ईरानी बाज़ार-36
ईरान में प्राचानीकाल में वनस्पति दवाएं बेचने का पेशा बहुत महत्वपूर्ण रहा है।
हरबल दवाएं या जड़ी-बूटियां बेचने वालों को फ़ारसी में अत्तार कहा जाता है। उस ज़माने में अत्तार, समाज के प्रभावशाली लोग हुआ करते थे। इन लोगों को वनस्पतियों की अच्छी जानकारी होती थी और वे बहुत सी वनस्पतियों को सूंघ कर पहचान लिया करते थे। पुराने ज़माने में हकीम या वैध जो दवाएं मरीज़ों को लिखा करते थे वह अत्तार ही तैयार करके उन्हें दिया करते थे। कुछ अत्तार एसे भी होते थे जो अपने अनुभव के द्वारा या जो उन्होंने अपने पूर्वजों से सीखा होता था उससे लोगों का इलाज किया करते थे। वनस्पति दवाओं के माध्यम से उपचार की शैली, ईरान में शताब्दियों से प्रचलित है। पहले एसे बहुत से लोग हुआ करते थे जो जंगलों या पहाड़ों पर जाकर वनस्पतियां चुनते थे और उन वनस्पतियों को अत्तार को देते थे जो उससे दवाएं तैयार करते थे। इन लोगों की आजीविका का रास्ता ही यही था।

यह सब तो पुराने ज़माने की बातें थीं लेकिन आज भी अंग्रेज़ी दवाओं के बढ़ते प्रयोग के बावजूद पूरे संसार में प्राचीन दवाओं या वनस्पति दवाओं के प्रयोग की परंपरा तेज़ी से बढ़ रही है। वर्तमान समय में विश्व के बहुत से देशों में वनस्पति की दवाओं के बढ़ते प्रयोग के कारण अब यह एक उद्योग का रूप धारण करता जा रहा है और हज़ारों लोग वनस्पति दवाओं के व्यापार से जुड़े हुए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्तमान समय में संसार के 80 प्रतिशत से अधिक लोग वनस्पति दवाओं का प्रयोग करते हैं विशेषकर विकासशील देशों के रहने वाले। आज भी बहुत से देश एसे हैं जहां के नागरिक अपना उपचार केवल वनस्पति दवाओं से ही करते हैं। हरबल दवाओं के बढ़ते प्रयोग के कारण यह माना जा रहा है कि 21वीं शताब्दी, में इन्सान बहुत तेज़ी से पारंपरिक उपचार की ओर वापस आएगा और यह शताब्दी वनस्पति दवाओं के प्रयोग की ओर पलटने की शताब्दी होगी।
जैसाकि आप जानते हैं कि पारंपरिक चिकित्सा शैली के प्रयोग को ही हरबल दवाओं का प्रयोग कहा जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसको इस प्रकार से परिभाषित किया है कि पारंपरिक चिकित्सा शैली में पारंपरिक ढंग से किये जाने वाले उपचार शामिल हैं जैसे चीन की पारंपरिक चिकित्सा, भारत की पारंपरिक चिकित्सा, ईरान की पारंपरिक चिकित्सा, यूनानी चिकित्सा या इसी प्रकार की अन्य प्राचीन चिकित्साएं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पारंपरिक चिकित्सा शैली वास्तव में अनुभवों, दृष्टिकोणों, या प्राचीनकाल से चली आ रही स्वास्थ्य सुरक्षा शैली का एसा संकलन है जिसके माध्यम से लोगों का शारीरिक और मानसिक उपचार किया जाता है। विश्व के कुछ उन देशों में जहां उपचार का आधार आधुनिक चिकित्सा शैली और जहां कोई उचित प्राचीन उपचार शैली नहीं पाई जाती, एसे देशों में पारंपरिक चिकित्सा शैली के स्थान पर सीएएम या “कैम” शब्द का प्रयोग होता है जिसे “कम्पलीमेंट्रीं एंड आलटरनेटिव मेडिसिन” या कैम कहते हैं। (Complementary and Alternative Medicine) आधुनिक युग में उल्लेखनीय ढंग से कैम का प्रयोग बढ़ रहा है। दूसरे शब्दों में इस समय लोगों में हरबल दवाओं के माध्यम से उपचार कराने की प्रवृत्ति तेज़ी से बढ़ रही है।

