सृषटि के रहस्य- 7
कुछ ऐसे सवाल हैं जो आमतौर पर पूछे जाते हैं और कुछ लोग उनके बारे में चिंतन- मनन करते हैं जैसे सृष्टि और सृष्टि के रचयिता।
इसी प्रकार यह सवाल किया जाता है कि क्या सृष्टि में ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें देखकर सृष्टि के रचयिता को समझा जा सकता है और उसके बारे में चिंतन- मनन किया जा सकता है? बहुत से धर्मों, संप्रदायों और इसी प्रकार दर्शनशास्त्रियों ने इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर दिये हैं। रोचक बिन्दु यह है कि इस्लाम धर्म ने समस्त लोगों का आह्वान सृष्टि में चिंतन- मनन के लिए किया है और खुद इस्लाम ने एसी आइडियालोजी पेश की है जिसका आधार एकेश्वरवाद है।
सृष्टि के बारे में शीया विद्वानों का प्रयास व इच्छा यह है कि लोग सृष्टि पर दृष्टि डालें और इस बात को समझने का प्रयास करें कि जो चीज़ें हमारे आस- पास हैं वे किस सीमा तक इस बात को बयान करती हैं कि किसी रचयिता के बिना यह सृष्टि अस्तित्व में ही नहीं आ सकती।
इंसान को जानवरों से जो चीज़ भिन्न करती है वह बुद्धि और सोचने- समझने की क्षमता है। महान ईश्वर ने इंसानों को सोचने- समझने की शक्ति दी है जो जानवरों में नहीं है। इसके अलावा जानवरों में कुछ ऐसी चीज़ें व विशेषताएं होती हैं जो इंसानों से बहुत अधिक होती हैं जैसे बहुत से जानवर हैं जिनकी शारीरिक शक्ति और चलने- फिरने की शक्ति इंसानों से बहुत तेज़ व अधिक हैं। इसी प्रकार बहुत से जानवरों में देखने, सुनने और सूंघने की शक्ति इंसानों से बहुत अधिक होती है। इंसान ने बहुत अधिक उन्नति कर ली है उसके बावजूद अपेक्षाकृत वह कम उम्र करता है और अधिकतर इंसान सौ साल के भीतर ही मर जाते हैं जबकि कुछ जानवर इंसानों से अधिक आयु तक जीवित रहते हैं। जो बातें बयान की गयीं उनके अलावा बहुत सी चीज़ों को इंसानों ने जानवरों से सीखा है और स्वयं यह चीज़ें इस बात की सूचक है कि बहुत सी चीज़ों में जानवर इंसानों से आगे हैं। वास्तव में अपनी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने विशेषकर भोजन की आपूर्ति में जानवर बहुत अधिक चालाक होते हैं और इन चालाकियों को देखकर इंसान हतप्रभ रह जाता है। आज हम भोजन की आपूर्ति में कुछ जानवरों की चालाकियों की चर्चा करेंगे और अच्छी बात है कि हम जानवरों की चालाकियों के बारे में सोचें और इस विषय पर ध्यान दें कि ब्रह्मांड के रचयिता ने किस प्रकार जानवरों पर अपनी दया व कृपा करने में संकोच से काम नहीं लिया है और चूंकि जानवरों के पास बुद्धि नहीं है इस कारण उन्हें विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता परंतु महान ईश्वर ने अपनी असीम कृपा जानवरों पर भी की है और उन्हें वह चालाकी व समझ प्रदान की है जिससे वे अपनी आवश्यकता की आपूर्ति करते हैं। उदाहरण के तौर पर पहाड़ी बकरे की एक प्रजाति है जो सांप खाती है। पहाड़ी बकरा जब सांप का शिकार करके उसे खा लेता है तो उसे बहुत तेज़ प्यास लगती है तो वह पानी की ओर जाता है और जब पानी के पास पहुंच जाता है तो पानी पीने के बजाये केवल ज़ोर ज़ोर से चिल्लाता है और पानी नहीं पीता है क्योंकि अगर पानी पी लेगा तो जल्दी से मर जायेगा।
यहां सवाल यह है कि क्या यह नहीं सोचना चाहिये कि इस जानवर की सृष्टि कैसी की गयी है और किसने इसकी सृष्टि में यह बात डाली है कि अगर पानी पी लेगा तो मर जायेगा इसलिए यह तेज़ से तेज़ प्यास को सहन करता है और पानी नहीं पीता है? जबकि बहुत तेज़ प्यास की स्थिति में बहुत से समझदार और बुद्धिमान इंसान सहन करने की शक्ति खो बैठते और पानी पी लेते हैं।
