Jun १९, २०१८ १४:१७ Asia/Kolkata

महिलाओं के संबंध में पश्चिम की संस्कृति, उनको खुला छोड़ देने और उन क्षेत्रों में उनको निरंकुशता की ओर ले जाने के कारण परिवार का आधार कमज़ोर और डांवाडोल हो गया है।

वहां पर महिला और पुरुष का एक दूसरे से विश्वासघात करना, अधिक महत्वपूर्ण नहीं समझा जाता, क्या यह पाप नहीं हैं? क्या यह महिला के लिए विश्वासघात नहीं है? इस संस्कृति से वह दूसरों पर रोब भी जमाते हैं जबकि यह बहुत ही घटिया हरकत है, महिलाओं के बारे में पश्चिम की संस्कृति का बचाव किया जाना चाहिए, या स्वयं का बचाव किया जाए, इसका ब्योरा दिया जाना चाहिए।

हमने बताया था कि इस्लाम धर्म ने महिलाओं को सम्मान की दृष्टि से देखा है और उनको विशेषर स्वतंत्रता और स्वाधीनता प्रदान की है। इस्लाम ने महिलाओं को उनकी एक अपनी ख़ास पहचान दी है किन्तु पश्चिम, महिलाओं को एक सामान या वस्तु के रूप में देखता है और उनके इंसान होने को उससे प्राथमिकता देता है। यही कारण है कि आज महिलाएं पूंजीपतियों  के हाथों का खिलौना बनकर रही गयी हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के अनुसार महिलाओं पर इस्लाम की दृष्टि, ठीक उसी के मुक़ाबले वाली नज़र है जो पश्चिम महिलाओं के संबंध में रखता है। वरिष्ठ नेता के अनुसार, यह अपमानजनक दृष्टि है, पश्चिम ने इस अपमानजनक नज़र को स्वतंत्रता का नाम दिया किन्तु वास्तव में यह महिलाओं का दुरुपयोग है। वरिष्ठ नेता इस विषय को बयान करते हुए बहुत ही रोचक बिन्दु की ओर संकेत करते हैं। वे कहते हैं कि पश्चिम ने हालिया दो तीन शताब्दियों में अपने समस्त अपराधों को सुन्दर नाम दे दिया, यदि उन्होंने हत्या की हो, लूटपाट की हो, दास बनाया हो, यदि किसी राष्ट्र की संपत्ति ज़ब्त की हो,  यदि राष्ट्रों के बीच युद्ध थोपा हो, या कोई और अपराध किया हो, उन्होंने अपने इन समस्त अपराधों और करतूतों को विदित रूप से अच्छा दिखने वाला और धोखा देने वाला नाम दे दिया जैसे, स्वतंत्रता प्रेम, मानवाधिकार, लोकतंत्र और इस जैसे नाम। स्वतंत्रता का नाम भी जो महिलाओं के बारे में पश्चिमी संस्कृति को दिशानिर्देशित करने के लिए है, एक झूठा नाम है।

