यमन युद्ध और उसकी समाप्ति की शैली कैसी होगी? - 3
सऊदी अरब ने अमेरिका और संयुक्त अरब इमारात के समर्थन से 26 मार्च 2015 से यमन पर हमला आरंभ किया है जो अब तक जारी है और साथ ही उसने यमन का हवाई, ज़मीनी और समुद्री परिवेष्टन कर रखा है।
सऊदी अरब ने यमन पर जो हमला कर रखा है उसका औचित्य दर्शाने के लिए कहता है कि वह यमन के अपदस्थ राष्ट्रपति मंसूर हादी को दोबारा सत्ता वापस दिलाना चाहता है इसीलिए उसने यमन पर हमला किया है। सऊदी अरब ने यमन पर जो हमला कर रखा है अब उसने एक नया रूप भी धारण कर लिया है। सऊदी अरब इमारात और संयुक्त अरब का समर्थन प्राप्त लड़ाके यमन के दक्षिणी क्षेत्रों विशेषकर महत्वपूर्ण नगर अदन में अब एक दूसरे के आमने- सामने आ गये हैं और अभूतपूर्व ढंग से उसमें तेज़ी आ गयी है।
अंसारुल्लाह आंदोलन के राजनीतिक, सामाजिक, भौगोलिक और आर्थिक कई उद्देश्य हैं। ये वे उद्देश्य हैं जिन्हें अंसारुल्लाह आंदोलन व्यवहारिक बनाना चाहता है और इन्हें वह अपना निश्चित अधिकार समझता है। भौगोलिक क्षेत्र में अंसारुल्लाह आंदोलन उन क्षेत्रों को लाल सागर से जोड़ना चाहता है जो उसके नियंत्रण में हैं।
अंसारुल्लाह आंदोलन का मानना है कि यमन संकट के समाधान का जो भी मार्ग हो उसमें उसके राजनीतिक अधिकारों को ध्यान में रखा जाये। इस समय अंसारुल्लाह की सबसे बड़ी ताकत और साधन उसकी सैन्य शक्ति है। विदेश नीति के स्ट्रैटेजिक केन्द्र के अध्ययनकर्ता डाक्टर अहमदियान कहते हैं” यमन युद्ध में यह बात सिद्ध हो गयी कि अंसारुल्लाह एक प्रभावी पक्ष है और रहेगा। इस संबंध में कहा जा सकता है कि यमन के लिए किसी राजनीतिक भविष्य की कल्पना नहीं की जा सकती सिवाय कि उसमें अंसारुल्लाह आंदोलन की केन्द्रीय भूमिका होगी। एतिहासिक दृष्टि से ज़ैदिया भी शक्ति का एक भाग है। इस समय जो अंसारुल्लाह आंदोलन है उसे भी ज़ैदिया की असली सैनिक शक्ति समझा जाता है। दूसरे शब्दों में यमन के परिवर्तन की जो प्रक्रिया है अंसारुल्लाह आंदोलन ने उसे ऐसी दिशा प्रदान कर दी है कि इस आंदोलन की भूमिका को ध्यान में रखे बिना यमन के भविष्य की कल्पना नहीं की जा सकती।
अंसारुल्लाह को विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना है। अलबत्ता इसका यह अर्थ नहीं है कि केवल अंसारुल्लाह को चुनौतियों का सामना है। अंसारुल्लाह के प्रतिस्पर्धियों और दुश्मनों को भी चुनौतियों का सामना है और कम से कम कुछ क्षेत्रों में अंसारुल्लाह के दुश्मनों को बड़े पैमाने पर चुनौतियों का सामना है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सऊदी अरब यमन के दलदल से निकलने का ऐसा मार्ग ढूंढ रहा है जिसमें खर्च कम हो। साथ ही सऊदी अरब के अधिकारी इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि अमेरिका पैंतरा बदलता रहता है और उसकी कोई नियत व स्पष्ट स्ट्रैटेजी नहीं है बल्कि सऊदी अरब ने यमन पर जो हमला किया है उसके परिणाम में यमन में जो मानव त्रासदी उत्पन्न हुई है उसकी अमेरिका आलोचना करता है। इस आधार पर यमन के दलदल से निकलने के लिए ब्रिटेन का स्ट्रैटेजिक सुझाव सऊदी अरब के लिए बेहतर मार्ग हो सकता है।