सृष्टि का एक जानवर लोमड़ी भी है। लोमड़ी जानवरों और पक्षियों का शिकार करने के लिए विभिन्न शैलियों का प्रयोग करती है। लोमड़ी बहुत चतुर जानवर है और शिकार करने में वह बहुत चालाक व मक्कार है। शिकार करने में वह बड़ी सतर्कता से काम लेती है और बहुत देर- देर तक वह शिकार की प्रतीक्षा में बैठी रहती है और जैसे ही शिकार करने का उचित समय होता है वह एक या कुछ उछालों में ही उसे दबोच लेती है। लोमड़ी पक्षियों के अंडों, बच्चों यहां तक कि कुछ फलों को भी खा जाती है। यह जानना भी रोचक होगा कि लोमड़ी अपनी पूंछ हिलाकर उन जानवरों को बदहवास कर देती है और उनसे खेलने का नाटक करती है और धीरे -धीरे उनके निकट पहुंच जाती है और जब वह निकट पहुंच जाती है तो उछल कर उनका काम खत्म कर देती है जिनका वह शिकार करना चाहती है।
इसी तरह लोमड़ी जब पनडुब्बी का शिकार करना चाहती है तो सबसे पहले वह कुछ घास- फूस इकट्ठा करती है और उसे लेकर पानी में उतर जाती है और उसकी आड़ में स्वयं को छिपाकर शिकार की प्रतीक्षा में बैठ जाती है। पनडुब्बी को इस बात का आभास भी नहीं हो पाता है कि इस थास परस के पीछे लोमड़ी छिपी बैठी है वह तैरते -तैरते उसके निकट जा जाती है और उचित समय आ जाने पर वह पनडुब्बी का शिकार कर लेती है। कभी यह भी देखा गया है कि लोमड़ी शिकार के लिए बहुत देर- देर प्रतीक्षा करती है और जब वह यह देखती है कि उसके प्रयास का कोई फायदा नहीं हो रहा है और उसे बहुत अधिक प्यास लग जाती है तो वह पेट के बल उल्टा सो जाती है और अपने पेट को फुला लेती है ताकि पक्षी यह समझें कि वह मर गयी है और बड़ा अच्छा शिकार सामने है यह सोचकर पक्षी उस पर बैठ जाते हैं और जैसे ही पक्षी उस पर बैठते हैं वह उनका शिकार कर लेती है।
यहां सवाल यह है कि उसके अंदर यह समझ कहां से आई किसने उसे सिखाया? क्या यह चीज़ उसके अलावा किसी और ने सिखाई है जिस पर समस्त प्राणियों को रोज़ी देने की ज़िम्मेदारी है। वास्तव में दूसरे जानवरों की भांति लोमड़ी के अंदर दूसरे जानवरों पर हमला करने की शक्ति नहीं होती है इसलिए महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने उसे इस प्रकार की समझ दी है जिससे वह जानवरों व पक्षियों का शिकार कर सके।
पानी में रहने वाले प्राणियों में से एक डालफिन मछली भी है जिसे महान ईश्वर ने विशेष प्रकार की समझ प्रदान की है। डालफिन मछली पर किये जाने वाले अध्ययन और उसके दिमाग़ के स्केन से पता चला है कि ब्रह्मांड में मौजूद प्राणियों में सबसे अधिक समझ इस मछली के अंदर पाई जाती है। इस मछली के अंदर समझने और आभास की शक्ति बहुत अधिक पाई जाती है। डालफिन पानी में मौजूद मछलियों और दूसरे प्राणियों के शिकार के अलावा कभी- कभार पक्षियों का भी शिकार करती है। जब डालफिन पानी में होती है तो वह पक्षियों का शिकार इस प्रकार करती है। वह एक मछली का शिकार करती है और उस मछली को मार देने के बाद उसे पानी में छोड़ देती है तो वह मरी हुई मछली पानी के ऊपर तैरने लगती है और स्वयं को उसके नीचे छिपा लेती है और पानी को बहाती है ताकि बाहर से उसके होने का पता न चल सके। जब पक्षी उस मरी हुई मछली का शिकार करने के लिए उस पर बैठ जाता है तो वह उसका शिकार कर लेती है।