प्राचीन काल के प्रगतिशील देशों में पारंपरिक चिकित्सा शैली ही प्रचलित थी जो दूसरे देशों में भी गई। इन देशों में ईरान, यूनान, चीन और भारत का नाम लिया जा सकता है। ईरान में भी शताब्दियों से पारंपरिक चिकित्सा शैली का चलन रहा है। ईरान के जुरजानी, राज़ी, अबू रैहान बीरूनी, इब्ने सीना और इसी प्रकार के विश्व विख्यात हकीमों के कारण देश की पारंपरिक चिकित्सा शैली अधिक सशक्त हुई। पारंपरिक चिकित्सा शैली केवल वनस्पति दवाओं तक सीमित नहीं है बल्कि इसमें वनस्पति दवाओं के प्रयोग के साथ ही साथ Leech therapy, Cupping, Dry cupping, Fasd और इसी प्रकार की अन्य शैलियां शामिल हैं। ईरान में एक हज़ार से अधिक प्रकार की हरबल दवाएं या जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं जिनमें से 100 जड़ी-बूटियां एसी हैं जो केवल ईरान से विशेष हैं।
वे जड़ी-बूटियां जो केवल ईरान से ही विशेष हैं उनमें से एक का नाम है “गुले गावज़बां” या “आरागो एक्यूम”। गुले गावज़बां, एसी बूटी है जो केवल ईरान में उगती है। यह बूटी पूरे ईरान में नहीं पाई जाती बल्कि अलबुर्ज़ पर्वत के आंचल में ही यह उगती है। लंबे समय तक वैघ और अत्तार, यह समझते थे कि ईरानी गुले गावज़बां और यूरोपीय गुलू गावज़बां, दोनों एक ही हैं किंतु बाद में शोध के बाद पता चला कि दोनों के केवल नाम एक जैसे हैं किंतु इनकी विशेषताओं में बहुत अंतर है। वह गुले गावज़बां जो ईरान के अलबुर्ज़ के पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है वह अपने प्रभाव के हिसाब से बहुत ही लाभदायक है। इसका फल, फूल, पत्ते, जड़ और शाखें सब ही को उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है। ईरान में गुले गावज़बा का उत्पादन दो तरीक़ों से किया जाता है। एक यह कि इसकी खेती की जाती है और दूसरे यह कि पहाड़ी क्षेत्रों में ख़ुद ही उगता है। उपचार की दृष्टि से गुले गावज़बां के बहुत से लाभ हैं। यह ख़ून को साफ़ करता है, नरवस सिस्टम को मज़बूत बनाता है, गुर्दों को मज़बूती देता है, खासी में फायदा पहुंचाता है, गले के दर्द को दूर करता है, एंगज़ाइटी और अवसाद में भी लाभकारी है। ईरान के भीतर इसकी बहुत खपत है और साथ ही इसका निर्यात भी किया जाता है। ईरान से प्रतिवर्ष 50 टन गुले गावज़बां, निर्यात किया जाता है। इसे अधिक्तर अमरीका, यूरोप और फ़ार्स की खाड़ी के तटवर्ती देशों को निर्यात किया जाता है।

ईरान से विशेष वनस्पतियों में से एक अन्य वनस्पति है, “गुले सूसन”। गुले सूसन को Lilium Ledebouril के नाम से पुकारा जाता है। वास्तव में यह एक प्रकार के फूल हैं जो कई रंगों में होते हैं। वैसे तो यह ईरान से विशेष वनस्पति हैं किंतु अब यह विश्व के कुछ अन्य क्षेत्रों में भी उगाई जाती है। हकीमों का कहना है कि गुले सूसन के सूंघने से ज़ुकाम दूर होता है, इससे सिर दर्द में भी लाभ मिलता है, यह ठंड लगने से भी बचाता है। चर्म रोगों के उपचार में भी इसका प्रयोग किया जाता है। ईरान के उत्तरी प्रांत गीलान व माज़ंदरान के अतिरिक्त यह अरदबील में ही पैदा होता है। इसका नाम ईरान की राष्ट्रीय धरोहरों की सूचि में भी पंजीकृत किया जा चुका है। यह ईरान की एसी वनस्पति या जड़ी-बूटी है जिसके समाप्त होने के भय से इसका निर्यात बंद कर दिया गया है।

ईरानी वनस्पतियों में से एक “गुलपर” भी है। इसको हेराडियम पर्सिकम Heradeum Persicum के नाम से जाना जाता है। यह भी एसी वनस्पति है जो केवल ईरान में ही पाई जाती है। डाक्टरों का कहना है कि हर वह दवा या औषधि जिसके नाम के अंत में पर्सिकम Persicum हो वह ईरान के नाम से दर्ज हुई है। गुलपर नामक जंगली बूटी, बसंत में उगती है। यह देखने में बहुत ही सुन्दर फूल है। इसके दाने आकार में चपटे होते हैं। पेट की बीमारियों विशेषकर अमाशय से संबन्धित बीमारियों में गुलपर का प्रयोग किया जाता है। यह भी ऐसी वनस्पति है जो कम पैदा होती है जिसके कारण इसका निर्यात नहीं किया जाता। इसके अलावा भी ईरान में कुछ अन्य जड़ी-बूटियों के निर्यात पर रोक लगा दी गई है जिसका मुख्य कारण इनके विलुप्त होने का भय है। ईरान में एक सा केन्द्र है जो देश में विलुप्त होने की कगार पर पहुंची जड़ी-बूटियों या वनस्पतियों की सुरक्षा का दायित्व संभाले हुए है। इस केन्द्र का काम एसी वनस्पतियों की पहचान करके उनकी पैदावार को बढ़ाना है ताकि विलुप्त होने से इन्हे बचाया जा सके।