Apr १७, २०१८ १५:२८ Asia/Kolkata

इस्लाम ने परिवार, उसके अधिकार और परिवार के सदस्यों के बीच संबंध पर विशेष रूप से ध्यान दिया है।

परिवार के साये में लोग एक दूसरे से मेलजोल रखना चाहते हैं और इंसानों में सबसे ज़्यादा लोगों को जिस समूह से दिली संबंध होता हैं वह परिवार के सदस्य व रिश्तेदार होते हैं। परिवार के सदस्यों में मेल जोल और उनका एक दूसरे के घर आना जाना और रिश्तेदारों का आपस में मधुर संबंध वह विषय है जिस पर इस्लाम ने बहुत बल दिया है।

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम अधिकारों से संबंधित अपनी पुस्तिका में फ़रमाते हैं, “ईश्वर दो काम के लिए उठने वाले क़दमों में दूसरे कामों के लिए उठने वाले क़दमों से ज़्यादा पसंद करता है। एक ईश्वर की प्रसन्नता के लिए ईश्वर पर आस्था रखने वाले किसी बंदे की मुश्किल को हल करने के लिए उठने वाला क़दम और दूसरा अपने रिश्तेदारों से मेल जोल पैदा करने के लिए उठने वाला क़दम कि जिनसे मेल जोल नहीं है।”

वे बातें जिन्हें सभी परिवारों को जानना चाहिए वह सगे संबंधियों व रिश्तेदारों से मेल जोल और उनका सम्मान है। इसे धार्मिक शब्दावली में सिले रहम कहा जाता है।

जातियों के बीच सम्मानजनक व दोस्ताना संबंध और पारिवारिक संबंधों की आसमानी धर्मों में हमेशा से अनुशंसा की गयी है। पारिवारिक मामलों को हल करना बहुत बड़ी उपासना कहा गया है। इंसान के लिए ज़रूरी है कि वह अपने क़ीमती समय का कुछ हिस्सा परिवार के सदस्यों व रिश्तेदारों से मिलने जुलने के लिए निकाले। मां-बाप, भाई बहन, दूर व निकटवर्ती रिश्तेदारों व नातेदारों से मिल कर उनसे सहानुभूति दर्शाए और उनकी मुश्किलों को हल करने की कोशिश करे। इस्लाम ने सिले रहम के लिए जो बल दिया है उसका मक़सद सिर्फ़ रिश्तेदारों से मिलना नहीं बल्कि उनकी भौतिक व ग़ैर भौतिक ज़रूरतों को दूर करना, मुश्किलों को हल करना, दुखों का निवारण करना भी है। यह नहीं सोचना चाहिए कि जो वक़्त रिश्तेदारों व परिवार के सदस्यों से मिलने में ख़र्च हुआ वह बेकार गया।    

 

इस्लाम की नज़र में पारिवारिक संबंधों को बनाए रखने का परिवार के सदस्यों के निर्धन व धनवान होने से कोई संबंध नहीं है, बल्कि रिश्तेदारों को मानवीय व भावनात्मक लगाव की ज़रूरत होती है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं, “हे लोगो! कोई व्यक्ति कितना ही पैसे वाला हो जाए फिर भी उसे रिश्तेदारों की ज़रूरत पड़ती है कि जो ज़बान और हाथ से उसकी रक्षा करते हैं। किसी व्यक्ति के रिश्तेदार उसका सबसे बड़ा हितैषी गुट होता है, जो उसकी बेचैनी व मुश्किलों को दूर करता है। मुसीबत के वक़्त सबसे ज़्यादा काम आता है। ईश्वर की कृपा से किसी व्यक्ति का लोगों में भलाई के लिए मशहूर होना, उसे मिलने वाली दूसरी प्रकार की मीरास से ज़्यादा बेहतर है।”

पवित्र क़ुरआन की अनेक आयतों में संबंधियों के अधिकार अदा करने पर बल दिया गया है। रिश्तेदारों के साथ सम्मानजनक व प्रेमपूर्ण व्यवहार करने के साथ साथ भौतिक मामलों सहित उनकी मुश्किलों को हल करना वह अधिकार है जो रिश्तेदार एक दूसरे के प्रति रखते हैं। अगर  परिवार व रिश्तेदारों में कोई व्यक्ति निर्धन है तो उसकी मदद करना व मुश्किलों को हल करना सारे रिश्तेदारों का मानवीय व नैतिक कर्तव्य है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने भाषण में आगे फ़रमाते हैं, “सावधान रहो कि कहीं अपने ग़रीब रिश्तेदारों से मुंहन मोड़ लो और उन्हें कोई चीज़ देने से इनकार कर दो। जान लो कि दुनिया का माल रखने से बढ़ नहीं जाता और दे देने से कम नहीं होता। जो कोई अपने किसी रिश्तेदार की मदद से अपना हाथ रोक लेता है तो वह सिर्फ़ अपना एक हाथ रोकता है लेकिन वास्तव में बहुत से हाथों को ख़ुद से दूर करता है (जो समय पर उसके काम आ सकते हैं) जो कोई रिश्तेदारों से प्रेम व हमदर्दी से पेश आता है तो उनके साथ उसके मज़बूत संबंध क़ायम रहते हैं।”

