Mar १५, २०१६ १५:३० Asia/Kolkata

युवा ऊर्जा, प्रफुल्लता, क्षमता, उत्साह और जोश का स्रोत होते हैं और पवित्रता, निष्ठा और सच्चाई उसकी मुक्य विशेषता है।

युवा ऊर्जा, प्रफुल्लता, क्षमता, उत्साह और जोश का स्रोत होते हैं और पवित्रता, निष्ठा और सच्चाई उसकी मुक्य विशेषता है। एक युवा लिखता है कि मैं एक युवा हूं, एक युवा अपने युवाकाल की विशेषताओं से संपन्न रहता है और मुझे उत्साह व प्रफुल्लता से ओतप्रोत इस युवाकाल में उत्साह और भावनाओं की आवश्यकता है और मुझे उस आदर्श की ज़रूरत है जो मुझमें जोश भरे किन्तु किस प्रकार? 

इतिहास में एक ऐसा जवान है जिसके पृष्ठ प्रकाशमयी है और जिसने अपने किशोरवास्था में ही सत्य को पहचान लिया और महान ईश्वर पर ईमान लाया तथा महान ईश्वरीय दूत के निमंत्रण को स्वीकार किया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम साहस, क्षमता प्रेम और बलिदान, दूरदर्शिता और परिज्ञान में, अद्वितीय युवा थे और जब उन्होंने लोगों के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी संभाली तो सबसे अधिक युवाओं पर ध्यान केन्द्रित किया और ऐसा आदर्श बन गये जैसा बनने की लालसा सब में पायी जाती है। युवा जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम की जीवनी का अध्ययन करता है तो उसे ऐसी शिक्षाओं और तत्वदर्शिताओं का सामना होता है जो न्याय, नैतिकता और व्यवहारिक मामलों का साक्षात रूप थे और हर मैदान में सर्वोत्तम उदाहरण थे।

जिस प्रकार हज़रत अली अलैहिस्सलाम युवाओं पर विशेष ध्यान देते थे उसके लिए आवश्यकता इस बात की है कि हम यह जाने कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ऊर्जा और क्षमताओं से संपन्न इस वर्ग पर विशेष ध्यान क्यों देते थे और हमारे लिए यह जानना बहुत आवश्यक है कि हम सामाजिक व नागरिक संस्थाओं और संबंधों में इस प्रभावी पीढ़ी की भूमिका से अवगत हों। हज़रत अली अलैहिस्सलाम युवा अस्तित्व के आयाम और उसकी विशेषताओं को बयान करते हुए कहते हैं कि यदि एक युवा इस पर पूरी सूक्ष्मता और तत्वदर्शिता से ध्यान दे तो उसे यह कल्याण और सफलता तक पहुंचा सकती है। यदि मनोचिकित्सा और प्रशिक्षण के क्षेत्र में सक्रिय लोग इस विचारधारा पर वैज्ञानिक व विशेषज्ञ स्तरीय नज़र डालें तो युवाओं के अस्तित्व के आयामों और बहुत सी समस्याओं को हल करने में बहुत अधिक सहायता मिलेगी।

बुद्धिजीवियों का मानना है कि मनुष्य आत्मिक व बौद्धिक दृष्टि से ऐसा जीवन व्यतीत करता है जो ईश्वरीय अनुकंपाओं की क़द्र नहीं करता और जब तक वह ईश्वरीय अनुकंपाओं और विभूतियों में डूबा रहता है उसे उसका महत्व नहीं होता किन्तु जैसे ही वह विभूति उससे छिन जाती है तब उसे उसके महत्व का पता चलता है और उसे यह समझ में आता है कि उसे कितनी मूल्यवान विभूति प्राप्त थी। युवावस्था, ईश्वर की अद्वितीय अनुकंपा है जब तक हमारे पास यह अनुकंपा रहती है तब तक उसका महत्व नहीं समझते और जैसे ही यह काल समाप्त होता है और मनुष्य कमज़ोरी और अक्षमता में गिरफ़्तार हो जाता है तो धीरे धीरे वह उसका महत्व समझता है। खेद के साथ कहना पड़ता है कि उस अवसर को और उस क्षमता को उसने हाथ से गंवा दिया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस वास्तविकता को बयान करते हुए हमें इस बात का निमंत्रण देते हैं कि निश्चेत और भुलक्कड़ लोगों में से न हों और जवान की पूंजी को हाथ से जाने न दें, उसे पहचानें और इस बेहतरीन स्थिति से कल्याणकारी और अच्छा जीवन व्यतीत करने में लाभ उठाया जा सकता है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि दो चीज़ हैं जिसका महत्व नहीं समझा जाता किन्तु जब वह दोनों ही हाथ से निकल जाती हैं एक जवानी है और दूसरा स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि जिस व्यक्ति ने जवानी की अनुकंपा से सही ढंग से लाभ नहीं उठाया, उन दिनों में जब शरीर स्वस्थ था, कोई पूंजी जमा नहीं की, ज़िंदगी के आरंभिक वर्षों में पाठ नहीं सीखा, क्या कोई युवा है जिसे बुढ़ापे के अतिरिक्त किसी और की प्रतीक्षा हो?

