Aug २१, २०१७ १६:२४ Asia/Kolkata

जैसाकि आप जानते हैं कि वर्तमान समय में पूरे विश्व में प्रदूषण बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है।

मट्टी, पानी और वायु सभी लगातार प्रदूषित होते जा रहे हैं। इस समय प्रदूषण न केवल हमारे लिए बल्कि पूरे संसार के लिए बहुत बड़े संकट के रूप में सामने है। प्रदूषण से न केवल मानव जाति बल्कि धरती पर रहने वाले सभी जीव-जंतु भी बहुत बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं। एक तरफ़ प्राकृतिक संपदा का दोहन लगातार बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ़ औद्योगिक कचरे में बहुत तेज़ी से बढ़ोत्तरी हो रही है।

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जानकारों का कहना है कि पर्यावरण को हो रही क्षति से बचाने का सबसे अच्छा मार्ग, रिसाइक्लिंग की शैली को अपनाना है। रीसाइक्लिंग वास्तव में बेकार या प्रयोग में न लाए जाने वाले उत्पादों को पुन: प्राप्त करने तथा इस सामग्री को फिर से उपयोगी उत्पादों में बदलने की प्रक्रिया है। यह उत्पाद, कई बार अपनी मूल अवस्था से बिलकुल ही अलग होते हैं। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि वे पहले की तुलना में अच्छे और कम ख़र्चीले होते हैं। कहते हैं रीसाइक्लिंग से पर्यावरण को कम क्षति होती है तथा इससे पानी और बिजली की भी काफ़ी बचत की जा सकती है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कचरे से पर्यावरण को होने वाली क्षति से बचाने सबसे अच्छा मार्ग यह है कि कचरे में मौजूद वस्तुओं को अलग-अलग करके उनकी अलग-अलग रीसाइक्लिंग की जाए। काग़ज़ , धातु, प्लास्टिक और कांच आदि की रीसाइक्लिंग से पर्यावरण को होने वाली क्षति से काफ़ी हद तक बचाया जा सकता है।

 

जिन वस्तुओं को प्रयोग करके सामान्यत: कचरा समझते हुए फेंक दिया जाता है वे पूरी तरह से ख़राब नहीं होतीं बल्कि उनमें से कुछ का पुन: प्रयोग किया जा सकता है। जिन चीज़ों को प्रयोग करके कचरे के रूप में फेंक दिया जाता है उसमें से एक काग़ज़ भी है। काग़ज़ को सामान्यत: लकड़ी से बनाया जाता है। एक टन काग़ज़ बनाने के लिए दो टन लकड़ी की आवश्यकता होती है। फिर काग़ज़ बनाने के लिए जो लुगदी तैयार की जाती है उसमें भी भारी मात्रा में लकड़ी का ही प्रयोग होता है। ऐसे में कहा जा सकता है कि जंगलों की कटाई को रोकने के लिए यह काम किया जाना चाहिए कि उन चीज़ों को रिसाइकिल किया जाए जिनके निर्माण के आरंभिक तत्वों में लकड़ी या वृक्षों की भूमिका होती है।

कहते हैं कि विश्व में ऊर्जा के प्रयोग में काग़ज़ को पांचवे स्थान पर माना गया है। अन्य उदयोगों की तुलना में काग़ज़ उद्योग में एक टन की पैदावार के लिए दूसरे उत्पादों के मुक़ाबले में पानी का अधिक प्रयोग होता है। लकड़ी से काग़ज़ बनाने के लिए प्रति टन उत्पादन हेतु 4 लाख 40 हज़ार लीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है जबकि उसको प्रयोग किये गए काग़ज़ से पुन: काग़ज़ बनाने में 1800 लीटर पानी का प्रयोग किया जाता है। जानकारों का कहना है कि रिसाइक्लिंग के माध्यम से बनाया जाने वाला काग़ज़, पर्यावरण को कम नुक़सान पहुंचाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि काग़ज़ की रीसाइक्लिंग से पानी की 50 प्रतिशत और ऊर्जा की 64 प्रतिशत बचत की जा सकती है जबकि इससे पर्यावरण को होने वाली क्षति लगभग 74 प्रतिशत कम होगी। एक व्यक्ति पूरे साल जो काग़ज़ प्रयोग करता है उसे यदि एकत्रित किया जाए तो उसमें प्रयोग होने वाली लकड़ी उतनी होगी जितनी कम से कम डेढ़ वृक्षों से निकलती है।

इस प्रकार से यदि देखा जाए तो मनुष्य के प्रयोग में आने वाले काग़ज़ के लिए प्रति वर्ष करोड़ों वृक्षों की आवश्यकता होगी।

