Apr १०, २०१८ १६:०२ Asia/Kolkata

आप जानते हैं कि सांस्कृतिक आदान- प्रदान मानवता के आरंभ से है।

इतिहास हमें बताता है कि समुदायों और इंसानों की आवाजाही से लोगों ने एक दूसरे की संस्कृति, शिष्टाचार, भाषा और धर्म आदि को सीखा। इसी तरह इतिहास में हम पढ़ते हैं कि लोगों की आवाजाही के कारण एक स्थान के लोगों का धर्म परिवर्तित हो गया और नये धर्म ने पुराने धर्म का स्थान ले लिया और ऐसा बहुत हुआ है कि सांस्कृतिक आदान- प्रदान के कारण एक देश का धर्म परिवर्तित हो गया। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई इस संबंध में इंडोनेशिया का उदाहरण देते हैं और उनका मानना है कि इंडोनेशिया और मलेशिया यहां तक कि उप महाद्वीप के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के लोगों का जो धर्म परिवर्तित हो गया उसका कारण धर्म प्रचारक नहीं थे बल्कि उसका कारण ईरानियों का आना- जाना था। ईरानी व्यापारी और पर्यटक आये- गये और यही आवाजाही की वजह से है कि आप देख रहे हैं कि आज शायद एशिया का सबसे बड़ा इस्लामी राष्ट्र यानी इंडोनेशिया मुसलमान हो चुका है।“

लोगों की आवाजाही के कारण ईरान के लोगों ने भी बहुत कुछ सीखा है। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की दृष्टि में सांस्कृतिक आदान- प्रदान और एक दूसरे राष्ट्रों से सीखना पूरी दुनिया में संस्कृति को बाकी रहने के लिए ज़रूरी प्रक्रिया है।

एक संस्कृति के विकास करने के लिए उसमें दूसरी संस्कृतियों की सकारात्मक बातों व मूल्यों को स्वीकार करने की संभावना होनी चाहिये। इस आधार पर समस्त संस्कृतियों व सभ्यताओं के मध्य लेन- देन होना चाहिये ताकि वह इंसान को वांछित विकास तक पहुंचा सके। इसके मुकाबले में सांस्कृतिक धावा व हमला है। यह सांस्कृतिक हमला विषैले खाने की तरह है जो सांस्कृतिक व राष्ट्रीय पहचान को खत्म कर देता है।

सांस्कृतिक हमला प्रायः वर्चस्ववादी देशों की ओर से होता है और उनका लक्ष्य दूसरे राष्ट्रों को अपने अनुसार बनाना होता है ताकि इस प्रकार वे दूसरे राष्ट्रों को आसानी से अपने वर्चस्व में ले सकें। इस संबंध में तेहरान विश्व विद्यालय के प्रोफेसर डाक्टर रूहुल अमीनी कहते हैं” अब सैनिक मार्गों से दूसरे राष्ट्रों को अपने अधीन कर लेना कोई आसान कार्य नहीं है और सैनिक हमला करने की स्थिति में बहुत अधिक खर्च पड़ता है इसी कारण एक शताब्दी से अधिक समय से है जब से साम्राज्यवादी देशों ने दूसरे देशों में प्रभाव व पकड़ बनाने की शैली को बदल दिया। ये साम्राज्यवादी देश आम तौर पर धर्म, तकनीक, भाषा, जनकल्याण, साक्षरता और स्वास्थ्य सेवाओं आदि के प्रचार- प्रसार के बहाने दूसरे देशों पर सांस्कृतिक हमला करते हैं। मानवता की दृष्टि से यद्यपि इन चीज़ों से अलग नहीं रह सकते परंतु इस प्रकार के संबंधों के इतिहास ने दर्शा दिया है कि ये सूक्ष्म कार्यक्रम देशों की संस्कृतियों के विकास के लिए नहीं थे बल्कि इससे उन देशों की सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दासता की भूमि प्रशस्त हो गयी।

