Apr ०७, २०१६ १३:१९ Asia/Kolkata

सूरए सफ़ मदीने में उतरा है और इसमें 14 आयतें हैं।

 इसमें सबसे अधिक ध्यान, अन्य इस्लामी धर्मों पर इस्लाम की विशिष्टता और इस धर्म के अमर रहने की गैरैंटी और ईश्वर के मार्ग में जेहाद की आवश्यकता पर दिया गया है। इस सूरे में वर्णित विषय इस प्रकार हैः ईश्वरीय गुणगान, करनी और कथनी में समन्वय का निमंत्रण, एकता व दृढ़ संकल्प के साथ जेहाद का निमंत्रण, बनी इस्राईल द्वारा वचनों का उल्लंघन और हज़रत ईसा मसीद द्वारा पैग़म्बरे इस्लाम के उदय की शुभ सूचना, समस्त धर्मों पर इस्लाम की विजय की गैरेंटी, लोक परलोक के पारितोषिक और सत्य के मार्ग में जेहाद करने वालों का उल्लेख और हज़रत ईसा मसीह के निकट साथी अर्थात हवारियों से प्रेरणा लेना इत्यादि। इस सूरे का नाम सफ़, चौथी आयत में वर्णित बात के कारण रखा गया है। 

सूरए सफ़ ईश्वरीय गुणगान से आरंभ होता है। ज़मीन और आसमान का हर ज़र्रा ईश्वर के गुणगान में व्यस्त है और वही प्रतिष्ठा का मालिक और तत्वदर्शिता का स्वामी है। सूरए सफ़ की दूसरी आयत में एक नैतिक विषय की ओर संकेत किया गया है और उस की आलोचना करती है जो अपनी कथनी पर अमल नहीं करता। ईमान वालो आख़िर वह क्यों कहते हो जिस पर अमल नहीं करते हो। इस आयत के उतरने का कारण वह लोग हैं जो ईश्वर के मार्ग में जेहाद करना चाहते थे किन्तु जैसे ही जेहाद का आदेश उतरा, यह बात उनको पसंद नहीं आई और उन्होंने बहाने बाज़ी शुरु कर दी।

 यह आयत उन लोगों की आलोचना करती है। व्याख्याकर्ताओं के अनुसार, यह आयत, अपने वादों से हर प्रकार के उल्लंघन को भी शामिल करती है। उसके बाद आयत आगे कहती है कि ईश्वर के निकट यह बहुत नराज़गी का कारण है कि तुम वह कहो जिस पर अमल नहीं करते हो। इस आयत से यह परिणाम निकाला जा सकता है कि सच्चे मोमिनों की करनी और कथनी में समन्वय होता है और वे लोग ऐसी बातें ही नहीं करते जिस पर अमल न करें।

 

सूरए सफ़ की चौथी आयत में ईश्वर के मार्ग में जेहाद का विषय पेश किया गया है जो धर्म की रक्षा के लिए विशेष महत्व का स्वामी है। आयत में आया है कि निसंदेह ईश्वर उन लोगों को पसंद करता है जो उसके मार्ग में उस प्रकार पंक्तिबद्ध जेहाद करते हैं जिस प्रकार सीसा पिलाई दीवारें।

इस आयत के आधार पर जो वस्तु दुश्मनों के साथ जेहाद में महत्वपूर्ण है वह ईश्वर के मार्ग में प्रतिबद्धता और संपूर्ण एकता व एकजुटता के साथ हो क्योंकि दुश्मनों के मुक़ाबले में सफलता का महत्वपूर्ण कारक एकता और ईश्वर के खोजियों की पंक्ति से जुड़ना है।

वास्तव में क़ुरआने मजीद, शत्रुओं को विध्वंसक बाढ़ की भांति बताता है जिसे केवल मज़बूत और फ़ौलादी बांधों से ही रोका जा सकता है। हर बड़े और विशाल बांध में प्रयोग होने वाली हर वस्तु की अपनी अलग भूमिका है किन्तु यह भूमिका उसी समय प्रभावी होती है जब उसमें किसी भी प्रकार की दूरी या छेद इत्यादि न हो और ऐसे एक दूसरे से मिले हुए रहे या जुड़े हुए रहें कि मानो एक से अधिक नहीं हैं।

इस सूरए की आयत संख्या छह में हज़रत ईसा मसीह की पैग़म्बरी और बनी इस्राईल के उल्लंघन और उनके झूठ की ओर संकेत किया गया है।

“और उस समय को याद करो जब ईसा अलैहिस्सलाम बिन मरियम अलैहा अस्सलाम ने कहा कि हे बनी इस्राईल मैं तुम्हारी तरफ़ अल्लाह का रसूल हूं, अपने पहले की किताब तौरेत की पुष्टि करने वाला और अपने के लिए एक पैग़म्बर की शुभ सूचना देने वाला हूं जिसका नाम अहमद है किन्तु फिर भी जब वह चमत्कार लेकर आए तो लोगों ने कह दिया कि यह तो खुला हुआ जादू है।

हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की पैग़म्बरी की पुष्टि की और अंतिम ईश्वरीय दूत के आते होने की शुभ सूचना दी। इस आधार पर वह हज़रत मूसा की जाति और उनकी पुस्तक तथा पैग़म्बरे इस्लाम की जाति और उनकी पुस्तक को जोड़ने की एक कड़ी समझे जाते हैं। इस आधार पर यह आयत और क़ुरआन की अन्य आयतों से पता चलता है हज़रत ईसा ने पैग़म्बरी के अतिरिक्त किसी और चीज़ का दावा नहीं किया था और जो कुछ उनके ईश्वर होने या उनके ईश्वर की संतान होने के बारे में कही गयी, सब बातें झूठ हैं।

इस आयत में हज़रत ईसा पैग़म्बरे इस्लाम के प्रकट होने की शुभ सूचना देते हैं। वास्तव में यह पिछले धर्मों की तुलना में इस्लाम धर्म के परिपूर्ण होने की ओर सूक्ष्म संकेत है क्योंकि आम रिवाज यह है कि बेहतर और परिपूर्ण वस्तु की शुभ सूचना दी जाती है। इसके अतिरिक्त, क़ुरआन की आयतों के अध्ययन से तथा सामाजिक व नैतिक मामलों और क़ानूनों तथा आस्थाओं के संबंध में इस्लाम की सर्वोच्च शिक्षाओं की तुलना में उन बातों से जो तौरेत और इंजील में बयान की गयीं हैं, से भी इस्लाम की विशिष्टता सिद्ध होती है।

निसंदेह यहूदियों और नसरानियों के पास तौरेत और इंजील के नाम से जो पुस्तकें हैं, वह ईश्वर की ओर से हज़रत ईसा और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर उतारी गयीं किताबें नहीं हैं, बल्कि यह उन पुस्तकों का संग्राहलय है जो उनके साथियों या बाद में आने वालों ने लिखा है। यही कारण है कि पुस्तक में जो कुछ आया है वह दोनों महान पैग़म्बरों की शिक्षाओं और अन्य लोगों के विचारों का मिश्रण है।

इसके बावजूद मौजूद पुस्तकों में भी काफ़ी परिवर्तन देखने को मिले हैं जिसमें महान हस्ती के प्रकट होने की सूचना दी गयी है और उसमें बयान निशानियां पैग़म्बरे इस्लाम पर पूरी तरह उतरती हैं। इंजील यूहन्ना अध्याय 14 में आया है कि मैं पिता से इच्छा प्रकट करूंगा और वह तुम्हारे लिए दूसरे सांत्वना देने वाले होंगे ताकि सदैव तुम्हारे साथ रहें।

यद्यपि बनी इस्राईल के कुछ लोग पैग़म्बरे इस्लाम पर ईमान लाए किन्तु कुछ गुट पूरी ताक़त के साथ उनके मुक़ाबले डट गये, यहां तक कि उनके स्पष्ट चमत्कारों का इन्कार कर दिया, ईश्वर ऐसे लोगों के संबंध में कहता हैः और इससे बड़ा अत्याचारी कौन होगा जो ईश्वर पर झूठ आरोप लगाये जबकि उसे इस्लाम का निमंत्रण दिया जा रहा हो और अल्लाह कभी अत्याचारी जाति का मार्गदर्शन नहीं करता।

जी हां, जो भी पैग़म्बरे इस्लाम के निमंत्रण को झूठ, उनके चमत्कार को जादू और उनके धर्म को असत्य बताता है, वह सबसे अत्याचारी है, क्योंकि इस प्रकार का व्यक्ति इस बात में रुकावट पैदा करता है कि लोग सच्चाई को जान सकें और सफलता का मार्ग तय करें और मार्गदर्शन प्राप्त करे।

सूरए सफ़ की आयत संख्या 8 में इस्लाम धर्म के अमर होने की ओर संकेत किया गया है और कहा गया है कि शत्रु ईश्वर के प्रकाश को बुझा नहीं सकते। आयत इस बिन्दु को बहुत ही रोचक उदाहरण द्वारा बयान करती है।

यह लोग चाहते हैं कि ईश्वरीय प्रकाश को अपने मुंह से बुझा दें और अल्ला अपने नूर को परिपूर्ण करने वाला है चाहे यह बात अनेकेश्वरवादियों को कितनी ही बुरी क्यों न लगे। वे निरंतर ईश्वरीय प्रकाश बुझाने के प्रयास में हैं किन्तु जैसा कि ईश्वर ने इरादा कर लिया, ईश्वरीय प्रकाश दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। वह उसको बुझाने में सक्षम नहीं हैं।

