क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-691
क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-691
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا إِلَى ثَمُودَ أَخَاهُمْ صَالِحًا أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ فَإِذَا هُمْ فَرِيقَانِ يَخْتَصِمُونَ (45) قَالَ يَا قَوْمِ لِمَ تَسْتَعْجِلُونَ بِالسَّيِّئَةِ قَبْلَ الْحَسَنَةِ لَوْلَا تَسْتَغْفِرُونَ اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ (46) قَالُوا اطَّيَّرْنَا بِكَ وَبِمَنْ مَعَكَ قَالَ طَائِرُكُمْ عِنْدَ اللَّهِ بَلْ أَنْتُمْ قَوْمٌ تُفْتَنُونَ (47)
और हमने समूद (जाति के लोगों) की ओर उनके भाई सालेह को भेजा (उन्होंने कहा) कि ईश्वर की उपासना करो। तो फिर वे लोग आपस में लड़ने वाले दो गुटों में बंट गए। (27:45) सालेह ने कहा, हे मेरी जाति के लोगो! तुम भलाई से पहले बुराई के लिए क्यों जल्दी कर रहे हो? तुम ईश्वर से क्षमा याचना क्यों नहीं करते? शायद तुम पर दया हो जाए। (27:46) उन्होंने कहा, हमने तो तुम्हें भी और तुम्हारे साथ वालों को भी अपशकुन पाया है। सालेह ने कहा, तुम्हारा शकुन-अपशकुन तो ईश्वर के पास है, बल्कि बात यह है कि तुम लोग आज़माए जा रहे हो। (27:47)
وَكَانَ فِي الْمَدِينَةِ تِسْعَةُ رَهْطٍ يُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ وَلَا يُصْلِحُونَ (48) قَالُوا تَقَاسَمُوا بِاللَّهِ لَنُبَيِّتَنَّهُ وَأَهْلَهُ ثُمَّ لَنَقُولَنَّ لِوَلِيِّهِ مَا شَهِدْنَا مَهْلِكَ أَهْلِهِ وَإِنَّا لَصَادِقُونَ (49)
और (उस) नगर में नौ गुट थे जो धरती में बुराई फैलाते थे और सुधार का काम नहीं करते थे। (27:48) उन्होंने कहा आपस में ईश्वर की क़सम खाओ कि हम अवश्य ही सालेह और उनके परिजनों पर रात में हमला करेंगे। फिर उसके उत्तराधिकारी से कह देंगे कि हम उनके परिजनों की हत्या के अवसर पर उपस्थितति ही न थे (उनकी हत्या करने की तो बात ही अलग है) और हम बिलकुल सच्चे हैं। (27:49)