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की दृष्टि में युवा काल की बुराईयों, सुन्दरताओं, कमियों और अच्छाइयों को पहचानना चाहिए क्योंकि यदि एक युवा स्वयं को पहचान ले तो वह कभी भी पथभ्रष्टता और ग़लत विचारों में नहीं पड़ेगा और इस संवेदनशील काल में अपने जीवन में उसे भय, संदेह और परेशानी का सामना नहीं होगा। युवा अपनी आवश्यकताओं के दृष्टिगत, अपने युवा काल के संतोष और उसकी स्थिरता को आनंदमयी जीवन के साए में प्राप्त करने में सफल रहता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि स्वास्थ्य, शक्ति, जवानी और अपनी प्रफुल्लता को न भुलाओ और प्रलय के मार्ग में इनसे लाभ उठाओ।

व्यक्ति व्यवहार, सामाजिक संबंध और सरकारी कामकाज के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शैली ऐसी थी कि लोगों को आत्मसम्मान व प्रतिष्ठा की प्राप्ति की ओर ले जाती थी और हर प्रकार के अपमान से संघर्ष का चाहे जैसे भी हो, निमंत्रण देती थी। सभी मनुष्यों में नैतिकता के बहुत से गुणों का आधार आत्म सम्मान होता है किन्तु युवा के लिए सबसे वांछित व सुन्दरता यह है कि इस काल में आत्मा की दासता और आत्मा के अपमान को स्वीकार न करें। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने सुपुत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम से कहते हैं कि अपनी आत्मा का सम्मान करो और किसी भी तुच्छता को स्वीकार न करो, यद्यपि तुच्छ काम तुम्हें तुम्हारी कामना तक पहुंचा दें क्योंकि कोई भी चीज़, आत्मा की प्रतिष्ठा के समान नहीं होती और कभी भी की चीज़ खोए हुए आत्म सम्मान को नहीं लौटा सकती।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अनुसार जिसके पास प्रतिष्ठित आत्मा होगी वह उसे कभी भी पापों से दूषित करके अपमानित नहीं करेगी। इसीलिए जवानों की प्रशिक्षा ऐसी होने चाहिए जो उसे दायित्वबोध, आत्मसम्मान, सज्जनता और नैतिकता का पाठ सिखाए।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम का विचार, विभिन्न क्षेत्रों में परिज्ञान, प्रेम तथा वैचारिक व वैज्ञानिक आकर्षक की विचारधारा है। इस विचारधारा से क़ुरआन की आयतों की सुगंध और ईश्वरीय दूतों की बातों की महक आतीं है। यह विचारधारा प्रत्यक्ष वास्तविकताओं और व्यवहारिक सच्चाईयों का मिश्रण है जो हज़रत अली के जीवन में साक्षात दिखाई देता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम सदैव युवाओं को उनकी शारीरिक क्षमताओं, सच्चाई व वैचारिक शक्ति के कारण उनके महत्व को स्वीकार करते हैं और कहते हैं कि जब भी उनका सामना हो और तुम्हें सलाह व परामर्श की आवश्यकता हो तो सबसे पहले युवाओं से परामर्श करो क्योंकि बुद्धि की दृष्टि से सबसे तेज़ और अनुमान लगाने में वे सबसे आगे होते हैं। उसके बाद उसे बूढ़ों और अधेड़ों के सामने पेश करो ताकि वे उसकी समीक्षा करें और बेहतरीन विकल्प चुनें क्योंकि उनके अनुभव अधिक होते हैं।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने काम काज में युवाओं पर विशेष ध्यान देते थे। इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम कहते हैं कि एक दिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम बज़ाज़ा बाज़ार पहुंचे और वहां से उन्होंने दो कुर्ते ख़रीदे। एक तीन दिरहम का और दूसरा दो दिरहम का। उसके बाद उन्होंने अपने सेवक क़ंबर से कहा कि तीन दिरहम वाला कुर्ता तुम ले लो, क़ंबर ने कहा कि यह कुर्ता आपके लिए शालीनतम है क्योंकि आप मिंबर पर जाते हैं और लोगों को संबोधित करते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा तुम युवा हो और तुम्हारी इच्छाएं भी जवान हैं, मुझे ईश्वर से लज्जा आती है कि मैं स्वयं को तुमसे बेहतर समझूं।

किशोरावस्था और युवावस्था का काल, स्वयं की सही पहचान और अपने बारे में सही जानने का काल होना चाहिए। ज्ञान की प्राप्ति, चेतना, साहित्य और नैतिकता का काल, जैसा कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मैं तुम मुसलमानों में कोई ऐसा युवा देखना पसंद नहीं करता किन्तु यह कि उसका दिन दो स्थिति में से किसी एक से शुरु हो, या विद्यार्थी हो या धर्मगुरु हो। यदि इन दोनों स्थितियां में से कोई एक भी न हो, या अज्ञानता में हो तो उसेने अपने दायित्व के निर्वाह में लापहरवाही की है, दायित्वों के निर्वाह में लापरवाही, युवा के अधिकार को बर्बाद करना है और युवा के अधिकार को बर्बाद करना, पाप है और यदि पाप किया तो उस ईश्वर की सौगंध जिसने पैग़म्बर को भेजा, उसका ठिकाना ईश्वरीय प्रकोप होगा।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम जो स्वयं मान सम्मान, ईमान और नैतिकता का प्रतीक थे, अपनी वसीयत में कहते हैं कि हे युवा गुट, अपनी मानवीय सज्जनता और अपने नैतिक गुणों की मान सम्मान व प्रशिक्षण से रक्षा करो और अपने धर्म की मूल्यवान पूंजी को ज्ञान की शक्ति से पवित्र और विभिन्न प्रकार के ख़तरनाक लोगों से दूर रखो।


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