अल्लाह के ख़ास बन्दे- 45
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजनों के जीवन की तुलना में उनके एक पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का काल उनके काल से कुछ अलग रहा है।
वे अपने काल में राजनैतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से विभिन्न प्रकार के संकटों से जूझ रहे थे। करबला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत और उसके बाद घटने की वाली घटनाओं तथा रक्तपात के कारण ऐसा लगने लगा था मानो उनके परिजन, विनाश की ओर बढ़ रहे थे। उस समय की संवेदनशील स्थिति इतनी बढ़ चुकी थी कि बनी हाशिम, के कुछ प्रमुख "अबवा" नामक स्थान पर एकत्रित हुए थे। अबवा नामक स्थान मक्के और मदीने के बीच में स्थित है। बनी हाशिक के प्रमुख लोगों की यह गोपनीय बैठक थी। "अबवा" में होने वाली इस बैठक में अब्दुल्लाह बिन हसन मुसन्ना मौजूद थे जो "अब्दुल्लाह महज़" के नाम से मश्हूर थे। वे इमाम हसन के नवासे थे। इस बैठक में उनके बेटे मुहम्मद और इब्राहीम भी उपस्थित थे। अबवा बैठक में पैग़म्बरे इस्लाम के चचा अब्बास के वंशज भी थे जिनमें इब्राहीम, अबुल अब्बास सफ़्फ़ाह तथा अबू जाफ़र मंसूर भी थे। इनके अतिरिक्त भी कुछ उनके अन्य रिश्तेदार हाज़िर थे।
यह लोग स्वयं को पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के रूप में पेश कर रहे थे। इन लोगों का मुख्य उद्देश्य सत्ता की प्राप्ति था। इन लोगों ने आम जनमत को धोखा देने के लिए कुछ नारों का भी प्रयोग किया जैसे, "अर्रेज़ा बे आले मुहम्मद" या "अर्रेज़ा मिन आले मुहम्मद" अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों का समर्थन। इन लोगों का यह कहना था कि हम चाहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों में से किसी एक का चयन करके सत्ता की बागडोर उसके हाथों में दें।
उनके नारों से ही पता चलता था कि उनकी नियत में खोट है। उनके नारों में कहीं भी इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का नाम नहीं था जबकि उस समय पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजनों में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ही सबसे मश्हूर और जानी पहचानी हस्ती थे। नारों में इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम का नाम न लाकर एक आम सी बात इसलिए कही गई थी ताकि अपने दृष्टिगत व्यक्ति के हाथों में सत्ता की बागडोर दे दी जाए।
इस गोपनीय बैठक में उपस्थित इमाम हसन अलैहिस्सलाम के नवासे हसन मुसन्ना या अब्दुल्लाह महज़ ने वहां पर मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि हे बनी हाशिम के लोगो, इस समय सबकी निगाहें तुम्हारी ओर हैं। लोगों को तुमसे उम्मीदें हैं। अब जबकि ईश्वर ने एक अवसर उपलब्ध कराया है और हम सब एक जगह पर उपस्थित हुए हैं आइए आप सब मेरे बेटे की बैअत कीजिए। उसको हम अपना नेता चुनकर उमवियों के विरुद्ध संघर्ष करेंगे।
हसन मुसन्ना या अब्दुल्लाह महज़ ने बैठक में मौजूद लोगों से केवल अपने बेटे की बैअत की बात नहीं कही बल्कि यह भी कहा कि मुक्तिदाता मेहदी, मेरा ही बेटा है। आइए हम सब उसकी बैअत करें। बनी अब्बास की योजना यह थी कि शासन के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए अभी हमारी कोई तैयारी नहीं है एसे में हम अली की संतान में से किसी एसे पर एकमत हो जाएंगे जो लोगों में अधिक ख्याति रखता हो। बाद में जब सत्ता उसके हाथ में आ जाएगी तो हम उसको अपने रास्ते से हटा देंगे। इसी उद्देश्य के दृष्टिगत "मंसूर अब्बासी" ने अब्दुल्लाह महज़ को संबोधित करते हुए कहा कि हम तुम्हारे उसे बेट की बैअत नहीं करेंगे जिसे तुम मुक्तिदाता महदी या "महदी उम्मत" बताते हो बल्कि हम तुम्हारे दूसरे बेटे मुहम्मद की बैअत करने के लिए तैयार हैं। वहां पर उपस्थित लोगों ने कहा कि ठीक है हम भी मुहम्मद की बैअत कर रहे हैं जो "नफ़्से ज़किया" के नाम से मशहूर थे।