यमनी सेना और स्वयं सेवी बलों के मुकाबले में सऊदी अरब को भारी नुकसान उठाने और बारमबार पराजित होने के बाद और इसी प्रकार उन लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफलता के बाद जिनके लिए उसने यमन पर हमला किया है वह यमन के दलदल से निकलना चाहता है और इसके लिए उसने ब्रिटेन का सहारा लिया है।
ब्रिटेन से प्रकाशित होने वाले इलेक्ट्रांनिक समाचार पत्र रायुल यौम ने इस बात की जानकारी देते हुए लिखा है कि सऊदी अरब की सरकार ने सीधे तौर पर ब्रिटेन की सरकार से सहायता मांगी है। इस सरकार ने लंदन का आह्वान किया है कि वह रियाज़ के लिए कोई स्ट्रैटेजिक मार्ग खोजे ताकि यमन में जो संकट जटिल हो गया है उससे सऊदी अरब निकल सके।
समाचार पत्र रायुल यौम के कुछ जानकार सूत्रों ने कहा है कि ब्रिटेन ने भी यमन संकट को समाप्त कराने के लिए प्रयास आरंभ कर दिया है ताकि सऊदी अरब यमन के दलदल से निकल सके। ब्रिटेन की यात्रा पर जाने वाले सऊदी अरब के विदेशमंत्री आदिल अलजुबैर की हालिया यात्रा को इसी संबंध में किये जाने वाले प्रयास के परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।
अब जब की सऊदी अरब यमन में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल हो चुका है तो संयुक्त अरब इमारात अमेरिका की हरी झंडी से यमन की महत्वपूर्ण बंदरगाह, यमन के महत्वपूर्ण द्वीपों और बाबुल मन्दब स्ट्रैट पर कब्ज़ा जमाने के प्रयास में है।
लेबनान की अलअहद वेबसाइट ने इस संबंध में लिखा है कि संयुक्त अरब इमारात ने पहले दिन ही जब उसने अर्धसैनिकों का गठन किया था और उनका वित्तीय समर्थन किया था तो उसी समय से उसने यमन के अदन प्रांत विशेषकर अदन की बंदरगाह पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए प्रयास किया। जो अर्धसैनिक अदन की बंदरगाह के पास तैनात हैं उनका नाम संयुक्त अरब इमारात ने "सुरक्षा बेल्ट" रखा है और इन सैनिकों की कमान ईदरूस अज़्ज़ुबैदी नाम के व्यक्ति के हाथ में है।
यमन के कुछ जानकार सूत्रों ने अलअहद वेब साइट को बताया है कि संयुक्त अरब इमारात विशेष कार्यक्रम के तहत कार्य कर रहा है और उस कार्यक्रम का सार यमन की बंदरगाहों और द्वीपों पर वर्चस्व जमाना है।
विदित रूप से प्रतीत यह हो रहा है कि यमन की महत्वपूर्ण बंदरगाहों, द्वीपों और बाबुल मंदब स्ट्रैट और उसके आस -पास के क्षेत्रों, व्यापार के मार्गों और इसी प्रकार तेल स्थानांतरित करने के लिए फार्स की खाड़ी पर वर्चस्व जमाने का कार्य अमेरिका ने संयुक्त अरब इमारात के हवाले कर रखा है और उसने संयुक्त अरब इमारात को जो कार्य व अधिकार दे रखा है उसके आधार पर संयुक्त अरब इमारात ने एरिट्रिया में असब बंदरगाह को 99 साल के लिए पट्टे पर ले लिया है वहां उसने एक सैनिक छावनी भी बनाई है।
