रविवार - 11 अक्तूबर
11 अक्तबर वर्ष 1889 को भौतिक विज्ञान के प्रसिद्ध वैज्ञानिक जूल का निधन हुआ।
11 अक्तबर वर्ष 1889 को भौतिक विज्ञान के प्रसिद्ध वैज्ञानिक जूल का निधन हुआ। उन्हीं के नाम पर ऊर्जा के मात्रक का नामकरण जूल रखा गया। जूल अंतर्राष्ट्रीय इकाई प्रणाली के अंतर्गत ऊर्जा या कार्य की एक व्युत्पन्न ईकाई है। एक जूल, एक न्यूटन बल को बल की दिशा में, एक मीटर दूरी तक लगाने में, या फिर एक एम्पियर की विद्युत धारा को एक प्रतिरोध से एक सेकेन्ड तक गुज़रने में व्यय हुई ऊर्जा या किये गये कार्य के बराबर होता है। इस इकाई को अंग्रेज भौतिक विज्ञानी जेम्स प्रेसकाट जूल के नाम पर नामित किया गया है।
11 अक्तूबर सन 1899 ईसवी को दक्षिणी अफ़्रीक़ा में बसे हालैंड और ब्रिटेन के गोरों के मध्य भयानक युद्ध आरंभ हुआ। ब्रिटेन की सेना वर्ष 1841 में इस क्षेत्र में पहुंची थी और उसने अनेक आवासीय क्षेत्र बनाकर वहां रहना आरंभ कर दिया। दक्षिणी अफ़्रीक़ा में सोने और हीरे की खदानों का पता चला तो यूरोप से बड़ी संख्या में लोग वहां जाने लगे। हालैंड के लोग इस क्षेत्र में 17वीं शताब्दी में पहुंचे थे अतः वे चाहते थे कि नए प्रवासी इस देश में न आने पाएं इसी बात को लेकर हालैंड और ब्रिटेन के लोगों के मध्य युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में ब्रिटिश सरकार के भारी समर्थन के कारण ब्रिटिश प्रवासियों को हालैंड मूल के लोगों पर विजय मिली इसके बाद दक्षिणी अफ़्रीक़ा ब्रिटेन का उपनिवेश बन गया। दक्षिणी अफ़्रीक़ा को वर्ष 1931 में स्वाधीनता मिली।
11 अक्तूबर वर्ष 1902 को भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता जयप्रकाश नारायण का जन्म हुआ। वर्ष 1970 में इंदिरा गांधी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए उन्हें जाना जाता है और वे एक ऐसे समाजसेवक थे जिन्हें लोकनायक के नाम से भी जाना जाता है। वर्ष 1998 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। पटना में अपने विद्यार्थी जीवन में जय प्रकाश नारायण ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। जयप्रकाश नारायण बिहार विद्यापीठ में शामिल हो गए, जिसे युवा प्रतिभाशाली युवाओं को प्रेरित करने के लिए डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और सुप्रसिद्ध गांधीवादी डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा जो गांधी जी के एक निकट सहयोगी रहे और बाद में बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री रह चुके है द्वारा स्थापित किया गया था। वे वर्ष 1922 में उच्च शिक्षा के लिए अमरीका गये जहां उन्होंने 1922-1929 के बीच कैलीफ़ोर्निया विश्वविद्यालय और विस्कांसन विश्वविद्यालय में समाज शास्त्र का अध्ययन किया। पढ़ाई के महंगे खर्चे को वहन करने के लिए उन्होंने खेतों, कंपनियों, रेस्टोरेन्टों में काम किया। वे मार्क्स के समाजवाद से प्रभावित हुए। भारत आने के बाद उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हथियारों के उपयोग को सही समझा। उन्होंने नेपाल जा कर आज़ाद दस्ते का गठन किया और उसे प्रशिक्षण दिया। उन्हें पंजाब में चलती ट्रेन में सितंबर 1943 मे गिरफ्तार कर लिया गया। 