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एक अन्य पदार्थ या वस्तु जिसकी रीसाइक्लिंग करके पर्यावरण को सुरक्षित बनाया जा सकता है वह है प्लास्टिक। इस समय पूरे विश्व में पलास्टिक का प्रयोग बहुत ही बढ़ चुका है। प्लास्टिक उदयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। दुनिया में आजकल पैट्रोकैमिकल पदार्थों में सबसे अधिक उत्पाद प्लास्टिक का किया जाता है। दैनिक जीवन के प्रयोग की बहुत सी वस्तुएं प्लास्टिक से बनाई जा रही हैं। आज बाज़ार में रंगारंग और विभिन्न प्रकार की प्लास्टिक मौजूद हैं। लोगों का मानना है कि अधिक टिकाऊ होने के कारण प्लास्टिक का प्रचल तेज़ी से बढ़ा है। हालांकि प्लास्टिक के नष्ट होने में बहुत समय लगता है किंतु वर्तमान समय में अब ऐसी प्लास्टिकका निर्माण किया जा रहा है जो पर्यावरण को कम से कम क्षति पहुंचाए और कम समय में नष्ट हो जाए।

विशेषज्ञों का कहना है कि संसार में प्रतिवर्ष 100 मिलयन प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है। इसमें से 42 प्रतिशत का प्रयोग पैकिंग इन्डस्ट्री में होता है। अमरीका के एक केन्द्र की ओर से कराए गए सर्वेक्षण से पता चलता है कि प्लास्टिक की रीसाइक्लिंग से बिजली के प्रयोग कई गुना कम किया जा सकता है। उदाहरण स्वरूप प्लास्टिक की बोतलों की रीसाइक्लिंग से , नई प्लास्टिक की बोतले बनाने की तुलना में 50 से 60 प्रतिशत ऊर्जा की बचत की जा सकती है। कहा जाता है कि रीसाइक्लि की जाने वाली प्लास्टिक के प्रयोग के बाद पुन: रीसाइक्लि किया जा सकता है। हालिया दिनों में टायरों की रीसाइक्लिंग भी शुरू हुई है। इस बारे में विशेषज्ञ कहते हैं कि नए टायर बनाने में ऊर्जा की जितनी आवश्यकता होती है उसकी तुलना में रीसाइक्लिंग से बनाए जाने वाले टायर पर कम लागत आती है और तुल्नात्मक रूप में इसमें बिजली का ख़र्च भी बहुत कम होता है।

कचरे में पाई जाने वाली चीज़ों में एक शीशा भी है। शीशे का प्रयोग भी विभिन्न प्रकार से किया जाता है। घर की साज-सज्जा, से लेकर घर के बहुत से कामों में शीशों का प्रयोग होता है। शीशे को बनाने के लिए भारी मात्रा में जल और ऊष्मा की आवश्यकता होती है। शीशे को बनाने के कारण कार्बनडाई ऑक्साइड का काफ़ी मात्रा में उत्सर्जन होता है। दूसरी ओर रीसाइक्लिंग के माध्यम से बनाए जाने वाले शीशे पर पानी और ऊर्जा का प्रयोग बहुत कम होता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि टूटे हुए शीशे से पुन: शीशा बनाने में प्रयावरण को भी कम क्षति हतती है और इससे आर्थिक दृष्टि से भी लाभ होता है।

कचरे से मिलने वाली जिन चीज़ों की रीसाइक्लिंग की जाती है उनमें से एक धातु भी है। विशेषज्ञों का कहना है कि धातुओं को प्रयोग में लाने के बाद जब उनको फेंक दिया जाता है तो उसकी रीसाइक्लिंग पर होने वाला ख़र्च उससे कहीं कम होता है जितना धातु को खान से निकालने में होता है। इससे पर्यावरण को नुक़सान भी बहुत कम होता है। सामान्यत: अल्मोनियम और स्टिल जैसी धातुओं से बनी वस्तुओं की रीसाइक्लिंग की जाती है। सामान्यत: लोग तांबा, पीलत, चांदी और इसी प्रकार की मूल्यवान धातुओं को नहीं फेंकते। अल्मूनियम की रीसाइक्लिंग करके लगभग 90 प्रतिशत ऊर्जा की बचत की जा सकती है और इससे पर्यावरण को भी कम क्षति होगी।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि रीसाइक्लिंग प्रक्रिया, वास्तव में प्रकृति की ओर से दी जाने वाली पूंजी की पुन: प्राप्ति के अर्थ में है। यह चीज़ जहां पर प्रकृति और प्रयावरण को कम क्षति पहुंचाती है वहीं पर आर्थिक दृष्टि से भी लाभदायक है क्योंकि इसपर ख़र्च बहुत कम आता है। रीसाइक्लिंग के माध्यम से देश को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। यही कारण है कि बहुत से वैज्ञानिक , कचरे को गंदे सोने का नाम देते हैं। हालांकि कि रीसाइक्लिंग ऐसा विषय है जिसपर बहुत कुछ कहा जा सकता है लेकिन यह बहुत ही विस्तृत विषय है। समय की कमी के कारण हम अपनी चर्चा को यहीं पर विराम देते हैं।