसके बावजूद इससे सबसे अधिक वही प्रभावित होते हैं।

यूएनईपी ने अपनी रिपोर्ट बच्चे और पर्यावरण में इस कड़वी सच्चाई की ओर संकेत किया है। यूएनईपी ने अपनी रिपोर्ट की इन शब्दों में शुरूआत की है, पर्यावरण की तबाही बच्चों को तबाह कर रही है। झकझोर कर रख देने वाली इस रिपोर्ट में पर्यावरण की तबाही और बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले उसके प्रभाव की ओर संकेत किया गया है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई, विकासशील देशों में कृषि की ज़मीनों का अत्यधिक प्रयोग और पैदावार में कमी ने इन देशों में बच्चों के पोषण को प्रभावित किया है। यूनिसेफ़ के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़, दक्षिण एशियाई देशों जैसे कि भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान में भोजन का संकट और बच्चों का कुपोषण एक बड़ी त्रासदी का रूप लेता जा रहा है। यूनिसेफ़ के विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में पचास प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। आंकड़ें इस बात को साबित करते हैं कि भारत में पांच वर्ष की आयु से कम के 48 प्रतिशत बच्चों की कुपोषण के कारण सही ग्रोथ नहीं हो पा रही है। बांग्लादेश में 43 प्रतिशत और पाकिस्तान में 37 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं।

यूनिसेफ़ के कार्यकारी निदेशक एंटनी लीक ने 2015 में पेरिस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन से पहले एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, इस रिपोर्ट में इस सच्चाई की ओर संकेत किया गया था कि 69 करोड़ बच्चे अर्थात दुनिया के लगभग एक तिहाई बच्चे जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हैं।

इस रिपोर्ट के मुताबिक़, जिन इलाक़ों में बाढ़ अधिक आती है, उन इलाक़ों में पचास करोड़ से अधिक बच्चे जीवन व्यतीत करते हैं और जिन इलाक़ों में सूखा अधिक पड़ता है, वहां 16 करोड़ से अधिक बच्चे रहते हैं। इसी प्रकार, यूनिसेफ़ के इस अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि इन आंकड़ों को देखकर तुरंत क़दम उठाने की ज़रूरत है, आज के बच्चे जलवायु परिवर्तन में बहुत ही कम भूमिका रखते हैं, लेकिन वे और उनके होने वाले बच्चों को इसके परिणामों को झेलना होगा, पिछड़े हुए समाजों को भी इसके परिणामों को भुगतना होगा। जलवायु परिवर्तन के कारण, बाढ़ें आती हैं, सूखा पड़ता है, भीषण गर्मी होती है और मौसम असमान्य होता है, यह बच्चों के लिए घातक है, जिससे उन्हें कुपोषण का शिकार होना पड़ता है, उन्हें मलेरिया हो जाता है और उन्हें स्वस्थ होने में काफ़ी समय लगता है।

जलवायु परिवर्तन के ख़तरनाक प्रभावों के अलावा, प्रदूषण बच्चों पर घातक प्रभाव डाल रहा है। क्योंकि बच्चे और शिशु बड़ों से अधिक सांस लेते हैं, उनके शरीर में प्रदूषण द्वारा अधिक ज़हरीले कण पहुंचते हैं। दूसरे यह कि शिशु और कम उम्र के बच्चे मुंह से अधिक सांस लेते हैं, इसलिए उन्हें अधिक ख़तरा होता है। वे बड़ों की तुलना में घर से बाहर अधिक वक़्त गुज़ारते हैं, विशेष रूप से गर्मियों में जब प्रदूषण की मात्रा अधिक होती है। उदाहरण स्वरूप, प्रदूषण का बच्चों की ग्रोथ पर बुरा असर पड़ता है। बच्चों को प्रदूषण से सांस की विभिन्न प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक़, प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष पांच साल से कम उम्र के 40 लाख से अधिक बच्चों की मौत हो जाती है। उनकी मौत के कारणों में पॉइज़निंग, इन्फ़ैक्शन और प्रदूषित पानी से होने वाली बीमारियों का नाम लिया जा सकता है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों में लगभग 30 प्रतिशत गंभीर बीमारियां प्रदूषण के कारण होती हैं। प्रतिवर्ष 40 लाख बच्चों को जिनमें अधिकांश विकासशाली देशों में रहते हैं, स्वच्छ पर्यावरण द्वारा मुक्ति प्रदान की जा सकती है।

