मार्गदर्शन- 86
महिला एक ऐसा जीव है जिसके बारे में पूरे इतिहास में विभिन्न प्रकार की बातें कही गयीं हैं।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि पूरे इतिहास में गलत संस्कृति और मानव समाजों की गलत परम्पराओं के कारण महिलाओं पर विभिन्न प्रकार के अत्याचार हुए हैं और महिला के अधिकारों और उसके वास्तविक स्थान की अनदेखी की गयी है। कुछ लोग उसे मर्द से कम महत्व का प्राणी समझते हैं और उन्होंने दावा किया कि महिला को पुरुष की बायीं पसली से पैदा किया गया है। उन लोगों ने अपने इस ग़लत दावे से पुरुष को पहली श्रेणी का और महिला को दूसरी श्रेणी का प्राणी बताया है। कुछ प्राचीन संस्कृतियों में महिला को शैतान की संतान बताया गया है और कहा गया है कि महिला न तो सम्मान की पात्र है और न ही वह कोई जिम्मेदारी दिये जाने के लाएक है। इसी प्रकार उन लोगों का मानना था कि महिला को पैदा करने का लक्ष्य केवल मर्द की सेवा और उससे आनंद लेना है।
प्राचीन रोम में भी महिला का कोई विशेष स्थान नहीं था। रोम में लोग महिला को शैतान का प्रतीक मानते थे और उनका मानना था कि महिला शैतानी आत्मा रखती है और उसके अंदर मानवीय आत्मा नहीं है।
प्राचीन चीनी संस्कृति में भी लड़कियों को लज्जा और कलंक का कारण समझा जाता था और जब लड़की पैदा होती थी तो दूसरे उसके परिजन को सांत्वना देते थे।
इस्लाम के उदय से पूर्व अज्ञानी अरब भी हिजाज़ में महिलाओं पर बहुत अधिक अत्याचार करते थे और उस समय महिलाओं की अच्छी स्थिति नहीं थी। अरब लड़कियों को अशुभ और कलंक समझते थे इसलिए लड़कियों को पैदा होने के बाद जिन्दा दफ्न कर देते थे और विभिन्न प्रकार से उन्हें खत्म कर देते थे। अरब के लोग अगर बचपने में लड़कियों को नहीं मारते थे तो बड़े होने पर बाज़ार ले जाकर उन्हें बेच देते थे। कुल मिलाकर महिला अरब समाज में हर प्रकार के व्यक्तिगत और समाजिक अधिकार से वंचित थी।
ईश्वरीय धर्म इस्लाम के उदय और पैग़म्बरे इस्लाम पर पवित्र कुरआन के नाज़िल होने के साथ महिलाओं के बारे में दृष्टिकोण परिवर्तित हो गया। महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन की कई आयतों में इस्लाम से पहले के अरबों के कार्यों की भर्त्सना की है। महान ईश्वर सूरे अनआम की 140वीं आयत में कहता है” निश्चित रूप से वे घाटे में हैं जिन्होंने अज्ञानता के कारण अपनी संतान की हत्या की। क्योंकि ईश्वर ने उन्हें जो आजीविका प्रदान की थी उसे उन्होंने अपने ऊपर हराम कर लिया और ईश्वर पर आरोप लगाया वे गुमराह हो गये और कदापि उनका पथप्रदर्शन नहीं हुआ था।
इसी प्रकार महान ईश्वर सूरे अनआम की 137वीं आयत में कहता है” उनके बुतों ने लड़कियों की हत्या को उनकी नज़रों में अच्छा बनाकर पेश किया है ताकि अनेकेश्वरवादियों को बर्बाद कर दें और उनके धर्म को उनके लिए संदिग्ध कर दें”।
हिजाज़ में मूर्ति की पूजा करने वाले बड़ी गुमराही में थे। उनके कार्य उनकी गलत आस्था, गलत सोच और अंधविश्वास के परिणाम थे। पवित्र कुरआन के अनुसार लड़कियों की हत्या का संबंध हिजाज़ में होने वाली मूर्तिपूजा से था।
महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने महिला की प्रशंसा और समस्त महिलाओं के लिए श्रेष्ठ आदर्श दर्शाने के लिए पैगम्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फातेमा ज़हरा की प्रशंसा में पवित्र कुरआन का सूरे कौसर नाजिल किया। महान ईश्वर इस सूरे में कहता है” हमने आपको कौसर प्रदान किया तो अपने ईश्वर का आभार व्यक्त करने के लिए नमाज़ पढ़ो और कुर्बानी करो और जान लो कि तुम्हारा दुश्मन निःसंतान है”
निसा नाम का पवित्र कुरआन का एक बड़ा सूरा है जो महिलाओं का महत्व बयान करने के लिए नाज़िल हुआ ताकि महिलाएं अपने अधिकारों से अवगत हो जायें।
