Sep ३०, २०१८ १५:१० Asia/Kolkata

वर्ष 1948 में अवैध इस्राईली शासन के अस्तित्व में आने के बाद से ही अमरीका ज़ायोनी शासन का मुख्य आर्थिक व सामरिक समर्थक रहा है और बाराक ओबामा के शासन काल में वॉशिंग्टन ने तेल अवीव की दस वर्षीय सामरिक सहायता के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के अंतर्गत अमरीका दस साल में , ज़ायोनी शासन को 38 अरब डॉलर की सैन्य सहायता देगा।

यह सहायता राशि वॉशिंग्टन और तेल अवीव के बीच वर्ष 2007 में होने वाले सैन्य सहायता के समझौते से 27 प्रतिशत अधिक थी। डोनल्ड ट्रम्प के सत्ता में आने के बाद से अमरीका की ओर से इस्राईल के समर्थन में अभूतपूर्व वृद्धि हो गई है।

इसी के अंतर्गत वर्ष 2019 में अमरीका की ओर से इस्राईल को दी जाने वाली सैनिक सहायता के बजट में वृद्धि कर दी गई है। ट्रम्प ने पिछले दो साल में फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ और इस्राईल के पक्ष में जो क़दम उठाएं हैं उनसे पता चलता है कि अमरीका के वर्तमान राष्ट्रपति ने, इस्राईल के व्यापक और हर संभव समर्थन में इस देश के सभी पूर्व राष्ट्राध्यक्षों को पीछे छोड़ दिया है। इस समर्थन का स्पष्ट उदाहरण ट्रम्प की ओर से बैतुल मुक़द्दस को ज़ायोनी शासन की राजधानी के रूप में औपचारिक रूप से स्वीकार करना और अमरीकी राजधानी को तेल अवीव से बैतुल मुक़द्दस स्थानांतरित करना था।

ट्रम्प ने छः दिसम्बर 2017 को इस्राईल के समर्थन में बैतुल मुक़द्दस को ज़ायोनी शासन की राजधानी के रूप में औपचारिक रूप से स्वीकार किया और आदेश दिया कि अमरीकी राजधानी को तेल अवीव से बैतुल मुक़द्दस स्थानांतरित कर दिया जाए। जारी वर्ष की 14 मई को ज़ायोनी शासन के गठन की सत्तरवीं वर्षगांठ पर अमरीकी दूतावास को बैतुल मुक़द्दस स्थनांतरित कर दिया गया। रूस के रणनैतिक अध्ययन केंद्र की सलाहकार इलेना सुपोनीना का कहना है कि डोनल्ड ट्रम्प बैतुल मुक़द्दस को ज़ायोनी शासन की राजधानी के रूप में औपचारिक रूप से स्वीकार करके आग से खेल रहे हैं।

 

बैतुल मुक़द्दस को ज़ायोनी शासन की राजधानी के रूप में औपचारिक रूप से स्वीकार करने के ट्रम्प के क़दम का फ़िलिस्तीन के भीतर, क्षेत्रीय व इस्लामी देशों और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अभूतपूर्व प्रतिक्रियाएं सामने आईं। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा की ओर से ट्रम्प के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित होने के बाद ज़ायोनी शासन और उसके मुख्य समर्थक अर्थात अमरीका पर बहुत अधिक दबाव पड़ा और ये दोनों सरकारें अलग-थलग पड़ने लगीं। यद्यपि ट्रम्प का यह क़दम इस्राईल और अमरीका की सशक्त ज़ायोनी लॉबी को ख़ुश करने के लिए उठाया गया था लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले विरोध और पराग्वे जैसे अमरीका के कुछ घटकों के अपना दूतावास को बैतुल मुक़द्दस स्थानांतरित करने के फ़ैसले से पीछे हट जाने से स्पष्ट हो गया कि ज़ायोनी शासन के समर्थन के संबंध में ट्रम्प की नीति विफल रही है।

वियना विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर हाइन्ज़ ग्रेटनर का कहना है कि ट्रम्प सरकार पूरी तरह से इस्राईल के साथ खड़ी है। साक्ष्यों से पता चलता है कि अपराधी ज़ायोनी शासन की छवि अमरीका की ओर से उसके व्यापक समर्थन के बावजूद संसार में बड़ी तेज़ी से बिगड़ती जा रही है। विशेष कर फ़िलिस्तीनियों की ज़मीनों को अधिक से अधिक हड़पने की ज़ायोनी शासन की कार्यवाही और उनका पाश्विक दमन, जो केवल अपने आरंभिक इंसानी अधिकारों की बहाली के इच्छुक हैं, इस बात का कारण बना है कि पूरे संसार में इस्राईल से घृणा में बड़ी तेज़ी से वृद्धि हो।

