Nov १२, २०१७ ११:५५ Asia/Kolkata

इस्लाम चूंकि एक संपूर्ण धर्म है इसलिए इस धर्म में इंसानों के बीच आपसी संबंध को बहुत अहमियत दी गयी है और इंसानों के आपस में एक दूसरे के प्रति अधिकार व कर्तव्य निर्धारित किए गए हैं।

इस्लाम में जिन समूहों के अधिकारों पर बल दिया गया है उस्में पड़ोसी भी है।

आज हम ऐसी दुनिया में रह रहे हैं कि पड़ोसियों को एक दूसरे के बारे में तनिक भी ख़बर नहीं होती और कभी कभी ऐसा सुनने में आता है कि दो पड़ोसी 20 साल साथ रहने के बाद भी एक दूसरे का नाम नहीं जानते। इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकारों पर विशेष रूप से बल दिया गया है। इस्लाम में भावनात्मक मुद्दों और आपसी सहयोग को बहुत अहमियत दी गयी है हालांकि आज की मशीनी ज़िन्दगी में दिन ब दिन इंसान में भावना ख़त्म होती जा रही है और उसका स्थान संगदिली लेती जा रही है।

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पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार करने से घर व बस्ती आबाद रहती है और उम्र लंबी होती है।

मन में सवाल उठता है कि इस बात में क्या राज़ छिपा है?

ऐसा लगता है कि जब पड़ोसी आपस में मिल जुलकर रहते हैं तो मन सुकून की हालत में होता है और जब मन सुकून की हालत में होता है तो इंसान का स्नायु तंत्र सुकून में होता है और जब स्नायु तंत्र सुकून में होता है तो दिल, दिमाग़ और अमाशय पर भी दबाव नहीं पड़ता जिससे इंसान बीमार होकर अस्पताल जाने और पैसों को दवा-इलाज पर ख़र्च करने से बच जाता है। ऐसी स्थिति में इन पैसों को पड़ोसियों के साथ मिलकर बस्ती व शहर के विकास पर खर्च होना चाहिए ताकि शहर आबाद रहें। लेकिन यह कि उम्र लंबी होती है, शायद इसका कारण यह हो कि जब इंसान का स्नायु तंत्र स्वस्थ होता है तो वह दिल के दौरे पक्षाधात  और पाचन तंत्र की ख़राबी से बच जाता है जो बहुत सी बीमारियों की जड़ है। समाज में बहुत सी अचानक मौतें इन्हीं कारणों से होती हैं।               

इस्लामी रिवायत के अनुसार, पड़ोसी तीन प्रकार के होते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, “पड़ोसी तीन क़िस्म के होते हैं। पहली क़िस्म के पड़ोसी का सिर्फ़ एक अधिकार होता है, दूसरी क़िस्म के पड़ोसी के दो अधिकार होते हैं और तीसरी क़िस्म के पड़ोसी के तीन अधिकार होते हैं। वह पड़ोसी जिनका सिर्फ़ एक अधिकार होता है वे ग़ैर मुसलमान पड़ोसी हैं जो न तो संबंधी हैं और न ही संप्रदाय से हैं। वे पड़ोसी जिनके दो अधिकार हैं वे पड़ोसी जो संबंधी व रिश्तेदार हैं चाहे ग़ैर मुसलमान हों और वे पड़ोसी जिनके तीन अधिकार हैं वे रिश्तेदार होने के साथ साथ मुसलमान भी हैं। आम तौर पर इस तरह के पड़ोसी ज़्यादा के होते हैं कि इस तरह के पड़ोसी अगर किसी मौक़े पर मदद मांगे तो इन्कार नहीं करना चाहिए।”

अब यह सवाल उठता है कि कितने घर पड़ोसी के दायरे में आते हैं? इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, “एक इंसान के घर से चारों ओर 40 घर पड़ोसी हैं।”

