Jul २३, २०१७ १८:४७ Asia/Kolkata

ईरान के दक्षिणी और उत्तरी क्षेत्रों में 2700 किलोमीटर से अधिक जल क्षेत्र है जिसके कारण वह जलचरों से संपन्न गिने चुने देशों में से एक है।

दुनिया में लोगों की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के मार्गों में से एक जलचर भंडार है। हालिया कुछ दशकों के दौरान दुनिया में बढ़ती आबादी के कारण प्रोटीन की आवश्यकता का आभास किया जाने लगा। विश्व खाद्य संस्था फ़ाओ की रिपोर्ट के आधार पर यदि जलचरों के प्रयोग का स्तर अपनी जगह बाक़ी रहेगा, वर्ष 2030 तक मानव समाज के लिए वर्तमान उत्पाद से चार करोड़ पचास लाख टन जलचरों की आवश्यकता होगी। यह ऐसी स्थिति में है कि दुनिया के समुद्रों और नदियों में पाये जाने वाले प्राकृतिक भंडारों में दिन प्रतिदिन कमी होती जा रही है। इस प्रकार से कि अतीत में प्रतिवर्ष दस करोड़ टन जलचरों का शिकार किया जाता रहा है किन्तु वर्तमान समय में यह संख्या घटकर 5 करोड़ दस लाख टन तक हो गयी है। जलचर भंडारों में इस प्रकार की कमी का एक मात्र कारण यह है कि इनका बेरोक टोक शिकार किया जाता है जिसने जलचरों विशेषकर झींगे के शिकार पर नकारात्मक प्रभाव डाला है।

Image Caption

 

झींगा उन जलचरों में है जो आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है जो समुद्रों, नमकीन और मीठे पानी तथा मध्यरेखा के आस पास के क्षेत्रों में पाए जाते हैं। झींगे के बारे में बताया जाता है कि वह कम गहरे या आधे गहरे पानी में सामूहिक रूप से रहते हैं। झींगे समुद्र के तल में रहते हैं। वह दिन में समुद्र तल पर मौजूद तलछटों में छिप जाते हैं और रात के समय खाने की तलाश के लिए अपनी शरण स्थली से निकलते हैं। यही कारण है कि शिकारियों को जब झींगे का शिकार करना होता है कि वह इनकी तलाश में रात में निकलते हैं।

अधिकतर झींगों को अपना आरंभिक जीवन चक्र चलाने के लिए नमकीन पानी की आवश्यकता होती है। इसीलिए वह ऐसे पानी में जीवन व्यतीत करते हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समुद्र से मिला हुआ होता है। झींगे का जीवन चक्र चार चरणों पर आधारित होता है पहला अंडा, लारो, पोस्ट लारो और व्यस्क। यह काई, प्लेंग्टोन, डियाटोमे, लारो और सीप से अपनी आहार आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। मादा झींगों की अपेक्षा नद झींगे आकार में बड़े होते हैं। सभी झींगे तालाब को खाली करके निकाले जा सकते हैं। मछली की अपेक्षा झींगा शीघ्र खराब होकर दुर्गन्ध उत्पन्न करता है। इसे पकड़ने के तुरन्त बाद बर्फ में रखा जाय तथा निर्यातकों अथवा शहरों में बड़े होटलों से सम्पर्क स्थापित करते हुए झींगा की बिक्री की जाय ताकि उचित मूल्य मिल सके। ताजा पानी का झींगा (मैक्रोब्रैकियम माल्‍कोमसोनी) दूसरे स्थान पर सबसे तेजी से बढ़ने वाला झींगा है।बीज उत्‍पादन के लिए ब्रुडस्‍टॉक और मादा अनिवार्य तत्त्व हैं। इन प्रजातियों में प्रजनन क्षमता का विकास कृषि-जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

Image Caption

 

परिपक्‍व नर झींगे में मेटिंग प्री-मेटिंग मोल्‍ट के तत्‍काल बाद संभव होती है जबकि स्‍पानीकरण मेटिंग के बाद होता है। अंडों को सेने की अवधि 10 से 15 दिन होती है जो पानी के 28-30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर निर्भर करता है। निचले तापमान पर यह 21 दिन से ज्‍यादा हो जाता है। पूरी तरह विकसित जोइया अपने शरीर को खींचकर अंडे के खोल को फोड़ कर बाहर निकल आता है और तैरने लगता है।
लारवा को पालने की विभिन्‍न तकनीकें विकसित की गई हैं- स्थिर, फ्लो-थ्रू, साफ या हरा पानी, बंद या आधा बंद, वितरण प्रणाली के साथ या उसके बगैर। हरे पानी की तकनीक में अन्‍य के मुकाबले लारवा के बाद का उत्‍पादन 10 से 20 फीसदी ज्‍यादा होता है। उच्‍च पीएच और अनियंत्रित काई के विकास के कारण मृत्‍यु दर ज्‍यादा होती है। हरे पानी में चारे की अधिकता के कारण वयस्‍क आर्टेमिया की बहुतायत हो जाती है जो माध्‍यम में अमोनिया की मात्रा को बढ़ा देता है। पोस्‍ट-लारवा का बड़ी संख्‍या में उत्‍पादन एयरलिफ्ट बायो फिल्‍टर री-सर्कुलेटरी प्रणाली से संभव हो सकता है। लारवा को इस अवस्‍था में आने के लिए 11 विकास चरणों से 39-60 दिनों के भीतर गुजरना पड़ता है जिसमें पानी की लवणता 18 से 20 फीसदी और तापमान 28 से 31 डिग्री होनी चाहिए। इसकी क्षमता दस से बीस पोस्‍ट-लारवा प्रति लीटर होनी चाहिए।

