फिलिस्तीन मुद्दे का अतीत- 1
फिलिस्तीन के इतिहास को किस प्रकार देखना चाहिये?
फिलिस्तीनी राष्ट्र के भविष्य का फैसला कब कर लिया गया और इसमें किन लोगों ने भूमिका निभाई? फ़िलिस्तीन के इतिहास में बालफोर समझौते की क्या भूमिका है? और इसे किस दृष्टि से देखा जाना चाहिये। इसका प्रभाव कहां तक था और फ़िलिस्तीनी राष्ट्र का भविष्य किस प्रकार बालफोर में लुप्त हो गया?
ब्रिटेन की तत्कालीन सरकार ने वर्ष 1917 में बालफोर घोषणापत्र को पारित किया। इस घोषणापत्र में स्पष्ट किया गया था कि फ़िलिस्तीन में एक यहूदी सरकार का गठन ज़रूरी है। इस घोषणापत्र के अनुसार ब्रिटेन इस संबंध में कार्य करने के प्रति वचनबद्ध हुआ है।
बालफोर घोषणा पत्र को पारित हुए वर्ष 2017 में सौ साल पूरे हो गये। आज के कार्यक्रम में हम इसके गुप्त व स्पष्ट लक्ष्यों व कारणों की समीक्षा करेंगे।
बालफोर विज्ञप्ति ही प्रसिद्ध बालफोर घोषणापत्र है जिसे ब्रिटेन की सरकार ने 1917 में पारित किया था। इस घोषणा पत्र में फिलिस्तीन में यहूदियों के लिए एक राष्ट्र बनाये जाने की आकांक्षा के प्रति समरसता जताई गयी है। इस घोषणापत्र ने एक पत्र का रूप ले लिया। लार्ड बालफोर ने दो नवंबर 1917 को जायोनी आंदोलन के एक नेता लार्ड एडमंड डयू राथ्स चाइल्ड को उसे भेजा। इस घोषणापत्र का सारांश इस प्रकार था।" प्रिय लार्ड राथ्स चाइल्ड, मैं बहुत प्रसन्न हूं कि सरकार की ओर से यहूदी जायोनियों की आकांक्षा के प्रति सहमति की सूचना दे रहा हूं। फिलिस्तीन में यहूदी राष्ट्र की सरकार के गठन के लिए ब्रिटेन की सरकार पूरी रूचि से प्रयास करेगी और उसके गठन के लिए समस्त प्रयास करेगी परंतु साफ तौर पर यह बात जान लेना चाहिये कि कोई एसा कार्य नहीं होना चाहिये जो फिलिस्तीन में रहने वाले गैर यहूदियों और विश्व के दूसरे देशों में रहने वाले यहूदियों के अधिकारों के खिलाफ हो। हम आपके आभारी होंगे अगर आप इस विज्ञप्ति को जायोनिज़्म युनियन तक पहुंचा दें।"
इस पत्र या घोषणापत्र की जो विषयवस्तु है उसमें एक नारे की आड़ में वास्तविक लक्ष्य को छिपा दिया गया है और वह लक्ष्य यहूदियों के लिए फिलिस्तीनी भूमि के अतिग्रहण को मान्यता प्रदान करना है। वह भी इसलिए नहीं कि यहूदी बेघर और अत्याचार से पीड़ित हैं बल्कि उसका मूल लक्ष्य एक साम्राज्वादी नीति को व्यवहारिक रूप प्रदान करना था।
इस प्रकार ब्रिटेन के तत्कालीन विदेशमंत्री आर्थर बालफोर ने दो नवंबर 1917 को एक विज्ञप्ति जारी करके फिलिस्तीन में यहूदियों के लिए एक देश समर्थन किया। ब्रिटेन के तत्कालीन विदेशमंत्री आर्थर बालफोर ने जो विज्ञप्ति जारी की थी बाद में वही बालफोर घोषणापत्र के नाम से प्रसिद्ध हुई। उस समय फिलिस्तीन उस्मानी साम्राज्य के अधीन था।
19वीं शताब्दी में ब्रिटेन के एक प्रधानमंत्री सर हेनरी कैम्बेल बिनमेन क्षेत्र में मध्यपूर्व का महत्व और उसका स्थान बयान करते हुए कहते हैं” दुनिया में एक एसी जगह है जिसमें स्ट्रैटेजिक जलमार्ग हैं और उनमें से हर एक को अगर कुछ समय के लिए बंद कर दिया जाये तो दुनिया की अर्थ व्यवस्था को गहरा आघात पहुंचेगा। उसके बाद वे कहते हैं कि संयोग से दुनिया का यह स्ट्रैटेजिक क्षेत्र भूमिगत स्रोतों से समृद्ध है और दुनिया की अर्थ व्यवस्था पूरी तरह उस पर निर्भर है। इस विशेषता के साथ इस क्षेत्र में जो लोग रहते हैं उनमें से अधिकांश मुसलमान हैं। उनका एक धर्म और एक आस्था है। हम अगर दुनिया में अपने आधिपत्य को जारी रखना चाहते हैं तो निश्चित रूप से यह क्षेत्र हमारी पकड़ में होना चाहिये।“
यह दृष्टिकोण इस बात का सूचक है कि इस क्षेत्र में जायोनियों के अस्तित्व के मूल लक्ष्य साम्राज्यवादी हित हैं जबकि दावा यह किया जाता है कि दुनिया में यहूदियों को एक सरकार की ज़रूरत है। दूसरे शब्दों में इस क्षेत्र में जायोनियों का अस्तित्व, उस दावे से बिल्कुल अलग है जो किया जाता है।
