Oct १०, २०१८ १३:१३ Asia/Kolkata

अधिकतर इंसान वह संयुक्त और मूल सवाल करते हैं जिनका उन्होंने अपने जीवन के दौरान अनुभव किया है।

एक सामान्य मनुष्य से लेकर बुद्धिजीवियों और पढ़े लिखे लोगों को अपने जीवन के पड़ाव के दौरान विभिन्न प्रकार के सवालों का सामना करना पड़ता है और यदि उनको अनदेखा कर भी दिया जाए जो आख़िर में उसके बारे में सोचने के अलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं होता।

अब यहां पर एक प्रश्न यह है कि क्या सृष्टि में सृष्टिकर्ता की झलक पायी जाती है और क्या सृष्टि में सृष्टिकर्ता का कोई चिन्ह मौजूद है? यह उन्हीं विषयों में से एक है जिस पर मनुष्य अपनी सृष्टि के आंरभ से ही चिंतन मनन करता रहता है।  दर्शन शास्त्र तथा आसमानी और ग़ैर आसमानी धर्मों ने इन प्रश्नों के उत्तर दिए हैं। यहां पर एक शोचनीय बिन्दु यह है कि इस्लाम धर्म ने सभी को अपनी सृष्टि में चिंतन मनन करने का निमंत्रण दिया है और स्वयं उसने भी ऐसी चीज़ें पेश की हैं जिनके समीक्षा मनुष्यों को करनी चाहिए और उनके बारे में सोच विचार करना चाहिए।

कुल मिलाकर सृष्टि के रहस्य की वास्तविकताओं के बारे में जानने के लिए इस बारे में वरिष्ठ धर्मगुरुओं के बयानों, विचारों और लेखों से लाभ उठाते हुए सृष्टि की रचना और उसके रहस्यों को जानने का प्रयास किया जाता है और इस सवाल का जवाब दें कि हमारे आसपास की चीज़ें, सृष्टिकर्ता का कितना बेहतरीन प्रतिबिंबन हैं।

पुरी दुनिया को ईश्वर ने पैदा किया है और उसकी रचनाओं में, हर हर चीज़ में अनेक प्रकार के पाठ और बिन्दु छिपे हुए हैं।  सृष्टि और उसमें मौजूद रचनाओं पर ध्यान देने से तथा दुनिया में मौजूद सूक्ष्म व्यवस्थाओं को देखने से पता चल जाता है कि इनको ईश्वर ने पैदा किया है और ईश्वर ने इन चीज़ों को फ़ालतू या बेकार में पैदा नहीं किया है। हम जितना अधिक ध्यान दें, जितना अधिक सोचेंगे, इस परिणाम पर पहुंचेंगे कि ईश्वर ने दुनिया में किसी भी चीज़ को बेकार या फ़ालतू पैदा नहीं किया है। बर्फ़, बारिश, पत्थर, पहाड़ और दुनिया में जो कुछ भी हम देख रहे हैं, सब ही इस तर्क का अनुसरण करते हैं और उनकी सृष्टि के विभिन्न और अनेक फ़ायदे हैं।

युक्तिकर्ता और तत्वदर्शी ईश्वर की युक्तियों में से एक यह है कि उसने ज़मीन की रचना इस प्रकार से की है कि सामान्य रूप से उत्तरी भाग दक्षिणी भाग से अधिक ऊंचा है। क्या यह चीज़, इस बात का अंश है कि ज़मीन पर मौजूद पानी जारी रहे और ज़मीन को तृप्त करती रहे और अंत में समुद्र में गिर जाए?  आपने अवश्य सोचा होगा कि को ढलुआ बनाया जाए ताकि छत पर रुका पानी परनाले से आसानी से निकल सके और छत थोड़ी देर के बाद सूख जाए।  जैसा कि उत्तरी भाग दक्षिणी भाग से ऊंचा होता है और यदि ऐसा न होता तो ज़मीन पर पानी एक ही जगह रुका रहता और लोग इन पानियों से लाभ नहीं उठा सकते थे।

