ईश्वरीय वाणी-७९
क़ुरआने मजीद के साठवें सूरे, सूरए मुमतहना है जिसमें 31 आयतें हैं।
क़ुरआने मजीद के साठवें सूरे, सूरए मुमतहना है जिसमें 31 आयतें हैं।
सूरए मुमतहना में जिन मुख्य विषयों की चर्चा की गई है वे इस प्रकार हैं। ईश्वर के लिए मित्रता और ईश्वर के लिए ही शत्रुता, अनेकेश्वरवादियों से दोस्ती से दूरी, मुसलमानों को महान ईश्वरीय पैग़म्बर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से प्रेरणा लेने का निमंत्रण, मित्रता व शत्रुता की सीमा, पलायनकर्ता महिलाएं, उनकी परीक्षा और इस संबंध में पाई जाने वाली शिक्षाएं और मुस्लिम महिलाओं की बैअत अर्थात आज्ञापालन के वचन की शर्तें।
इस सूरे की पहली आयत के एक भाग में कहा गया है। हे ईमान लाने वालो! मेरे शत्रुओं और अपने शत्रुओं को मित्र न बनाओ। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम मक्के पर विजय के लिए तैयार हो रहे थे कि उनके एक साथी ने एक महिला को एक पत्र दिया ताकि वह उसे मक्के के अनेकेश्वरवादियों को दे दे और उन्हें पैग़म्बर के इस निर्णय से अवगत करा दे कि वे मक्के की ओर बढ़ना चाहते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम और कुछ अन्य लोगों को बुलाया और उनसे कहा कि वे मक्के की ओर बढ़ें। उन्होंने बताया कि रास्ते में एक स्थान पर तुम्हें एक महिला मिलेगी जिसके पास मक्के के अनेकेश्वरवादियों के लिए एक पत्र होगा। उससे पत्र ले लेना। पैग़म्बर चाहते थे कि इस्लामी सेना के मक्के की ओर बढ़ने और उसकी रणनीतियों को फ़ाश न होने दें।
यह गुट आगे बढ़ा और जहां पैग़म्बर ने बताया था, वहीं वह औरत मिल गई। उन्होंने उससे पत्र के बारे में पूछा तो उसने कहा कि उसके पास कोई पत्र नहीं है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि न तो पैग़म्बर ने हमसे झूठ कहा है और न ही हम झूठ बोल रहे हैं। इसके बाद उन्होंने अपनी तलवार निकाली और उससे पत्र देने को कहा। जब उस महिला ने देखा कि मामला गंभीर है तो उसने अपने बालों के भीतर छिपाए हुए पत्र को बाहर निकाला और हज़रत अली को दे दिया।
उन लोगों ने वह पत्र ले जाकर पैग़म्बर को दिया। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने पत्र लिखने वाले व्यक्ति हातिब बिन अबी बलतआ को बुलाया और उससे पूछा कि तुमने यह काम क्यों किया? उसने उत्तर दिया कि हे ईश्वर के पैग़म्बर! ईश्वर की सौगंध जिस दिन से मैंने इस्लाम स्वीकार किया है उस दिन से एक क्षण के लिए भी आपसे विश्वासघात नहीं किया है लेकिन बात यह है कि मेरे बाल बच्चे मक्के में अनेकेश्वरवादियों के बीच हैं। मैं चाहता था कि इस प्रकार अनेकेश्ववादियों का भरोसा जीत लूं ताकि वे मेरे बाल बच्चों को परेशान न करें। अलबत्ता मैं जानता था कि ईश्वर अंततः उन्हें पराजित कर देगा और मेरे पत्र से उन्हें कोई लाभ नहीं होगा।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने, जो जानते थे कि हातिब ने जासूसी और विश्वासघात के लिए यह काम नहीं किया था, उसकी बात मान ली और उसे क्षमा कर दिया। यद्यपि इस मामले में हातिब का उद्देश्य जासूसी नहीं था लेकिन उनका यह काम इस्लाम के शत्रुओं से प्रेम व्यक्त करने के अर्थ में तो था ही। इसी अवसर पर ईश्वर ने सूरए मुमतहना की आरंभिक आयतें भेजीं ताकि मुसलमानों को इस बात की ओर से सचेत करे कि ईमान वाले समाज को इस बात का हक़ नहीं है कि वह ईश्व के शत्रुओं से मैत्रीपूर्ण संबंध रखे क्योंकि ईश्वर का दुश्मन, ईमान वालों का भी दुश्मन है।
इस सूरे की पहली आयत में आगे चल कर कहा गया है। तुम उनसे प्रेम व्यक्त करते हो जबकि तुम्हारे पास जो सत्य आया है वे उसका इन्कार कर चुके हैं। वे पैग़म्बर और तुम्हें तुम्हारे पालनहार ईश्वर पर ईमान के कारण (मक्के से) बाहर निकालते हैं। आयत कहती है कि वे आस्था और ईमान में तुम्हारे विरोधी हैं और कर्म भी तुमसे लड़ने के लिए उठ खड़े हुए हैं। तुम्हारा सबसे बड़ा गौरव अर्थात पालनहार ईश्वर पर तुम्हारे ईमान ही को वे तुम्हारा सबसे बड़ा अपराध समझते हैं। क्या तुम इस प्रकार के लोगों से प्रेम व्यक्त करते हो?
