सृष्टि के रहस्य- 13
धर्मगुरूओं और महापुरुषों की बातों से यह पता चलता है कि हमारे इर्दगिर्द की चीज़ें, काफ़ी हद तक सृष्टि के रचियता की ओर संकेत करती हैं।
इससे यह पता चलता है कि हमारे जीवन में जो घटनाएं घटती हैं वे एक प्रकार से प्रकृति की ओर हमारा मार्गदर्शन करती हैं। हमारे लिए केवल इतना ज़रूरी है कि हम अपने मन-मस्तिष्क और आंखों का उचित प्रयोग करते हुए उनमें ग़ौर करें तथा उनकी मौन भाषा को समझने का प्रयास करें।
बहुत से तत्वदर्शियों तथा महापुरूषों का कहना है कि जब मनुष्य किसी बाग़ में होता है तो वह ईश्वर के अधिक निकट होता है। मनुष्य का स्वभाव ऐसा है कि वह सामान्यतः प्रकृति पर एक उचटती हुई दृष्टि डालते हुए आगे बढ़ जाता है। वह पेड़-पौधों के निकट से गुज़रते समय उनके बारे में न सोचकर अधिकतर अपने दैनिक जीवन की समस्याओं या सांसारिक बातों में उलझा रहता है। इस प्रकार उसके हाथ से उसके पास प्रकृति से निकट होने का अवसर निकल जाता है। यहां पर हम यह प्रयास करेंगे कि प्रकृति में डूबकर पेड़-पौधों के बारे में कुछ सोचें।
क्या आप यह बता सकते हैं कि पेड़ और पौधों की पैदाइश में किस प्रकार के बिंदु छिपे हुए हैं जिन्हें हम ढूंढ सकते हैं। भोजन वह चीज़ है जिसकी आवश्यकता प्रत्येक जीवित प्राणी को होती है। पेड़ और पौधों को भी पशु-पक्षियों की ही भांति भोजन की आवश्यकता होती है। इनमें केवल इतना अंतर है कि पशुओं या मनुष्यों की भांति पेड-पौधों का मुंह नहीं होता जिससे वे अपना भोजन खा बल्कि वे अपनी जड़ों से भोजन प्राप्त करते हैं। पेड़ों की जड़ें धरती के भीतर बहुत ही गहराई में होती हैं जिनसे वे अपना भोजन प्राप्त करते हैं। इससे पता चलता है कि पेड़ और पौधे धरती से अपना भोजन हासिल करते हैं। यह ठीक वैसा ही है जैसे एक नवजात शिशु अपना भोजन अपनी माता से प्राप्त करता है।
यहां पर उल्लेखनीय बिंदु यह है कि पेड़ की जड़ें धरती में हर ओर फैली रहती हैं ताकि वे पेड़ को उचित ढंग से तृप्त कर सकें। आप सोचिए कि अगर पेड़ की जड़ें न होतीं तो एक पेड़ किस प्रकार से फलता-फूलता और हमारे लिए लाभदायक बनता। यह जड़ ही होती है जो एक छोटे से पौधे को शक्तिशाली वृक्ष में परिवर्तित कर देती है। अध्ययनों से पता चलता है कि मनुष्य ने ख़ेमों या तंबुओं को लगाने के लिए पेड़ों से आदर्श लिया है।
अब हम वृक्षों की समीक्षा एक अन्य दृष्टिकोण से करते हैं। हम उसके पत्तों की ओर देखते हैं। जब हम कोई पत्ता देखते हैं तो वह ऐसा दखाई देता है जैसे उसमें पतली-पतली सी रगें हों। पत्तों में कुछ छोटे होते हैं तो कुछ बड़े होते हैं किंतु उनके भीतर जो संयुक्त बात पाई जाती है वह बारीक नसें या रहेंगे। यह बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती है कि यदि मनुष्य स्वयं यह काम करता तो इसमें बहुत समय लगता और पूरी मेहनत के बाद भी वैसा नहीं कर पाता जैसाकि ईश्वर ने किया है। हम देखते हैं कि वसंत ऋतु में बहुत ही कम समय में कोपल से पौधे बनकर तैयार हो जाते हैं। इस ऋतु में चारों और हरेभरे पेड़ों को सरलता से देखा जा सकता है। इससे पता चलता है कि इस काम में किसी ऐसे की भूमिका है जो अन्तरयामी और महाज्ञानी है।