एक राष्ट्र को दास बना लेना सांस्कृतिक हमले का लक्ष्य है और एक राष्ट्र को उस समय दास बनाया जा सकता है जब उस राष्ट्र की संस्कृतिक को बदल दिया जाये। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता सांस्कृतिक हमले की परिभाषा के संबंध में कहते हैं” राजनीतिक या आर्थिक हितों को प्राप्त करने और एक राष्ट्र को अपना दास बनाने के लिए उस राष्ट्र की सांस्कृतिक बुनियादों पर हमला कर देना, यह है सांस्कृतिक हमला। इस प्रकार के हमले में उस देश व राष्ट्र में बलपूर्वक नई -नई चीज़ें लाई जाती हैं परंतु उनकी संस्कृति व राष्ट्रीय पहचान बदलने के लक्ष्य से। इसे सांस्कृतिक हमला कहते हैं।“

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता सांस्कृतिक आदान- प्रदान को एक ज़रूरी व अच्छी चीज़ मानते हैं और उसका लक्ष्य राष्ट्रीय संस्कृति का विकास और उसे परिपूर्ण करना मानते और कहते हैं” सांस्कृतिक हमले ने राष्ट्रीय संस्कृति को खत्म करने को लक्ष्य बनाया है। इसी प्रकार वरिष्ठ नेता का मानना है कि सांस्कृतिक आदान- प्रदान में हर राष्ट्र को इस बात का अधिकार है कि वह अच्छी व रोचक चीज़ों को दूसरे राष्ट्रों से सीखे। उदाहरण के तौर पर ज्ञान व जटिल तकनीक को सीखे। जल के प्रयोग में दूसरों को आदर्श बनाये। पर्यावरण की सुरक्षा और इसी प्रकार दूसरे बहुत से अच्छे व सकारात्मक बिन्दुओं में दूसरों को आदर्श बनाये।

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई इस बारे में उदाहरण देते और कहते हैं” मान लीजिये ईरानी राष्ट्र यूरोप जाता है और वहां वह देखता है कि यूरोप के लोग बहुत मेहनती हैं। अगर यह उनसे सीख ले तो बहुत अच्छी बात है। इसी तरह ईरानी राष्ट्र पूरी एशिया में जाता है और वहां वह देखता है कि पूर्वी एशिया के लोग कार्य में रूचि रखते हैं। यह चीज़ ईरानी राष्ट्र उनसे सीख ले तो बहुत अच्छा है। इसी तरह ईरानी राष्ट्र अमुक देश जाता है और वहां वह देखता है कि लोग समय का बहुत ध्यान रखते हैं, कानून का खयाल रखते हैं, एक दूसरे से प्रेम करते हैं, सम्मान की भावना रखते हैं, एक दूसरे का आदर करते हैं। ईरानी राष्ट्र इन चीज़ों को उनसे सीख ले तो बहुत अच्छी चीज़ है। सांस्कृतिक आदान- प्रदान इस प्रकार होता है। याद करने वाला राष्ट्र सही क्षेत्रों का भ्रमण करता है और उन चीज़ों को दूसरों से सीखता है जो उसकी संस्कृति को पूर्ण बनती हैं जबकि सांस्कृतिक हमले में उन चीज़ों को सिखाया जाता है जो अच्छी नहीं होती हैं बल्कि बुरी होती हैं।

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का मानना है कि यूरोपियों ने पहलवी शासनकाल में जब हमारे देश में सांस्कृतिक हमला आरंभ किया तो उन्होंने कभी भी यह प्रयास नहीं किया कि उसके अंदर समय का ध्यान रखने की जो भावना है, मामलों में खतरा मोल लेने की जो भावना है या जो वैज्ञानिक जिज्ञासा है उसे हमारे राष्ट्र के लोगों को सिखायें। इसी प्रकार उन्होंने कभी भी यह प्रयास नहीं किया कि ईरानी राष्ट्र ज्ञान के मैदान में शोध व प्रयास करे बल्कि उस समय वे हमारे देश में अनैतिकता व अश्लीलता लाये जबकि हमारा राष्ट्र हज़ारों साल से यौन संबंधी मामलों में प्रतिबद्ध रहा है और उसका बहुत ध्यान रखता रहा है। इन अर्थों में कि वह समस्त इस्लामी कालों में महिला और पुरुष के मध्य संबंध के सिलसिले में अनैतिकता से दूर था। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता बल देकर कहते हैं कि इसका यह मतलब नहीं है कि कोई ग़लती नहीं करता था क्योंकि इंसान समस्त कालों में और समस्त क्षेत्रों में गलती करते हैं परंतु आम समाज इन चीजों से बहुत दूर था। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि हमारा राष्ट्र वह राष्ट्र था जो बड़े पैमाने पर होने वाले अनैतिक कार्यों से दूर था। ये कार्य बड़े लोगों, राजाओं, राजकुमारों, महिलाओं और इस प्रकार के लोगों से विशेष था जो भोग- विलास करते और रातों को सुबह तक जागते थे। यूरोपियों के शराबखाने रात- दिन पूरे साल खुले रहते थे। यह यूरोप का इतिहास है। वह हमारे देश में यही करना चाहते थे और इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले तक और पहलवी के शासन काल में जो कुछ कर सकते थे किया।“