ट्रम्प ने बैतुल मुक़द्दस को ज़ायोनी शासन की राजधानी के रूप में औपचारिक रूप से स्वीकार करने के अभूतपूर्व क़दम के बाद फ़िलिस्तीन के ख़िलाफ़ अपनी नीतियों को गति प्रदान की है। पिछले कुछ महीनों में ट्रम्प सरकार की कार्यवाहियों से पता चलता है कि वे फ़िलिस्तीन के मामले में शक्ति का संतुलन पूरी तरह से ज़ायोनी शासन के हित में और फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध बदलना चाहते हैं। ट्रम्प की ये कार्यवाहियां और फ़िलिस्तीनियों के आर्थिक स्रोतों की बंदिश, डील ऑफ़ द सेंचुरी के संबंध में ट्रम्प की नीतियों के सामने सिर झुकाने पर फ़िलिस्तीनियों को मजबूर करने के उद्देश्य से है।

 

ट्रम्प के फ़िलिस्तीन विरोधी रुख़ का एक स्पष्ट उदाहरण अमरीका की ओर से फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों की सहायता करने वाली संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसी यूएनआरडब्ल्यूए की मदद बंद करने पर आधारित था जिसकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। हालांकि तेल अवीव ने वॉशिंग्टन के इस क़दम का स्वागत किया है लेकिन विभिन्न देशों यहां तक कि अमरीका के यूरोपीय घटकों ने भी इसकी आलोचना की है। अमरीकी विदेश मंत्रालय ने 31 अगस्त को इस एजेंसी को दी जाने वाली अपनी सभी सहायताओं को बंद करने की सूचना दी और कहा कि अब वॉशिंग्टन यूएनआरडब्ल्यूए की आर्थिक मदद के संबंध में प्रतिबद्ध नहीं है।

अमरीका हालिया वर्षों में यूएनआरडब्ल्यूए के लगभग तीस प्रतिशत बजट की आपूर्ति कर रहा था लेकिन जारी वर्ष के आरंभ में उसने पहले से निर्धारित तीस करोड़ डालर की सहायता को रद्द कर दिया और इस पर पुनर्विचार की घोषणा की। वॉशिंग्टन के हालिया फ़ैसले से औपचारिक रूप से यूएनआरडब्ल्यूए की आर्थिक मदद और भविष्य में की जाने वाली मदद रुक गई है। फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध संगठन हमास के प्रवक्ता हाज़िम क़ासिम ने यूएनआरडब्ल्यूए के ख़िलाफ़ अमरीका के फ़ैसले को, फ़िलिस्तीनियों के वापसी के अधिकार को छीनने की कोशिश क़रार दिया है। उन्होंने कहा कि यह बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि ट्रम्प ने फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों पर हमले में भागीदारी के लिए ज़ायोनी शासन के पक्ष में अपना रुख़ बदला है। लेकिन इस तरह के फ़ैसले, स्वतंत्रता व वापसी के अधिकार के लिए फ़िलिस्तीनी जनता के संघर्ष को रोक नहीं सकते।

अमरीकी सरकार का एक और क़दम 24 अगस्त को सामने आया जिसके अंतर्गत अमरीका ने ग़ज़्ज़ा पट्टी और पश्चिमी तट के लिए अपनी बीस करोड़ डालर की मदद को बंद कर दिया। फ़िलिस्तीनी प्रशासन के प्रवक्ता नबील अबू रुदैना ने अमरीका की इन कार्यवाहियों की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि अमरीका के फ़ैसले शांति के मार्ग में नहीं हैं बल्कि इससे क्षेत्र में आतंकवाद को बल मिलेगा। ये कार्यवाहियां, अमरीकी योजना या डील आफ़ द सेंचुरी को स्वीकार करने के लिए फ़िलिस्तीनियों पर दबाव डालने के उद्देश्य से की जा रही हैं। इस योजना के आधार पर बैतुल मुक़द्दस, इस्राईल को दे दिया जाएगा, अन्य देशों में रह रहे फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों को स्वदेश वापसी का अधिकार नहीं होगा और फ़िलिस्तीन की सरकार का स्वामित्व सिर्फ़ ग़ज़्ज़ा पट्टी और पश्चिमी तट पर होगा।