Image Caption

 

लारवा पालन में चारे के रूप में आर्टेमिया नॉपली, सूक्ष्‍म जूप्‍लांकटन, खासकर क्‍लेडोसेरान, कोपेपॉड, रोटिफर, झींगों और मछलियों का माँस, केंचुए, घोंघे, कीड़े, एग कस्‍टर्ड, मुर्गी/बकरे के मांग के कटे हुए टुकड़े आदि का इस्‍तेमाल किया जाता है। इनमें आर्टेमिया सबसे बेहतर चारा है। यह विकास के पहले चरण में उपलब्‍ध कराया जाता है

लारवा को पैदावार में कई मुश्किल होती है क्‍योंकि इनकी रेंगने की आदत होती है। इसीलिए टर्न डाउन और ड्रेन की विधि बाहर निकालने के लिए अपनाई जाती है। पोस्‍ट लारवा चरण तक आने में लंबी अवधि लगने के कारण उपर्युक्‍त तरीके न तो उपयोगी हैं और न ही सुरक्षित। इसके अलावा लारवल टैंक में पोस्‍ट लार्वा की उपस्थिति से विकसित लार्वा का विकास प्रभावित होता है। इसीलिए, इन्‍हें बाहर निकालने के लिए एक आदर्श उपकरण की जरूरत पड़ती है। इसके लिए स्ट्रिंग शेल बनाया गया है जिसे सफल तरीके से चरणबद्ध रूप से पोस्‍ट लार्वा निकाला जाता है। इनके बचने और उत्‍पादन की दर 10 से 20 प्रति लीटर होती है।

फ़ार्स की खाड़ी और ओमान सागर के जल क्षेत्र इन ईश्वरीय विभूतियों से संपन्न हैं। फ़ार्स की खाड़ी और ओमान सागर में अब तक 10 प्रकार के झींगों की पहचान और शिकार किया गया है । इनमें से सबसे प्रसिद्ध लाबस्टर या शाह मीगू है जिसका भार लगभग आधा किलोग्राम होता है। इस प्रकार के झींगे आम तौर पर ओमान सागर के तटवर्ती क्षेत्रों में शिकार किए जाते। गुलाबी, हिंदी, मूज़ी, सफ़ेद और खंजरी प्रकार के झींगे इन क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इन क्षेत्रों में पाये जाने वाले झींगों में से 80 प्रतिशत गुलाबी झींगे होते हैं। मूज़ी या केले के आकार का झींगा दूसरे नंबर पर है जो हुर्मुज़गान के तटवर्ती क्षेत्रों में पाए जाते हैं। सफ़ेद, हिंदी और काले बबरी झींगे, बड़ा शरीर रखने के बावजूद, कम स्थान पर पाय जाने के कारण आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं होते।

Image Caption

 

झींगा पालन का इतिहास बहुत पुराना है किन्तु व्यापारिक पालन पोषण के लिए पहली बार 1960 में यह क्रम जापान में आरंभ हुआ। वर्तमान समय में प्रोटीन उत्पादन के रूप में दुनिया के बहुत से देश झींगा उत्पादन करते हैं। ईरान उन देशों में एक है जिसने इस क्षेत्र में बहुत अधिक पूंजीनिवेश किया है और ख़ोज़िस्तान, बूशहर, हुर्मुज़गान, सीस्तान व ब्लोचिस्तान सहित बहुत से प्रांतों में इसके पालन पोषण के लिए कई प्रतिष्ठान बनाए हैं।

ईरान के पास जलचरों सहित कृषि के विभिन्न क्षेत्रों में उचित क्षमता है। ईरान के 1800 किलोमीटर के दक्षिणी तटवर्ती तथा फ़ार्स की खाड़ी तथा ओमान सागर के तट पर बिना उपजा की अपार क्षमता वाली ज़मीने पायी जाती हैं। व्यापारिक दृष्टि से ईरान में झींगा पालन का इतिहास दो दशक पूर्व पलटता है। ईरान में इसी प्रकार मत्स्य पालन का इतिहास भी बहुत पुराना है। ईरान में हुर्मुज़गान प्रांत झींगा पालन का केन्द्र है और इसी प्रांत में पहली बार झींगे के उत्पादन और उसके पालन की गतिविधियां हुई हैं। झींग के पालन के प्रथम वर्षों में, हरे बबरी झींगे का पहली बार पालन किया गया और उनकी रक्षा की गयी। ईरान में झींगे के पालन का क्रम अर्ध घनत्व शैली से आरंभ हुआ। इस शैली के अंतर्गत हर हेक्टेयर में 10 से 20 हज़ार लारवा को कई तलाबों में एकत्रित किया जाता है।

Image Caption

 

चिकित्सा की दृष्टि से ईरानी झींगे इतने अच्छे और स्वस्थ्य होते हैं कि फ़्रांस और स्पेन की कंपनियां पहले से ही ईरानी झींगों का आर्डर दे देती हैं। ईरान में उत्पादित होने वाले 90 प्रतिशत से अधिक झींगें, दक्षिणी फ़ार्स की खाड़ी, यूरोपीय संघ और जापान निर्यात होते हैं।