मार्गदर्शन- 55
शिक्षा व प्रशिक्षण या दूसरे शब्दों मे सीखना और सिखाना वह विषय है जिसे इस्लाम में बहुत अच्छी नज़र से देखा गया है।
जानकारों का कहना है कि शिक्षा और प्रशिक्षण दो एसे विषय हैं जिनका एक-दूसरे से बहुत गहरा संबन्ध है। इनहें एक-दूसरे का पूरक भी बताया गया है। प्रशिक्षण के लिए अच्छे प्रशिक्षक की ज़रूरत होती है क्योंकि एक दक्ष प्रशिक्षक ही किसी का अ च्छी तरह से प्रशिक्षण कर सकता है। जानकार शिक्षक और दक्ष प्रशिक्षक, व्यक्ति के भीतर निहित विभिन्न प्रकार की योग्यताओं को निखारता है। इस प्रकार से वह मनुष्य के कौशल को निखारते हुए समाज को योग्य उपहार देता है।
पवित्र क़ुरआन में ईश्वर को ही प्रथम शिक्षक के रूप में दर्शाया गया है। सूरे अलक़ की आरंभिक 5 आयतों में ईश्वर को मानवजाति का प्रथम शिक्षक बताते हुए कहा गया है कि पढो, अपने परवरदिगार के नाम से जिसने सृष्टि की रचना की। वही जिसने मनुष्य को जमे हुए खून से पैदा किया। पढो कि तुम्हारा पालनहार सबसे महान है। वह जिसने क़लम के माध्यम से पढाया और मनुष्य को वह बात सिखाई जिसे वह नहीं जानता था।
मानवजाति के प्रशिक्षण के लिए ईश्वर ने मनुष्य के लिए बहुत से साधन उपलब्ध करवाए हैं जिनकी सहायता से वह सही मार्ग का चयन करते हुए आगे बढ़ सकता है। उदाहरण स्वरूप मां-बाप, आसमानी किताबें, पैग़म्बर या ईश्वरीय दूत और शिक्षक आदि। इनके माध्यम से मनुष्य वास्तविक पूरिपूर्णता तक पहुंच सकता है। इस बात पर सब लोग एकमत हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का प्रथम शिक्षक उसकी मां होती है। इस हिसाब से कहा जा सकता है कि किसी इन्सान का प्रशिक्षण सबसे पहले उसकी मां के हाथों होता है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इस बारे में कहत हैं कि मनुष्य के प्रशिक्षण की सबसे अच्छी शैली यह है कि वह मां की गोद से आरंभ हो और मां की मामता में वह नैतिक पाठ सीखे। कृपालू माताएं बहुत अच्छे ढंग से बच्चों का प्रशिक्षण कर सकती हैं। माताओं के बाद शिक्षकों का नंबर आता है।
इस्लामी शिक्षाओं में शिक्षक को बहुत आदर और सम्मान प्राप्त है। इस्लाम में कहा गया है कि शिक्षा देना, ईश्वरीय दूतों के कार्य के समान है। इसका कारण यह है कि शिक्षक अपने छात्रों को पढ़ाने के साथ ही साथ उनका एक प्रकार से प्रशिक्षण भी करता है। ईश्वरीय दूत भी लोगों को सिखाने के साथ ही उनका प्रशिक्षण भी किया करते थे। शिक्षकों के महत्व के बारे में स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी कहते हैं कि समाज में शिक्षक की भूमिका, ईश्वरीय दूतों जैसी है। वे कहते हैं कि शिक्षकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है और उनकी ज़िम्मेदारी भी बहुत है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई के अनुसार पढ़ाना और प्रशिक्षण बहुत ही संवेदनशील विषय है। यह दूसरों को जीवन देने के समान है। हमारे शिक्षकों के दिमाग़ में यह बात हमेशा रहनी चाहिए कि किसी समाज के लिए शिक्षक का महत्व बहुत निर्णायक होता है। वे आगे कहते हैं कि हर समाज को एसे लोगों की ज़रूरत होती है जो निष्ठावान, धैर्यवान, आशान्वित, दूसरों के हितैषी, चिंतक और सामाजिक हितों को समझने वाले हों। इस प्रकार के लोग कैसे अस्तित्व में आते हैं? एसे में पता चलता है कि समाज में शिक्षक की भूमिका क्या है? शिक्षक ही वह होता है जो बच्चे के दिमाग़ में अच्छी बातें भरकर उसे एक अच्छा नागरिक बना सकता है। समाज में जितने भी पेशे हैं उनमें सबसे महत्वपूर्ण पेशा शिक्षक का पेशा माना गया है। सामान्यतः हर समाज में शिक्षक वर्ग को बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।
