मार्गदर्शन- 87
हमने इस बात की चर्चा की थी कि महिलाओं के बारे में आसमानी धर्म इस्लाम का क्या दृष्टिकोण है।
आज उसी चर्चा को जारी रखते हुए पवित्र कुरआन की दृष्टि में महिला के स्थान के बारे में कुछ चीज़ें बयान करना चाहते हैं और साथ ही हम इस संबंध में ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के दृष्टिकोणों को बयान करेंगे।
एक ही प्रवृत्ति की दो भिन्न चीज़ों की रचना इस ब्रह्मांड में महान व सर्वसमर्थ ईश्वर की विशेष निशानियों में से है। पवित्र कुरआन इस संबंध में कहता है" उसकी निशानियों से यह है कि तुम्हारी सहजाति में से तुम्हारे लिए पत्नियां पैदा की ताकि तुम उनसे आराम व सुकून प्राप्त कर सको और तुम्हारे बीच प्रेम रखा। बेशक इसमें उन लोगों के लिए निशानियां हैं जो चिंतन- मनन करते हैं।
पवित्र कुरआन की इस आयत में बहुत बिन्दु हैं। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई इस आयत में मौजूद निशानियों को बयान करते हैं। वह कहते हैं” यह आयत पति- पत्नी के बारे में है। इस आयत में ईश्वर की निशानी यह है कि वह कहता है कि तुम इंसानों के लिए हमने तुम्हारी सहजाति से तुम्हारे लिए पत्नियां पैदा कीं। यानी तुम मर्दों के लिए औरतें और तुम औरतों के लिए मर्द। कुरआन यह नहीं कहता कि औरत को उससे कम श्रेणी की जाति से पैदा किया है बल्कि वह बल देकर कहता है कि मर्द और औरत को एक ही जाति व चीज़ से पैदा किया है। अलबत्ता मर्द और औरत के बीच व्यक्तिगत अंतर भी हैं क्योंकि उनके दायित्व अलग- अलग हैं। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता पवित्र कुरआन की आयत के इस भाग को बयान करने के बाद दूसरे भाग को बयान करते हैं।
वरिष्ठ नेता के अनुसार यह आयत अपने दूसरे भाग में महत्वपूर्ण बिन्दु की ओर संकेत करती है और वह बिन्दु यह है कि महिला और पुरुष के बीच शांति उत्पन्न करने में विवाह का प्रभाव है। वरिष्ठ नेता के अनुसार इंसान की प्रवृत्ति में विवाह बड़े उद्देश्य के लिए है और वह लक्ष्य परिवार के भीतर शांति है। वरिष्ठ नेता कहते हैं मर्द का घर के अंदर आना, वहां शांति पाना, कृपालु और अमानदार महिला का अपने पास होना शांति का माध्यम है। इसी तरह महिला के लिए भी एक ऐसे मर्द का होना जो उससे प्रेम करता है और उसके लिए एक मजबूत दुर्ग की भांति है चूंकि मर्द शारीरिक दृष्टि से महिला से मज़बूत होता है वह महिला के लिए शांति व कल्याण का कारण है। परिवार इस चीज़ की पूर्ति दोनों के लिए करता है। परिवार में शांति पैदा करने के लिए मर्द को औरत की ज़रुरत है और औरत को मर्द की ज़रूरत है। दोनों को शांति के लिए एक दूसरे की ज़रूरत है।
महत्वपूर्ण चीज़ शांति है जिसकी इंसान को ज़रूरत है। इंसान की भलाई इसमें है कि उसे आत्मिक शांति हो। यह वह चीज़ है जो परिवार उसे उपहार में देता है। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता पवित्र कुरआन के सूरे रोम की 21वीं आयत के तीसरे भाग को बयान करते हुए कहते हैं” मर्द और औरत के बीच प्रेम व दया का संबंध है। दोनों एक दूसरे से प्रेम करें, दोनों एक दूसरे के प्रति कृपालु बनें। वह प्रेम स्वीकार्य नहीं है जो हिंसा के साथ हो, वह कृपा भी स्वीकार्य नहीं है जो प्रेम के बिना हो।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता बल देकर कहते हैं” मर्द और औरत की प्रवृत्ति ऐसी है जिससे दोनों के मध्य प्रेम व कृपा अस्तित्व में आती है परंतु अगर यह संबंध परिवर्तित हो जाये और मर्द परिवार में स्वामित्व का आभास करे और महिला को सेविका की दृष्टि से देखे तो यह महिला पर अत्याचार है और बड़े खेद की बात है कि बहुत से मर्द यह अत्याचार करते हैं। वरिष्ठ नेता आगे कहते हैं” जो भी यह अत्याचार करे कानून और इस्लामी समाज को चाहिये कि उसका मुकाबला करे।
मर्द और औरत परिवार में जो शांति एक दूसरे को उपहार में देते हैं वह दोनों पक्षों की परिपूर्णता का आरंभिक बिन्दु होता है। नैतिक विकास, धार्मिक विकास और वैज्ञानिक आदि विकास। शांति की छत्रछाया में इंसान विकास करता है और परिपूर्णता की दिशा में प्रयास करता है और सृष्टि की रचना का उद्देश्य भी यही है और यह कि इंसान ज़मीन पर महान ईश्वर के प्रतिनिधि में परिवर्तित हो जाये इसके लिए विवाह और शांति को इस उद्देश्य तक पहुंचने की भूमिका के एक भाग के रूप में देखा जा सकता है। पवित्र कुरआन के सूरे रोम की 21वीं आयत में महान ईश्वर बल देकर कहता है” जो लोग चिंतन- मनन करते हैं केवल वही लोग विवाह में मौजूद रहस्यों और अत्यधिक लाभों को समझ सकते हैं।