यमनी सूत्रों का कहना है कि संयुक्त अरब इमारात सुमालिया में एक जेटी बना रहा है और बाबुल मंदब स्ट्रेट में यमन के महत्वपूर्ण सोक़तरा और मियून द्वीपों पर कब्ज़ा जमा जमाने के साथ अदन पर भी कब्ज़ा कर लिया है। दूसरे शब्दों में यमन के बाबुल मंदब स्ट्रैट पर कब्ज़ा करने का अमेरिकी प्रयास पूरा हो गया है। बाबुल मंदब स्ट्रैट पर नियंत्रण इस बात का कारण बनेगा कि भविष्य में हुरमुज़ स्ट्रैट की ज़रूरत नहीं रहेगी। अमेरिका, सऊदी अरब और संयुक्त अरब इमारात का लक्ष्य यमन पर वर्चस्व जमाना और उसके पश्चात यमन के बाबुल मंदब तक तेल स्थानांतरित करने का मार्ग बनाना है ताकि हुरमुज़ स्ट्रैट में ईरान की जो पकड़ है वह समाप्त हो जाये।
भविष्य को देखते हुए तीन बिन्दुओं को बयान करना महत्वपूर्ण है।
पहला यह है कि वर्ष 2011 में जिस रूप में यमन था दोबारा उसी रूप में होना बहुत कठिन बल्कि असंभव है और दक्षिणी यमन में जो आंदोलन हैं वे कभी भी यमन के इस रूप को स्वीकार नहीं करेंगे और वे इसके खिलाफ अपनी समस्त राजनीतिक व सैनिक शक्ति का प्रयोग करेंगे। इस संबंध में दूसरा बिन्दु यह है कि इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि भविष्य में यमन में होने वाले परिवर्तनों का सीधा संबंध अंसारुल्लाह से होगा यानी इस बात की कल्पना ही नहीं की जा सकती कि यमन में होने वाले परिवर्तन में अंसारुल्लाह की कोई भूमिका न हो और यमन युद्ध के जो परिणाम व प्रभाव हैं उसके असर अंसारुल्लाह और यमन के दूसरे आंदोलन की भूमिका पर भी पड़ेंगे।
यमन के भविष्य के संबंध में तीसरा बिन्दु यह है कि यमन के परिवर्तनों में क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की जो भूमिका है उस में अंसारुल्लाह की भूमिका प्रभावी है और प्रभावी रहेगी। परिणाम स्वरूप भविष्य में क्षेत्र में जो परिवर्तन होंगे उसमें भी अंसारुल्लाह का प्रभाव होगा।
कुल मिलाकर यमन में जो परिवर्तन हैं और इन परिवर्तनों के दिशा- निर्देशन में जो चीज़ें प्रभावी हैं उनके दृष्टिगत प्रतीत यह हो रहा है कि यमन के राजनीतिक ताने- बाने में अंसारुल्लाह ने अपनी उपस्थिति और शक्ति सिद्ध कर दी है और वह अपनी सैनिक शक्ति को राजनीतिक शक्ति में बदलने का प्रयास कर रहा है। दूसरे शब्दों में यमन के परिवर्तनों में अंसारुल्लाह की उपस्थिति प्रभावी होगी जिससे दीर्घावधि में उसके हितों की पूर्ति होती रहे। यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन ने अभी हाल ही में घोषणा की है कि वह राष्ट्रपति और संसद के लिए होने वाले उन चुनावों का समर्थन करता है जिसमें समस्त पार्टियों व गुटों के प्रतिनिधि शामिल हों।
क्षेत्रीय और अंतर्राष्टिय खिलाड़ियों की ओर से यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन को धीरे- धीरे मान्यता प्राप्त हो गयी है। संयुक्त राष्ट्र संघ और पश्चिमी व अरब देशों ने अंसारुल्लाह से वार्ता का जो आह्वान किया है उसे इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। दूसरे शब्दों में राजनीतिक और सैनिक क्षेत्रों में अंसारुल्लाह की बढ़ती शक्ति अंतर्राष्टिय स्तर पर उसकी लोकप्रियता में वृद्धि का कारण बनी है और बन रही है। अलबत्ता सऊदी अरब और क्षेत्र के बहुत से खिलाड़ी इसे रोकने का प्रयास करेंगे और चूंकि सऊदी अरब और उसके घटक सैनिक और राजनीतिक क्षेत्र में कोई परिवर्तन उत्पन्न नहीं कर सके हैं इस बात के दृष्टिगत अंसारुल्लाह की लोकप्रियता बढ़ती रहेगी।