कीड़ा- मकोड़ों में मकड़ी ऐसा कीड़ा है जो हतप्रभ कर देने वाले तरीक़े से शिकार करता है। मकड़ी की कुछ प्रजातियां ऐसी हैं जो जाला बुनती हैं ताकि रास्ता चलने वाले दूसरे कीड़े- मकोड़ों का शिकार कर सकें जबकि कुछ दूसरी मकड़ियां शिकार की खोज में ज़मीन पर रेंगती हैं। यहां यह जानना रोचक होगा कि शिकार करने के लिए कुछ मकड़ियां ज़मीन में गड्ढ़े खोदती हैं और उसे घास –फूस से भर देती और उसमें अपने लासे को फैला देती हैं। इसके बाद ये मकड़ियां इस प्रतीक्षा में बैठ जाती हैं कि कोई शिकार वहां से गुज़रे और जब कोई शिकार वहां से गुज़रता है तो वे उसका शिकार कर लेती हैं। श्रोताओ यह बात भी जानना आपके लिए रोचक होगा कि कुछ मकड़ियां उछल कर अपना शिकार करती हैं। उनके अंदर बहुत मज़बूत मांसपेशियां होती हैं और यह भी विचित्र बात है कि यह मज़बूती उनके पैरों में नहीं होती है बल्कि जो हैड्रोलिक दबाव बनता है उसका वे प्रयोग करती हैं और उछल कर अपने शिकार को दबोच लेती हैं। उनके अंदर अपेक्षाकृत एक मांसपेशी बहुत मज़बूत होती है जिसकी सहायता से वे अपने शरीर के अंदर मौजूद समस्त तरल पदार्थ को अपने पैरों में इकट्ठा कर लेती हैं ताकि वे हैड्रोलिक तंत्र की तरह उछलने की क्षमता हासिल कर सकें । ये मकड़ियां अपनी लंबाई के 50 बराबर दूर तक छलांग लगा सकती हैं और मकड़ियों की यह प्रजाती दुनिया में सामान्य रूप से पाइ जाती है।
इंसानों ने अपनी बहुत सी इंजीनियरिंग और तकनीक को जानवरों और उनकी जीवन शैली से सीखा है परंतु सवाल यह पैदा होता है कि इन जानवारों ने यह ध्यान योग्य क्षमता व योग्यता कहां से प्राप्त की और यह चीज़ किसने उन्हें सिखाया? अगर लोमड़ी, मकड़ी, और डालफिन जैसे जानवरों व कीड़े- मकोड़ों के पास बुद्धि होती तो वे अपनी क्षमता में विकास करते और वे इंसानों के प्रतिस्पर्धी बन जाते परंतु महान ईश्वर ने इस प्रकार से उन्हें पैदा किया है कि वे अपने जीवन की ज़रुरतों को पूरा करके इस ब्रह्मांड में रह रहे हैं और इंसानों के लिए किसी प्रकार की समस्या उत्पन्न करने के बजाये वह मानवता की प्रगति और इंसानों की सीख के कारण हैं।
कभी ऐसा भी होता है कि कुछ जानवर कई बच्चों को जन्म देते हैं उनमें से एक या कुछ को खा जाते हैं जैसे घरेलू मुर्गी जब अन्डे सेने बैठती है तो एक अंडे को खा जाती है। पहली दृष्टि में मुर्गी का यह कार्य शायद क्रूरतापूर्ण प्रतीत हो परंतु सूक्ष्म अध्ययन से इस बात के रहस्य को समझा जा सकता है। मुर्गी के इस कार्य का रहस्य यह है कि अंडों को बच्चा होने के लिए निरंतर उन्हें मां की गर्मी की ज़रूरत है। यानी मां को चाहिये कि वह हर वक्त अंडों पर ही रहे किन्तु अगर वह कुछ समय के लिए अंडों को छोड़कर नहीं जायेगी तो क्या खायेगी और उसके भोजन की आवश्यकता कैसे पूरी होगी? और अगर वह अंडों को छोड़कर जाती है तो अधिकांश या किसी भी अंडे से बच्चा नहीं निकलेगा। इसलिए वह किसी एक अंडे को फोड़ कर अपने शरीर की भोजन आवश्यकता की पूर्ति करती है और कई अंडों को बच्चा पैदा होने के योग्य बनाती है। यह समझदारी भरा कार्य किसने उसे सिखाया और किसने उसकी सृष्टि में डाला। क्या महान व सर्वसमर्थ ईश्वर के अलावा किसी और ने उसकी सृष्टि में यह बात रखी है? क्या महान ईश्वर ने जो समस्त प्राणियों पर कृपा की है उसकी अनदेखी की जा सकती है? जानवरों के जीवन में जो अनगिनत रहस्य छिपे हुए हैं वह संयोगवश पैदा हो गये हैं? बहरहाल महान ईश्वर की असीम शक्ति को स्वीकार कर लेना यह मानने से बहुत अधिक सरल है कि जानवरों व कीड़ा- मकोड़ों में ये क्षमताएं संयोगवश पैदा हो गयी हैं।