अल्लाह के ख़ास बन्दे- 43
हमने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम द्वारा सांस्कृतिक क्रान्ति लाने के उद्देश्य से उठाए गए कुछ क़दम के बारे में चर्चा की थी।
हमने आपको इमामत अर्थात जनता के मार्गदर्शन के ईश्वरीय दायित्व, इमाम से श्रद्धा की ज़रूरत, धार्मिक व राजनैतिक दृष्टि से बौद्धिक विकास, लोगों में जागरूकता और उनके बीच आपस में संबंध क़ायम करने और उसे मज़बूत बनाने जैसे इमाम बाक़िर द्वारा उठाए क़दम के बारे में बताया था। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने सांस्कृतिक क्रान्ति के लिए एक और क़दम उठाया और वह विज्ञान व धर्म की दृष्टि से अहम लोगों का प्रशिक्षण। इसका उद्देश्य यह था कि ये बुद्धिजीवी शुद्ध इस्लामी संस्कृति के प्रचार व प्रसार द्वारा धर्म में अगल से शामिल की गयी चीज़ों को दूर करें, शरीया क़ानून की हदों की रक्षा करें और उमवी शासन की धर्म विरोधी प्रवृत्ति का पर्दाफ़ाश करें। इस संदर्भ में इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने बहुत बड़ी सफलता हासिल की ओर कुछ बड़ी हस्तियों का प्रशिक्षण किया जिनमें से कुछ के बारे में हम आपको बताएंगे।
इन्हीं अहम हस्तियों में मोहम्मद बिन मुस्लिम भी हैं जिन्होंने धर्म और विज्ञान के ऊंचे स्थान को हासिल किया और अपनी ओर से बहुत सी मूल्यवान सेवाएं यादगार के तौर पर छोड़ गए। वह कहते हैः "मैंने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम से 30 हज़ार और इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से 16 हज़ार हदीसें सुनीं, उन्हें याद किया और मेरे मन में ऐसा कोई विषय न था जिसके बारे में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम से न पूछा हो।"
इसी तरह की एक और बड़ी हस्ती हैं जिनका नान जाबिर बिन यज़ीद जोअफ़ी है। वह कूफ़े के थे और इस्लामी जगत के बहुत बड़े विद्वानों में उनकी गिनती होती है। वह धर्म शास्त्र, इतिहास, हदीस और राजनीति के विषय में दक्ष थे। जाबिर ने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम से लगभग 50 हज़ार हदीस सीखीं। इन हदीसों में धर्मशास्त्र के सभी विषय समोए हुए हैं और बहुत कम ही ऐसे विषय होंगे जिनके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारियों के अनुयाइयों को उनके सवाल के जवाब न मिलें।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के मदरसे से प्रशिक्षित शिष्यों ने हदीस याद करने, उनके प्रचार व प्रसार, लोगों से सीधे तौर पर मिलने और उनके सवालों के जवाब देने तथा शास्त्रार्थ करने के साथ साथ धर्मशास्त्र, धर्मशास्त्र के सिद्धांत, हदीस और पवित्र क़ुरआन की व्याख्या के विषय पर अनेक किताबें लिखीं। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपने इन शिष्यों के बारे में बहुत ही मूल्यवान बाते कही हैं। जैसे कि उन्होंने अपने एक शिष्य अबान बिन तग़्लिब के बारे में फ़रमायाः "हे अबान! मस्जिद में जाकर लोगों को फ़त्वे दो क्योंकि मैं चाहता हूं कि मेरे अनुयाइयों में तुम्हारे जैसे प्रभावशाली व महान लोगों की चर्चा हो।"
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम जो अपने पिता इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की वैज्ञानिक कोशिशों के स्वयं गवाह थे, इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के कुछ शिष्यों के बारे में फ़रमाते हैः "अगर ये लोग न होते तो मेरे पिता के कथन और शिक्षाएं मिट जातीं।" या यह फ़रमाते थेः "ये लोग धर्म के रक्षक है और उन लोगों ने ईश्वर की ओर से हलाल और हराम चीज़ों के बारे में जो बातें हमारे पिता ने बतायीं, उनकी रक्षा की।"
