Apr १०, २०१८ १६:१७ Asia/Kolkata

जवानी, जीवन का सबसे अच्छा समय है जिसमें प्रफुल्लता की सुगंध फैली रहती है।

अहम सफलताओं के मार्ग पर चलने और ऊंचाइयों तक पहुंचने की शुरुआत जवानी में ही होती है। युवा, अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए बड़े साहस और मेहनत से काम करता है और चूंकि उसमें जोखम लेने की शक्ति बहुत अधिक होती है इस लिए उसका साहस भी सराहनीय होता है। वह जीवन के कड़े मैदानों में उतरता है और अपनी शक्ति व क्षमता को परखता है। जब जवानी की बात होती है तो गतिशीलता और जोश जैसे शब्द मन में आते हैं और यही जवानी का आश्चर्यजनक चमत्कार है।

जवान और जवानी, ईश्वरीय सृष्टि की सबसे उज्जवल चीज़ों में शामिल हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई युवाओं को नसीहत करते हैं कि वे अपने अंदर तीन विशेषताएं पैदा करें और अगर उनमें ये तीन विशेषताएं होंगी तो हर स्थिति में वे सभी मैदानों में सफल रहेंगे। ये तीन विशेषताएं हैं, ज़िम्मेदारी का आभास, ईमान और चेतना व ज्ञान।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई की नज़र में ऊर्जावान, आशावान और पहल करने से न हिचकिचाने वाला युवा जब ज़िम्मेदारी का आभास करता है और अपने आपको अपने जीवन का उत्तरदायी समझने लगता है तो फिर तिनके की तरह घटनाओं की लहरों पर इधर उधर नहीं होता। उनका मानना है कि सभी मैदानों में युवाओं की प्रगति और सभी रुकावटों को दूर करने में ईश्वर पर ईमान की बड़ी अहम भूमिका है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इसी तरह चेतना व ज्ञान को युवा के लिए बहुत ज़रूरी बताते हैं। अलबत्ता वे बल देकर कहते हैं कि अपने भीतर ये विशेषताएं पैदा करना सरल काम नहीं है लेकिन संभव ज़रूर है।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई युवाकाल को अत्यंत उचित और अहम अवसर बताते हैं और जवानों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि आपके सामने जीवन का एक मूल्यवान ख़ज़ाना है। युवा अपने जीवन के आरंभ में है, मान लीजिए कि एक किसान ने हाल ही में फ़सल काटी है और उसका खलिहान फ़सल से भरा हुआ है। अब वह इस अपार और अच्छी फ़सल का क्या करेगा? संभव है कि वह दो तरह से काम करे, पहला एक बुद्धिमान और दूरदर्शी किसान है जो कोशिश करता है कि इस फ़सल को सुरक्षित रखे, उसमें कमी न होने दे, उसे बर्बाद न होने दे और जितने की उसे ज़रूरत है उतना ही इस्तेमाल करे और जो कुछ बीज के लिए लाभदायक है उसे चुन कर अलग कर ले ताकि अगले साल उसे प्रयोग कर सके।

वरिष्ठ नेता कहते हैं कि हो सकता है कि कोई दूसरा किसान ऐसा हो जो इस फ़सल का मूल्य न समझे और यह सोचे कि यह हमेशा बाक़ी रहेगी। उसके पास न इस फ़सल को सुरक्षित रखने का कोई कार्यक्रम है न उसे इस्तेमाल करने का और न ही वह उसे अपने ज़रूरत के दिनों के लिए सुरक्षित रखने के बारे में सोचता है, बल्कि वह इस बारे में कोई भी मेहनत और प्रयास नहीं करता। यह बुद्धिहीनता है। अलबत्ता जिन लोगों की फ़सल का खलिहान समाप्त हो रहा है, यानी वृद्ध व अधिक आयु के लोग वे इस बात को समझ नहीं पाते कि उनका खलिहान समाप्त हो रहा है। यह इंसान की बहुत बड़ी समस्या है। वे लोग भी बुद्धिमत्ता के साथ नहीं सोचते, वे भी अगर सही ढंग से सोचें तो व्यवहार सही हो जाएगा, ग़लतियों की क्षतिपूर्ति हो जाएगी और सही मार्ग अपनाया जाएगा। लेकिन खेद है कि वे भी कभी कभी सही ढंग से नहीं सोचते। हमने इतिहास की शिक्षा में और अपने काल के अनुभवों से यह सीखा है कि युवाओं में अधिक क्षमता होती है, वे अधिक चाहते हैं और अधिक कर सकते हैं। अच्छे लोगों के शासन में स्थिति यही होगी।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई, जो युवाओं से बड़ा गहरा और स्नेहपूर्ण संपर्क रखते हैं, युवाओं को सिफ़ारिश करते हैं कि वे सफल लोगों को आदर्श बनाएं। उनकी दृष्टि में हज़रत अली अलैहिस्सलाम का युवाकाल, जवान पीढ़ी के लिए बेहतरीन व्यवहारिक आदर्श हो सकता है। वे हज़रत अली के युवाकाल के बारे में बड़े रोचक बिंदु बयान करते हैं। वे कहते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम मक्के में अपनी जवानी में एक बलिदानी, विवेकपूर्ण, सक्रिय और आगे की ओर अग्रसर युवा थे। वे सभी मैदानों में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के मार्ग में आने वाली बड़ी रुकावटों को दूर कर देते थे। ख़तरों के अवसर पर वे अपना सीना आगे कर देते थे और सबसे कठिन कामों को अपने ज़िम्मे लेते थे। उन्होंने अपने त्याग व बलिदान से पैग़म्बरे इस्लाम के मक्के से मदीने पलायन को संभव बनाया और उसके बाद मदीने में वे सेनापति रहे, ज्ञान, विवेक, साहस और दान दक्षिणा में सबसे आगे रहे।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्ल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम युवाओं को बहुत अधिक महत्व देते थे। उन्होंने अपने दस साल और कुछ महीने के शासन में न केवल हज़रत अली अलैहिस्सलाम से, जो एक योग्य युवा थे, कड़े काम लिए बल्कि युवाओं और युवा बलों को अधिक से अधिक इस्तेमाल किया। आयतुल्लाह ख़ामेनेई की नज़र में युवा, आशा व प्रफुल्लता से भरा होता है और चाहता है कि उसे काम दिया जाए और वह उस काम को साहस के साथ अंजाम दे।