अब्दुल्लाह महज़ ने अपने बेटे की पकड़ को अधिक मज़बूत करने के उद्देश्य से इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम का समर्थन प्राप्त करने के प्रयास तेज़ कर दिये। इस उद्देश्य से उन्होंने एक गुट को इमाम के पास भेजा। इस बारे में "अबुल फ़रज इस्फ़हानी" के कथनानुसार अब्दुल्लाह महज़ ने कहा कि जाफ़र सादिक़ के पास लोगों को मत भेजो क्योंकि वे हमारा समर्थन नहीं करेंगे। कुछ इतिहासकारों का यह कहना है कि अब्दुल्लाह महज़ ने एसा नहीं कहा था किंतु एतिहासिक प्रमाणों से पता चलता है कि अब्दुल्लाह महज़ की हार्दिक इच्छा थी कि वह इमाम जाफ़र सादिक़ के दृष्टिकोण को अपने हित में मोड़ ले।
यही कारण है कि जब इमाम वहां पर पहुंचे तो उपस्थित लोगों ने उठकर उनका अभिनंदन किया। बाद में अब्दुल्लाह महज़ ने वही बात इमाम से भी कही जो उसने इससे पहले लोगों से कही थी। उसने इमामा से कहा कि वर्तमान समय की संवेदनशील एवं जटिल परिस्थितियों को देखते हुए सब यह जानते हैं कि मेरा बेटा ही वह मेहदी है जो संसार का मोक्षदाता है। इसी वजह से लोगों ने उनकी बैअत की है और आप भी उसकी बैअत कर लीजिए।
अब्दुल्लाह महज़ की बात पर इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जिस मेहदी के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम ने बताया है कि वह संसार का मोक्षदाता होगा वह तुम्हारा बेटा नहीं है। अब अगर तुम ऐसा कुछ सोचते हो तो तुम ग़लती पर हो। इसके बाद इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने वहां पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि यदि तुम लोग महदी के रूप में अब्दुल्लाह महज़ के बेटे की बैअत करना चाहते हो तो करो लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा। उन्होंने कहा कि यह सफेद झूठ है और झूठा दावा है। आपने कहा कि तुम जिस महदी के बारे में कह रहे हो उनके प्रकट होने का समय अभी नहीं है। इसके बाद इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर तुम भलाई के प्रचार और बुराई को रोकने तथा अत्याचार की रोकथाम के उद्देश्य से आन्दोलन चलाना चाहते हो तो मैं भी तुम्हारे साथ हूं।
इस प्रकार इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने स्पष्ट शब्दों में अपना दृष्टिकोण पेश किया लेकिन अब्दुल्लाह महज़ और वहां पर उपस्थित लोग अपनी ही बात पर अड़े रहे। इमाम ने इसका विरोध किया तो अब्दुल्लाह महज़ नाराज़ हो गए। इसपर इमाम ने कड़ाई से कहा कि अब्दुल्लाह मैं तुमसे कह रहा हूं कि तुम्हारा बेटा वह मेहदी नहीं है जिसके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा था। उन्होंने कहा कि हमें अपने ज्ञान से पता है कि वह मेहदी कौन है और वे कब आएंगे। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं एकबार फिर कहता हूं कि तुम्हारा बेटा मेहदी नहीं है और वह मारा जाएगा।
इन सब बातों के बावजूद इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम अब्दुल्लाह महज़ के बेटे मुहम्मद को इसलिए बहुत चाहते थे कि उनके भीतर तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय पाया जाता था। इस बारे में अबुल फ़रज इस्फहानी कहते हैं कि इमाम जब मुहम्मद को देखते थे तो उन्हें देखकर उनकी आंखें नम हो जाती थीं। वे कहते थे कि लोग उसके बारे में जो कहते हैं वह सही नहीं है। वास्तविकता यह है कि लोग उसको ग़लत समझ रहे हैं। वह मोक्षदाता मेहदी नहीं है। आज जिन लोगों ने मुहम्मद की बैअत की है एक दिन इन्हीं लोगों में से एक व्यक्ति जब सत्ता हथिया लेगा तो वह मुहम्मद की हत्या कर देगा।
