आयतें और निशानियां- 8
ईश्वर की एक अन्य आश्चर्यजनक निशानियों में से एक वृक्ष है जो अपने विशेष वैभव और अपनी सुन्दरता से प्रकृति को ख़ास रंग प्रदान करता है।
इस कार्यक्रम में हम महान व सर्वसमर्थ ईश्वर की एक अन्य निशानी के रूप में पेड़ पर प्रकाश डालेंगे। प्रकृति में पेड़ का अलग ही महत्व है। जब भी हम पेड़ देखते हैं तो सबसे पहले उसके पत्तों, फलों और उसके आकार पर हमारी नज़र पड़ती है किन्तु बहुत ही कम लोग होंगे जो इस विदित पर्दे को पार कर पाते हैं और इसकी गहराई और इसकी सूक्ष्मता की तह तक पहुंच पाते हैं। इन पेड़ों में से हर एक ईश्वर की शक्ति और उसकी क्षमता का नमूना पेश करते हैं। पेड़ का हर हिस्सा, ईश्वर की सुन्दरता, सृष्टि के रचियता की शक्ति, बोध, उसकी महानता और उसके वैभव का दृश्य पेश करता है।
शायद आप उन लोगों में से हों जिन्होंने पेड़ के हर पत्ते का गहन अध्ययन किया हो। पेड़ के पत्ते सीधे और एकजुट हैं किन्तु यदि आप थोड़ा ध्यान दें तो आपकी समझ में आएगा कि पत्तों में रोचक इमारत पायी जाती है और यदि माइक्रोस्कोप से पत्ते को देखे तो आपकी समझ में आएगा कि लगभग चार लाख खिड़कियां हैं और उनमें से हर एक में खुली आंखें हैं जिस प्रकार से त्वचा में छिद्र होते हैं ताकि वह हवाओं को आसानी से स्वयं में विलय कर सके। हरे पत्ते की आशर्चयजनक बात वह शक्ति है जो हरियाली और जीवन का कारण बनती है। पवित्र क़ुरआन के सूरए नम्ल में इंसान का इस महत्वपूर्ण बिन्दु की ओर ध्यान केन्द्रित किया गया है कि वह जीवन पैदा करने की गुणवत्ता के बारे में पेड़ की ओर नज़र करे और यदि वह जीवनदायक शक्ति ईश्वर की ओर से न होती तो वह कभी भी उसको उगाने में सक्षम न होता।
सूरए नम्ल की आयत संख्या साठ में आया है कि भला वह कौन है जिसने आसमान और ज़मीन को पैदा किया है और तुम्हारे लिए आसमान से पानी बरसाया है फिर हमने उससे सुन्दर बाग़ उगाए है कि तुम उनके वृक्षों को नहीं उगा सकते थे क्या अल्लाह के अतिरिक्त कोई और ख़ुदा है... नहीं बल्कि यह लोग स्वयं अपनी ओर से दूसरों को ख़ुदा के बराबर बना रहे हैं।
निश्चित रूप से मनुष्य बीज डालने और सिचांई करके वृक्ष को बड़ा करने में मदद करता है किन्तु ईश्वर सूरए वाक़ेआ की आयत संख्या 63, 64 और 72 में एक बार फिर इस वास्तविकता को बयान करता है जिसने इस बीज के दिल में जीवन जगाया और सूरज की किरणों तथा जीवनदायक बारिश की बूंदों और धरती को यह आदेश दिया कि वह इस दाने को उगाएं, वह केवल अल्लाह है।
ईश्वर कहता है कि तुमने उस दाने को भी देखा है जो तुम ज़मीन में बोते हो, उसे तुम उगाते हो या हम उगाने वाले हैं। या दूसरे स्थान पर कहा जाता है कि इस पेड़ को तुमने पैदा किया है या हम इसके पैदा करने वाले हैं। (AK)