Oct १४, २०१८ १६:४८ Asia/Kolkata

मीशल फ़ूको, फ्रांस के एक वुद्धिजीवी हैं जिन्होंने ईरान की इ्सलामी क्रांति पर विशेष रूप से ध्यान दिया और उसका अध्ययन किया है।

उन्होंने ईरान की इस्लामी क्रांति पर सांस्कृतिक आयाम से दृष्टि डाली है । ईरान की इस्लामी क्रांति ने मीशल फ़ूको के विचारों को बहुत अधिक प्रभावित किया है। उन्होंने एक ओर तो यह कि ईरान की क्रांति के समय ईरान की यात्रा की और आबादान और तेहरान जैसे नगरों में शाही शासन के खिलाफ जनता के आन्दोलन को निकट से देखा तथा दूसरी ओर, जब इमाम खुमैनी फ्रांस में थे तो उन्होंने उनसे जाकर भेंट भी की थी। इस लिए इस्लामी क्रांति के बारे में उनकी विचारधारा, ठोस वास्तविकता और व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है। 

मीशल फ़ूको , इस्लामी क्रांति के बारे में विभिन्न प्रकार के शब्दों का प्रयोग करते हैं। वह इस्लामी क्रांति को आधुनिकता से आंदोलन के भिन्न मानते हैं। उनकी दृष्टि में, ईरान की इस्लामी क्रांति पहला अत्याधुनिक आन्दोलन या व्यवस्था के खिलाफ जन आन्दोलन का अत्याधुनिक रूप है। इस संदर्भ में वह कहते हैं कि ईरान की घटनाएं, खाली हाथों से जनता का आंदोलन है कि जो सब के बोझ को हलका करना चाहती है अर्थात विश्व व्यवस्था के बोझ को । शायद यह विश्व व्यवस्था के खिलाफ पहला बड़ा आन्दोलन है, आन्दोलन का अत्याधुनिक रूप। फ्रांस के यह प्रसिद्ध विचारक इस्लामी क्रांति को संगठन और दलीय व्यवस्था से दूर एक आंदोलन बताते  और यह मानते हैं कि इसकी कहीं और मिसाल नहीं मिलती ।
 

 

मीशल फ़ूको इस्लामी क्रांति की जड़ों और कारणों के बारे में महत्वपूर्ण विचार रखते हैं । वह इस बात पर बल देते हैं कि इस्लामी क्रांति, आर्थिक व भौतिक कारणों से सफल नहीं हुई क्योंकि इस क्रांति में धनवान लोगों ने भी बढ़ चढ़ कर भाग लिया। उनके विचार में पहलवी शासन में आर्थिक समस्याएं इतनी बड़ी नहीं थीं कि लोग उनकी वजह से आन्दोलन करने लगें। मीशल फ़ूको, इ्सलामी क्रांति के लिए सामूहिक संकल्प का प्रयोग करते और कहते हैं ईरान की इस्लामी क्रांति के दौरान यह सामूहिक संकल्प आश्चर्यजनक था । मीशल फ़ूको कहते हैं कि इस्लामी क्रांति की सफलता इस देश में आधुनिकता की पराजय के अर्थ में थी। 

मीशल फ़ूको की नज़र में मुहम्मद रज़ा शाह, ने देश की सभी विरोधी शक्तियों को खत्म कर दिया था, जो बची थीं वह उसके लिए खतरा नहीं थीं लेकिन उसके लिए मुख्य खतरा , जनता की शक्ति थी। जनता की शक्ति संगठित हुई और तूफान बन गयी। यह लोगों की एकजुटता थी जिसने पहलवी शासन की नींव हिला दी। इस आंदोलन में बुद्धिजीवियों या राजनीतिक दलों की कोई भूमिका नहीं थी बल्कि कम्यूनिस्टों ने बुद्धिजीवियों को अपनी ओर खींच लिया था। फ़ूको कहते हैं कि ईरान में जिस चीज़ ने मुझे आश्चर्य में डाला वह यह कि संघर्ष विभिन्न  तत्वों में नज़र नहीं आता। इन सब को जो चीज़ सुन्दर और इसी के साथ महत्वपूर्ण बनाती है वह यह है कि केवल एक ही मोर्चा है जो पूरी जनता और उस शक्ति के मध्य है जो अपने हथियारों और सुरक्षा बलों से जनता को धमकाती थी। बहुत दूर जाने की ज़रूरत नहीं है  इस वास्तविकता को बहुत आसानी से समझा व देखा जा  सकता है । एक तरफ जनता का संकल्प और दूसरी तरफ मशीन गनें। फ़ूको की नजर में इस्लामी क्रांति, अन्य क्रांतियों से इसी लिए अलग भी है क्योंकि एक तरफ, एसी सरकार है जो पूरी तरह से आधुनिक हथियारों से लैस है और दूसरी तरफ, कमज़ोर और निहत्थी जनता लेकिन भीतरी शक्ति से समुद्ध होती है। यही वजह है कि फ़ूको ने " खाली हाथों से विद्रोह" के शीर्षक के अंतर्गत अपने एक आलेख में इसी तथ्य पर चर्चा की है। 
 

 