बनी अब्बास ने विदित रूप में तो अब्दुल्लाह महज़ के बेटे की बैअत की किंतु सत्ता प्राप्ति की अपनी योजना को वह आगे बढ़ाते रहे। उन्होंने कूफ़े के रहने वाले एक व्यक्ति "अबू सलमा ख़लाल" पर नज़र रखना शूर की। बाद में उन्होंने लोगों को धोखा देने के उद्देश्य से अबू सलमा ख़लाल को "वज़ीरे आले मुहम्मद" का टाइटिल दिया। इसी प्रकार से उन्होंने अबू मुस्लिम नामक एक व्यक्ति को ख़ुरासान का प्रभारी नियुक्त किया और उसको "अमीरे आले मुहम्मद" का टाइटिल दिया। अबू मुस्लिम, अबू सलमा को अपने रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट समझता था इसलिए उसने अबू सलमा को ठिकाने लगाने की योजना बनाई। अबू सलमा ने, जो वज़ीरे आले मुहम्मद के नाम से मश्हूर हो गए थे, जब यह देखा कि उनकी हत्या कर दी जाएगी तो वे अपने काम से बहुत पछताए। उन्होंने सोचा कि सत्ता को आले अब्बास से आले अबूतालिब के हाथों में पहुंचा दे। इसी उद्देश्य से अबू सलमा ने अपने एक दूत से तीन लोगों को मदीने में पत्र भिजवाए। इमाम जाफ़र सादिक़, अब्दुल्लाह बिन हसन और उमर बिन अली बिन हुसैन।
अबू सलमा ने अपने दूत से कहा कि सबसे पहले तुम जाफ़र सादिक़ के पास मदीने जाना। जब तुम जाफ़र सादिक़ को यह ख़त दो तो देखना कि अगर उन्होंने ख़त को पढ़कर स्वीकार कर लिया तो फिर दूसरे दोनो ख़तों को फाड़ देना। अगर उन्होंने बात नहीं मानी तो फिर तुम दूसरा वाला ख़त लेकर अब्दुल्लाह बिन हसन के पास जाना। अब अगर अब्दुल्लाह ने इस ख़त को पढकर उसे मान लिया तो फिर तीसरा वाला ख़त फ़ाड़ देना लेकिन अगर अब्दुल्लाह ने बात नहीं मानी तो फिर तुम तीसरा ख़त लेकर उमर बिन अली बिन हुसैन बिन अली के पास जाना। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के पास जब अबू सलमा का दूत पहुंचा तो इमाम ने ख़त को पढ़े बिना ही उसे जला दिया और कहा कि वह दूसरों का अनुयाई है। इसके बाद इमाम ने एक शेर पढ़ा जिसका अर्थ है तुमने एसी आग जलाई है जिसकी रोशनी से दूसरे लाभ उठा रहे हैं। तुमने ईंधन इक्ट्टा करके फेंक दिया है जिसे दूसरे जमा करके ले जा रहे हैं।
अबू सलमा का दूत दूसरा ख़त लेकर अब्दुल्लाह महज़ के पास गया। इस पत्र को देखकर वह इमाम सादिक़ के विपरीत बहुत खुश हुए। बाद में वे ख़त लेकर इमाम की सेवा में उपस्थित हुए। उन्होंने इमाम से कहा कि अबू सलमा ने मुझे एक ख़त भेजा है जिसमें लिखा है कि ख़ुरासान में हमारे शिया इस बात के लिए पूरी तरह से तैयार हैं कि ख़िलाफ़त को हम तक पहुंचाया जाए। उन्होंने इमाम कहा कि अबू सलमा ने मुझसे अनुरोध किया है कि मैं उनकी बात को मान लूं।
मशहूर इतिहासकार मसऊदी लिखते हैं कि इसपर इमाम सादिक़ ने उनसे कहा कि ख़ुरासान के लोग तुमको कब से मानने लगे। क्या तुमने अबू मुसलिम को ख़ुरासान भेजा था? क्या तुम किसी ख़ुरासान वाले को जानते हो? अब्दुल्लाह को इस प्रकार के जवाब की प्रतीक्षा नहीं थी। इमाम की बातें सुनकर वह बहुत क्रोधित हो गया और बोला कि आप जलन में यह बात कह रहे हैं। इसपर इमाम सादिक़ ने कहा कि ईश्वर की सौगंध मैं भलाई के अतिरिक्त कुछ और नहीं चाहता हूं। इस प्रकार की बातें तुम्हारे हित में नहीं हैं। इन बातों से तुमको कोई लाभ नहीं होगा। इसके बाद इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम ने कहा कि अबू सलमा ने जैसा ख़त तुमको भेजा वैसा ही ख़त मुझको भी भेजा था जिसे मैंने पढ़ने से पहले ही जला दिया। इमाम की इन बातों को सुनकर अब्दुल्लाह को अधिक क्रोध आया और वह वहां से चला गया।
अबतक की बातों से यह निष्कर्श निकाला जा सकता है कि अब्दुल्लाह महज़ और उसके बेटों ने सत्ता की प्राप्ति की लालच में बनी हाशिम से बहुत उम्मीदें बांध ली थीं। हालांकि इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम अपनी दूरदर्शिता से यह समझ गए थे कि बनी अब्बास केवल सत्ता की प्राप्ति के इच्छुक हैं। वे धोखा देने वाले नारों से केवल सत्ता हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं। यह लोग इस्लाम की रक्षा और पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की सुरक्षा के लिए कोई क़दम नहीं उठाएंगे। यह एसे लोग हैं जो जैसे ही सत्ता की बागडोर संभालेंगे अपने सारे पिट्टठुओं को ठिकाने लगा देंगे। वास्तव में बाद में एसा ही हुआ। यह घटनाक्रम बताता है कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम अपने काल में एक ऐसे विषय का सामना कर रहे थे जिसमें वह कथित प्रशंसकों का न तो समर्थन कर सकते थे और निष्ठावान समर्थकों की कमी के कारण उनके विरुद्ध उठ खड़े हो नहीं सकते थे।