दूसरा विषय पानी की बहुतायत है। जैसा कि आप जानते हैं कि ज़मीन के लगभग 70 प्रतिशत भाग पर पानी है। यदि पानी अधिक न होता और यदि सोते से पानी न उबलते, घाटिया, नहरें और नदियां उससे भरी हुई न होती और लोगों के पीने, जानवरों को पिलाने, खेतों, बाग़ और बग़ीचों को पानी देने जैसी मनुष्यों की आवश्यकताओं और जंगली जानवरों, पक्षियों को पानी पीने और जलचरों के लिए जीवन व्यतीत करने के लिए आवश्यक पानी न होता।

 

अलबत्ता यदि इस बात को छोड़ दिया जाए कि पानी, ज़मीन पर मौजूद जानवरों और लोगों के जीवन का स्रोत है और जीवन चक्र चलाने के लिए इसकी मूल भूमिका होती है, दूसरे पेयों को मिलाकर स्वादिष्ट और आनंददायक विभिन्न प्रकार के पेय तैयार किए जाते हैं।

 

थोड़ा सा सोच विचार करने के बाद हमको यह पता चल जाता है कि बड़ी मात्रा में पानी के पाए जाने के और भी कारण हैं और वह यह कि मनुष्य का जीवन पानी से एकदम घुल मिल गया है। उदाहरण स्वरूप पानी से शरीर और दूसरी वस्तुओं को प्रदूषण और जीवाणुओं से साफ़ किया जाता है और उन्हें स्वच्छ रखा जाता है। मिट्टी को फ़सल के लिए नर्म और तैयार किया जाता है और जंगलों और घरों में लगने वाली आग को जिससे बहुत अधिक जानी व माली नुक़सान होता है, बुछाया जाता है। थका हारा व्यक्ति यदि पानी से नहा ले तो उसकी थकन दूर हो जाती है और फिर से तरोताज़ा व प्रफुल्लित हो उठता है। अधिक सोच विचार करने पर पानी के दूसरे लाभ भी पता चल सकते हैं। मनुष्य के लिए पानी और हवा के बारे में बहुत सी कहानियां मौजूद हैं क्योंकि यदि हवा बड़ी मात्रा में न होती तो शहरों में धुंए भर जाते और लोगों को सांस लेने में परेशानी होती और वह विभिन्न प्रकार की बीमारियों में ग्रस्त हो जाते और मौत के मुंह में पहुंच जाते।

हमको पता है कि पानी की बहुतायत अधिक वर्षा पर निर्भर होती है। बारिश से ज़मीन ज़िंदा होती है, धरती यह हरियाली रहती है और पर्वातांचल हरभरे हो उठते हैं और फ़सलें अच्छी होती हैं और पैदावार में वृद्धि होती है। यहां पर यह बात उल्लेखनीय है कि यदि वर्षा अपनी सीमा से अधिक हो जाती है तो यह लोगों की समस्या का कारण बन जाती है और इसी के साथ लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पानी पहुंचाने की समस्या से मुक्ति मिल जाती है। ऐसे में पानी के मुद्दे पर लोगों के बीच झगड़ा लड़ाई भी नहीं रहती और ऐसा नहीं होता कि जिसके पास जितनी शक्ति हो उसके पास उतना पानी हो और वंचित लोग पानी की अनुकंपा से लाभ उठाने से वंचित रहें।

 

ईश्वर का उपकार देखिए कि जब आसमान से बारिश होती है तो धीरे धीरे और हर हर दाने तक पहुंचती है ताकि ज़मीन को तृप्त कर सके। यदि बारिश अचानक और एक ही बार में हो जाती तो बारिश का पानी ज़मीन के अंदर तक नहीं पहुंच सकता था इस प्रकार खेत खलिहान बुरी तरह से तबाह हो जाते। बारिश धीरे धीरे ज़मीन पर पड़े दानों पर पड़ती है ताकि ज़मीन के भीतर पड़े दानों को ज़िंदा करे और प्यासी जम़ीनों और खेतों को जीवन प्रदान करे। बारिश, शरीरों को नर्म करती है, हवा को साफ़ और स्वच्छ रखती है, हैज़े को दूर करती है और वनस्पतियों और वृक्षों की आपदाओं को दूर करती है।