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई कहते हैं” महिला का महिला होना महिला के लिए एक गर्व की बात है। वरिष्ठ नेता का मानना है कि यह महिला के लिए गर्व की बात नहीं है कि उसे उन कार्यों से दूर कर दिया जाये जो महिलाओं की विशेषता होती है। घर का काम करना, बच्चे की देखभाल और उसका लालन- पालन और पति का ध्यान रखना महिला के लिए अशोभनीय नहीं है बल्कि यह कला है जिसे महान ईश्वर ने महिला के अस्तित्व में रखा है और यह बहुत महत्वपूर्ण व ज़रूरी है।
वरिष्ठ नेता कहते हैं” घर का काम एक कला है बड़ा, महत्वपूर्ण, संवेदनशील और भविष्य को निर्धारित करने वाला कार्य है। बच्चा पैदा करना एक बड़ा कार्य है।
वरिष्ठ नेता का मानना है कि मानव समाज और जीवन की गतिविधियों में मर्द और औरत दोनों संयुक्त रूप से भाग ले सकते हैं। इस्लाम के अनुसार आर्थिक, राजनीतिक और वैज्ञानिक सभी मैदान महिलाओं के लिए पूरी तरह खुले हुए हैं। वरिष्ठ नेता बल देकर कहते हैं कि अगर इस्लामी समाज महिलाओं का प्रशिक्षण इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार कर सके तो उस समय महिला अपने वास्तविक स्थान पर पहुंच जायेगी।
इस्लाम ने वास्तविक अर्थों में महिला को सम्मान दिया है। अगर वह परिवार में माता की भूमिका पर बल देता है या परिवार में महिला के दूसरे अधिकारों पर बल देता है तो इसका यह मतलब नहीं है कि वह सामाजिक गतिविधियों में महिला को भाग लेने से मना कर रहा है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता महिलाओं को संबोधित करते हुए कहते हैं मेरी बहनो! महिला का विषय और उससे समाज का बर्ताव एक ऐसा मामला है जो प्राचीन समय से विभिन्न समाजों व सभ्यताओं में चर्चा का विषय रहा है। दुनिया की आधी जनसंख्या महिलाओं की है। दुनिया की ज़िन्दगी जिस सीमा तक मर्दों पर निर्भर है उसी सीमा तक महिलाओं पर निर्भर है। प्राकृतिक रूप से सृष्टि के बड़े कार्यों को महिलाएं संभाले हुए हैं। संतान को जन्म देना और बच्चों का प्रशिक्षण जैसे सृष्टि के बुनियादी कार्य महिलाओं के हाथ में हैं। तो महिलाओं का मामला महत्वपूर्ण मामला है और प्राचीन समय से विभिन्न राष्ट्रों व विचारकों के मध्य चर्चा का विषय रहा है। इस्लाम ने इस बीच एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण चुना है। उसने सीमा से आगे बढ़ जाने और पीछे रह जाने से रोका है और पूरी दुनिया के मर्दों को चेतावनी दी है। इस्लाम ने उन मर्दों का विरोध किया है जो अपने शरीर के शक्तिशाली होने या आर्थिक शक्ति के कारण महिलाओं और मर्दों से काम लेते थे और महिलाओं को प्रताड़ित करते थे या कभी उनको गिरी हुई नज़रों से देखते थे। वरिष्ठ नेता आगे कहते हैं” इस्लाम ने महिलाओं को उनका वास्तविक स्थान प्रदान किया है और यहां तक कि कुछ दृष्टि से महिलाओं और पुरुषों को एक ही पंक्ति में रखा है। जैसे मुसलमान मर्द और मुसलमान महिलाएं, ईमानदार मर्द और ईमानदार महिला, ईश्वर के आदेशों का पालन करने वाले मर्द और औरतें, सच बोलने वाले मर्द और औरतें, धैर्य करने वाले मर्द और धैर्य करने वाली औरतें, ईश्वर के प्रति निष्ठावान मर्द और निष्ठावान औरतें, ईश्वर के मार्ग में दान- दक्षिणा करने वाले मर्द और औरतें, रोज़ा रखने वाले मर्द और औरतें, पाक दामन मर्द और औरतें। वे मर्द जो ईश्वर को बहुत अधिक याद करते हैं और वे औरतें जो ईश्वर को बहुत अधिक याद करती हैं। ईश्वर ने इन मर्दों और महिलाओं को माफी और बहुत बड़ा पारितोषिक देने का वादा किया है। मुसलमान मर्द, मुसलमान औरत उपासक मर्द, उपासक महिला, नमाज़े शब अर्थात रात की विशेष नमाज़ पढ़ने वाला मर्द और नमाज़े शब पढ़ने वाली औरत। तो इस्लाम में इन समस्त आध्यात्मिक व मानवीय दर्जों को मर्दों और औरतों में बराबर बराबर बांटा गया है। इन समस्त बातों में महिला और पुरुष समान हैं जो भी ईश्वर के लिए कार्य करे चाहे वह मर्द हो या औरत। ईश्वर कुरआन के सूरे नहल की आयत नंबर 97 में कहता है मर्द और औरत में से जो भी नेक कार्य अंजाम देगा उसे हम पवित्र जीवन प्रदान करेंगे।