16 महिने बाद जनवरी 1945 में उन्हें आगरा जेल मे स्थांतरित कर दिया गया। इसके उपरांत गांधी जी ने यह साफ कर दिया था कि डाक्टर लोहिया और जेपी की रिहाई के बिना अंग्रेज सरकार से कोई समझौता असंभव है। दोनो को अप्रैल 1946 को आजाद कर दिया गया। 8 अक्तूबर वर्ष 1979 में उनका निधन हो गया।
11 अक्तूबर सन 1991 ईसवी को पूर्व सोवियत संघ की इंटेलीजेन्स संस्था केजीबी ने इस संघ के विघटन से कुछ पहले अपनी सक्रियता समाप्त कर दी। केजीबी का गठन सोवियत संघ की कम्युनिस्ट शासन व्यवस्था के विरुद्ध जारी षडयंत्रों का मुक़ाबला करने के लिए किया गया था। इस संस्था का उद्देश्य कम्युनिस्ट शासन के विरोधियों का सफ़ाया करना था। केजीबी की शक्ति धीरे धीरे इतनी बढ़ गई कि कम्युनिस्ट पार्टी ने इससे बहुत बड़े बड़े काम करवाना आरंभ कर दिये। केजीबी की समाप्ति के बाद इसके दायित्वों को दो संस्थाओं के और बी में बांट दिया गया। एक संस्था आंतरिक इंटेलीजन्स के रूप में काम करती है जबकि दूसरी संस्था का काम देश के बाहर राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना है।
11 अक्तूबर वर्ष 2011 को क्रिस्टोफ़र ए. सिम्स एवं थॉमस जे. सार्जेट को 'मैक्रोइकोनमी पर कारण एवं प्रभाव के क्षेत्र में उनके अनुभव जन्य अध्ययन' के लिए संयुक्त रूप से वर्ष 2011 का अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की गई।
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आज 20 मेहर है इस दिन ईरान के विश्व विख्यात शायर ख्वाजा शम्सुद्दीन मोहम्मद हाफ़िज़ शीराज़ी की याद मनायी जाती है वे लगभग 727 हिजरी शम्सी को ईरान के दक्षिणी नगर शीराज़ में जन्में थे उन्हे क़ुरआन की व्याख्या, ज्ञान, तत्वदर्शिता और अरबी साहित्य की पूर्ण जानकारी थी।
चूँकि वे क़ुरआन के हाफ़िज़ थे अत: इसी नाम से वे प्रसिद्ध हो गये। वे बड़े ही प्रतिभाशाली शायर और विचारक थे महान विचारों को अपने अंदर समोए हुए उनके शेर आज भी जीवित हैं और सदा ऐसे ही रहेंगे। ईरान की इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली खामेनई ने उन्हें ईरानी संस्कृति का चमकता हुआ सितारा कहा है। उनका पद्य संकलन कई बार छप चुका है और इसका विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है।
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23 सफ़र सन 1301 हिजरी क़मरी को ईरान के प्रख्यात धर्मगुरू शैख़ मोहम्मद बाक़िर आग़ा नजफ़ी इसफ़हानी का निधन हुआ। वे 1234 हिजरी क़मरी में जन्मे। इस्फ़हान में आरंभिक धार्मिक शिक्षा प्राप्ति के पश्चात उच्च स्तरीय शिक्षा के लिए वे इराक़ के पवित्र नगर नजफ़ गये। वहॉ से इस्फ़हान लौटने के पश्चात वे शिक्षा देने लगे और साथ ही पुस्तकें लिखने में भी व्यस्त रहे। आग़ाबाक़िर इस्फ़हानी समाज में बड़ी सम्मान की दृष्टि से देखे जाते थे।
उनकी मुख्य पुस्तकों में लुब्बुल फ़िक़ह और लुब्बुल उसूल हैं।