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छोटे शहरों में तो सारे घर इस कथन के दायरे में आ जाएंगे क्योंकि अगर हर व्यक्ति के घर को दायर का केन्द्र बिन्दु मानें कि जिसके हर ओर चालीस घर हों तो एक सीधे से हिसाब से उस घर के चारों ओर घरों की तादाद लगभग 5000 होगी कि छोटे शहरों में इससे ज़्यादा घर नहीं होते। रोचक बात यह है कि पवित्र क़ुरआन के निसा सूरे की आयत नंबर 36 में निकटवर्ती पड़ोसियों के उल्लेख के साथ दूर के पड़ोसियों का भी उल्लेख है क्योंकि पड़ोसी शब्द का अर्थ सीमित है और इससे केवल निकटवर्ती पड़ोसी का अर्थ निकलता है लेकिन इस्लाम की नज़र में पड़ोसी के व्यापक अर्थ पर ध्यान देने के लिए ज़रूरी था कि दूर के पड़ोसी का भी उल्लेख हो और यह भी मुमकिन है कि दूर का पड़ोसी ग़ैर मुसलमान हो क्योंकि इस्लाम में पड़ोसी का अधिकार सिर्फ़ मुसलमान पड़ोसी तक सीमित नहीं है मगर वे जो मुसलमानों से जंग कर रहे हों उन्हें पड़ोसी नहीं माना जाएगा चाहे वे निकटवर्ती पड़ोसी हों या दूर के।

इस्लाम में पड़ोसी के अधिकार पर बहुत बल दिया गया है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपनी मशहूर वसीयत में कहते हैं, “पैग़म्बरे इस्लाम इतना ज़्यादा पड़ोसियों के अधिकार के बारे में अनुशंसा करते थे कि हमें लगने लगा कि शायद मीरास में उनका भी हिस्सा निर्धारित हो।”

पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, “जिस व्यक्ति का ईश्वर और प्रलय के दिन पर ईमान हो उसे चाहिए कि पड़ोसी के साथ अच्छा व्यवहार करे।”

पैग़म्बरे इस्लाम का एक और कथन है जिसमें आपने फ़रमाया, “जो व्यक्ति अपने पड़ोसी को सताएगा ईश्वर उसे स्वर्ग की ख़ुशबू भी सूंघने नहीं देगा और ऐसे व्यक्ति का ठिकाना नरक है और वह कितना बुरा स्थान है। जो व्यक्ति अपने पड़ोसी के अधिकार का हनन करे वह हम में से नहीं है। जिब्रईल हमे बारंबार पड़ोसियों के अधिकारों के बारे में कहते थे और मुझे लगा कि पड़ोसी भी मिरास में हिस्सेदार होगा और हमेशा मिस्वाक अर्थात दातुन करने के लिए कहते थे इस प्रकार कि मुझे लगा कि यह भी अनिवार्य हो जाएगा। इसी प्रकार मुझे बारंबार रात भर उपासना करने की अनुशंसा करते थे कि मुझे लगा कि मेरी उम्मत के भले लोग रात में कभी नहीं सोएंगे।”

पैग़म्बरे इस्लाम एक और स्थान पर कहते हैं, “ईश्वर प्रलय के दिन दो गुटों पर कृपा नहीं करेगा। पहला गुट उन लोगों का जो रिश्तेदारों से संबंध तोड़ लेते हैं और दूसरा गुट उन लोगो का जो पड़ोसियों को परेशान करते व सताते हैं।”               

