क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-680
क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-680
وَلَوْ نَزَّلْنَاهُ عَلَى بَعْضِ الْأَعْجَمِينَ (198) فَقَرَأَهُ عَلَيْهِمْ مَا كَانُوا بِهِ مُؤْمِنِينَ (199)
और अगर हम इसे किसी ग़ैर अरबी भाषी पर भी उतारते (26:198) और वह इसे उन्हें पढ़कर सुनाता तब भी वे इस पर ईमान लाने वाले न थे। (26:199)
كَذَلِكَ سَلَكْنَاهُ فِي قُلُوبِ الْمُجْرِمِينَ (200) لَا يُؤْمِنُونَ بِهِ حَتَّى يَرَوُا الْعَذَابَ الْأَلِيمَ (201) فَيَأْتِيَهُمْ بَغْتَةً وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ (202) فَيَقُولُوا هَلْ نَحْنُ مُنْظَرُونَ (203)
इस प्रकार हमने इस (क़ुरआन) को (स्पष्ट बयान द्वारा) अपराधियों के दिलों में गुज़ारा है। (26:200) (किंतु) वे इस पर ईमान लाने वाले नहीं जब तक कि पीड़ादायक दंड न देख लें। (26:201) तो वह अचानक उन पर आ जाएगा और उन्हें पता भी न चलेगा। (26:202) तब वे कहेंगे, क्या हमें कुछ मुहलत मिल सकती है? (26:203)
أَفَبِعَذَابِنَا يَسْتَعْجِلُونَ (204) أَفَرَأَيْتَ إِنْ مَتَّعْنَاهُمْ سِنِينَ (205) ثُمَّ جَاءَهُمْ مَا كَانُوا يُوعَدُونَ (206) مَا أَغْنَى عَنْهُمْ مَا كَانُوا يُمَتَّعُونَ (207)
तो क्या वे लोग हमारे दंड (की प्राप्ति) के लिए जल्दी मचा रहे हैं? (26:204) तो क्या आपने देखा कि यदि हम उन्हें कुछ वर्षों तक सुख भोगने दें (26:205) फिर वह चीज़ आ जाए, जिससे उन्हें डराया जाता रहा है (26:206) तो जो सुख उन्हें मिला होगा वह (दंड दूर करने में) उनके कुछ काम न आएगा (26:207)
وَمَا أَهْلَكْنَا مِنْ قَرْيَةٍ إِلَّا لَهَا مُنْذِرُونَ (208) ذِكْرَى وَمَا كُنَّا ظَالِمِينَ (209)
और हमने किसी बस्ती (के लोगों) को तब तक तबाह नहीं किया कि जब तक उसके लिए (ईश्वर से) डराने वाले (न भेज दिए) हों। (26:208) ताकि (उनकी चेतावनी) शिक्षा सामग्री रहे और हम कदापि अत्याचारी नहीं थे। (26:209)