 

अमरीका के यूरोपीय घटक तक इस बात से अच्छी तरह अवगत हैं कि अमरीका की ओर से इस्राईल का अंधा समर्थन और फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध कार्यावाहियों से न सिर्फ़ यह कि फ़िलस्तीन समस्या के समाधान में कोई मदद नहीं मिलेगी बल्कि इससे ज़ायोनी शासन के संघर्ष के लिए फ़िलिस्तीनियों के संकल्प और प्रतिरोध में वृद्धि होगी। इस संबंध में यूरोपीय संघ के विदेशी मामलों की प्रभारी फ़ेड्रीका मोगरीनी ने बैतुल मुक़द्दस को ज़ायोनी शासन की राजधानी के रूप में औपचारिक रूप से स्वीकार करने समेत वॉशिंग्टन के एकपक्षीय फ़ैसलों को विश्व शांति व सुरक्षा के लिए हानिकारक और फ़िलिस्तीन समस्या के समाधान की कोशिशों के लिए धचका बताया है।

इसी के साथ यूएनआरडब्ल्यूए की मदद बंद करने के अमरीका के अमानवीय क़दम को ज़ायोनी शासन के फ़िलिस्तीन विरोधी लक्ष्यों को व्यवहारिक बनाने के मार्ग में अमरीका का एक और क़दम बताया गया है। इस संबंध में यूरोपीय संघ ने एक बयान जारी करके अमरीका से मांग की है कि वह यूएनआरडब्ल्यूए की मदद बंद करने के अपने खेदजनक फ़ैसले पर पुनर्विचार करे। यूरोपीय संघ ने बल देकर कहा है कि फ़िलिस्तीन, लेबनान, जार्डन और सीरिया में इस एजेंसी की गतिविधियां जारी रहनी चाहिए जो इन देशों में दसियों स्कूल चला रही है।

 

अमरीका की ओर से इस्राईल के पक्ष में संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार परिषद के संबंध में पक्षपातपूर्ण व्यवहार भी ट्रम्प के फ़िलिस्तीन विरोधी अहम क़दमों में से एक है। इस परिषद ने इस्राईल के हाथों फ़िलिस्तीनियों के मानवाधिकार के व्यापक हनन की कई बार आलोचना की है लेकिन अमरीका ने हर बार ज़ायोनी शासन का खुल कर समर्थन किया है। उसने मार्च 2018 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की ओर से इस्राईल के ख़िलाफ़ जारी होने वाले कई प्रस्तावों के बाद धमकी दी थी कि वह इस परिषद से निकल जाएगा। राष्ट्र संघ में अमरीका की दूत निकी हेली ने अपने विचार में इस परिषद के अवास्तविक और अन्यायपूर्ण रुख़ की कड़ी आलोचना करते हुए धमकी दी कि अगर यह सिलसिला इसी तरह जारी रहा तो उनका देश संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार परिषद से निकल जाएगा।

अंततः अक्तूबर 2018 में अमरीका ने अपनी इस धमकी को व्यवहारिक कर दिया। निकी हेली ने वाशिंग्टन में एक पत्रकार सम्मेलन में घोषणा की कि संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार परिषद की ओर से अत्यधिक पक्षपात के कारण उनका देश इस परिषद से निकल गया है। उन्होंने कहा कि यह परिषद अपने नाम के योग्य नहीं है। हेली ने आरोप लगाया कि यह परिषद, इस्राईल से अनंत शत्रुता रखती है और इसने वर्ष 2018 में ही इस्राईल के ख़िलाफ़ पांच प्रस्ताव पारित किए हैं जो उत्तरी कोरिया, ईरान व सीरिया के ख़िलाफ़ इस परिषद में पारित होने वाले प्रस्तावों से भी अधिक हैं। वास्तविकता यह है कि अमरीका ने ज़ायोनी शासन के अमानवीय अपराधों की ओर से आंखें मूंद रखी हैं और उसका दावा है कि इस्राईल प्रजातंत्र और मानवाधिकार का समर्थक शासन है। फ़िलिस्तीन की दयनीय स्थिति को देखते हुए अमरीका के इस झूठ को हास्यास्पद और संसार की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश ही कहा जाएगा। (HN)

 

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