वास्तव में ब्रिटेन ने बालफोर घोषणा पत्र जारी होने से पहले साइक्स पीको समझौते के अंतर्गत फिलिस्तीन पर कब्ज़ा कर रखा था। उसके बाद उन्होंने बालफोर को व्यवहारिक बनाने की दिशा में वर्षों फिलिस्तीन की जनसंख्या के ताने- बाने को बदलने का प्रयास किया। वर्ष 1917 से 1947 तक विश्व के कोने कोने से लाखों यहूदियों को लाकर फिलिस्तीन में बसा दिया गया। ज्ञात रहे कि वर्ष 1947 में राष्ट्रसंघ ने फिलिस्तीन में एक यहूदी सरकार बनाये जाने की योजना का समर्थन कर दिया।
इतिहासकारों के मध्य एक आम धारणा व्याप्त है जिसका आधार यह है कि यहूदियों ने जो पीड़ायें झेली हैं और उन पर जो अत्याचार किये गये हैं उनके प्रति बालफोर घोषणा पत्र में गहरी सहानुभूति जताई गयी है। इस घोषणा पत्र ने दर्शा दिया है कि वह समय आ गया है कि ईसाई सभ्यता यहूदियों के लिए कुछ करे परंतु इतिहास ने दर्शा दिया है कि बालफोर घोषणापत्र यहूदी विरोधी था।
जब वर्ष 1903 से 1905 तक बालफोर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे तो उन्होंने ब्रिटेन पलायन करने वाले यहूदियों की कड़ी आलोचना की और ब्रिटेन को पेश आने वाली संभावित समस्या के भय से यहूदियों के पलायन को सीमित करने के लिए कानून बनाया। ज्ञात रहे कि ब्रिटेन पलायन करने वाले यहूदी इस बात को स्वीकार नहीं करते थे कि वे भी ब्रिटेन के लोगों की भांति हैं क्योंकि वे स्वयं को दूसरे समस्त इंसानों से श्रेष्ठ समझते हैं और जिन कारणों से ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री बालफोर ने यहूदियों की कड़ी आलोचना की उनमें से एक मुख्य कारण यह था।
बालफोर घोषणा पत्र वास्तव में बालफोर के राजनीतिक जीवन का शिखर बिन्दु था। बालफोर घोषणापत्र जारी होने के सात महीने बाद फिलिस्तीन में ब्रितानी कमांडर जनरल आले नबी और उस्मानी सेनाओं के मध्य लड़ाई हुई और फिलिस्तीन पर ब्रिटेन ने कब्ज़ा कर लिया। फिलिस्तीन पर ब्रिटेन ने जो कब्ज़ा किया वह बालफोर घोषणा पत्र को व्यवहारिक बनाये जाने की दिशा में ही था और व्यवहारिक रूप से फिलिस्तीन में ब्रिटेन की सरकार बन गयी। इस चीज़ और ब्रिटेन की सहायता से विश्व के कोने कोने से यहूदियों के फिलिस्तीन पलायन की भूमि प्रशस्त हो गयी। जो बालफोर घोषणापत्र है और उसमें यहूदी सरकार बनाने से संबंधित जो बात थी उसे वर्ष 1922 में इस घोषणा पत्र से निकाल दिया गया जिसके बाद राष्ट्रसंघ में भी इस घोषणा पत्र को पारित कर दिया गया। इसके बाद जायोनियों की पूरा ध्यान दुनिया के कोने कोने से यहूदियों को फिलिस्तीन लाकर बसाने पर केन्द्रित हो गया।
जायोनी शासन वास्तव में एक विदेशी षडयंत्र की उपज है जिसका आरंभ बालफोर घोषणा पत्र से हुआ। वर्ष 1897 में स्वीटजरलैंड के बाल नगर में होने वाले सम्मेलन से लेकर वर्ष 1917 में जारी होने वाले बालफोर घोषणा पत्र तक यहूदी परेशान थे और नहीं जानते थे कि वे कहां जायें? यूगांडा जायें या अर्जेनटाइना या किसी और जगह। यह एक कल्पना व आकांक्षा थी परंतु बालफोर घोषणा पत्र के जारी होने के बाद यह आकांक्षा एक योजना में परिवर्तित हो गयी। यह एसी योजना थी जिसका व्यवहारिक होना साम्राज्यवादी ब्रिटेन की सहायता व भूमिका के बिना संभव नहीं था।
बालफोर घोषणा पत्र से जायोनी शासन ने अपने लिए एक इतिहास रच लिया और कहा कि हम ब्रितानी साम्राज्य के अधीन एक राष्ट्र थे और जब ब्रिटेन यहां से चला गया तो हमने फिलिस्तीन में अपने अस्तित्व की घोषणा की। यह एतिहासिक वास्तविकता की खुली हेरा- फेरी है। क्योंकि फिलिस्तीन के अतिग्रहण के बिना इतिहास में यह हेरा- फेरी संभव ही नहीं थी। यहूदियों की जड़ फिलिस्तीन में नहीं है और यहूदी राष्ट्र नाम की कोई चीज़ फिलिस्तीन में नहीं है बल्कि जायोनियों की सहायता और उनके निवेश से दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों से कुछ यहूदियों को फिलिस्तीन लाकर बसाया गया। 19वीं शताब्दी में ब्रिटेन के एक प्रधानमंत्री सर हेनरी कैम्बेल बिनमेन ने कहा था कि अगर हम दुनिया पर अपना वर्चस्व जारी रखना चाहते हैं तो इसके लिए ज़रूरी है कि हम पश्चिम एशिया को अपनी पकड़ में रखें।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि फिलिस्तीनी राष्ट्र का भविष्य उस षडयंत्र का पुराना घाव है जो इतिहास में पंजीकृत है। इस संबंध में अधिक चर्चा हम अगले कार्यक्रम में करेंगे। सुनना न भूलियेगा।