Aug ३०, २०१७ १६:०४ Asia/Kolkata

आपको याद होगा कि पिछले कार्यक्रम में यह बताया कि किस तरह कूड़े को रीसाइकल अर्थात फिर से इस्तेमाल करके पर्यावरण की रक्षा की जा सकती है।

इसी प्रकार हमे इस बात की ओर इशारा किया था कि रिसाइकल प्रक्रिया के ज़रिए बहुत से प्राकृतिक स्रोतों के उपभोग में किफ़ायत और जल, वायु और मिट्टी से जुड़े प्रदूषण के स्तर को बहुत कम किया जा सकता है। इन दिनों पर्यावरण की रक्षा के लिए एक ऐसी शैली जिसे बहुत से देशों ने अपनायी है, कूड़े से ऊर्जा का उत्पादन है।

Image Caption

 

हमने आपको यह बताया कि धरती वेस्ट अर्थात कूड़ा या अपशिष्ट पदार्थ के इकट्ठा होने का स्थान है। अगर वेस्ट अर्थात कूड़ा या अपशिष्ट पदार्थ को रिसाइकल किया जाए तो उसे फिर से इस्तेमाल के योग्य बनाया जा सकता है और अगर उसे उसी हालत में ज़मीन में दफ़्न कर दिया जाए तो उससे पर्यावरण दूषित होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन डबल्यू एच ओ के अनुसार, वेस्ट पदार्थ को इकट्ठा न करना और उसे यूं ही फेंकने से पर्यावरण के लिए 32 प्रकार की मुश्किलें पैदा होती हैं। यही कारण है कि आज कल वेस्ट को रिसाइकल करने पर बहुत से देश ध्यान दे रहे हैं। वेस्ट या कूड़े को कम और उसे रिसाइकल करने की एक शैली कूड़े को ऊर्जा में बदलना है। कूड़े को ऊर्जा में बदलना ऐसी प्रक्रिया है जिसके दौरान मूल्यहीन कूड़ा ऐसे पदार्थ में बदल जाता है जिसे बिजली के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं। अलबत्ता यह काम कई शताब्दी पहले से विभिन्न समाजों में पारंपरिक रूप से प्रचलित था। मिसाल के तौर पर ईरान में 400 साल पहले ईरानी विद्वान शैख़ बहायी ने ऐसा हम्माम बनाया था जिसका ईंधन गंदी नाली से निकलने वाली गैसें थीं। भारत में भी कुछ लोग गोबर या पशुओं के मल को कंटेनर में नौ महीने बंद करके उससे प्राप्त गैस जलाते थे। यही प्रक्रिया आज के दौर की प्रौद्योगिकी में दुनिया के विभिन्न शहरों में अपनायी जा रही है। ख़ास तौर पर दुनिया के कुछ शहरों में कूड़े को दफ़्न करने के केन्द्र से गैस निकाल कर इस्तेमाल कर रहे हैं।

कूड़े को दफ़्न करने के केन्द्र से निकलने वाली गैस में 55 फ़ीसद गैस मिथेन होती है। मिथेन ग्रीन हाउस गैसों में शामिल एक गैस है। अगर मिथेन गैस को सही तरह नियंत्रित न किया जाए तो भूमिगत जल भी दूषित हो सकता है इसलिए रिसाइकल प्रक्रिया और मिथेन गैस का सही इस्तेमाल पर्यावरण की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।  

शहर के एक टन कूड़े को रिसाइकल करके हर साल 5 से 20 घन मीटर गैस हासिल हो सकती है और इस मात्रा को कूड़े को दफ़्न करने के स्थान की सही डिज़ाइनिंग व प्रबंधन से बढ़ाया जा सकता है। आम तौर पर लोग यह सोचते हैं कि चूंकि यह गैस कूड़े से हासिल हुयी है इसलिए यह ज़्यादा ख़तरनाक व प्रदूषण फैलाने वाली होगी, लेकिन वैज्ञानिकों की नज़र में वास्तविकता इसके बिल्कुल ही उलट है बल्कि कूड़े के दफ़्न करने के स्थल से प्राप्त गैस कम प्रदूषण फैलाती है और चूंकि इसके शोले से कम हीट निकलती है इसलिए इससे होने वाला प्रदूषण प्राकृतिक गैस को जलाने से होने वाले प्रदूषण से 60 फ़ीसद कम होता है। इसलिए पर्यावरणविदों की नज़र में कूड़े से प्राप्त गैस को नियंत्रित करना ऐसा काम है जिससे छुटकारा नहीं मिल सकता। पिछले वर्षों में जब ऊर्जा देने वाले पदार्थ की क़ीमतें बढ़ गयीं तो रिसाइकल के ज़रिए हासिल ऊर्जा की ओर अधिक ध्यान दिया जाने लगा। मौजूदा आंकड़ों के अनुसार, इस समय दुनिया में कूड़े दफ़्न करने के सैकड़ों स्थान हैं कि जहां से उत्पादित गैस से ऊर्जा व बिजली का उत्पादन हो रहा है और उसे ग्राहकों को बेचा जा रहा है।

Image Caption

 

