Feb २७, २०१८ १५:१२ Asia/Kolkata

26 मार्च 2015  से सऊदी अरब ने अमरीका के समर्थन से यमन पर सैन्य हमला आरंभ किया है जो अब तक जारी है और उसने यमन का परिवेष्टन भी कर रखा है ।

इस युद्ध में बहुत बड़े पैमान पर तबाही हुई है।  यह तबाही इतनी व्यापक है कि इसका बयान करना बहुत कठिन है।

वर्तमान समय में यमन को कुछ एसी चुनौतियों का सामना है जिन्होंने इस देश की अखण्डता और आंरतिक सुरक्षा को ख़तरे में डाल दिया है।  इस ख़तरे ने क्षेत्र ही नहीं बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कुछ चुनौतियों को जन्म दिया है।  यमन को जिन चुनौतियों का सामना है वे इस प्रकार हैं।  1-उत्तरी यमन में हौसिया का मामला।  2-दक्षिणी यमन में प्रथक्तावाद की मांग।  3-इस देश में अलक़ाएदा की बढ़ती गतिविधियां और चौथे सऊदी अरब के साथ यमन के संबन्धों में तनाव।

उत्तरी यमन में सन 2004 में युद्ध आरंभ होने के साथ ही वहां का अंसारुल्लाह आन्दोलन, यमन के आंतरिक परिवर्तनों में प्रभावी भूमिका निभाने वाले के रूप में सामने आया।  1990 के दशक के आरंभ में यमन के सादा प्रांत में ज़ैदी समुदाय से अंसारुल्लाह आन्दोलन ने जन्म लिया।  यमन के अंसारुल्लाह आन्दोलन ने सेना के दबाव से मुक्ति और अपने प्रभाव को आगे बढ़ाने जैसे दो लक्ष्यों से अपनी गतिविधियां आरंभ की थीं।  यमन की सेना में बढ़ती खाई और उसके परिणाम स्वरूप इसके कमज़ोर होने के कारण यमन के उत्तरी प्रांतों पर अंसारूल्लाह आन्दोलन की पकड़ मज़बूत होती गई।  इस प्रकार अंसारूल्लाह आन्दोलन यमन में बहुत तेज़ी से उभरा।

यमन के अंसारुल्लाह आन्दोलन ने फ़ार्स की खाड़ी की सहकारिता परिषद के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए राष्ट्रीय वार्ता प्रक्रिया में भाग लिया। यह सहयोग, अंतरिम सरकार के निमंत्रण और सरकार द्वारा यह समझे जाने के बाद आरंभ हुआ कि अंसारुल्लाह आन्दोलन, राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति में भागीदारी का इच्छुक है।  हालांकि अंसारुल्लाह के दो प्रतिनिधियों की हत्या और इब्राहीम अलवज़ीर पर हत्या के विफल प्रयास के बाद इस आन्दोलन ने तत्कालीन राजनीतिक वार्ता प्रक्रिया का विरोध किया।

सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन के साथ हौसियों के छापामारों की बढ़ती झड़पों के बाद यमन के मानवीय संकट ने व्यापक रूप धारण किया।  यह संकट इतना भयंकर हो चुका है कि इसने स्पेन के बास्क क्षेत्र में स्थित गरनिका नगर की बमबारी की याद ताज़ा कर दी है।  वर्तमान समय में यमन की स्थिति गरनिका जैसी है।  26 अप्रैल सन 1937 को जनरल फ़्रांसिसको फ्रांको के आदेश पर स्पेन के बास्क क्षेत्र में स्थित गरनिका नगर पर बमबारी की गई थी।  इस बमबारी में सैकड़ों लोग बहुत बुरी तरह से मारे गए थे।  वर्तमान समय में यमन में इससे भी भयानक ढंग से आम लोगों की हत्याएं की जा रही हैं।  ढ़ाई वर्ष से अधिक समय से यमन की निर्दोष जनता के खिलाफ सऊदी अरब के पाश्विक हमले जारी हैं।