इसके बाद आयत कहती है। अगर तुम मेरे मार्ग में जिहाद और मेरी प्रसन्नता के लिए (नगर से बाहर) निकले हो तो उनसे मित्रता न करो। तुम गुप्त रूप से उनसे मैत्रीपूर्ण संबंध रखते हो जबकि जो कुछ तुम छिपाते हो और जो कुछ व्यक्त करते हो उससे मैं अधिक अवगत हूँ। और तुममें से जो भी ऐसा करे, निश्चय ही वह सही मार्ग से भटक गया है।
दूसरी आयत में बात को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि यदि वे तुम पर क़ाबू पा जाएँ तो तुम्हारे शत्रु हो जाएँगे और तुम्हें यातना देने के लिए बुराई से तुम्हारी ओर अपने हाथ और ज़बान चलाएँगे। और उनकी हार्दिक इच्छा तो यही है कि तुम भी काफ़िर बन जाओ। आयत कहती है कि जब ऐसा है तो उनसे मित्रता की योजना क्यों बनाते हो? तुमसे उनकी दुश्मनी इतनी गहरी है कि अगर तुम उनके नियंत्रण में आ जाओ तो वे तुम्हारे विरुद्ध कोई भी काम करने में संकोच नहीं करेंगे और अपनी ज़बान और अपने हाथों से तुम्हें हर प्रकार की यातना देंगे। इससे भी बुरी बात यह है कि वे चाहते हैं कि तुम इस्लाम छोड़ कर पुनः कुफ़्र की ओर लौट जाओ और अपनी सबसे मूल्यवान संपत्ति अर्थात ईमान के मोती के गंवा बैठो।
सूरए मुमतहना की तीसरी आयत में हातिब जैसे लोगों के उत्तर में इस बिंदु की ओर संकेत किया गया है कि सभी को इस बात का ध्यान रखना चाहिए किअ अपने परिजनों की रक्षा के लिए मुसलमानों के रहस्य दूसरों के समक्ष फ़ाश न कर दें क्योंकि प्रलय के दिन मनुष्य के लिए उसके कर्म के अलावा कोई और चीज़ लाभदायक नहीं होगी। आयत कहती है। क़यामत के दिन न तुम्हारी नातेदारियाँ और न तुम्हारी सन्तान तुम्हें लाभ पहुँचाएँगे। उस दिन वह (ईश्वर) तुम्हारे और उनके बीच बीच जुदाई डाल देगा और जो कुछ तुम करते हो ईश्वर उसे देखने वाला है। आयत में इस बात पर बल दिया गया है कि प्रलय के दिन सभी एक दूसरे से अलग हो जाएंगे और रिश्ते टूट जाएंगे। ईमान वाले स्वर्ग में जाएंगे और काफ़िरों को नरक की ओर जाना पड़ेगा।
क़ुरआने मजीद अपनी विभिन्न आयतों में मनुष्य के प्रशिक्षण के लिए व्यवहारिक और स्पष्ट नमून पेश करता है। सूरए मुमतहना की चौथी आयत मुसलमानों से कहती है कि वे हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को, जो एक महान ईश्वरीय नेता के रूप में सभी धर्मों व जातियों के लिए सम्मानीय हैं, अपना आदर्श बनाएं। उन्होंने व उनके साथियों ने बिना किसी लगी-लिपटी के पूरी दृढ़ता के साथ, ईश्वर के शत्रुओं से दूरी और विरक्तता की घोषणा की और अपनी अनेकेश्वरवादी जाति से कहा कि हम तुमसे और ईश्वर के अलावा जिनकी तुम उपासना करते हो, उनसे विरक्त हैं। हम तुम्हारे (धर्म का) इन्कार करते हैं और हमारे और तुम्हारे बीच सदैव के लिए शत्रुता प्रकट हो चुकी है सिवाए इसके कि तुम अनन्य ईश्वर पर ईमान ले आओ। स्वाभाविक है कि हज़रत इब्राहीम जैसे महान ईश्वरीय आदर्श इतने प्रभावी हैं कि समय बीतने से उनकी भूमिका धूमिल नहीं पड़ती।
इस सूरे का नाम दसवीं आयत से लिया गया है जो पलायनकर्ता महिलाओं की परीक्षा के बारे में है। अरबी भाषा में मुमतहना का अर्थ होता है वह महिला जिसकी परीक्षा ली गई हो। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने हुदैबिया के स्थान पर अनेकेश्वरवादियों के साथ शांति की संधि की थी। इस संधि का एक अनुच्छेद यह था कि मक्के का जो भी व्यक्ति मुसलमानों में शामिल होगा, उसे वापस लौटाया जाएगा लेकिन अगर कोई मुसलमान, इस्लाम छोड़ कर मक्के वापस जाता है तो वे चाहें तो उसे न लौटाएं। उस समय सबीआ नामक एक महिला ने इस्लाम धर्म स्वीकार किया और हुदैबिया के स्थान पर ही मुसलमानों में शामिल हो गए।