शिक्षकों का मुख्य दायित्व लोगों को शिक्षित करना है। यहां पर यह बात उल्लेखनीय है कि शिक्षक जानकारियों से जितना अधिक भरा होगा उससे सीखने वाले उतना ही अधिक उससे सीखेंगे। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि लोगों को पढ़ाना बहुत ही पवित्र पेशा है। वे कहते हैं कि पढ़ाना एसा व्यापक क्षेत्र है जिसमें सीखना, सिखाना और नैतिक शिक्षा तीनों ही बातें सम्मिलित है। पढ़ने के लिए वैसे तो किताबों की ज़रूरत होती है लेकिन शिक्षा प्राप्त करने के दौरान सोच-विचार या चिंतन बहुत ज़रूरी है। पढ़ाई के दौरान जितना सोच-विचार किया जाए उतना अच्छा है। वरिष्ठ नेता शिक्षकों के बारे में कहते हैं कि विद्यार्थियों को सोच-विचार के लिए प्रेरित करना, किताबें पढ़ाने से कहीं बेहतर है। शिक्षकों को बच्चों को यह समझाना चाहिए कि किताबें पढ़ने से अधिक महत्व सोच-विचार को है और वे अपना ध्यान इस ओर लगाएं।
जो लोग छोटी सोच रखते हैं उनकी यह छोटी सोच उनका जीवन नष्ट कर देती है। जो लोग सोच विचार करते हैं उनकी यह विशेषता उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। यदि मनुष्य वास्तव में चिंतन जैसी शक्ति से सुसज्जित हो जाए तो वह बहुत से महत्वपूर्ण विषयों का बड़ी ही सरलता से समाधान कर सकता है। ऐसा व्यक्ति नए-नए विचार पेश करके ज्ञान के क्षेत्र में विस्तार महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। वे अध्यापकों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि शिक्षकों को चाहिए कि वे छात्रों को इस बात के लिए प्रेरित करें कि वे पढ़ाई के साथ ही साथ अपनी चिंतन शक्ति को अधिक से अधिक बढ़ाने के प्रयास करते रहें।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई नैतिक शिक्षा दिये जाने के बारे में कहते हैं कि किसी शिक्षक का यह पहला कर्तव्य है कि वह नैतिकता को अपने छात्रों में आम करे। वे अध्यापकों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि शिक्षकों को चाहिए के वे कक्षा में केवल पुस्तकों से पढ़ाने पर निर्भर न रहें। आप लोग नैतिकता की ओर भी ध्यान दीजिए। जब आप कक्षा में पढ़ाते हैं तो उस समय आपकी शैला और अंदाज़ सबकुछ छात्रों को प्रभावित करते हैं। छात्र उससे बहुत कुछ सीखते हैं। वे कहते हैं कि शिक्षक अगर चाहे तो हमको निर्भीक भी बना सकता है और कायर भी। वह हमें स्वार्थी या निःसवार्थी भी बना सकता है। वह हमें बुद्धिमान, मेधावी, परिश्रमी, ईमानदान और पढ़ाई के प्रति लगाव रखने वाला छात्र बनाने की क्षमता रखता है। किसी मनुष्य के जीवन में शिक्षक की बहुत अधिक भूमिका होती है। जीवन में शिक्षक के महत्व और उसकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। इस प्रकार कहा जा सकता है कि शिक्षक अपने छात्रों को प्रभावित करने के साथ ही साथ उनका आदर्श भी बन सकता है।
इस्लाम धर्म में बुद्धि पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया है। यह विषय दर्शाता है कि इस्लाम, ज्ञान व बुद्धि के ख़िलाफ नहीं है। इस संदर्भ में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इस्लाम में बुद्धि उन स्तंभों में शामिल है जिससे आप धार्मिक नियमों का आसानी से पता लगाते हैं। आस्था का आधार बुद्धि पर आधारित है जिससे अक़्ल की अहमियत का पता चलता है।
पवित्र क़ुरआन में जीवन के हर मामले में सोच-विचार व चिंतन-मनन पर बहुत बल दिया गया है क्योंकि चिंतन-मनन से ही इंसान मार्दगर्शन पाता है और उच्च मानवीय व आध्यात्मिक दर्जों तक पहुंचता है। पवित्र क़ुरआन में सोच-विचार पर इतना अधिक बल दिया गया है कि मानो पवित्र क़ुरआन की अस्ल ही सोच-विचार पर है।