Jul १७, २०१७ १५:०३ Asia/Kolkata

क्षेत्र विशेष कर पाकिस्तान में वहाबियत के फैलाव के कारणों की समीक्षा में, जिसमें अमरीका व ब्रिटेन की गुप्तचर संस्थाओं ने निर्णायक भूमिका निभाई है, जो बातें ध्यान योग्य हैं, उनमें हिंसा, चरमपंथ, सांप्रदायिकता, शिया-सुन्नी विवाद को हवा देना और वहाबियों के अलावा सभी मुसलमानों को काफ़िर बताना इत्यादि प्रमुख हैं।

यही बातें सभी इस्लामी देशों में इस पथभ्रष्ट मत के लक्ष्यों व कार्यक्रमों में शामिल हैं। इस संबंध में सऊदी अरब की वित्तीय मदद, मदरसे, हिंसक चरमपंथी व आतंकी गुट, भड़काऊ भाषणकर्ता और सरकारी कारिंदे वहाबियत के प्रसार में हथकंडों का काम कर रहे हैं।

क्षेत्र विशेष कर पाकिस्तान में वहाबियत और आतंकवाद के प्रसार में आले सऊद की भूमिका इतनी स्पष्ट है कि पश्चिमी हल्क़े भी, जो सऊदी प्रशासन के सबसे बड़े समर्थक हैं, उसकी आलोचना पर विवश हो गए हैं। ब्रोकिंज़ इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता विलियम मेक कांटेस ने न्यूयार्क टाइम्ज़ से बात करते हुए संसार के विभिन्न क्षेत्रों में आतंकवाद के निर्यात में सऊदी अरब और भ्रष्ट वहाबियत की भूमिका के बारे में कहाः संसार में चरमपंथी और आतंकी रवैये के फैलाव में सऊदी अरब आग भड़काने वाले की भी भूमिका निभाता है और आग बुझाने वाले की भी। आले सऊद शासन के अधिकारी विषैले वहाबी विचारों के प्रचारक हैं जिनसे चरमपंथी, सांप्रदायिक और आतंकी विचराधारा का पोषण होता है। इसके बाद वे आतंकवाद से संघर्ष का दावा भी करते हैं।

मशहूर टीकाकार फ़रीद ज़करिया ने भी वाशिंग्टन पोस्ट में वहाबियत और इस्लामी जगत में चरमपंथ के फैलाव में उसकी भूमिका के बारे में अपने एक लेख में लिखाः सऊदी अरब ने इस्लामी जगत में एक दैत्य खड़ा कर दिया है। यद्यपि सऊदी अरब अतीत में वहाबियत का समर्थन करके गुप्त रूप से इस्लामी जगत विशेष कर पाकिस्तान में जातीय व सांप्रदायिक तनाव को हवा देता था और पश्चिमी हल्क़े भी उसका समर्थन करते थे लेकिन वहाबी गुटों की ओर से अपना व्यवहार बदलने और आतंकवाद की ओर उन्मुख होने के कारण वहाबियत के क्रियाकलाप और शिक्षाओं पर वैश्विक हल्क़ों ने अधिक ध्यान देना शुरू कर दिया। तुर्की के एक वरिष्ठ मुस्लिम धर्मगुरू मुहम्मद गोरमेज़ वहाबियत के लक्ष्यों के बारे में कहते हैं। वहाबियत की शिक्षाएं प्लूरलिज़्म या बहुलवाद और सहिष्णुता पर प्रश्न चिन्ह लगाने और ज्ञान व शिक्षा के मुक़ाबले में कठमुल्लेपन के समर्थन पर आधारित हैं। वहाबी, इस्लाम धर्म की भ्रष्ट परिभाषा करने की कोशिश में हैं जिसके चलते हिंसा व आतंकवाद में वृद्धि हो रही है।

सऊदी अरब ने क्षेत्र में वहाबियत के प्रसार के लिए पाकिस्तान का चयन किया जिसमें इसके लिए आवश्यक क्षमताएं मौजूद थीं। सत्तर के दशक में ज़ियाउल हक़ सत्ता में आए, जिन्होंने पाकिस्तान की सेना को धर्मांधता की ओर बड़ी तेज़ी से बढ़ाया। इसके बाद सोवियत यूनियन की लाल सेना द्वारा अफ़ग़ानिस्तान का अतिग्रहण, अमरीका व सऊदी अरब द्वारा अफ़ग़ान संघर्षकर्ताओं को अतिग्रहणकारियों से मुक़ाबले के लिए बहुत अधिक वित्तीय सहायता और ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता तथा संसार में पहली शिया सरकार का गठन जिसने सऊदी अरब को बहुत अधिक चिंतित कर दिया था, ऐसे कारक थे जिन्होंने पाकिस्तान में सऊदी अरब की ओर से वहाबियत के प्रसार के लिए मार्ग प्रशस्त किया। इस्लामाबाद में अंतर्राष्ट्रीय इस्लामी विश्वविद्यालय की स्थापना, वहाबी प्रचारकों का प्रयोग, हज़ारों धार्मिक मदरसों की स्थापना, दसियों मस्जिदों का निर्माण, संचारिक गतिविधियां, पाकिस्तानियों को सऊदी अरब में नौकरी, जमीयते उलमाए इस्लाम जैसे दलों का गठन और लश्करे झंगवी व सिपाहे सहाबा जैसे चरमपंथी गुटों का गठन, पाकिस्तान में वहाबियत के भ्रष्ट विचारों को फैलाने के लिए सऊदी अरब के माध्यम थे।

