गुरुवार- 29 अक्तूबर
1945, विश्व में पहली बार बॉल प्वाइंट पेन बाज़ार में आया।
29 अक्तूबर सन 1923 ईसवी को तुर्की में मुस्तफ़ा कमाल पाशा के नेतृत्व में सरकार का गठन हुआ। वे अतातुर्क के नाम से प्रसिद्ध हुए। तुर्की उसमानी साम्राज्य का उत्तराधिकारी है जो 623 वर्षों के राज के पश्चात प्रथम विश्व युद्ध में पराजित होकर बिखर गया था। अतातुर्क ने 15 वर्षों तक तुर्की पर तानाशाही शासन किया। इस अवधि में उन्होंने इस देश में इस्लामी मान्यताओं को समाप्त करने का भरपूर प्रयास किया। 1938 में अतातुर्क के मरने के बाद भी उनका यह अभियान जारी रहा। यद्यपि 1945 से तुर्की में बहुदलीय लोकतंत्र की भूमि समतल हुई किंतु सैनिक गलियारे, जो स्वयं को देश में धर्म विरोंधी व्यवस्था का रक्षक समझते थे इसके बाद भी देश की विदेश और आंतरिक नीतियों पर अपना नियंत्रण बनाए हुए थे। किंतु साथ, ही तुर्की में इस्लामी रुझान भी बहुत तीव्र गति से बढ़ा और फिर इस्लामवादी लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना हुई।
29 अकतूबर सन 1956 को ज़ायोनी शासन के सैनिकों ने मिस्र के सीना प्रायद्वीप पर आक्रमण कर दिया। मिस्र के राष्ट्रपति जमाल अब्दुन्नासिर की ओर से स्वेज़ नहर के राष्ट्रीयकरण की घोषणा तथा यह जलमार्ग इस्राईली नौकाओं के लिए बंद कर दिए जाने के बाद यह आक्रमण हुआ। ज़ायोनी शासन का प्रयास था कि इस आक्रमण से अपनी नौकाओं की आवाजाही के लिए लाल सागर के सिरे पर स्थित अक़बा खाड़ी पर अधिकार कर ले। दो दिन बाद ब्रिटेन और फ़्रांस ने भी इस्राईल के समर्थन में अपने सैनिक स्वेज़ नहर के निकट उतार दिए। इस आक्रमण का उद्देश्य मिस्र को स्वेज़ नहर के राष्ट्रीयकारण का निर्णय बदलने पर विवश करना था। स्वेज़ नहर भूमध्यसागर को लाल सागर से जोड़ती है और इस पर उस समय ब्रिटेन और फ़्रांस का अधिकार था। विश्व के बहुत से देशों तथा विश्व जनमत के दबाव तथा राष्ट्र संघ की मध्यस्थता से अतिक्रमणकर्ता, मिस्र से मार्च 1957 में बाहर निकले। यह युद्ध स्वेज़ की लड़ाई के नाम से प्रसिद्ध है।
29 अक्तूबर सन 1956 ईसवी को ज़ायोनी शासन ने एक अन्य जघन्य अपराध करते हुए कफ़र क़ासिम गांव के निवासियों का जनसंहार किया। ज़ायोनी सैनिकों ने उस दिन, जिस दिन इस्राईल ने मिस्र पर भी आक्रमण आरंभ किया था, पूर्व सूचना के बिना कफ़र कासिम में सैनिक शासन की घोषणा कर दी और कम से कम 49 फिलिस्तीनी पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को शहीद तथा दर्ज़नों को घायल कर दिया। कुछ महीनों बाद फ़िलिस्तीनी जनता ने कफ़र क़ासिम के लोगों के जनसंहार के विरोंध में प्रदर्शन किया जिसके कारण इस्राईल इस भयानक अपराध के कुछ दोषियों पर दिखावे के लिए मुक़द्दमा चलाने पर विवश हुआ। 1960 में इस मामले के समस्त दोषियों को मुक्त कर दिया गया।
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8 आबान सन 1359 हिजरी शम्सी को ईरान के 13 वर्षीय वीर किशोर मोहम्मद हुसैन फहमीदे ने इराक़ द्वारा ईरान पर थोपे गये युद्ध के दौरान देश की सुरक्षा में मौत को गले लगाया।
