Nov २१, २०१७ १२:५० Asia/Kolkata

फिलिस्तीन इस्लामी जगत का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है और लगभग 70 वर्षों से जायोनियों ने फिलिस्तीन की भूमि का अतिग्रहण कर रखा है और फिलिस्तीन के समृद्ध इतिहास में पश्चिम और जायोनियों ने अपनी वर्चस्ववादी नीतियों के परिप्रेक्ष्य में हेरा- फेरी कर दी है।

इसके लिए पश्चिम और जायोनियों ने संचार माध्यमों सहित बारम्बार विभिन्न संसाधनों का सहारा लिया है। जायोनी शासन का जाली व अवैध होना और अंतरराष्ट्रीय जायोनी नेताओं की ओर से बलफ़ोर घोषणा पत्र की आड़ में यहूदी राष्ट्र बनाना वह विषय है जिसे स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने विभिन्न अवसरों पर विभिन्न आयामों से बयान किया है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने आठ उर्दीबहिश्त 1372 हिजरी शमसी अर्थात 28 अप्रैल 1994 को ज़िम्मेदारों और हज से संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों से मुलाक़ात में फिलिस्तीनी देश के अतिग्रहण के इतिहास को बयान करते हुए कहा" फिलिस्तीन मुद्दे के बारे में हम जिस बात को कहना चाहते हैं वह यह है कि इस मामले में बहुत कटु बिन्दु मौजूद है। यद्यपि फिलिस्तीनी भूमि से संबंधित समस्त मामले कटु हैं किन्तु यह बिन्दु बहुत कष्टदायक है कि दुनिया में 45 साल के अंदर जो प्रचार किये गये विशेषकर हालिया एक दो दशक के अंदर किये जाने वाले प्रचारों में यह दिखाने का प्रयास किया गया कि जो यहूदी आये और उन्होंने फिलिस्तीन पर कब्ज़ा कर लिया, वे अत्याचार से पीड़ित लोग हैं, उनके अधिकार हैं, उन्हें दबाया गया है और उन पर अत्याचार किया गया है। जब जायोनी और रूसी यहूदी फिलिस्तीन पलायन करना चाहते थे तो नहीं कहते थे कि ये अतिग्रहणकारी हैं, ये फिलिस्तीनी नहीं हैं जो वहां जा रहे हैं। ये रूसी हैं, यूक्रेन के हैं, यूरोपीय और अमेरिकी हैं और इनमें से हर एक का अपने यहां स्थान, मकान, धन दौलत और जीवन था। इसके बावजूद वे फिलिस्तीन जाते हैं ताकि एक फिलिस्तीनी के अधिकार का अतिग्रहण करें, उसके मकान के मालिक बन जायें, उसकी धन- सम्पत्ति और ज़मीन को हड़प लें और परिवार गठित करने की संभावना को उससे छीन लें। यह नहीं कहते थे। यह वह कार्य था जिसे 60-70 साल पहले से आज तक अंजाम दिया। यानी आधिकारिक रूप से फिलिस्तीन के अतिग्रहण से 25 साल पहले से यह काम किया। आरंभ में जब ये फिलिस्तीन पहुंचे तो नहीं कहा कि हम फिलिस्तीन में पलायनकर्ता लाये हैं। फिलिस्तीनी लोग आश्चर्य करते थे कि जो लोग आ रहे हैं वे कौन हैं?! वे झूठ में कहते थे कि हम विशेषज्ञ ला रहे हैं।"

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इस संबंध में दस्तावेज़ों की ओर संकेत करते हुए कहते हैं" 60-70 साल के बाद आज ब्रिटेन के विदेशमंत्रालय की ओर से जो दस्तावेज़ प्रकाशित किया गया उसमें कहा गया है कि फिलिस्तीन में कार्यरत एक ब्रितानी अफसर अपनी रिपोर्ट में लिखता है" हमने फिलिस्तीनी लोगों से कहा कि जो लोग फिलिस्तीन आ रहे हैं वे विशेषज्ञ, इंजीनियर और डाक्टर हैं। वे तुम्हारे देश को आबाद करने के लिए आ रहे हैं। जब तुम्हारी भूमि आबाद हो जायेगी तो वे चले जायेंगे। इसी ब्रितानी अफसर ने अपने एक पत्र में लिखा है" किन्तु हम फिलिस्तीनी लोगों से झूठ बोलते हैं! जिन यहूदियों को दुनिया से एकत्रित करके फिलिस्तीन लाया गया है वे विशेषज्ञ नहीं हैं। उन्हें ज़मीन और दूसरी समस्त संभावनाएं दी गयी। चूंकि फिलिस्तीनियों को उनकी मातृभूमि से निकालना चाहते थे, एक अत्याचार को स्थाई बनाना चाहते थे, एक अत्याचार को कानूनी और आधिकारिक बनाना चाहते थे।"

                         

इस्राईल नाम की जाली सरकार ने धीरे- धीरे फिलिस्तीन के अधिकांश भागों पर कब्ज़ा कर लिया और अब वह कैन्सर का फोड़ा बन गया है। ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने भी विभिन्न अवसरों पर, चाहे वह क्रांति का समय रहा हो या क्रांति के सफल होने के बाद का समय, फिलिस्तीन मामले को उठाया और फिलिस्तीन में अवैध जायोनी शासन के खतरे से मुसलमानों और इस्लामी देशों को अवगत किया किया।  