कभी कभी कुछ भ्रान्तियां व द्वेष की वजह से रिश्तेदारों में आपस में मेल जोल ख़त्म हो जाता है कि जिसे फिर से जोड़ने पर बहुत बल दिया गया है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया, “सबसे बड़ा दानी वह है जो दान करे लेकिन बदले की उम्मीद न रखे और सबसे ताक़तवर व्यक्ति वह है जो ताक़त रखते हुए भी माफ़ कर दे और लोगों में वह व्यक्ति सबसे अच्छा है जो उन रिश्तेदारों से संबंध बनाए जिन्होंने उससे संबंध ख़त्म कर लिए हैं।”      

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं, “जिस भाई ने तुम्हारे साथ सिले रहम ख़त्म कर दिया और तुम उसके बदले में उसके साथ सिले रहम करते हो तो ऐसा भाई अधिक शक्तिशाली होगा उस भाई की तुलना में जिसने तुम्हारा अपमान किया और उसके बदले में तुम उसके साथ सम्मान व भलाई के साथ पेश आते हो।”

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया, “हे जुन्दब के बेटे! जिन रिश्तेदारों ने तुम्हारे साथ संबंध ख़त्म कर लिए हैं उनके साथ मेल जोल क़ायम करो। जिसने तुम्हें तुम्हारा हक़ देने से वंचित कर दिया है उसे माफ़ कर दो, जिन लोगों ने तुम्हारा अपमान किया है उनके साथ भलाई करो। जिस व्यक्ति ने तुम्हें गाली दी उसे सलाम करो। जो तुमसे दुश्मनी करे उसके साथ न्याय से पेश आओ और उस व्यक्ति के साथ उदारता दिखाओ जिसने तुम पर ज़ुल्म किया हो, उसी तरह जिस तरह तुम ईश्वर से अपने गुनाहों की माफ़ी की उम्मीद रखते हो। क्या तुम नहीं देखते कि सूरज की किरणे अच्छे और बुरे दोनों पर समान रूप से पड़ती हैं और उसकी कृपा की वर्षा भी अच्छे और बुरे दोनों पर समान रूप से होती है।”

पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, “जो शख़्स अपने रिश्तेदारों से संबंध तोड़ ले तो उसका हमसे कोई संबंध नहीं रहेगा, क्योंकि वह व्यक्ति ईश्वर की कृपा का पात्र नहीं बनता जो अपने रिश्तेदारों से संबंध तोड़ लेता है।”

रिश्तेदारों के बीच आपस में रिश्ते की वजह से अधिकार होते हैं जिनका पालन होना चाहिए। इस्लाम ने सभी जातियों पर उनका मत व धर्म चाहे कुछ भी हो, ध्यान दिया है। इस्लाम ने मुसलमानों से ग़ैर मुस्लिम रिश्तेदारों के साथ रिश्तेदारी व नातेदारी का हक़ अदा करने पर बल दिया है।

एक शख़्स कहता है कि मैं इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की सेवा में पहुंचा और उनसे कहा कि मेरा एक रिश्तेदार है जो मुसलमान नहीं है क्या इसके बाद भी उसका मुझ पर अधिकार है? आपने फ़रमाया हां रिश्तेदार होने के नाते अधिकार है और इस अधिकार को कोई चीज़ नहीं छीन सकती और अगर वह तुम्हारे धर्म पर होता तो उसका दोहरा अधिकार होगा एक रिश्तेदार होने के नाते और दूसरा मुसलमान होने के नाते।                        

 

हर वह कर्म जिससे सामाजिक तानाबाना टूटे और मुसलमानों की एकता को नुक़सान पहुंचे, उसे इस्लाम ने बुरा कहा है। रिश्तेदारों से संबधं ख़त्म करना सामाजिक तानेबाने के टूटने का बहुत बड़ा कारण है। इससे दुर्व्यवहार और पापों का चलन बढ़ता है। इसी वजह से ऐसा व्यक्ति ईश्वर की कृपा से दूर हो जाता है।

 

हज़रत अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम अपने एक भाषण में फ़रमाते हैं, “ईश्वर की शरण चाहता हूं उन गुनाहों से जिसकी सज़ा तुरंत मिलती है।” इस बीच अब्दुल्लाह बिन कवा नामक व्यक्ति उठा और उसने पूछा, हे अमीरुल मोमेनीन, क्या ऐसा भी कोई गुनाह है जिसकी सज़ा तुरंत मिलती है? आपने फ़रमाया हां! रिश्तेदारों से संबंध तोड़ना उन्हीं गुनाहों में से एक है। परिवार के सदस्य कितने ही गुनहगार हों लेकिन आपस में मिल जुल कर रहते हों तो ईश्वर उन्हें रोज़ी देता है और एक परिवार के सदस्य कितने ही सदाचारी हों लेकिन अगर उनके बीच आपस में मेल जोल न हो तो ईश्वर उन्हें अधिक रोज़ी व लंबी उम्र से वंचित कर देगा।

दूसरी ओर सिले रहम अर्थात रिश्तेदारो से मेल जोल रखने से रोज़ी बढ़ने के साथ साथ ईश्वर की दूसरी अनुकंपाएं भी मिलती हैं।

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं, “सिले रहम से कर्म पाक होता है, मुसीबतें दूर होती हैं, माल बढ़ता है, उम्र बढ़ती है, रोज़ी में बर्कत होती है और परिवार में लोकप्रियता बढ़ती है। तो ईश्वर से डरो और सिले रहम करो।”

 

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