Aug २७, २०१७ १४:३० Asia/Kolkata

खाद्घ सुरक्षा की दृष्टि से इराक़ की स्थिति अब अच्छी नहीं है। 

 

यह देश इस समय खाद्घ पदार्थों के आयात पर निर्भर है।  उदाहरण स्वरूप इराक़ ने सन 2011 के दौरान खाद्घ पदार्थों के आयात पर 4 दश्मलव 6 अरब डालर ख़र्च किये।  इसी दौरान इराक़ ने मात्र 55 मिलयन डालर का निर्यात किया।  इसमे भी 80 प्रतिशत निर्यात, खजूरों का था।  इराक़ पर दाइश के क़ब्ज़े से पहले इस देश की सरकार की यह योजना थी कि वह गेहूँ सहित कुछ अनाजो के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने के साथ ही कुछ कृषि उत्पादों के आयात की मात्रा को घटाएगी।  दाइश के आक्रमण, और कृषि योग्य भूमियों के साथ दाइशी आतंकवादियों के अमानवीय व्यवहार ने इराक़ के किसानों और कृषि की भूमियों को बहुत अधिक क्षति पहुंचाई।  पिछले तीन वर्षों के दौरान इराक़ की गेहूँ की खेतीयोग्य 40 प्रतिशत भूमि, दाइश के नियंत्रण में चली गई।  इराक़ में पैदा होने वाले गेहू का 27 प्रतिशत, नैनवा प्रांत में पैदा होता है।  नैनवा प्रांत ही इराक़ का वह प्रांत है जहां पर दाइश का नियंत्रण अधिक मज़बूत था।  इराक़ के कृषि मंत्रालय के अनुसार देश पर दाइश के आक्रमण से कृषि उत्पाद में 40 प्रतिशत की कमी आई है।  कृषि उत्पाद में इस कमी के कारण इराक़ को अबतक लगभग 20 अरब डालर का नुक़सान हुआ है।

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दाइश के आतंकवादियों ने इराक़ को कृषि के क्षेत्र में जो क्षति पहुंचाई है उसमें कृषि योग्य भूमियों का जलाया जाना भी सम्मिलित है।  इराक़ के जिन-जिन क्षेत्रों से दाइश के आतंकवादियों को इराक़ी सेना के मुक़ाबले में पराजय का मुंह देखना पड़ा वहां से भागते समय दाइशी आतंकवादियों ने उन क्षेत्रों की कृषि योग्य भूमिकों को आग लगा दी।  इस प्रकार दाइशी आतंकवादी, स्थानीय लोगों को जली हुई भूमि उपहार स्वरूप दे गए।  इस बारे में अमरीकी पत्रिका फ़ारेन पालिसी ने लिखा है कि दाइश के आतंकवादियों ने इराक़ में कृषि योग्य बहुत सी भूमियों को आग लगाने के साथ ही फसलों को भी जला दिया।  इन आतंकवादियों ने जानबूझकर इराक़ के कृषि ढांचे को नुक़सान पहुंचाया।  हर उस स्थान पर जहां दाइश का नियंत्रण था और जहां से उन्हें विवश होकर भागना पड़ा वहां पर उन्होंने बहुत बड़ी संख्या में खेतों को जला दिया।  इस संबन्ध में इराक़ के अज़ीम क्षेत्र के एक अधिकारी अब्दुल जाबिर अलउबैदी कहते हैं कि दाइश के राकेट के हमलों में गेहूं की खेतीयोग्य 35 हेक्टर भूमि जलकर स्वाहा हो गई।

दाइश ने इराक़ में कृषि को जो क्षति पहुंचाई उसका एक रूप यह भी था कि उसने कृषि के उत्पादों और कृषि के उपकरणों की खुलकर तस्करी की।  अब दाइश के इराक़ से बाहर हो जाने के बाद पता चला है कि दाइश के आतंकवादियों ने इन क्षेत्रों के अतिक्रमण के दौरान किस प्रकार से सुनियोजित ढंग से कृषि उत्पादों और उपकरणों की तस्करी की।  वर्तमान समय में इराक़ के बहुत से क्षेत्रों में खेती में प्रयोग होने वाले उपकरणों का अभाव है।  दाइशी आतंकवादियों ने खेतों को जलाने के अतिरिक्त जंगलों को भी आग लगाई।  उन्होंने सेना के मुक़ाबले में जंगलों को ढाल के रूप में प्रयोग करते हुए उनमें आग लगा दी।

