Aug ०९, २०१७ १५:०२ Asia/Kolkata

इराक़ के प्रधानमंत्री हैदर अलएबादी ने 9 जुलाई को दाइश के आतंकियों के चंगुल से मूसिल नगर की पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी।

मूसिल की आज़ादी कई कारणों से बहुत अहम है, जैसे यह कि यह नगर उत्तरी नैनवा प्रांत की राजधानी और इराक़ का दूसरा बड़ा शहर है और अबू बक्र अलबग़दादी ने सन 2014 में यहीं से इस्लामी ख़िलाफ़त की घोषणा की थी। यही वजह है कि मूसिल की आज़ादी, इराक़ में दाइश नामक दानव की मौत के अर्थ में है बल्कि दाइश के आतंकियों ने भी मूसिल की आज़ादी के इस संदेश को समझ कर इस शहर की नूरी मस्जिद को धमाके से उड़ा दिया ताकि मूसिल की आज़ादी का जश्न इस मस्जिद में न मनाया जा सके।

 

दाइश के आतंकियों के हाथों तीन साल में इराक़ के लगभग चालीस प्रतिशत भाग पर क़ब्ज़े के इस देश पर अत्यंत बुरे प्रभाव पड़े हैं। लाखों लोग हताहत व घायल हुए, तीस लाख से अधिक लोग बेघर हुए और इस देश का बुनियादी ढांचा तबाह हो गया। ये इराक़ के चालीस प्रतिशत भाग पर दाइश के मनहूस क़ब्ज़े के सबसे अहम नकारात्मक परिणाम हैं। मूसिल की स्थिति इराक़ के अन्य क्षेत्रों से अधिक बुरी है। दाइश के क़ब्ज़े में जाने से पहले मूसिल नगर की आबादी 18 लाख थी जिसमें से 8 लाख 75 हज़ार यानी लगभग 50 प्रतिशत लोग बेघर हो चुके हैं। मूसिल के बहुत से बेघर लोग संयुक्त राष्ट्र संघ शरणार्थी उच्चायोग और पलायन की अंतर्राष्ट्रीय संस्था की मदद से जीवन बिता रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ शरणार्थी उच्चायुक्त ने दो जून 2017 को घोषणा की है कि उसे जारी वर्ष के अंत तक मूसिल के बेघर लोगों की मदद जारी रखने के लिए कम से कम साढ़े बारह करोड़ डॉलर की ज़रूरत है।

इस समय कि जब इराक़ के दो शहर हुवैजा और तल अफ़र दाइश के आतंकियों के क़ब्ज़े में हैं, बेघर लोगों की अपने घर-बार की ओर वापसी और कुल मिला कर दाइश के क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों में जीवन की बहाली पर ध्यान दिया जा रहा है और उन क्षेत्रों का पुनर्निर्माण, इराक़ सरकार की सबसे अहम व गंभीर प्राथमिकता बन चुका है। इस आधार पर सबसे अहम सवाल यह है कि इराक़ की सरकार को दाइश के क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों के पुनर्निर्माण के लिए किन चुनौतियों का सामना है?

इराक़ की सरकार को जिस पहली चुनौती का सामना है वह आर्थिक स्रोतों की कमी है क्योंकि इराक़ में दाइश की तीन साल तक की उपस्थिति के कारण जो तबाही हुई है वह इस सीमा तक है कि मूसिल जैसे शहर में एक नया शहर बनाना होगा। नैनवा प्रांत के उप राज्यपाल एमाद रशीदुद्दीन ने इस संबंध में कहा कि मूसिल शहर पूरी तरह से तबाह हो गया है। पश्चिमी मूसिल की तबाही उसके पूर्वी भाग से कहीं अधिक है क्योंकि पश्चिमी मूसिल 99 प्रतिशत तक तबाह हो चुका है। नैनवा प्रांत की पुनर्निर्माण समिति के निदेशक के अनुसार मूसिल की तीन चौथाई सड़कें, लगभग सभी पुल, 65 प्रतिशत बिजली आपूर्ति का नेटवर्क और इसी तरह पानी की सप्लाई के नेटवर्क का पूरा ढांचा तबाह हो चुका है।

