व्यापारी और दैव्य की कहानी
प्राचीन समय में एक व्यापारी था उसने बड़ी दुनिया देखी थी और वह अच्छे और बुरे समय का अनुभव कर चुका था।
वह दूर- दूर के नगरों और समुद्र की यात्रा करता था। एक बार यात्रा करने के उद्देश्य से वह घर से निकला। चलता- चला गया। उसने जो रास्ता तय किया था उसके कारण वह बहुत थक गया था वह एक पेड़ के नीचे गया और अपनी पीठ से अपना थैला उतारा। उसके थैले में खजूर थी उसने उस खजूर को खाया और उसके बीज को ज़मीन पर फेंक दिया। उसी समय एक दैव्य तलवार लिए उसके सामने आ गया और कहा जिस वक्त तुमने खजूर खाकर उसका बीज ज़मीन पर फेंका वह मेरे बेटे के सीने में लग गयी और वह मर गया। अब तुमने जो काम किया है उसका बदला लेने के लिए मैं तेरी हत्या करूंगा। व्यापारी ने कहा हे दैव्य मेरे पास बहुत धन- सम्पत्ति और कई बेटे हैं। घर जाने तक का मुझे समय दे दे ताकि जो कुछ है उसे मैं अपने बेटों के मध्य बांट दूं वसीयत कर दूं उसके बाद तुम्हारे पास लौट आता हूं। मैं तुम्हें वचन देता हूं कि अगले साल तक तुम्हारे पास हूंगा। दैव्य ने उसकी बात स्वीकार कर ली।
व्यापारी अपने नगर लौट आया और जो कुछ उसके साथ हुआ था उसे उसने अपने बेटों से बताया। एक वर्ष बीत गया उसने देव को जो वचन दिया था उसके अनुसार उसी स्थान पर पहुंचा और उसी पेड़ के नीचे बैठ गया और अपने हाल पर रोने लगा। इसी मध्य एक बूढ़ा व्यक्ति वहां से गुज़रा और जंज़ीर में बधा उसके हाथ में एक हिरन था। उसने व्यापारी को सलाम किया और उससे कहा तुम कौन हो? यहां किस लिए आये हो? क्या तुम्हें नहीं पता कि यह दैव्यों का स्थान है? व्यापारी ने उसे अपनी आप बीती सुनाई। बूढ़े व्यक्ति ने कहा अब तुम इस मुसीबत से बच नहीं सकते। इसके बाद वह पेड़ के नीचे व्यापारी के साथ बैठ गया और कहा कि यहीं बैठो अंत में देखते हैं कि क्या होता है। व्यापारी ने दोबारा रोना शुरू किया। उसी समय वहां एक दूसरा बूढ़ा व्यक्ति पहुंचा और उसके साथ दो काले कुत्ते थे। उसने व्यापारी को सलाम किया और उससे पूछा यहां क्यों बैठे हो? व्यापारी ने सारी बात उसे भी बताई। अभी बूढ़ा व्यक्ति बैठा भी नहीं था कि घोड़े पर सवार तीसरा बूढ़ा व्यक्ति वहां पहुंचा उसने भी सलाम किया और पहले वाले दोनों बूढ़ों की भांति वहां आने का कारण पूछा तो व्यापारी ने भी उसे सारी घटना बतायी। अचानक धूल उड़ने लगी और उसी धूल के बीच से तलवार ताने वही दैव्य प्रकट हो गया और व्यापारी की हत्या करने के लिए उसने उसका हाथ पकड़ा। जो तीनों बूढ़े व्यापारी के पास थे उन्हें भी व्यापारी की हाल पर बहुत तरस आया और वे भी रोने लगे। पहला बूढ़ा जिसके हाथ में हिरन था, उठा और उसने दैव्य का हाथ चूमा और कहा हे दैव्यों के सरदार मेरे पास इस हिरन के साथ एक सुनने योग्य और बड़ी रोचक कहानी है आप इसे सुनाने की मुझे अनुमति दें। अगर आप को अच्छी लगे तो इस बूढ़े का एक तिहाई ख़ून माफ कर दीजियेगा। दैव्य ने उसकी बात स्वीकार कर ली और कहा कहानी सुनाओ। बूढ़े व्यक्ति ने कहा हे देवों के सरदार यह हिरन मेरे चाचा की बेटी है।
यह 30 साल से मेरे साथ है। जब इससे कोई संतान नहीं हुई तो मैंने एक दासी से भी विवाह कर लिया और उस दासी से मुझे एक बेटा हुआ। मेरा बेटा 15 साल का था कि व्यापार करने के लिए मैं दूसरे शहर जाने पर विवश था। मेरी चचेरी बहन ने जो यही हिरन है बचपने में थोड़ा जादू सीख लिया। उसने अपने जादू से दासी और मेरे बेटे को गाय और बछड़े में बदल दिया और उन दोनों को एक चरवाहे के हवाले कर दिया। कुछ समय के बाद मैं यात्रा से वापस आया तो घर पर मैंने देखा कि न दासी है और न मेरा बेटा। मैंने उनके लापता होने का कारण अपनी पत्नी से पूछा तो उसने कहा दासी मर गयी और तुम्हारा बेटा भी भाग गया है। मैंने जब यह बात सुनी तो मुझे बहुत दुःख हुआ। मैं रोया। एक वर्ष बहुत दुःख के साथ गुज़रा। यहां तक कि बकरा ईद आ गयी। मैं चरवाहे के पास गया।
मैंने उससे कहा कि कुर्बानी के लिए मोटी गाय मुझे बेच दे। चरवाहा मोटी गाय लेकर आया यह गाय वास्तव में वही दासी थी। मुझे कुछ पता नहीं था मैंने उसकी कुर्बानी करने के लिए उसके गले पर छुरी रख दी। गाय रोयी और चिल्लाई। मुझे बहुत तरस आ गया। मैंने उसकी क़ुर्बानी नहीं की। मैंने चरवाहे से कहा कि तू इस कार्य को अंजाम दे। चरवाहे ने गाय को ज़िब्ह कर दिया। जब वह उसका चमड़ा अलग कर रहा था तो मैंने देखा कि मांस के बिना हड्डी है। गाय को ज़िब्ह करके मुझे पछतावा हुआ किन्तु मेरे पछताने का कोई लाभ नहीं था। तो मैंने ज़िब्ह किये उसके शरीर को चरवाहे के हवाले कर दिया और उससे कहा कि कुर्बानी के लिए बछड़ा लाओ। मुझे यह नहीं पता कि वह बछड़ा ही मेरा बेटा है। जब चरवाहा बछड़े को ले आया तो वह जिस रस्सी में बंधा था उसे उसने तोड़ लिया और स्वयं मेरे पास आया और अपना सिर मेरी गोद में रख दिया। वह मिट्टी में लोटने लगा और चीख मार- मार कर रोने लगा। मुझे बहुत दया आ गयी। मैंने चरवाहे से कहा कि इसे छोड़ दो और दूसरी गाय लाओ। यही हिरन जो मेरे चाचा की बेटी है उस दिन मेरे साथ थी और यह आग्रह कर रही थी कि मैं उसी बछड़े की कुर्बानी करूं पंरतु मैंने उस बछड़े को चरवाहे को दे दिया और उसने प्रसन्नता से बछड़े को ले लिया और चला गया।