दाइश के इस जघन्य अपराध का परिणाम यह निकला कि वर्तमान समय में इराक़ में कृषियोग्य अधिकांश भूमि, फिलहाल खेती के योग्य नहीं रही।  इराक़ में ग़ल्ले की पैदावार, वहां की अर्थव्यवस्था का एक स्तंभ हुआ करती थी लेकिन दाइश की जघन्य कार्यवाहियों के कारण इराक़ी अर्थव्यवस्था का यह स्तंभ, लगभग धराशाई हो चुका है।  उस भूमि से , जहां गेहूँ और जौ की खेती हुआ करती थी उसमें से 80 प्रतिशत से अधिक भूमि नष्ट कर दी गई।  नैनवा प्रांत में गेहूँ पैदा करने योग्य 32 प्रतिशत भूमि नष्ट हो चुकी है।  नैनवा प्रांत में प्रतिवर्ष लगभग 495 मिलयन डालर का गेहूँ पैदा किया जाता था।  इसी प्रकार इस प्रांत में लगभग 119 मिलयन डालर मूल्य के जौ की पैदावार होती थी।  दाइश के आतंकवादियों ने इराक़ में गेहूं के भण्डारों पर क़ब्ज़ा करके उन्हें नष्ट कर दिया जिनका मूल्य सामान्यतः 614 मिलयन डालर प्रतिवर्ष था।  इस प्रकार से दाइश ने इराक़ के कृषि क्षेत्रों को उल्लेखनीय क्षति पहुंचाई।  कृषि के अतिरिक्त दाइश ने इराक़ के पशुपालन क्षेत्र को भी क्षतिग्रस्त किया है।  ताज़ा आंकड़ों से पता चलता है कि जिन क्षेत्रों में दाइश का नियंत्रण था वहां पर 80 प्रतिशत भेड़ें, 50 प्रतिशत गाय, 90 प्रतिशत मुर्ग़ें और इसी प्रकार से कई अन्य प्रकार के जानवर, समाप्त हो गए।

दाइश ने इराक़ में जो अपराध किये हैं उनमें से कुछ के परिणामों को देखा जा सकता है जबकि कुछ ऐसे भी दुष्परिणाम हैं जो स्पष्ट रूप में दिखाई नहीं देते।  कृषि योग्य भूमियों का नष्ट हो जाना और कृषि के उपकरणों की व्यापक स्तर पर चोरी और उनकी तस्करी जैसी वे बातें हैं जिनको महसूस किया जा सकता है किंतु कुछ प्रभाव एसे हैं जिन्हें सीधे ढंग से महसूस नहीं किया जा सकता।  दाइश के अपराधों के कारण बहुत बड़ी संख्या में इराक़ी किसान बेरोज़गार हो गए।  यह बेरोज़गार किसान, निकट भविष्य में खेती-किसानी कर ही नही सकते क्योंकि न उनके पास कृषि योग्य भूमि है और न ही दूसरी कोई अन्य भूमि है जिसपर वे खेती करें।  अब ऐसी स्थिति में इराक़ी सरकार को इस देश के किसानों को हर्जाना बड़ी संख्या में देना पड़ रहा है।  दाइश ने इराक़ी किसानों की फसलों पर क़ब्ज़ा करके उनकी तस्करी की जिसके कारण किसानों को उनकी फसल भी नहीं मिल पाई और दूसरी ओर उनकी ज़मीन जलने के कारण खेती योग्य नहीं रह गई।  इन बातों को देखते हुए कहा जा सकता है कि इराक़ में निकट भविष्य में खेती-किसानी की कोई संभावना नहीं है जिससे इस देश की कृषि के पनपने में लंबा समय लगेगा।

इराक़ की कृषि योग्य भूमियों के नष्ट होने से इस देश को अल्पकालीन और दीर्घकालीन दोनो प्रकार से नुक़सान होगा।  बताया जा रहा है कि दाइश की अमानवीय कार्यवाहियों के कारण इराक़ में कम से कम दस लाख हेक्टेयर भूमि अब खेती-किसानी के योग्य नहीं रही है।  यही कारण है कि इराक में विगत की तुलना में खाद्य सुरक्षा का स्तर बहुत नीचे चला गया है।  इसमें सुधार के लिए बहुत अधिक धन की आवश्यकता होगी और समय भी काफ़ी लगेगा।

इस बारे में अन्तिम बात यह है कि दाइश के इराक़ से अंत के बाद इस देश को किसानों के जीवन में सुधार के लिए महत्वपूर्ण क़दम उठाने चाहिए।  इस देश की सरकार ने आतंकवाद का शिकार होने वालों के लिए क्षतिपूर्ति का प्रबंध किया है।  इसके लिए एक समिति का गठन किया गया है।  इस समिति का कहना है कि उसके पास सन 2016 में एसे 15 हज़ार लोगों की शिकायतें हासिल हुई हैं जिन्हें आतंकवादियों से नुक़सान पहुंचा।  इस क्षति का अनुमान लगभग 59 मलियन अमरीकी डालर लगाया गया है।  अभी यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि 15 हज़ार शिकायतकर्ताओं में किसानों की संख्या कितनी है? किंतु यह एक वास्तविकता है कि जिन किसानों को दाइश से नुक़सान हुआ है उनकी संख्या इससे कही अधिक है।  एसे किसानों की क्षतिपूर्ति और उनके लिए सम्मानित जीवन आरंभ करने के लिए केवल स्थानीय ही नहीं बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय सहायता की भी आवश्यकता है।

 

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