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने विभिन्न अवसरों पर महिलाओं के महत्व और स्थान के बारे में मूल्यवान बयान दिया है। वरिष्ठ नेता का मानना है कि इस्लाम की दृष्टि में महिला एक पुष्प के समान है। एक पुष्प जिसका होना आवश्यक है और उसकी रखवाली के लिए कुछ चीज़ें ज़रूरी हैं। वरिष्ठ नेता का मानना है कि महिला का महत्वपूर्ण दायित्व घर के वातावरण को बच्चों और अपने पति के लिए शांत और प्रेमपूर्ण बनाये रखना है। घर में महिला को जो सम्मान प्राप्त है उसके दृष्टिगत उसे किसी काम के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। यही नहीं घर में वह जो कार्य करती है उसके बदले में अपने पति से पैसा ले सकती है। यह वह चीज़ें हैं जो इस्लाम और धर्मशास्त्र में मौजूद हैं।
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई का मानना है कि इस्लाम ने महिला को घर से बाहर कार्य करने और परिवार के लिए आजीविका कमाने पर मजबूर नहीं किया है बल्कि घर और स्वयं महिला के खर्च को पूरा करने की ज़िम्मेदारी मर्द की है। वरिष्ठ नेता बल देकर कहते हैं कि इस्लाम ने महिला को घर से बाहर काम करने से मना भी नहीं किया है किन्तु महिलाओं को चाहिये कि वे कार्य अंजाम दें जो उनके लिए उचित हो।
प्रायः जो कार्य कठिन हैं और उन्हें अंजाम देने के लिए अधिक शारीरिक शक्ति की आवश्यकता होती है और उन कार्यों से महिलाएं थक जाती हैं वे कार्य महिलाओं के लिए उचित नहीं हैं। इस प्रकार के कार्यों को अंजाम देने से महिलाएं बेहाल हो जायेंगी जबकि महिलाओं को प्रफुल्लित होना चाहिये। महिला को चाहिये कि वह घर के वातावरण को अपनी संतान और पति के लिए शांत व प्रेमपूर्ण बनाये।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं” आप देंखे कि अगर एक परिवार में, एक समाज में महिला को इस दृष्टि से देखा जाये, उसका सम्मान किया जाये और उसके साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार किया जाये तो यह इस बात का कारण बनेगा कि महिला शांति व सुरक्षा का आभास करेगी।“
ईश्वरीय धर्म इस्लाम ने समस्त इंसानों को एक पंक्ति में रखा है चाहे वे धनी हों या निर्धन, काले हों या गोरे, अरब हों या गैर अरब, खुबसूरत हों या बदसूरत। हां इस्लाम के अनुसार श्रेष्ठता का मापदंड केवल ईश्वरीय भय व तकवा है। पवित्र कुरआन में आया है हे लोगो हमने तुम्हें एक मर्द और औरत से पैदा किया है और तुम्हें समुदाय-2 और कबीलों-2 में कर दिया है ताकि तुम एक दूसरे से पहचाने जाओ और बेशक तुममें ईश्वर के निकट श्रेष्ठ वह है जिसका तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय अधिक हो।
इस्लाम धर्म सबके लिए विशेषकर महिलाओं के लिए न्याय उपहार में लेकर आया है ताकि न्याय की छत्रछाया में महिलाएं अपने व्यक्तिगत और सामाजिक अधिकार प्राप्त कर सकें।
ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी इस्लाम में महिला की प्रतिष्ठा को बयान करते हुए कहते हैं महिला का स्थान ऊंचा है। इस्लाम में महिलाएं ऊंचा स्थान रखती हैं। हम चाहते हैं कि महिला अपने मानवीय स्थान पर पहुंच जाये वह खिलौना न बने वह मर्दों और लोफरों के हाथों का खिलौना न बने।
इस्लाम की नज़र में महिला परिवार का केन्द्र है और उसके न होने से परिवार बिखर जायेगा। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की दृष्टि में महिला अतिक्रमण व बलात्कार से भय रहित एक अच्छे वातावरण में शैक्षिक, वैज्ञानिक, नैतिक और राजनीतिक विकास कर सकती है और समाज के बुनियादी मामलों में अग्रिम पंक्ति में रह सकती है और साथ ही वह महिला भी रहेगी। यानी वही चीज़ जो घर में शांति, प्रेम और कृपा का कारण है और सुन्दरताओं को घर में सुगंध की भांति बिखेरेगी। जी हां इस्लाम धर्म ने न केवल महिलाओं को सामाजिक कार्यों से मना नहीं किया है बल्कि घर और समाज में उन्हें उच्च मानवीय दृष्टि से देखता है।