कुड़ा दफ़्न करने के स्थान से इस तरह की गैस को इकट्ठा करना अपेक्षाकृत आसान काम है। इस काम के लिए कूड़ा दफ़्न करने के स्थान पर जगह जगह कुएं खोदे जाते हैं। इन कुओं को पाइप के नेटवर्क से एक दूसरे से जोड़ा जाता है और इस तरह गैस जमा की जाती है। ये सभी कुएं गैस इकट्ठा करने वाले केन्द्र से जुड़े होते हैं और इस केन्द्र में कंप्रेसर व बलोअर लगाया जा सकता है। हर चार हेक्टर के क्षेत्रफल वाले कूड़ेदान से गैस इकट्ठा करने के लिए एक कुएं की ज़रूरत होती है। अंत में इस गैस को बर्नर से जोड़ दें या दूसरी तरह इस्तेमाल करें या इसे रिफ़ाइन भी कर सकते हैं। इस तरह गर्मी व बिजली के उत्पादन के साथ साथ कार्बन डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन में काफ़ी कमी और ईंधन की कुशलता में वृद्धि की जा सकती है। इस प्रौद्योगिकी की कार्यक्षमता मौजूदा दौर में बिजली के उत्पादन की शैली की तुलना में अधिक होने के कारण, यह प्रौद्योगिकी यूरोप में हालिया वर्षों में बहुत अधिक अपनायी जा रही है। योरोप में बायो गैस का सबसे बड़ा केन्द्र ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में स्थित है कि इस केन्द्र से हासिल गैस को 8 मेगावाट बिजली के उत्पादन में इस्तेमाल करते हैं। योरोपीय संघ के सदस्य देश बहुत तेज़ी से ईंधन और बिजली के एक साथ उत्पादन की इकाईयां लगा रहे हैं और सरकारी व निजी क्षेत्र इस प्रौद्योगिकी को किफ़ायत के साथ ऊर्जा का स्रोत मानते हैं।                          

इस क्षेत्र की एक सफल परियोजना कैनडा के एडमेन्टन शहर में कई साल से सफलतापूर्वक चल रही है। एडमेन्टन बिजली कंपनी कूड़े के दफ़्न करने के केन्द्र से पैदा होने वाली मिथेन गैस से एक बड़ा बिजली घर चला रही है। 1992 में शुरु हुयी इस परियोजना से लगभग 6 लाख 62 हज़ार टन कार्बन डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन कम हुआ। 1996 में इस परियोजना से 1 लाख 82 हज़ार टन ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम हुआ और 1992 से 1996 के बीच लगभग 208 गीगावाट बिजली का उत्पादन हुआ। इस शैली से हासिल गैस प्राकृतिक गैस की तुलना में कम क़ीमत में बेची गयी, इसलिए इस गैस के इस्तेमाल में आर्थिक दृष्टि से किफ़ायत भी है।

एशिया में दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल उन शहरों में शामिल है जो अपनी ज़रूरत की ऊर्जा का एक भाग कूड़े के ज़रिए हासिल करता है। इस शहर में कूड़ा बहुत होता है। रिपोर्ट के अनुसार, हालिया वर्षों में सियोल में घर से जलाने योग्य 11 लाख टन कूड़े से 7 लाख 30 हज़ार टन कूड़े को ऊर्जा के उत्पादन के लिए ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया गया कि इस मात्रा में कूड़े से हासिल ऊर्जा शहर के 1 लाख 90 हज़ार परिवार के ईंधन की ज़रूरत को पूरा कर सकी। दक्षिण कोरिया 2030 तक रिसाइकल होने वाले स्रोत से अपनी ज़रूरत की ऊर्जा के 10 फ़ीसद भाग का उत्पादन कर दुनिया की ग्रीन अर्थव्यवस्था की दृष्टि से 5 बड़े देशों में शामिल होना चाहता है।                  

वेस्ट या कूड़े को ऊर्जा में बदलने के अलावा कूड़े को रिसाइकल करने का एक और रास्ता उसे खाद में बदलना है। शायद इस प्रक्रिया को रिसाइकिल की सबसे पुरानी प्रक्रिया कहा जा सकता है। खाद बनाने की प्रक्रिया आसान है। किसानों के घर के लोग अपने खेतों में खाद बनाते है  और इसे औद्योगिक तरीक़े से भी किया जाता है। यह खाद खेती के लिए सबसे उपयोगी खाद मानी जाती है। इसी प्रकार इस खाद को फूल का उत्पादन करने वाले भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इस खाद में मैग्नेशियम और फ़ासफ़ेट पाया जाता है जो खेतिहर मिट्टी के कटाव को रोकती है मिट्टी के भीतर पोषक पदार्थ को तेज़ी से अवशोषित करती है। कम्पोस्ट या देसी खाद मिट्टी की रक्षा भी करती है। देसी खाद के ज़रिए 70 फ़ीसद रासायनिक खाद का उपभोग कम किया जा सकता है। शहर में रहने वाला हर व्यक्ति हर दिन आधा किलो से ज़्यादा गर्म कूड़े का उत्पादन करता है कि इसका एक तिहाई भाग खाद में बदलने योग्य होता है। अगर एक शहर की आबादी 3 करोड़ है तो उस शहर में हर दिन डेढ़ करोड़ किलोग्राम कूड़ा निकलता है इस कूड़े का 50 लाख किलोग्राम खाद बनने योग्य होता है।

इस तरह यह कह सकते हैं कि आज के इंसान को विगत के कड़वे तजुर्बे से यह बात समझ में आ गयी है कि ईश्वरीय नेमतें कितनी मूल्यवान हैं और पर्यावरण की रक्षा के लिए कोशिश करनी चाहिए क्योंकि भविष्य में आने वाली पीढ़ी और दुनिया का वजूद पर्यावरण की रक्षा के लिए इंसान की कोशिश पर निर्भर है।

 

टैग्स