यमन युद्ध और उसकी समाप्ति की शैली कैसी होगी? - 1
सऊदी अरब ने अमरीका व संयुक्त अरब इमारात के समर्थन से मार्च 2015 में यमन पर सैन्य हमला शुरू किया और इस देश का ज़मीनी, हवाई और समुद्री घेराव कर लिया।
इसके लिए उसने यमन के भगोड़े और अपदस्थ राष्ट्रपति मंसूर हादी को सत्ता में लौटाने का बहाना बनाया था। अब यह टकराव बहुत बढ़ चुका है और रोचक बात यह है कि यमन के दक्षिणी क्षेत्रों विशेष कर अदन शहर में स्वयं सऊदी अरब और संयुक्त अरब इमारात के सैनिकों के बीच आपस में झड़पें भी होने लगी हैं।
यमन में इन दोनों देशों की विस्तारवादी नीतियां, दक्षिणी यमन के लोगों के बीच व्यापक मतभेदों का भी कारण बनी हैं। इस क्षेत्र के लोग व्यवहारिक रूप से मंसूर हादी के नेतृत्व वाली त्यागपत्र दे चुकी सरकार का तख़्ता पलटने के समर्थक गुट या इस सरकार का समर्थन जारी रखने वाले गुट में बंट चुके हैं। इस बात से अबू धाबी ने यह सोचा कि वह यमन के दक्षिणी प्रांतों में सऊदी अरब के प्रभाव को कम कर दे। यही कारण है कि यमन की अहम बंदरगाह अदन में इमारात समर्थित बलों और यमन के भगोड़े राष्ट्रपति मंसूर हादी के समर्थक बलों के बीच निरंतर झड़पें हो रही हैं।
सऊदी अरब और संयुक्त अरब इमारात के बीच मतभेद जारी रहने और उसके खुल कर सामने आ जाने के बाद ये दोनों देश, यमन के दक्षिणी मोर्चे से एक दूसरे को हटाने के प्रयास में हैं हालांकि इससे दोनों इस बात पर सहमत हुए थे कि, यमन की सेना और अंसारुल्लाह संगठन के ख़िलाफ़ युद्ध में, जिनके नियंत्रण में यमन के उत्तरी प्रांत हैं, एकजुट रहेंगे। इस आधार पर सऊदी अरब यमन के उत्तरी भाग से सनआ तक क़ब्ज़े की कोशिश में रहा है और संयुक्त अरब इमारात, दक्षिणी प्रांतों में अरब गठजोड़ से संबंधित सैनिकों का समर्थन करता है।
ऐसा प्रतीत होता है कि दक्षिणी यमन के नए तथ्यों और यमन के दक्षिणी क्षेत्रों पर नियंत्रण के लिए सऊदी अरब व संयुक्त अरब इमारात के बीच मतभेदों में वृद्धि के दृष्टिगत रियाज़ व अबू धाबी में टकराव बढ़ जाएगा क्योंकि इमारात, दक्षिणी यमन को अपने नियंत्रण में लेने और इस क्षेत्र के सभी टापुओं और बंदरगाहों पर क़ब्ज़ा करने की रणनीति को गति प्रदान करने का पक्का इरादा रखता है। इस कार्यक्रम में यमन के हालात, आंतरिक चुनौतियों और इस देश के राजनैतिक भविष्य पर दक्षिणी यमन की घटनाओं के संभावित परिणामों की समीक्षा की जाएगी।
हालिया बरसों में यमन के आंतरिक परिवर्तनों ने पर्यवेक्षकों और मध्यपूर्व व बाहरी शक्तियों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है। सादा की लड़ाई में सऊदी अरब के सैनिकों के प्रवेश, यमन में अमरीका के हस्तक्षेप और सैन्य गठजोड़ के गठन ने यमन के संकट और इस देश की आंतरिक अशांति के मूल कारणों के बारे में विभिन्न तरह के सवाल पैदा कर दिए हैं और यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि इन परिवर्तनों पर क्षेत्र से बाहर की बड़ी शक्तियां और विश्व समुदाय इतना अधिक ध्यान क्यों दे रहा है?
इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से इसी प्रश्न का जवाब देने की कोशिश की गई है। राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से संसार के इस क्षेत्र में अमरीका के शक्ति के लिए सबसे बड़ा और गंभीर ख़तरा क्षेत्रीय अशांति का बढ़ना और उसके परिणाम स्वरूप अलक़ाएदा व उस जैसे संगठनों का मज़बूत होना है क्योंकि इस प्रकार के संगठन अशांति को बढ़ाते हैं। ठोस दस्तावेज़ों के आधार पर इस तरह के विचार भी पाए जाते हैं कि अमरीका ने आतंकवाद से संघर्ष के बहाने अलक़ाएदा और दाइश जैसे आतंकी गुटों के माध्यम से क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की। हालिया बरसों में सीरिया व इराक़ में दाइश के फलने फूलने को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाता है।
यमन, अरब प्रायद्वीप में स्थित है और लाल सागर तथा अदन की खाड़ी में उसकी विस्तृत जल सीमाएं हैं। अफ़्रीक़ा के रास्ते पर स्थित होने के दृष्टिगत इस देश की रणनैतिक स्थिति और अफ़्रीक़ा के पूर्वी तटों पर होने वाली गतिविधियों को नियंत्रित करने की संभावना ने इस देश को विशेष महत्व प्रदान कर दिया है। इसके अलावा बाबुल मंदब स्ट्रेट पर यमन के प्रभुत्व ने ऊर्जा और वस्तुओं के ट्रांज़िट की सुरक्षा की दृष्टि से भी इसे काफ़ी महत्वपूर्ण बना दिया है।
बाबुल मंदब स्ट्रेट की सुरक्षा लाल सागर के सभी तटवर्ती देशों के लिए वस्तुओं व हथियारों के ट्रांज़िट की दृष्टि से बहुत अहम है। उदाहरण स्वरूप इस्राईल के ख़िलाफ़ मिस्र व सीरिया के 1973 के युद्ध में यमन ने क़ाहेरा के समन्वय से बाबुल मंदब स्ट्रेट को इस्राईल के लिए हथियार व अन्य वस्तुएं ले जाने वाले समुद्री जहाज़ों के लिए बंद कर दिया था। इस तरह उसने इस्राईली नौसेना के एक बड़े भाग को निष्क्रिय बना दिया और इस्राईली वायु सेना लाल सागर के माध्यम से मिस्र को क्षति पहुंचाने में विफल रही। यमन का यह क़दम सीना के मोर्चे पर होने वाली सैन्य कार्यवाही में बहुत प्रभावी रहा।
सऊदी अरब के जद्दा व यनबो जैसे अहम शहरों समेत लाल सागर के दसियों तटवर्ती शहरों में व्यापार और पर्यटन बड़ी हद तक बाबुल मंदब स्ट्रेट में शांति व सुरक्षा पर निर्भर है। इस लिए अफ़्रीक़ा महाद्वीप के दरवाज़े तक यमन की पहुंच के अलावा बाबुल मंदब स्ट्रेट की सुरक्षा ने भी इस देश को एक विशेष रणनैतिक स्थिति प्रदान कर दी है।
जनसंख्या व समाज की दृष्टि से यमन एक क़बायली समाज पर आधारित है जिसमें कभी कभी क़बायली परंपराओं और संस्कारों का पालन, सरकारी क़ानूनों से भी अधिक ज़रूरी होता है। इस समाज के क़बीले, सांस्कृतिक व सामाजिक गतिविधियों से इतर राजनैतिक जीवन में प्रवेश की शायद सबसे प्रभावी इकाई हैं। यमन के अनेक सरकारी उच्चाधिकारी, इस देश के अहम व प्रभावी क़बीलों से संबंध रखते हैं। पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्लाह सालेह, जिन्होंने लगभग तीन दशक तक इस देश पर तानाशाही शासन किया, हाशिद क़बीलों के फ़ेडरेशन के सदस्य थे जिसे यमन में ध्यान योग्य प्रभाव हासिल है। हाशिद क़बीले के प्रमुख, जिनका संबंध अहअहमर परिवार से है, अधिकांश अहम राजनैतिक पदों पर रहे हैं।
यमन के अधिकांश अहम क़बीलों के सरदारों और महत्वपूर्ण हस्तियों के पास अपने मेहमानों के सत्कार के लिए बड़े बड़े हॉल हैं जिनमें विभिन्न तरह के आयोजन होते हैं। इन बैठकों में अहम राजनैतिक मामलों पर बिना किसी सीमितता के चर्चा होती है और विमर्श किया जाता है। वस्तुतः क़बीलों की शक्ति, सरकार को निरंकुश शक्ति प्राप्त करने से रोकती है। दूसरी और इसी बात के चलते सरकार के पास शिक्षा व राष्ट्रीय पहचान को स्वरूप प्रदान करने की क्षमता नहीं रही है।
अगर हम अली अब्दुल्लाह सालेह के राजनैतिक जीवन पर एक नज़र डालें तो हम देखेंगे कि वे कभी भी अपने किसी भी घटक के वफ़ादार नहीं रहे और हर कुछ समय बाद अपने घटकों के ख़िलाफ़ कार्यवाही करते रहे। इसी बात पर ध्यान देना काफ़ी होगा कि सालेह ने सऊदी अरब के समर्थन से अपना राजनैतिक जीवन शुरू किया था और अंत में वे सऊदी अरब के ख़िलाफ़ गठजोड़ में शामिल हुए। हालांकि उन्होंने हूसियों के ख़िलाफ़ पांच लड़ाइयां शुरू की थीं लेकिन अंत में वे उन्हीं के साथ जा कर मिल गए। जीवन के अंतिम दिनों में वे हूसियों के विरुद्ध षड्यंत्र में शामिल हुए और उसी षड्यंत्र की विफलता के चलते मारे गए। इसी के साथ कुछ लोगों का यह भी मानना है कि अली अब्दुल्लाह सालेह, हूसियों की फ़ायरिंग में नहीं बल्कि सऊदी गठजोड़ की बमबारी में मारे गए।