इस बात का उल्लेख ज़रूरी लगता है कि इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने जिस दौर में वैज्ञानिक व सांस्कृतिक गतिविधियां शुरु कीं वह दौर धमकियों, विषैले प्रचारों, मनोवैज्ञानिक जंग और बड़ी हस्तियों की हत्या का था। ऐसे दौर में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की सफलता उनकी बुद्धिमत्ता का पता देती है कि किस तरह वे सांस्कृतिक क्रान्ति लाने में सफल हुए और उमवियों की साज़िशों के बावजूद शुद्ध इस्लाम को बचाने के लिए बड़े क़दम उठाए। संक्षेप में यह कि इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने जिस वैज्ञानिक केन्द्र की स्थापना की थी वह अपनी व्यापकता व गुणवत्ता की दृष्टि से इतना अहम था कि इस्लामी जगत की बड़ी बड़ी हस्तियां इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के ज्ञान के सामने ख़ुद को बहुत छोटा पाती थीं। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के दौर में इस्लामी जगत के एक मशहूर विद्वान का नाम हकम बिन उतैबा है। वह जब भी इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की सेवा में पहुंचते थे तो ख़ुद को असमर्थ पाते थे। उनकी इस हालत के बारे में इस्लामी जगत के एक और विद्वान अब्दुल्लाह बिन अता मक्की कहते हैः "वह अपनी इतनी बड़ी शान के बावजूद इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की सेवा में इस तरह बैठते थे जिस तरह एक बच्चा अपने उस्ताद के सामने बैठता है।"
शिया धर्मगुरुओं के अलावा सुन्नी धर्मगुरुओं ने भी इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के महान व्यक्तित्व के बारे में बहुत अहम बाते कही हैं। सवाएक़ुल मुहर्रिक़ा नामक मशहूर किताब के लेखक शहाबुद्दीन अहमद बिन हजर हैसमी इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के बारे में कहते हैः "अबू जाफ़र मोहम्मद बाक़िर को इसलिए बाक़िर कहते थे क्योंकि वह ज्ञान की शाखें निकालने वाले और वैज्ञानिक गुत्थियों को सुलझाते थे। उन्होंने इतना ज़्यादा छिपे हुए वैज्ञानिक रहस्यों से पर्दा उठाया और इस्लामी आदेशों को बयान किया कि उनकी यह सेवा बुद्धिहीनों के सिवा किसी से छिपी नहीं है। इसी वजह से उन्हें ज्ञान की गुत्थियों को सुलझाने वाला और विज्ञान का ध्वज फहराने वाला कहा गया है। यह विद्वान इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की वैज्ञानिक स्थिति की सराहना के बाद उनकी नैतिक व व्यवहारिक विशेषताओं के बारे में लिखता हैः "उनका मन स्वच्छ, ज्ञान और उस पर अमल बहुत ज़्यादा, आत्मा पाक, शिष्टाचार के स्वामी थे और अपनी पूरी उम्र ईश्वर की बंदगी में बिताया। वह आध्यात्म के उस चरण पर है जिसे बयान करने में वर्णनकर्ता असमर्थ हैं।"
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का एक और महान काम यह है कि उन्होंने शियों की विशेषताओं को व्यवहारिक रूप में पेश किया। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम चाहते थे कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के अनुसरण के मार्ग से शियों के व्यवहार में बदलाव लाएं और आदर्श पेश करके उस मानसिकता में सुधार करें जो उमवी शासकों के ग़लत प्रचार से फैली थी। उद्दंडी शासकों ने समाज में चापलूसी को बढ़ावा दे रखा था। इसी वजह से लोग तारीफ़ से ख़ुश हो जाते, आलोचनाओं से नाराज़ हो जाते और ग़लत प्रतिक्रिया दिखाते थे। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने इस्लामी समाज में सांस्कृतिक दृष्टि से बुनियादी बदलाव लाने की कोशिश की और फ़रमायाः "जान लो कि उस वक़्त तक तुम हमारे श्रद्धालुओं में नहीं गिने जा सकते जब तक अपने भीतर वह बदलाव न लाओ जो मैं चाहता हूं। अगर पूरे शहर के लोग तुम्हारी आलोचना करें तो तुम दुखी न हो और अगर तुम्हारी तारीफ़ करे तो ख़ुश मत हो।" उसके बाद इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम इंसान के वास्तविक और झूठे व्यक्तित्व को समझने का मानदंड पेश करते हुए फ़रमाते हैः "पवित्र क़ुरआन को आधार बनाओ! अगर उस मार्ग पर क़दम बढ़ाओगे जिसका स्वरूप क़ुरआन ने तय किया है, उन मूल्यों के प्रति रूचि दिखाओ जिसके लिए प्रेरित किया है, और उन मूल्यों से दूरी अख़्तियार करो जिनसे दूरी के लिए कहा गया है, इस स्थिति में अपना क़दम सही मार्ग पर डटा हुआ समझो। अगर उस मार्ग पर चल रहे हो जो क़ुरआन के ख़िलाफ़ है, तो तारीफ़ के धोखे में मत आओ और उससे प्रभावित मत हो।"
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम अपने इस दृष्टिकोण के ज़रिए एक ओर उस संस्कृति से निपटना चाहते थे जिसे सत्तालोभी उमवी शासन ने फैलाया था और दूसरी ओर क़ुरआन की शिक्षाओं के आधार पर ऐसे इंसानों का प्रशिक्षण करना चाहते थे जो अपनी व्यक्तित्व की समीक्षा में पवित्र क़ुरआन को मानदंड क़रार दें। आम तौर पर सभी लोग तारीफ़ से ख़ुश होते हैं और आलोचना से दुखी होते हैं। चापलूस लोग ग़लत तारीफ़ से इंसान को धोखा देते हैं और चालाक दुश्मन और नादान दोस्त आलोचना के ज़रिए लोगों के दिल में द्वेष का बीज बोते हैं। तारीफ़ से प्रभावित न हों और आलोचनाओं से दुखी न हों तो इसके लिए बेहतरीन रास्ता वही है जिसकी ओर इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने इशारा किया है। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "प्रौपैगन्डों से प्रभावित हुए बिना क़ुरआन और ईश्वरीय मानदंड को आधार बनाएं और उन मानदंडों के आधार पर अपना मूल्यांकन करें और अपना वास्तविक व्यक्तित्व उसी के आधार पर बनाएं। इस शैली को निश्चिंत होकर अपनाया जा सकता और बिना किसी चिंता के ईश्वर द्वारा निर्धारित सीधे मार्ग पर दृढ़ता से जमा रहा जा सकता है।" इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की ओर से इतने साफ़ शब्दों में बयान किए जाने के बावजूद ज़िम्मेदारी से भागने वाले कुछ लोग जो अपने धार्मिक कर्तव्य पर अमल नहीं करते, पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से श्रद्धा व दोस्ती के दिखावे के आधार पर यह सोचते हैं कि सभी बुराइयों के बावजूद कल प्रलय में दोस्ती के दावे के ज़रिए ईश्वर के प्रकोप से बच जाएंगे। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने इस विचार को ग़लत बताते हुए फ़रमायाः "ईश्वर की सौगंध! हमें उसकी ओर से किसी को माफ़ करने का आदेश नहीं है और न ही हमारे और ईश्वर के बीच किसी तरह की रिश्तेदारी है। हमारे पास उन लोगों के बचाव के लिए कोई चीज़ नहीं है जो ईश्वर की इच्छा के ख़िलाफ़ काम करते हैं। हम ईश्वर के आदेशों के पालन और उसकी अवज्ञा से बचकर उसका सामिप्य पाने की कोशिश करते हैं। तो जो कोई भी ईश्वर के आदेश का पालन करेगा उसे हमारी सरपरस्ती फ़ायदा पहुंचाएगी और तुम में से जो कोई भी ईश्वर के आदेश की अवज्ञा करेगा, हमारी दोस्ती व सरपरस्ती उसे फ़ायदा नहीं पहुंचाएगी, यूं ख़ुद को धोखा मत दो।"