सूरए सफ़ की आयत संख्या 9 में इस्लाम के अमर होने पर बल दिया गया है और स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वही ईश्वर वह है जिसने अपने पैग़म्बर को मार्गदर्शन और सत्य धर्म के साथ भेजा है ताकि उसे समस्त धर्मों पर विजयी बनाए चाहे यह बात अनेकेश्वरवादियों को कितनी ही बुरी क्यों न लगे।

इस्लाम और क़ुरआन, ईश्वरीय प्रकाश है और जहां कहीं भी होगा, अपने प्रभाव और अपनी विभूतियों को प्रकट करेगा और सफलता का सार है। इसीलिए अनेकेश्वरवादियों और काफ़िरों की अप्रसन्नता, उसके सामने बांध नही बना सकती।

जैसा कि हम सब देखते हैं कि इस्लाम तर्क की दृष्टि से भी और वैज्ञानिक दृष्टि से अन्य धर्मों पर विजयी है और शत्रुओं के अनंत षड्यंत्रों के बावजूद, प्रतिदिन इस्लाम धर्म की ओर रुझान रखने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है। अलबत्ता इस्लाम की प्रगति का अंतिम चरण, अंतिम मोक्षदाता के प्रकट होने से व्यवहारिक होगा।

यह सूरा आगे एक बहुत ही रोचक उदाहरण द्वारा ईश्वर के मार्ग में जेहाद को लाभदायक व्यापार बताता है और कहता हैः ईमान वालो क्या मैं तुम्हें एक ऐसे व्यापार की ओर मार्गदर्शन करूं जो तुम्हें कष्टदायक प्रकोप से बचाए। अल्लाह और उसके पैग़म्बर पर ईमान ले आओ और ईश्वर के मार्ग में अपने जान व माल से जेहाद करो यही तुम्हारे हक़ में सबसे बेहतर है यदि तुम जानने वाले हो।

पैग़म्बर पर ईमान, ईश्वर पर ईमान से अलग नहीं है, इसी प्रकार जान से जेहाद करना, माल के ज़रिए जेहाद करने से अलग नहीं है क्योंकि जेहाद और प्रतिरक्षा के लिए उपकरणों और संसाधनों की आवश्यकता होती है जो वित्तीय सहायताओं द्वारा पूरी होनी चाहिए। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह दोनों जेहाद अर्थात माल व जान से जेहाद, एक साथ ही होना चाहिए ताकि सफलता का मार्ग प्रशस्त हो सके। इस आयत के आधार पर, इस महा व्यापार के तीन मुख्य स्तंभ हैः ख़रीदार जो ईश्वर है, बेचने वाले मोमिन मुसलमान हैं और उनकी जान व उनके माल, वह सामान हैं जिनका आदान प्रदान होता है। ईश्वर इस मामले को लाभदायक व्यापार बताता है और इस महा मामले की क़ीमत को इस प्रकार बयान करता हैः

वह तुम्हारे पापों को भी माफ़ कर देगा और तुम्हें उन स्वर्गों में प्रविष्ट करेगा जिनके नीचे से नहरें जारी होंगी और इस हमेशा रहने वाले स्वर्ग में पवित्र घर होंगे और यही बहुत बड़ी सफलता है।

उसके बाद की आयत में ईश्वर कहता है कि एक और चीज़ और भी जिसे तुम पसंद करते हो, अल्लाह की ओर से सहायता और निकट विजय और आप मोमिनों को शुभ सुचना दे दीजिए।

सूरए सफ़ की अंतिम आयत एक बार फिर जेहाद पर बल देती है। ईश्वर उन लोगों से जो ईमान लाए इच्छा प्रकट करता है कि ईश्वर के सहायक बन जाओ, वही ईश्वर है जिससे समस्त शक्तियों की सोता फूटा है और समस्त शक्तियां उसकी ओर पलटती हैं।

उसके बाद एक ऐतिहासिक उदाहरण की ओर संकेत करती है और कहती है कि जिस तरह ईसा इब्ने मरियम अलैहिस्सलाम ने अपने हवारियों अर्थात निकटवर्ती लोगों से कहा था कि अल्लाह के मार्ग में मेरा सहायक कौन है तो हवारियों ने कहा कि हम अल्लाह के सहायक हैं।

हवारी हज़रत ईसा के विशेष साथी थे, वे ईश्वर के धर्म की सहायता के लिए उठ खड़े हुए और सत्य के दुश्मनों से संघर्ष किया, बनी इस्राईल में से कुछ ईमान लाए और हवारियों से जुड़ गये और कुछ लोग काफ़िर हो गये, इस स्थान पर ईश्वर की सहायता उनकी ओर बढ़ी। जो लोग ईमान लाए, वह शत्रुओं पर विजयी रहे।

आयत इस बिन्दु की ओर संकेत करती है कि आप मुस्लिम लोग भी पैग़म्बरे इस्लाम के हवारी हैं और ईश्वर और पैग़म्बर तुमहारी सहायता करेंगे, जिस प्रकार हवारी शत्रुओं पर विजयी रहे, आप लोग भी शत्रुओं पर विजयी रहेंगे।