स्वर्गीय इमाम खुमैनी अपने क्रांतिकारी विचारों व भाषणों में ईरानी और फिलिस्तीनी राष्ट्र की आज़ादी की आवश्यकता पर बल देते थे। इस बात को उनके राजनीतिक संघर्ष में उनकी बहुत सी रचनाओं, किताबों और भाषणों आदि में भली- भांति देखा जा सकता है। वर्ष 1948 से 1967 के बीच में जो भी युद्ध हुए उसके माध्यम से इस्राईल ने यह संदेश देने का प्रयास किया उसका अस्तित्व सदैव के लिए रहेगा और कोई भी उसे समाप्त नहीं कर सकता परंतु ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद जो पहला इंतेफाज़ा गठित हुआ उससे वैधता प्रदान करने हेतु जायोनी शासन के प्रयासों के समक्ष गम्भीर चुनौती खड़ी हो गयी।

स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने पवित्र महीने रमज़ान के अंतिम शुक्रवार को विश्व कुद्स का नाम दिया और इस अवसर पर सारी दुनिया में फिलिस्तीनी राष्ट्र के समर्थन में प्रदर्शन किये जाते हैं। स्वर्गीय इमाम खुमैनी जायोनी शासन के खिलाफ जो संघर्ष और फिलिस्तीनी राष्ट्र का समर्थन करते थे उनके इस प्रयास को उसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। स्वर्गीय इमाम खुमैनी की दृष्टि में इस्राईल बड़ा ख़तरा है और उनका मानना था कि जायोनिज़्म द्वारा इस्लाम विरोधी कार्यवाहियां साम्राज्यवादी शक्तियों के समर्थन और उनकी छत्रछाया में हो रही हैं और स्वर्गीय इमाम खुमैनी के अनुसार जायोनिज़्म एक राजनीतिक, साम्राज्यवादी, गैर धार्मिक और यहूदी समाज से अलग एक चीज़ है। इस आधार पर स्वर्गीय इमाम खुमैनी जायोनी शासन की वास्तविकता बयान करने के उद्देश्य से इस्राईल से अपने विरोध को यहूदी धर्म और यहूदी समाज से अलग मानते थे यहां तक कि वे दूसरे धर्मों के सम्मान की बात करते थे। स्वर्गीय इमाम खुमैनी जायोनिज़्म को साम्राज्य की उपज मानते थे जिसका सदैव अमेरिका समर्थन करता है। वह पश्चिम के बड़े पूंजी पतियों विशेषकर अमेरिका से जायोनिज़्म के संबंध को इस्राईल की उपज का मूल कारण मानते और इस प्रकार कहते हैं” इस्राईल, पूरब और पश्चिम की साम्राज्यवादी सरकारों की सांठगांठ की उपज है और इस्लामी राष्ट्रों के दमन व शोषण के लिए उसे बनाया गया है और आज समस्त साम्राज्यवादियों की ओर से उसका समर्थन किया जा रहा है। अमेरिका और ब्रिटेन अपनी राजनीतिक व सैनिक शक्ति को मज़बूत करके और इस्राईल को विनाशकारी हथियार देकर उसे अरबों और मुसलमानों के खिलाफ अतिक्रमण के लिए उकसाते रहते हैं।“

स्वर्गीय इमाम खुमैनी सदैव बल देकर कहते थे कि फिलिस्तीन, लेबनान और गोलान की पहाड़ियों का अतिग्रहण करके और तथा कथित शांति समझौते करने से जायोनियों का अतिक्रमण समाप्त नहीं होगा बल्कि वे ग्रेट इस्राईल को व्यवहारिक बनाने के लिए प्रयास करते- रहेंगे और उनका खतरा पूरे मध्यपूर्व और इस्लामी क्षेत्रों को रहेगा।

मध्यपूर्व के मामलों के विशेषज्ञ हसन रीवरान इस बारे में कहते हैं” जायोनी एक गढ़े हुए इतिहास को प्रमाण के रूप में पेश करते हैं कि एक समय में वे फिलिस्तीन में थे और यह जगह उनसे संबंधित है। अगर यह मापदंड हो जाये कि जो राष्ट्र व समुदाय एक समय में जहां पर था तो उसका संबंध हमेशा के लिए वहां से होगा तो कहना चाहिये कि हम ईरानी एक समय में यूनान और मिस्र में भी थे और दूसरे स्थानों पर थे। अगर इस प्रकार का एतिहासिक दावा प्रमाण बन सकता होता, जिसे सब रद्द करते हैं, तो मामला यह न होता जो हो रहा है। अतः जायोनी अपनी वैधता दर्शाने के लिए जिन समस्त बातों को पेश करते हैं उनमें से किसी से भी बात  से उनकी वैधता सिद्ध नहीं होती।“

वास्तविकता यह है कि जायोनी शासन के अवैध अस्तित्व की बुनियाद को क्यों बालफोर घोषणा पत्र में खोजा जाना चाहिये। इस्राईल को इस लक्ष्य से बनाया गया कि वह पश्चिम की साम्राज्यवादी शक्तियों के लिए इस भौगोलिक व स्ट्रैटेजिक क्षेत्र में भूमिका निभाये और इस कार्य को ब्रिटेन ने अंजाम दिया। अरब और इस्लामी जगत में एकता को रोकने के लिए इस्राईल को बनाया गया और जब तक इस्लामी जगत के केन्द्र में जायोनी शासन का अस्तित्व रहेगा तब तक एकता संभव नहीं है।

 

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