फ़ूको सांस्कृतिक दृष्टि से भी ईरान की क्रांति का विश्लेषक करते हैं । उनका मानना है कि धार्मिक आस्था के अलावा कोई भी चीज़, जनता को इस तरह से एकमंच पर नहीं ला सकती थी। फ़ूको का कहना है कि ईरानी जनता, शिया व मुसलमान होने की वजह से एक एसी शक्ति की स्वामी है जो सिर से पैर तक हथियारों से लैस पहलवी सरकार को घुटने टेकने पर विवश कर देती है। फ़ूको कहते हैं कि ईरानियों की पहचान धर्म में गुंथी है लेकिन धर्म उनके निकट, शुष्क, आत्माहीन व बासी नहीं है । फ़ूको का कहना है कि शिया होना इस बात का कारण बना कि ईरानी जनता, आधुनिकता के खिलाफ उठ खड़ी हो जाए क्योंकि शिया संस्कृति में एसी विशेषताएं हैं जिनसे पश्चिमी संस्कृति वंचित है। उनकी नज़र में शिया आंदोलनों में दो स्पष्ट विशेषताएं नज़र आती हैं। एक यह कि शिया अपने समय के इमाम पर विश्वास रखते हैं और शिया मुसलमानों के जीवन में इमाम ज़माना, अर्थात अपने काल के इमाम की भूमिका होती है इस लिए वह वांछित स्थिति तक पहुंच को अंसभव नहीं मानते बल्कि एेसी स्थिति तक पहुंच को निश्चित समझते हैं और उस पर  विश्वास रखते हैं । दूसरी विशेषता शिया धर्मगुरुओं की उपस्थिति और धर्म की सुरक्षा में उनकी भूमिका है विशेषकर मुख्य वरिष्ठ धर्मगुरु। फोको के अनुसार शिया धर्म ने आस्था के आधार पर ईरानी जनता को एकजुट किया और उन्हें सड़कों पर ले आया इसी लिए ईरान की क्रांति की भाषा और विषयवस्तु, संयोग नहीं थी। 
 
मीशल फ़ूको उन विचारों में शामिल हैं जो ईरान की इस्लामी क्रांति में नेतृत्व की भूमिका को अत्याधिक महत्वपूर्ण समझते हैं। फ़ूको ईरान की क्रांति में मार्गदर्शन और नेतृत्व पर विशेष रूप से ध्यान देते हैं। उन्होंने ईरान की क्रांति के किदवंती नेता के शीर्षक के अंतर्गत अपने लेख में इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक इमाम खुमैनी की भूमिका का वर्णन करते हैं। फ़ूको , इमाम खुमैनी को पेरिस में रहने वाले संत के नाम से याद करते और लिखते हैं कि आयतुल्लाह खुमैनी का व्यक्तित्व देव कथाओं जैसा लगता है क्योंकि कोई भी राजनीतिक, संचार माध्यमों के संपूर्ण सहयोग के बावजूद यह दावा नहीं करता कि उसका अपनी जनता के साथ इस प्रकार से भावनात्मक लगाव है। फ़ूको कहते हैं कि बोइंग विमान के एक पायलट के मुंह से यह सुनना आश्चर्य जनक था। वह अपने सहयोगियों की ओर से कह रहा था कि फ्रांस में सदियों से लेकर आज तक ईरान की जो सब से कीमती पूंजी थी वह अब तुम्हारे पास है उसकी रक्षा करना। फ़ूको इसी तरह से आबादान में हड़ताल करने वालों की बात याद करते हुए लिखते हैं कि वह कहते थे कि हम धार्मिक नहीं हैं, किसी में आस्था नहीं रखते, किसी किसी दल में न किसी विशेष व्यक्ति में, किसी को भी नहीं मानते , सिर्फ और सिर्फ खुमैनी को मानते हैं। 

 

 इस्लामी क्रांति के बारे में फ़ूको की विचार धारा का एक महत्वपूर्ण पहलु, राजनीतिक आध्यात्मिकता है। फ़ूको कहते हैं कि ईरान में अपने आवास के दौरान उन्होंने एक बार भी क्रांति का शब्द किसी के मुंह से नहीं सुना लेकिन बहुत से लोगों ने इस्लामी शासन का नाम लिया। फ़ूको के अनुसार जनता की इच्छा इस्लामी शासन है लेकिन इस्लामी शासन का अर्थ, धार्मिक लोगों की सरकार तक ही सीमित नहीं थी बलेकि इस से वह आकांक्षा रेखांकित की गयी है जो हर वर्ग व हर गुट को एक मंच पर एकत्रित कर देती है। जो आंदोलन ईरानी चला रहे हैं वह जनता के जीवन में आध्यात्मिक राजनीति के रंग भरने का प्रयास कर रहा है मैं यह नहीं चाहता कि इ्सलामी सरकार को विचारधारा या महत्वकांक्षा का नाम दूं लेकिन राजनीतिक इच्छा के रूप में इस चीज़ ने मुझे प्रभावित किया है क्योंकि यह वास्तव में राजनीति में आध्यात्मिकता का आयाम पैदा करने की कोशिश है। फोको का मानना है कि ईरानियों ने अपनी क्रांति से राजनीतिक में आध्यात्मिकता की वापसी की इच्छा प्रकट की है और ईरानी उस चीज की खोज में हैं जिसे हम, पश्चिम वासी पुनर्जागरण और ईसाई धर्म की महात्रासदी के बाद गंवा चुके हैं। 

 
फ्रासं के इस प्रसिद्ध विचारक के अनुसार ईरान की क्रांति की एक अत्याधिक अदभुत विशेषता राजनीतिक आध्यात्मकिता है जो बौद्धिक राजनीतिक की नयी परिभाषा है। वह कहते हैं कि फ्रांस की क्रांति से  अब पहली बार , क्रांति और आध्यात्मिकता का संगम नज़र आया है। फ़ूको का मानना है कि ईरान की क्रांति की राजनीति में आध्यात्मिकता को बहुत महत्व प्राप्त है। फ्रासं के विचारक मीशल फ़ूको कहते हैं कि ईरानियों ने अपनी क्रांति के दौरान स्वंय अपने भीतर भी क्रांति लाने का प्रयास किया । टेडा स्काचीवल की ही भांति फोको का भी यह मानना है कि ईरान की क्रांति एक चेतनपूर्ण क्रांति थी।

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