एक मोहल्ले में रहने वाले लोगों के बीच अच्छे संबंध की इतनी अहमियत है कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने इस विशेषता को पैग़म्बरे इस्लाम की नियुक्ति के उद्देश्यों में गिनवाया है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने भी फ़रमाया, हमारे शिया वे लोग हैं जो एक दूसरे के साथ दान-दक्षिणा करते हैं, पड़ोसियों के लिए करकत का पात्र होते हैं और अपने पड़ोसियों के साथ शांति के साथ रहते हैं। उन्होंने चार विशेषताएं बतायी हैं अगर वह किसी व्यक्ति में हो तो वह स्वर्ग में जाएगा। उनमें से एक पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार है। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया कि एक पड़ोसी की ओर से दूसरे पड़ोसी का सम्मान मां का सम्मान करने की तरह है जिसका ज़रूर पालन होना चाहिए।

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घरों के एक दूसरे के निकट होने के कारण एक दूसरे के प्रति कुछ अधिकार वजूद में आते हैं। पड़ोसी के अधिकार की एक विशेषता यह है कि इसका लाभ पारस्परिक है न कि वैसा जैसा आज के दौर में चलन है कि एक व्यक्ति अपने पड़ोसी से अधिकार की उम्मीद करे लेकिन ख़ुद उसका अधिकार देने के लिए तय्यार न हो। जो व्यक्ति यह सोचता है कि उसका दूसरे पर अधिकार है तो उसी वक़्त उसे भी इस सच्चाई पर ध्यान देना चाहिए कि दूसरे का भी उस पर अधिकार बनता है। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं, तुममें उस व्यक्ति को शर्म नहीं आती कि उसका पड़ोसी तो पड़ोसी होने के नाते उसके संबंध में अधिकार का पालन करे लेकिन वह इस ओर से लापरवाह हो।

पैग़म्बरे इस्लाम एक कथन में पड़ोसी के अधिकार के बारे में फ़रमाते हैं, “पड़ोसी का अधिकार यह है कि अगर वह बीमार हो तो उसका हाल पूछो, अगर उसकी मौत हो जाए तो उसकी शवयात्रा में शामिल हो, अगर तुमसे क़र्ज़ मांगे तो देने से इन्कार न करो, अगर उसकी ज़िन्दगी में कोई ख़ुशी की घटना घटी हो तो बधाई दो, कठिनाई व मुसीबत में उससे हमदर्दी करो। अपने घर की इमारत को इतनी ऊंची न करो कि उस तक ठंडी हवा न पहुंचे।”

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एक और स्थान पर पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया,“जब कोई फल ख़रीदो तो थोड़ा सा अपने पड़ोसी को दो वरना उसे छिपा कर घर ले जाओ। जिस वक़्त तुम्हारे बच्चे फल खा रहे हों तो उन्हें घर से बाहर मत भेजो कि कहीं पड़ोसी का बच्चा दुखी न हो जाए और तुम्हारे खाने की महक उसे दुखी न करे क्योंकि मुमकिन है वैसा खाना बनाना उसके बस में न हो मगर यह कि थोड़ा सा उसे भेज दो।”

पैग़म्बरे इस्लाम का पड़ोसी के बारे में एक मशहूर कथन है।  आपने फ़रमाया, वह व्यक्ति मोमिन नहीं जिसका पेट भरा हो और उसका पड़ोसी भूखा हो।

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अंत में पड़ोसी के बारे में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का एक कथन पेश है। आप फ़रमाते हैं, “पड़ोसी का एक अधिकार यह है कि जब वह मौजूद न हो तो उसकी रक्षा करो और उसकी मौजूदगी में उसका सम्मान करो। हर हाल में उसके मददगार बनो। उसके राज़ जानने की कोशिश न करो, उसकी बुराई मत ढूंढो। अगर बिना इरादे के उसकी किसी बुराई के बारे में पता चल जाए तो उसे छिपाओ। जब उसके पास कोई नेमत देखो को ईर्ष्या मत करो। उसकी ग़लतियों को नज़रअंदाज़ करो। अगर उसने कोई बुराई की तो धैर्य से काम लो। उसके साथ शांतिपूर्ण व्यवहार करो। उसे गाली मत दो। उसके साथ बहुत सम्मान व प्यार के साथ रहो।”