यमन के मानवीय संकट के बारे में जापान टाइम्स लिखता है कि गरनिका बमबारी को लगभग 80 वर्ष का समय होने को आ रहा है किंतु यमनवासी उसी प्रकार की बमबारी का सामना कर रहे हैं।  यह ऐसी बमबारी है जो सऊदी अरब, यमनवासियों पर अमरीका के समर्थन से कर रहा है।  यमन के नोबल पुरस्कार विजेता "तवक्कुल कारमान" फेसबुक पर लिखते हैं कि सऊदी गठबंधन ने तथाकथित विद्रोह के दमन के बहाने यमन का अतिग्रहण कर रखा है।  वे आगे लिखते हैं कि वे पूरी दुनिया के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से यह कहना चाहते हैं कि वे बिन सलमान और शेख बिन ज़ाएद के विरुद्ध अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में मुक़द्दमा दाएर करें।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार यमन में प्रतिवर्ष कम से कम तीस हज़ार लोग कैंसर में ग्रस्त हो जाते हैं।  डब्लूएचओ की पिछली रिपोर्ट में बताया गया था कि यमन में दस लाख से अधिक लोग महामारी का शिकार हैं।  विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में घोषणा की है कि डिप्थेरिया के कारण यमन में बहुत से लोगों की मृत्यु हुई है।  यमन में जो विषम स्थिति है वह इस देश के किसी भाग से विशेष नहीं है बल्कि समूचा यमन, भयंकर मानव त्रासदी की चपेट में है।  इस समय यमन के 22 प्रांतों में से 20 प्रांतों के लोगों को मानवीय सहायता की आवश्यकता है।  विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार यमन के 15 प्रांतों और 64 से अधिक उप नगरों में डिप्थेरिया के चिन्ह देखे गये हैं।  इसी संगठन का कहना है कि इस समय लगभग 20 मिलयन अर्थात दो करोड़ से अधिक यमनवासी, शुद्ध पेयजल से वंचित हो चुके हैं।

यमन के वर्तमान संकट के बारे में कई अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का कहना है कि यमन के लगभग 60 प्रतिशत लोगों को खाद्य पदार्थों की कमी का सामना है। इनमें से तीस लाख महिलाएं और बच्चे एसे भी हैं जो भारी कुपोषण का शिकार हैं। इन अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के अनुसार यमन के आधे से अधिक उपचारिक केंद्र और अस्पताल सेवाएं पेश करने में अक्षम हो चुके हैं।  आशंका इस बात की है कि यमन में लगभग बीस हज़ार लोग महामारी में ग्रस्त हैं।

यमन की वर्तमान रक्तरंजित घटनाओं का संबन्ध, इस देश के त्यागपत्र दे चुके राष्ट्रपति मंसूर हादी से अधिक है।  वैसे तो मार्च 2015 से यह निर्धन देश, युद्ध का सामना कर रहा है किंतु जून 2016 को जब मंसूर हादी ने त्यागपत्र दे चुकी सरकार के प्रधानमंत्री ख़ालिद महफूज़ को अपदस्त कर दिया उसके बाद से इस संकट ने नया रूप धारण किया।  ख़ालिद महफूज़ को संयुक्त अरब इमारात का समर्थन प्राप्त था।  हालांकि यमन पर आक्रमण करने वाले गठबंधन का एक सदस्य संयुक्त अरब इमारात भी है किंतु उसके सऊदी अरब से कुछ मतभेद भी हैं।

वर्ष 2016 को संयुक्त अरब इमारात के एक युद्धक विमान को यमन तथा सऊदी अरब की सीमा पर मार गिराया गया।  यूएई ने अपने विमान को मार गिराने का आरोप सऊदी अरब पर लगाया जिसके जवाब में रेयाज़ ने अबूधाबी पर आरोप लगाया कि उसने दक्षिणी क्षेत्र में उसके विमान पर हमला किया है।  इन अरब देशों के आपसी मतभेद तो बाक़ी हैं किंतु यमन की जनता का जनसंहार करने में दोनों एकमत हैं।  26 मार्च सन 2015 को सऊदी अरब ने अमेरिका, संयुक्त अरब इमारात और कुछ दूसरे देशों के समर्थन से यमन पर जो हमला आरंभ किया था वह अब भी जारी है और इसी के साथ ही उन्होंने यमन का हवाई, ज़मीनी और समुद्री परिवेष्टन भी कर रखा है।