वर्ष 2015 में अमरीका के एक सिनेटर क्रिस मोर्फ़ी ने अमरीकी विदेश नीति परिषद में भाषण करते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा थाः सऊदी अरब ने पाकिस्तान में लगभग 24 हज़ार मदरसे बनवाए हैं जो घृणा और आतंकवाद के बीज बो रहे हैं और चरमपंथी व आतंकी पैदा कर रहे हैं। इन मदरसों में बड़ी चतुराई से इस प्रकार वहाबियत का पाठ पढ़ाया जा रहा है जो पाकिस्तान को शिया मुसलमानों और पश्चिम के विरुद्ध लड़ाई की ओर बढ़ा रहा है।

सऊदी अरब पर पाकिस्तान के राजनैतिक दलों और सेना की निर्भरता और इस देश के पेट्रो डालर इस बात का कारण बने हैं कि आंतरिक, क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद से मुक़ाबले में इस्लामाबाद सरकार के क्रियाकलाप पर गंभीर आपत्तियों के बावजूद पाकिस्तान अब भी सऊदी अरब की नीतियों का पिछलग्गू बना हुआ है और वहाबी चरमपंथ के संबंध में उसके कार्यक्रमों को आगे बढ़ा रहा है। इस बात के दृष्टिगत कि अफ़ग़ानिस्तान की जनता ने कभी भी अपने देश में वहाबियों की गतिविधियों की अनुमति नहीं दी और यह देश शिया व सुन्नी मुसलमानों के बीच शांति व प्रेम के साथ मिल जुल कर जीवन बिताने का अच्छा नमूना समझा जाता रहा है, पाकिस्तान वहाबियत के प्रसार का केंद्र बना हुआ है जिससे इस देश के लिए आंतरिक, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अत्यंत नकारात्मक और विध्वंसक परिणाम सामने आए हैं।

न्यूयार्क टाइम्ज़ के अनुसार पाकिस्तान जैसे अराजक देशों में सऊदी अरब के पेट्रो डालर और वहाबियत, धर्मों के बीच टकराव का कारण बने हैं और इस देश की स्थिति अत्यंत जटिल हो गई हैं। ब्रिटेन से प्रकाशित होने वाले समाचारपत्रय गार्डियान ने भी इस स्थिति के बारे में लिखा है कि वहाबियत, सऊदी अरब के पेट्रो डालर्ज़ की सूनामी के माध्यम से आतंकवाद फैला रही है लेकिन अमरीकी कांग्रेस इस्लामी गणतंत्र ईरान समेत अन्य देशों पर आतंकवाद का आरोप लगाती है।

पश्चिमी संचार माध्यम, जो हमेशा किसी न किसी तरह सऊदी अरब के अपराधों और पाकिस्तान में अतिवाद व चरमपंथ के प्रसार को छिपाने की कोशिश करते थे, अब सऊदी अरब को सभी सांप्रदायिक हिंसाओं और आतंकवाद के लिए दोषी बता रहे हैं। हफ़िंग्टन पोस्ट ने अगस्त 2014 में अपने एक लेख में कहा थाः अगर आप सऊदी अरब में वहाबियत के इतिहास को नहीं जानते हैं तो फिर आप संसार के विभिन्न क्षेत्र विशेष कर पाकिस्तान में सांप्रदायिक उन्माद और आतंकवाद की सही समीक्षा नहीं कर सकते हैं।

सऊदी अरब ने पाकिस्तान में जो नया खेल शुरू किया है वह सांप्रदायिक लड़ाइयों को फैलाने के लिए छद्म युद्ध भड़काना है। पाकिस्तान को अफ़ग़ानिस्तान से भिड़ाना, दोनों देशों की सीमाओं और इसी तरह अन्य पड़ोसी देशों के साथ पाकिस्तान की समाओं को अशांत बनाना और जमीयते उलमाए इस्लाम जैसे मज़बूत धार्मिक दलों और वहाबियत व आतंकवाद की निंदा करने वाले अफ़ग़ान धर्मगुरुओं के बीच मतभेद पैदा कराना, इस्लामी देशों के बीच टकराव और विवाद के लिए सऊदी अरब के षड्यंत्रों का भाग हैं।

समाचारपत्र इंडीपेंडेंट में एक पश्चिमी टीकाकार पेट्रिक काकबर्न अपने एक लेख में लिखते हैं कि यह एक पाश्विक लड़ाई है जिसमें हज़ारों निर्दोष लोगों की हत्या, जनसंहार, क़ैद, यातनाएं और इसी तरह के अन्य जघन्य अपराध शामिल हैं लेकिन मुसलमान भी और ग़ैर मुस्लिम भी इन अपराधों के पीछे काम करने वाले हाथों और उनके लक्ष्यों के बारे में कुछ नहीं जान पाते।

इस समय पाकिस्तान और क्षेत्र के राजनैतिक हल्क़ों व टीकाकारों के बीच जो बात ध्यान का केंद्र बनी हुई है वह यह है कि वहाबी चरमपंथी और सऊदी अरब, आतंकवाद से संघर्ष में अमरीका व अन्य पश्चिमी देशों के भागीदार बने हुए हैं और आतंकवाद से तथाकथित मुक़ाबले में पाकिस्तान की सरकार की सैन्य और आर्थिक सहायता कर रहे हैं जबकि अफ़ग़ानिस्तान के अधिकारियों का कहना है कि आतंकवाद और चरमपंथ की जड़ पाकिस्तान में है और इस देश की सरकार आतंकवाद से संघर्ष में बहुत अधिक आनाकानी कर रही है।

 

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