शहीद फहमीदे सन 1346 हिजरी शम्सी में ईरान के पवित्र नगर क़ुम में जन्में थें
थोपे गये युद्ध के आरंभिक वर्षो में इस साहसी किशोर ने मोर्चे का रुख किया। ईरान के भीतर घुस रही इराक़ी अतिक्रमणकारी सेना के मुक़ाबले के लिए हुसैन फहमीदे ने अपने शरीर पर बम और विस्फोटक पदार्थ बांधे और शत्रु के एक टैंक के नीचे घुस गये जिससे टैंक तबाह और हुसैन फहमीदे शहीद हो गये।
उनकी शहादत से ईरानी जियालों के संघर्ष में नयी जान आ गयी और वे स्वयं अमर हो गये।
उनकी शहादत पर इमाम ख़ुमैनी ने कहा था कि हमारा नेता वो 13 वर्षीय किशोर है जो अपने नन्हे से दिल के साथ जिसकी महानता का बखान सैकड़ों शब्दों और ज़बानों की क्षमता से बाहर है, शत्रु के टैंक के नीचे घुस गया और अपने शरीर पर बंधे बमों को विस्फोटित करके शत्रु के टैंक को तबाह कर दिया और स्वयं भी शहीद हो गया।
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12 रबीउल औवल सन 1300 हिजरी क़मरी को इस्लामी जगत के प्रख्यात धर्मगुरू सैयद महदी क़ज़वीनी का इराक़ के हिल्ला नगर में निधन हुआ। उन्होंने इराक़ के पवित्र नगर नजफ़ में उच्च धार्मिक शिक्षा ग्रहण की तथा फ़िक़ह, तफ़सीर, कलाम, और अरबी साहित्य जैसे विषयों में दक्ष हो गए। उन्होंने फिर यह विषय पढ़ाना भी आरंभ कर दिया। पवित्र नगर नजफ़ में शिक्षा पूरी कर लेने के बाद वे हिल्ल नगर चले गए ताकि वहां ज्ञान का प्रचार प्रसार करें। सैयद महदी क़ज़वीनी ने कई पुस्तकें लिखी हैं जिनमें वदाएअ और मज़ामीर का नाम मुख्य रूप से लिया जा सकता है।
12 रबीउल अव्वल सन पहली हिजरी क़मरी को पवित्र नगर मदीने के निकट क़ुबा नामक क्षेत्र में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र हाथों से इस्लाम की पहली मस्जिद की आधार शिला रखा गयी। पैग़म्बरे इस्लाम मक्के से मदीने की ओर पलायन करते समय इस क्षेत्र में कुछ दिन रुके थे और इस दौरान उन्होंने इस ऐतिहासिक व धार्मिक इमारत का आधार रखा। पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम के इस गांव में रुकने का मुख्य कारण यह था कि हज़रत अली और उनके कुछ साथी उनसे आकर मिल जाएं क्योंकि पलायन के समय पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपने बिस्तर पर सोने का आदेश दिया था ताकि हज़रत मोहम्मद उनकी हत्या के अनेकेश्वरवादियों के षड्यंत्र को विफल बना सके। पैग़म्बरे इस्लाम के मदीना नगर की ओर पलायन और उनके बिस्तर पर सोने के बाद तीन दिन तक हज़रत अली अलैहिस्सलाम मक्के में रहे और पैग़म्बरे इस्लाम के पास रखी लोगों की अमानतों को उनके हवाले किया। उसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने कुछ निकटवर्तियों के साथ मदीने की ओर पलायन किया। चूंकि इस्लाम धर्म में ईश्वर की उपासना और लोगों की समस्याओं के निपटारे के लिए मस्जिद का बहुत अधिक महत्त्व है इसीलिए इस्लाम में पहली मस्जिद के रूप में मस्जिदे क़बा का बहुत अधिक महत्त्व है। वर्तमान समय में इस मस्जिद में बहुत अधिक परिवर्तन हो चुके है और यह मदीने के निकट महत्त्वपूर्ण व पवित्र स्थल के रूप में अब भी प्रसिद्ध है।