 

अब एक बार फिर से पर्वत को देखिए, पर्वत पत्थरों और मिट्टी के साथ अपनी ऊंचाई और वैभवता के साथ खड़ा हुआ है। शायद अतीत में पहाड़ों को फ़ालतू और बेकार समझा जाता था किन्तु अब इसके बहुत से लाभ लोगों के सामने आ चुके हैं। पहाड़ की पहली विशेषता जो समझ में आती है वह ज़मीन को निचले और ऊंचे स्थान में बदलना है। ज़मीन में यह ऊंच नीच, मनुष्य को जीवन बिताने में बहुत लाभदायक होते हैं क्योंकि यदि ज़मीन का हर स्थान बराबर होगा तो पानी का स्थानांतरण बहुत मुश्किल में पड़ जाएगा। अलग से इस प्रकार से काम पर बहुत अधिक ख़र्च आएगा । ज़मीन पर जीवन, पानी की देन है और पानी का निरंतर जारी रहना, पर्वतों के बाक़ी रहने की गैरेंटी है। यदि पर्वत न होते तो पूरी धरती दलदल बन चुकी होती क्योंकि पानी अपनी तीव्रता और तेज़ी खो देता।

इसी प्रकार पर्वतों के भीतर, गुफाएं और पहाड़ों के बीच घाटियां होती हैं ताकि जंगली जानवर और कुछ अन्य जानवर वहां शरण ले सकें। पुराने ज़माने में दुश्मनों के हमलों से बचने के लिए पर्वतों में, मज़बूत क़िले और दुर्ग बनाए जाते थे। इसके अतिरिक्त प्रकृति में मनुष्य को जो पहली शरणस्थली मिली वह गुफा थी। पहाड़ों में मौजूद गुफाओं का कारण यह है कि गर्मी के मौसम में यह ठंडी और ठंड के मौसम में गर्म और जीवन यापन के लिए उचित होती है। मनुष्य ने घर बनना सीखने से पहले, गुफाओं में शरण ली। अब भी संकटमयी स्थिति में पहाड़ों की ही लोगों का शरण स्थल समझा जाता है।

 

पर्वत इसी प्रकार बादलों के गिरने और एक स्थान पर उनके एकत्रित होने को रोकता है और उसके बाद कि बादल बारिश या बर्फ़ बरसाते विभिन्न शैलियों द्वारा स्वयं भंडारण करता है। इन बारिशों और बर्फ़ को अपने पास एकत्रित करने के बाद बहुत ही व्यवस्थित ढंग से पानी के रूप में धीरे धीरे लोगों तक पहुंचाता है जिससे जीवों के जीवन में संतुलन पैदा होता है। आज पहाड़ों की विभिन्न उपलब्धियां सामने आ रही हैं। उदाहरण स्वरूप पहाड़ों के पत्थर घरों और बिल्डिंगों के निर्मण और उसको ख़ूबसूरत बनाने में प्रयोग होते हैं। इसी प्रकार पहाड़ों के सीनों में विभिन्न प्रकार के हीरे जवाहेरात और खनिज मौजूद हैं। पहाड़ों में अक़ीक़, फ़िरोज़ा, पन्ना और याक़ूत जैसे विभिन्न प्रकार के क़ीमती पत्थर पाए जाते हैं।

हमारे लिए शालीन है कि अल्लाह की हर अनुकंपा और उसकी बिखरी हुई नेअमतों को समझें, कृपालु व तत्वदर्शी ईश्वर की कृपा और क्षमाशीलता को याद करें और इन नेअमतों से सही ढंग से लाभ उठाकर हमें उसकी वास्तविक सराहना और प्रशंसा करनी चाहिए। (AK)  

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