पश्चिम की संस्कृति में 120 साल पहले एक विशेष लक्ष्य के अंतर्गत ग़लत विचार फैलाया गया और वह इस बात पर बल देना था कि महिलाओं को ऐसे ही छोड़ देने की वजह से पुरुष महिलाओं के संबंध में कम संवेदनशील होंगे जबकि इस विचार और जीवन शैली का आधार ही ग़लत है। महिलाओं को निरंकुशता की ओर ले जाना, केवल हवस के पुजारी पुरुषों और पूंजीपतियों के ही लाभ में है जो महिलाओं के कामेच्छा वाले विज्ञापनों से बहुत अधिक पैसे कमाते हैं और लाभ उठाते हैं। वरिष्ठ नेता के अनुसार पश्चिम में यौन निरंकुशता कभी भी इस बात का कारण नहीं बनी कि मनुष्य की कामेच्छा जो स्वभाविक और प्राकृतिक है, उबाल आना बंद हो जाए। महिला और पुरुष के बीच स्वतंत्र संपर्क, कामेच्छा की भूख को न केवल कम नहीं करता बल्कि समाज में महिला और पुरुष के बीच संबंध जितने स्वतंत्र होंगे, कामेच्छा की उनकी भूख उतना ही बढ़ेगी। जैसा कि आज हम पश्चिम देख रहे हैं, महिला उत्पीड़न भी 120 साल पहले से जो शुरु हुआ है, इसी विचार का परिणाम है।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता महिलाओं के बारे में पश्चिम के दृष्टिकोण के बारे में कहते हैं कि भ्रष्ट पश्चिमी जगत ने महिलाओं की हस्ती को ग़लत और पथभ्रष्ट शैलियों द्वारा, जो महिलाओं के अपमान के साथ है, दुनिया के मन में ज़बदस्ती डाला कि महिला इस लिए कि स्वयं अपनी हस्ती को दुनिया के सामने पेश करे तो उसे पुरुषों की आंखों का तारा होना चाहिए, क्या यह चीज़ महिलाओं को व्यक्तित्व प्रदान कर सकती है? उनका मानना है कि महिला को हिजाब और पर्दे उतार देना चाहिए, दिखावा करें, ताकि पुरुषों को अच्छी लगें। क्या यह महिलाओं की इज़्ज़त है या बेइज़्ज़ती है? यह पश्चिम पागलपन के नशे में चूर और हर ओर से बेख़बर, ज़ायोनी शासन के हाथों प्रभावित, इसको महिलाओं के सम्मान के रूप में फैला रहा है, कुछ लोगों ने इसपर विश्वास भी कर लिया,  महिलाओं की महानता और उसका वैभव यह नहीं है, महिलाओं का वैभव यह नहीं है कि हवस के पुजारी पुरुषों की गंदी नज़रों को अपनी ओर आकृष्ट करे, यह एक महिला के लिए गर्व की बात नहीं है, यह महिला का अनादर है, महिला की प्रतिष्ठा, सम्मान और आदर यह है कि पर्दा, पवित्रता और अपने स्त्रीत्व की रक्षा करे जो ईश्वर ने महिला के अस्तित्व में डाला है। इसको प्रतिष्ठा से मिला दीजिए, इसको ज़िम्मेदारियों की भावना से मिला दीजिए, उस कोमलता को जो अपना अलग ही स्थान रखती है,  उस ईमान की तेज़ी को जिसकी बात ही अलग है, बचा कर रखिए, यह महिलाओं से विशेष है, यह विशेषता ईश्वर ने महिला को दी है।

आज पश्चिमी जगत की सबसे बड़ी समस्या, परिवार का बिखर जाना और बिना पहचान की संतान में वृद्धि है। यह ऐसी स्थिति में है कि परिवार प्रेम और मित्रता का केन्द्र होते हैं। यह चीज़, एक दो महिला या पुरुष के अपने दायित्वों पर अमल करने से व्यवहारिक नहीं होगी क्योंकि यह उनकी प्रकृति का ही भाग है।  