यह त्रासदियां ऐसी हालत में घट रही हैं कि अधिकांश देशों और अतंरराष्ट्रीय क़ानूनों में बच्चों को स्वच्छ वातावरण उपलब्ध कराने पर बल दिया गया है। उदाहरण स्वरूप, बच्चों के अधिकारों के कन्वेंशन में विशेष रूप से बच्चों के लिए स्वच्छ पर्यावरण की बात की गई है। यद्यपि आज पर्यावरण को दूषित बनाने में बच्चों की कोई भूमिका नहीं है, लेकिन आज के बच्चे समाज की अगली पीढ़ी होंगे। इसलिए उन्हें सही प्रशिक्षण देकर पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद मिल सकती है। यही कारण है कि आज अधिकांश देशों में बच्चों को पर्यावरण की शिक्षा दी जा रही है।

लोगों को अगर बचपन से यह नहीं सिखाया जाएगा कि पेड़ पौधों और जानवरों के साथ कैसा व्यवहार करें, उन्हें प्रदूषण के बारे में नहीं बताया जाएगा और पर्यावरण संबंधित विषयों से अवगत नहीं करवाया जाएगा तो हमें अगले कुछ दशकों में आज से कहीं घातक और गंभीर स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए। इसलिए सरकारों, सार्वजनिक संस्थाओं और एनजीओज़ को चाहिए कि बच्चों को सिखाएं कि ज़मीन पर स्रोत सीमित हैं और पर्यावरण के लिए दिन प्रतिदिन ख़तरा बढ़ता जा रहा है। बच्चों को इस ख़तरे के बारे में अपनी भूमिका से अवगत होना चाहिए, उन्हें पता होना चाहिए कि इंसान न केवल इन ख़तरों को रोक सकता है, बल्कि संभव है एक दिन पर्यावरण की स्थिति को अधिक बेहतर बना सके।

बच्चे यद्यपि पर्यावरण से संबंधित मामलों का सबसे अधिक शिकार होते हैं, लेकिन समाज में पर्यावरण से संबंधित मामलों को जानने के लिए वे सबसे उचित वर्ग हैं। इसी कारण आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह कोशिश की जा रही है कि सरकारें बच्चों और युवाओं को पर्यावरण के बारे में शिक्षा दें और इस संदर्भ में विशेष रूप से छोटी बच्चियों पर ध्यान दें।

इसके लिए ज़रूरी है कि बच्चों को इस स्तर पर पहुंचा दें कि उनमें एक अच्छी सोच जनम ले सके, समस्याओं को समझ सकें और उनका समाधान खोज सकें। पर्यावरण को सुरक्षित रखना वास्तव में एक ऐसी आदत है, जो अगर बचपन से बच्चों में डाली जाए तो वह आगे चलकर विश्वास में बदल सकती है, यह विश्वास बच्चों में ज़िम्मेदारी का एहसास जगाता है कि जिस वातावरण में वह जीवन व्यतीत कर रहा है, उसे सुरक्षित रखे जाने की ज़रूरत है।   

इसके लिए हमें चाहिए कि बच्चों को पर्यावरण और क्षेत्रीय वातावरण के बारे में जानकारी दें। इस प्रकार सरकारों की भी ज़िम्मेदारी होती है कि बच्चों को यह जानकारियां प्रदान करने के लिए ज़रूरी उपकरणों को उपलब्ध करवाए। बच्चे इन जानकारियों से लाभ उठाकर अपने इर्दगिर्द के माहौल और अपनी स्थिति को समझ समकते हैं और भविष्य में पर्यावरण के बारे में लिए जाने वाले निर्णयों में भागीदार बन सकते हैं।

बच्चे कल के वारिस और हमारे और अगली पीढ़ी के बीच संबंधों की स्थापना करने वाले के रूप में पर्यावरण पर सबसे अधिक अधिकार रखते हैं। अगर आज हम बच्चों के लिए स्थिर व स्वच्छ पर्यावरण उपलब्ध नहीं करा सकें, बल्कि उन्हें ऐसा विकास समर्पित करें जो पर्यावरण की क़ीमत पर हो तो वास्तव में हमने आने वाली पीढ़ियों के मूल अधिकारों का हनन किया है, जिसके परिणाम स्वरूप उन तक इंसान की सांस्कृतिक विरासत और धरती पर जीवन व्यतीत करने की विरासत स्थानांतरित नहीं हो सकेगी। हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और ठोस विकास की बुनियाद रखनी चाहिए, आज हमारी यही ज़िम्मेदारी है।