जेक वाटलिंग ने भी 11 जुलाई 2017 को एटलांटिक समाचारपत्र में प्रकाशित होने वाले एक लेख में, जिसका शीर्षक थाः “इराक़ का पुनर्निर्माण किस तरह किया जा सकता है?” लिखा थाः वर्ष 2014 में दाइश के हाथ में जाने से पहले तक मूसिल औसत व लघु उद्योग ओर दवाएं बनाने के कारख़ानों का मेज़बान केन्द्र और उन शहरों में से एक था जिनमें फ़र्नीचर, चमड़े और कपड़े के अत्यधिक उद्यमी थे लेकिन ये सारे उद्योग तबाह हो गए। मूसिल में दवाएं बनाने के अत्याधुनिक कारख़ाने वर्ष 2016 में तथाकथित दाइश विरोधी अंतर्राष्ट्रीय गठजोड़ के हमलों में तबाह हो गए।

इराक़ में संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवीय मामलों की समन्वयक लिज़ ग्रांड ने जून में कहा था कि मूसिल में पानी के नेटवर्क, स्कूलों और अस्पतालों को पुनः खोलने और बिजली के नेटवर्क की मरम्मत जैसी आधारभूत संरचनाओं के पुनर्निर्माण पर लगभग एक अरब डालर का ख़र्च आएगा। लिज़ ग्रांड ने जो धनराशि बताई है वह सिर्फ़ इस शहर में त्वरित मानवता प्रेमी सहायता के लिए है और अलअंबार समेत अन्य क्षेत्रों के लोगों के लिए मानवता प्रेमी सहायता के लिए आवश्यक राशि इसमें शामिल नहीं है।

बहरहाल इराक़ के पुनर्निर्माण के लिए केवल मानवता प्रेमी सहायताओं की नहीं बल्कि बहुत बड़े बजट की ज़रूरत है। एक अनुमान के अनुसार दाइश के कारण तबाही का शिकार होने वाले क्षेत्रों के पुनर्निर्माण के लिए इराक़ को लगभग 60 अरब डालर की ज़रूरत है। इराक़ी सरकार के अनुमान के अनुसार जो इलाक़े दाइश के क़ब्ज़े में थे उनके पुनर्निर्माण के लिए 100 अरब डालर की ज़रूरत है लेकिन इराक़ की सरकार के लिए इतनी बड़ी रक़म की आपूर्ति संभव नहीं है और उसे अंतर्राष्ट्रीय मदद की ज़रूरत है।

“मूसिल पूरी तरह तबाह हो गया” शीर्षक के अंतर्गत 17 जुलाई को एटलांटिक समाचारपत्र में प्रकाशित होने वाले एक लेख में ईगोर कोज़ोव ने लिखा है कि दाइश के क़ब्ज़े के कारण तबाह होने वाले क्षेत्रों के पुनर्निर्माण के संबंध में इराक़ सरकार की परियोजना पर लगभग 100 अरब डालर का ख़र्चा आ सकता है और इसकी दूसरे विश्व युद्ध के बाद मार्शल परियोजना से तुलना की जा सकती है।

इराक़ के पुनर्निर्माण के संबंध में इस देश की सरकार के सामने जो दूसरी बड़ी समस्या है वह यह है कि यद्यपि इराक़ से दाइश का पतन हो गया है लेकिन इस गुट की ओर से भय व चिंता अब भी बाक़ी है। शिनहुआ समाचार एजेंसी ने दस जुलाई को “मूसिल की विजय के बाद इराक़ को पुनर्निर्माण और एकजुटता की चुनौती का सामना होगा” शीर्षक के अंतर्गत लिखा है कि दाइश, एक आतंकी ख़तरे के रूप में अब भी इराक़ में मौजूद है और यह गुट पुनः संगठित हो सकता है। दाइश, छापामार हमलों की साज़िशें तैयार करने और उन्हें अंजाम देने में सक्षम है।

जेक वॉटलिंग ने भी एटलांटिक समाचारपत्र में प्रकाशित होने वाले अपने लेख में लिखा है कि लघु व औसत कंपनियों का विकास जिसकी इराक़ को इस समय बहुत ज़रूरत है, विदेशी पूंजी निवेश से ही संभव है। इराक़ के पुनर्निर्माण के लिए एक और मार्शल परियोजना की ज़रूरत है लेकिन सुरक्षा संबंधी चिंता इराक़ में इस प्रकार की परियोजना की राह में बड़ी रुकावट है। वास्तव में दूसरे विश्व युद्ध के बाद के माहौल में मार्शल परियोजना की सफलता की एक बड़ी वजह यह थी कि यूरोपीय देशों को सुरक्षा संबंधी समस्याओं का सामना नहीं था लेकिन इस समय अगर इराक़ में उस जैसी परियोजना को दृष्टिगत रखा जाए तो सुरक्षा संबंधी समस्याएं इस बात का कारण बनेंगी कि यह योजना, यूरोप की तरह उपयोगी सिद्ध न हो।