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का यह मानना है कि पश्चिम को महिलाओं के प्रति जवाबदेह होना चाहिए क्योंकि उन्होंने महिलाओं के साथ विश्वासघात किया, तथा उनके अधिकारों का हनन किया। उनका मानना है कि पश्चिम की सभ्यता ने महिलाओं को कुछ भी नहीं दिया और यदि महिलाओं में वैज्ञानिक, राजनैतिक और वैचारिक प्रगति देखी जा रही है तो इसका श्रेय स्वयं महिलाओं को ही जाता है, हर देश में महिलाएं इतनी ही प्रगति कर रही हैं, जैसा कि ईरान में और अन्य देशों में महिलाओं ने ज़बरदस्त प्रगति की है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की नज़र में जिसे पश्चिम ने अपनाया है और पश्चिमी संस्कृति ने जिसका आधार रखा, निरंकुशता है। पश्चिमी संस्कृति ने व्याभिचार, भ्रष्टाचार को फैलाकर तथा समाज में महिला और पुरुषों की निरंकुश स्वतंत्रता को रिवाज देकर परिवार के आधारों को डांवाडोल कर दिया। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि वह पुरुष जो पूरी स्वतंत्रता के साथ समाज में अपनी वासना की आग बुझाना चाहता है और वह महिला जो बिना किसी रोकटोक के समाज में दूसरे लोगों से स्वतंत्रतापूर्वक संपर्क रखना चाहती है, कभी भी परिवार में अच्छे और शालीन पति पत्नी नहीं होंगे, इसीलिए पश्चिम में परिवार की बिसात उखड़ चुकी है।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता स्वयं पश्चिम और यूरोप द्वारा अपने अपने देशों में महिलाओं की यातनाएं और महिला उत्पीड़न के बारे में जारी किए गये आंकड़ों पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हैं और कहते हैं कि महिलाओं के संबंध में पश्चिम की संस्कृति, उनको खुला छोड़ देने और उन क्षेत्रों में उनको निरंकुशता की ओर ले जाने के कारण परिवार का आधार कमज़ोर और डांवाडोल हो गया है और महिला और पुरुष का एक दूसरे से विश्वासघात करना, अधिक महत्वपूर्ण नहीं समझा जाता, क्या यह पाप नहीं हैं? क्या यह महिला के लिए विश्वासघात नहीं है? इस संस्कृति से वह दूसरों पर रोब भी जमाते हैं जबकि यह बहुत ही घटिया हरकत है, महिलाओं के बारे में पश्चिम की संस्कृति का बचाव किया जाना चाहिए, या स्वयं का बचाव किया जाए, इसका ब्योरा दिया जाना चाहिए किन्तु पूंजीपतियों के वर्चस्व और साम्राज्यवादी मीडिया के प्रभाव से मामले को उलट कर पेश किया जाता है और अब वह रोब जमाते हैं, अब वह उनके अनुसार और तथाकथित महिला अधिकारों के रक्षक हो गये, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है, अलबत्ता पश्चिम वालों के बीच कुछ मुस्लिम विचारक, दर्शनशास्त्री, सच्चे और भले लोग भी हैं जो पूरी सच्चाई से चिंतन मनन करते हैं और बयान देते हैं, वे वही कहते हैं जो मैं कह रहा हूं कि पश्चिमी संस्कृति और सभ्यता की ओर आम रुझान, महिलाओं के लिए नुक़सानदेह और महिलाओं के विरुद्ध है।

इस्लाम धर्म महिलाओं पर कृपा दृष्टि डालता है, महिला को परिवार के भीतर, सम्मानीय, प्रतिष्ठित और परिवार का केन्द्र मानता है, वह शांति, और स्नेह का सार है। इस आसमानी और व्यापक धर्म में, महिला और पुरुष के बीच सभी इंसानी विशेषताएं समान हैं। मानवता में महिला और पुरुष में सभी एक हैं, इसमें महिला और पुरुष कोई नहीं होता।  इस्लाम धर्म में जो चीज़ सबसे महत्वपूर्ण है वह मनुष्य की इंसानियत है, न शरीर, न लिंग।

वरिष्ठ नेता कहते हैं कि शारीरिक विशेषता जिसे पालनहार ने दोनों में रखी है, भिन्न है क्योंकि महिला और पुरुष हर एक अपनी सृष्टि को जारी रखने, मानवता को सर्वोच्च स्थान पर पहुंचाने और इतिहास में आगे बढ़ने में सबकी अलग अलग भूमिका है। वरिष्ठ नेता की नज़र में महिला की भूमिका, इस मामले में पुरुष की भूमिका से महत्वपूर्ण है। वह इस बात का ब्योरा देते हुए कहते हैं कि इंसान का सबसे महत्वपूर्ण काम मानव पीढ़ी को बढ़ावा देना है, अर्थात बच्चा जनना, इस काम में महिला की भूमिका की पुरुष की भूमिका से तुलना नहीं की जा सकती। इस दृष्टि से परिवार और घर महत्वपूर्ण है। (AK)  

 

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