उसका पति पैग़म्बरे इस्लाम के पास गया और उसने कहा कि हे मुहम्मद! मेरी पत्नी को वापस भेज दीजिए क्योंकि यह संधि का एक अनुच्छेद है और अभी संधि की स्याही सूखी भी नहीं है।
उसी समय इस सूरे की दसवीं आयत आई जिसमें आदेश दिया गया था कि पलायनकर्ता महिलाओं की परीक्षा ली जाए। उनकी परीक्षा इस प्रकार थी कि वे सौगंध खाएं कि उनका पलायन पति से दुश्मनी, किसी दूसरे पुरुष या मदीना नगर से प्रेम या अन्य भौतिक व सांसारिक लक्ष्यों के लिए नहीं बल्कि केवल इस्लाम के लिए है। उस औरत ने क़सम खा कर कहा कि वह वास्तव में ईमान लाई है। इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने उसके पति द्वारा महिला को दी गई मेहर की राशि लौटाई और कहा कि इस संधि के अनुसार महिलाओं के नहीं बल्कि केवल पुरुषों को वापस लौटाया जाएगा। इस प्रकार उन्होंने सबीआ को मक्के वापस ले जाने की कोशिश विफल बना दी।
सूरए मुमतहना की 12 वीं आयत में महिलाओं की बैअत या आज्ञापालन के वचन के बारे में कहा गया है। हे पैग़म्बर! जब आपके पास ईमान वाली स्त्रियाँ आकर इस बात पर बैअत करें कि वे किसी को ईश्वर का समकक्ष नहीं ठहराएँगी, चोरी नहीं करेंगी, व्यभिचार नहीं करेंगी, अपनी संतान की हत्या नहीं करेंगी और अपने हाथों और पैरों के बीच कोई आरोप गढ़ कर नहीं लाएँगी और न किसी भले काम में आपकी अवज्ञा करेंगी तो उनसे बैअत ले लीजिए और उनके लिए ईश्वर से क्षमा की प्रार्थना कीजिए कि निश्चय ही ईश्वर अत्यन्त क्षमाशील और दयावान है।
इस आयत में पैग़म्बरे इस्लाम से कहा गया है कि उन महिलाओं से जिनका हार्दिक ईमान सिद्ध हो चुका है, बैअत ले लें। क़ुरआने मजीद के व्याख्याकर्ताओं ने लिखा है कि जिस दिन मक्के पर मुसलमानों को विजय प्राप्त हुई उस दिन सफ़ा नामक पहाड़ी पर पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने पुरुषों से अपने आज्ञापालन का वचन लिया। उस समय मक्के के वे महिलाएं भी, जो ईमान ला चुकी थीं, बैअत के लिए पैग़म्बर के पास आईं। उसी समय यह आयत आई जिसमें महिलाओं से बैअत की शर्तों का उल्लेख किया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम ने महिलाओं से बैअत ली।
पुरुषों से बैअत लेने का तरीक़ा यह था कि उनमें से प्रत्येक पैग़म्बर का हाथ अपने हाथ में लेकर उनके आज्ञापालन और उनसे वफ़ादारी की सौगंध खाता था। महिलाओं के लिए पैग़म्बर ने यह शैली अपनाई कि पानी के एक बर्तन में एक ओर अपना हाथ रखा और फिर महिलाओं से कहा कि वे बैअत करने के लिए दूसरी ओर से पानी में अपना हाथ डालें।
इससे पता चलता है कि शत्रुता व द्वेष रखने वाले लोगों के दावों के विपरीत जो यह कहते हैं कि इस्लाम, मानवीय समाज के आधे भाग अर्थात महिलाओं को महत्व नहीं देता, इस्लाम उन्हें सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक व राजनैतिक मामलों में शामिल रखता है। इन्हीं मामलों में से एक पैग़म्बर से बैअत का मामला था जिसमें उन्होंने महिलाओं को भी पुरुषों के समान शामिल रखा। इस आयत में महिलाओं से बैअत लेने के बारे में जिन शर्तों का उल्लेख किया गया है वे अत्यंत मूल्यवान व सार्थक हैं।
इनके माध्यम से महिलाओं की मानवीय पहचान को जीवित किया गया है और उसे पुरुषों की हवस की तृप्ति का तुच्छ साधन बनने से मुक्ति दिलाई गई है। एक और बिंदु जिसे बड़ी सरलता से समझा जा सकता है, यह है कि महिला पुरुषों की तरह एक स्वाधीन, स्वेच्छा से चयन करने वाला और एक स्वतंत्र व्यक्तित्व रखने वाला जीव है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के समय में महिलाओं विभिन्न मामलों और समस्याओं में उनसे सीधे वार्ता और विचार-विमर्श करती थीं।