दाइश के क़ब्ज़े में रहने वाले क्षेत्रों के पुनर्निर्माण के संबंध में इराक़ सरकार के समक्ष तीसरी बड़ी चुनौती यह है कि इस क्षेत्र को आर्थिक मैदान में स्रोतों की कमी के अलावा कई अन्य अहम समस्याओं का सामना है जिनका मुख्य कारण आर्थिक भ्रष्टाचार है। दूसरे शब्दों में अगर इराक़ में धन की समस्या विदेशी मदद और अंतर्राष्ट्रीय पूंजी निवेश से हल भी हो जाए तब भी मूसिल पर दाइश के क़ब्ज़े से पहले तक इराक़ के अनुभव ने यह सिद्ध किया है कि इस देश की अर्थव्यवस्था में जो भ्रष्टाचार व्याप्त हो चुका है वह इस बात का कारण बनेगा कि विदेशी आर्थिक सहायता और पूंजी निवेश से सही ढंग से लाभ न उठाया जा सके। वर्ष 2016 में आर्थिक भ्रष्टाचार के मामले में इराक़ संसार के 176 देशों में सबसे भ्रष्ट दस देशों में शामिल था।

ईगोर कोज़ोव ने “मूसिल पूरी तरह तबाह हो गया” शीर्षक के अंतर्गत एटलांटिक समाचारपत्र में प्रकाशित होने वाले अपने लेख में लिखा है कि इराक़ के पुनर्निर्माण के विशेष निरीक्षक की वर्ष 2013 की रिपोर्ट के अनुसार सन 2003 से 2013 तक लगभग 60 अरब डालर इस देश के पुनर्निर्माण पर ख़र्च हुए लेकिन ग़लत विदेशी भागीदारों के चयन, इराक़ में दफ़्तरी भ्रष्टाचार, ग़लत प्राथमिकताओं, ग़लत कार्यक्रमों वाली परियोजनाओं और सुरक्षा संबंधी समस्याओं के चलते इसका कोई विशेष परिणाम दिखाई नहीं दिया। इस दौरान इराक़ की सरकार ने 138 अरब डालर ख़र्च  किए लेकिन उसका भी कोई ख़ास नतीजा नहीं निकला।

तेल की आय में भारी कमी, इराक़ के पुनर्निर्माण के संबंध में इस देश की सरकार के समक्ष एक अन्य बड़ी चुनौती है। इस बारे में मैथ्यू श्वेत्ज़र ने जनवरी 2017 में अपने एक लेख में लिखा था कि इराक़ का 99 प्रतिशत निर्यात, 90 प्रतिशत सरकारी आय और 80 प्रतिशत विदेशी आय तेल के निर्यात पर निर्भर है लेकिन तेल के मूल्य में भारी कमी और हर बैरल तेल का दाम घट का 50 डालर और उससे भी नीचे पहुंच जाने के कारण इस देश की अर्थव्यवस्थ को भारी क्षति पहुंची है। वास्तव में दाइश के अलावा तेल के मूल्य में कमी ने भी इराक़ की अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर समस्याएं पैदा कर दी हैं।

तेल की आय में कमी इराक़ के लिए अहम आर्थिक समस्याओं का कारण बनी है। नैनवा की प्रांतीय परिषद के उप प्रमुख नूरुद्दीन क़ुबलान ने बताया है कि इराक़ सरकार ने वर्ष 2013 में नैनवा प्रांत के लिए 738 अरब दीनार का बजट विशेष किया था लेकिन यही बजट 2017 में कम हो कर 52 अरब दीनार हो गया जो इस प्रांत के लिए अत्यंत कम है।

कुल मिला कर यह कि इराक़ से दाइश के आतंकियों के ख़ात्मे के बाद इस गुट के नियंत्रण में रह चुके क्षेत्रों के पुनर्निर्माण का विषय, इस देश की सरकार के लिए सबसे अहम प्राथमिकता होनी चाहिए। वस्तुतः इराक़ का भविष्य न केवल इराक़ियों के लिए बल्कि क्षेत्र और विश्व समुदाय के लिए भी अहम है। दाइश के आतंकियों के नियंत्रण में रह चुके क्षेत्रों के पुनर्निर्माण के मार्ग में अनेक बड़ी समस्याएं है जिनमें इन क्षेत्रों की बहुत अधिक तबाही, आर्थिक स्रोतों की कमी, आर्थिक भ्रष्टाचार और तेल के मूल्य में कमी सबसे अहम हैं।