एक देश के युवाओं में रचनात्मकता की जो बुनियाद होती है आधार होता है अनैतिकता उसे तबाह कर देती है और वह युवाओं को दायित्वहीन व्यक्ति बना देती है। यह वही सांस्कृतिक हमला है। यह वही ख़तरनाक ज़हर है जो दूसरे देशों व राष्ट्रों में पैठ बनाने की जुगत में है और जब उसे पैठ बनाने का रास्ता मिल जाता है तो पैठ बना लेता है और वहां तबाही व बर्बादी मचाता है। सांस्कृतिक हमले की व्याख्या में बेहतर ढंग से कहा जा सकता है कि सांस्कृतिक हमला एक तरफा, अनचाहा और वर्चस्वादी है और उसके राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सैनिक लक्ष्य भी होते हैं। सांस्कृतिक हमले में जो चीज़ें बताई, समझाई और स्थानांतरित की जाती हैं स्वाभाविक रूप से वे थोपी जाती हैं और उनका लक्ष्य राष्ट्रों की संस्कृति और उसकी जड़ों को समाप्त करना है जबकि सांस्कृतिक आदान- प्रदान में एसा नहीं है।

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का मानना है कि साम्राज्य ने समस्त देशों के खिलाफ सांस्कृतिक हमला आरंभ कर रखा है परंतु इस हमले में सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य ईरान की इस्लामी व्यवस्था है। क्योंकि इस्लामी व्यवस्था वर्चस्ववाद के मुकाबले में डटी हुई है और उसने सिद्ध कर दिया है कि वह अपने प्रतिरोध में सच्ची है और उसके अंदर प्रतिरोध और प्रगति करने की क्षमता भी है”

इस्लामी क्रांति की सफलता के आरंभ से ईरान को विश्व साम्राज्य  के अघोषित सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक और आस्था संबंधी युद्ध का सामना है। दुश्मन के पास जो भी राजनीतिक और सांस्कृतिक संभावना है उससे उसने ईरान पर हमला कर रखा है ताकि ईरान की मुसलमान जनता के धार्मिक विश्वासों को कमजोर कर सके। ईरानी राष्ट्र के अंदर प्रतिरोध की जो भावना मौजूद है दुश्मन उसे अमेरिका की अगुवाई में समाप्त करना चाहता है। इसी तरह दुश्मन ईरान के अंदर कुछ लोगों की अप्रसन्नता को मजबूत करके और विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय व प्रभावी ईरानी युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करके अपने लक्ष्यों को साधने की चेष्टा में हैं। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का मानना है कि युवाओं पर यह सांस्कृतिक बमबारी इंटरनेट और दूसरे संचार माध्यमों के ज़रिये सदैव जारी है। साथ ही आपने देखा कि समूचे ईरान से इस्लामी क्रांति की सफलता की वर्षगांठ पर यानी 22 बहमन को निकलने वाली रैलियों में लाखों युवाओं ने भाग लिया, इन युवाओं ने नारे लगाये, अपने आभासों को बयान किया और इन युवाओं ने स्वर्गीय इमाम खुमैनी, इस्लाम और इस्लामी व्यवस्था के प्रति अपने लगाव व प्रेम को व्यक्त किया। यह छोटी बात नहीं है। यह बहुत बड़ी बात है।“

 

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