युवाकाल, रचनात्मकता, नए विचारों और नई पहलों का काल होता है जिसमें साहस के माध्यम से पुराने और लाभहीन क़ानूनों को दूर करके नए, रोचक, लाभदायक और सामयिक क़ानूनों को उनका स्थान दिया जा सकता है। युवा, जीवन की विभिन्न शैलियों को आज़माने के लिए बेक़रार व प्रयासरत रहता है। यही प्रयास विभिन्न व्यवहारिक शैलियों को आज़माने के बाद सबसे अच्छी शैली और विचारधारा को चुनने के लिए उसे प्रेरित करता है।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई जो युवाओं के संबंध में बड़ी आशापूर्ण दृष्टि रखते हैं, कहते हैं। हर समाज और देश में, गतिशीलता का केंद्र व ध्रुव युवा होते हैं। अगर क्रांतिकारी क़दम और राजनैतिक आंदोलन हो तो युवा, मैदान में दूसरों से आगे होते हैं। अगर निर्माण और संस्कृति की कार्यवाही हो तो तब भी युवा दूसरों से आगे होते हैं और वे दूसरों से अधिक लाभदायक सिद्ध होते हैं। यहां तक कि इस्लाम के आरंभिक काल समेत पैग़म्बरों के आंदोलन में भी युवा ही प्रयास व गतिशीलता का केंद्र थे।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की नज़र में जो देश अपने जवानों के मामलों को महत्व दे और इस संबंध में उस तरह काम करे जैसा करना चाहिए तो वह देश बहुत प्रगति करेगा और उसे बेजोड़ उपलब्धियां हासिल होंगी। आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई के अनुसार जिन देशों में युवाओं की संख्या कम है और परिवार नियोजन की ग़लत नीतियों के चलते उस देश के परिवारों को युवा पीढ़ी की कमी का सामना है वे विज्ञान व तकनीक की दृष्टि से चाहे जितना आगे हों वे अपनी प्रगति जारी रखने के लिए अन्य देशों से युवा क़र्ज़ लेने पर विवश होते हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई युवाओं के बारे में उनकी स्वाभाविक पवित्रता की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि यह पवित्र स्वभाव युवा और उसके समाज के लिए नेकियों और भलाई का मुख्य स्रोत हो सकता है। वे कहते हैं। देशों व राष्ट्रों के इतिहास के हर कालखंड में युवा, किसी भी राष्ट्र के कल्याण व मुक्ति के सबसे अहम केंद्रों में से एक हो सकते हैं। इसकी वजह यह है कि युवाओं में स्वाभाविक पवित्रता होती है और वह दूषित नहीं होता। वे बुराइयों जो जीवन में मनुष्यों के सामने आती हैं और उनकी आत्मा के हाथ पैर ज़ंजीरों में जकड़ कर उन्हें उत्थान व परिपूर्णता से रोक देती हैं, वे युवाओं के संबंध में नहीं होतीं और अगर होती भी हैं तो बहुत कम होती हैं। जवान, ईश्वरीय कृपा के उतरने का स्थान होता है और बहुत सारे अवसरों पर उसका दिल ईश्वर की विशेष कृपाओं का जलवा दिखाता है। युवाओं को इस अनुकंपा का मूल्य समझना चाहिए। वह पवित्रता जो मनुष्य की आत्मा हासिल करके भौतिक समस्याओं की ज़ंजीरें तोड़ कर बाधाएं पार सकती है और मनुष्य को पवित्र रख सकती है, युवाओं के पास सभी इंसानों से अधिक होती है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई युवाओं की आत्मा की पवित्रता को अत्यंत मूल्यवान बताते हुए कहते हैं कि जब वे युवाओं के माहौल में होते हैं तो उनका आभास उस व्यक्ति की तरह होता है जो सुबह की ताज़ा हवा में सांस लेता है यानी वे ताज़गी और प्रफुल्लता महसूस करते हैं। वे कहते हैं कि जो बात युवाओं से मुलाक़ात में प्रायः सबसे पहले मन में आती है और जिसके बारे में मैं अनेक बार सोच चुका हूं वह यह है कि क्या ये युवा स्वयं ये जानते हैं कि उनकी पेशानी में कौनसा सितारा चमक रहा है? मैं इस सितारे को देखता हूं लेकिन क्या वे भी देखते हैं? जवानी का सितारा, एक अत्यंत चमकदार और बरकत वाला सितारा है। अगर युवा अपने अस्तित्व में इस मूल्यवान और बेजोड़ मोती का आभास करें तो मुझे लगता है कि वे ईश्वर की इच्छा से उससे बहुत अच्छी तरह लाभ उठा सकते हैं।

 

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