पत्तों पर जो रगें दिखाई देती हैं उनका लक्ष्य केवल पत्तों को ख़ूबसूरत बनाना ही नहीं बल्कि कुछ और भी है। यही छोटी-छोटी सी रगें पत्तों को उनका भोजन पहुंचाती हैं। यह ठीक उसी प्रकार से है जैसे मनुष्य के शरीर में फैली रगें उसके लिए कई प्रकार के काम करती हैं। पत्ते में दिखाई देने वाली रगें उसे भोजन पहुंचाने के साथ ही उसे मज़बूत भी बनाती हैं। यह संभव है कि मनुष्य कभी भी सृष्टि में फैले ईश्वर के रहस्य को समझ ही न पाए किंतु स्वयं उसकी सृष्टि में कुछ ऐसे रहस्य पाए जाते हैं जिससे पता चलता है कि उसको बनाने वाला वास्तव में ज्ञानी और सक्षम है।
अगर आप सोचें तो पाएंगे कि यह वास्तव में बहुत ही आश्चर्य की बात है कि एक छोटा सा दाना धरती के भीतर जाने के बाद एसे विशाल वृक्ष के रूप में सामने आता है कि जो सैकड़ों की संख्या में हमे फल देता है। जब हम उसके फलों को देखते हैं तो सामान्यतः उसके बीजों को भूल जाते हैं और पेड़ की उन जड़ों को भी नहीं देख पाते जो धरती के भीतर मौजूद हैं। रोचक बात यह है कि पेड़ की सारी की सारी जड़ें एक ही पानी से पूरे वृक्ष को तृप्त करती हैं। इसी प्रकार बाग़ में लगे पेड़ और पौधे एक ही सूरज की गर्मी से लाभान्वित होते हैं किंतु उनसे अलग-अलग प्रकार के फल निकलते हैं। अनार, अंगूर, आम या सेब के बीजों को किसने यह बताया है कि वे एक ही प्रकार के धूप, पानी और धरती का प्रयोग करने के बावजूद अलग-अलग प्रकार के फलों को जन्म दें।
क्या आपने ख़रबूज़ें और तरबूज़ के बारे में सोचा है। क्या यह बात आपको सोचने पर मजबूर नहीं करती कि कमज़ोर बेल के माध्यम से किस प्रकार के ख़रबूज़ और तरबूज़ जैसे भारी फल पैदा होते हैं। इस बारे में वास्तव में मनुष्य को सोचना चाहिए क्योंकि कमज़ोर बेलों पर ख़रबूज़, तरबूज़, लौकी और इसी प्रकार की कई सब्जियां और फल निकलते हैं इसलिए ईश्वर ने उन्हें धरती के ऊपर निकाला है पेड़ों में लटकाया नहीं है। इसका मूल कारण यह है कि अगर इन फ़लों और सब्जियों की बेलें पेड़ों की भांति सीधी होतीं तो वे इनको सहन नहीं कर पातीं और टूटकर गिर जातीं।
फलों के संबन्ध में एक और विशेष बात यह है कि जिस मौसम के यह फल होते हैं उसी मौसम के लिए उचित भी रहते हैं। उदाहरण स्वरूप ख़रबूज़ और तरबूज़ जैसे रसीले फल, गर्मियों के मौसम में पैदा होते हैं। यह वह मौसम है जब मनुष्य को स्वभाविक रूप में तरल पदार्थ की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि मनुष्य इनको बड़े शौक़ से खाता है। इससे पता चलता है कि इन फलों को पैदा करने वाला बहुत ही दूरदर्शी और ज्ञानी है।
धरती पर फैली हुई वनस्पतियों के बारे में कहा जाता है कि वे धरती पर फैली सबसे विस्तृत जीवित प्राणी हैं। यह भांति-भांति की वनस्पतियां, अनेक प्रकार के लाभों की स्वामी हैं। इनको अलग-अलग ढंग से प्रयोग किया जाता है। इन वनस्पतियों को अत्यधिक लाभदायक वस्तुओं के रूप में देखा जाता है। पेड़ों से हमें केवल फल ही प्राप्त नहीं होते जिन्हें हम खाते हैं बल्कि पेड़ हमारे लिए हवा को भी साफ करते हैं। यह हमारे लिए शेलटर का काम करते हैं और इनकी लकड़ियों से हम अनेक प्रकार के काम करते हैं। इसके अतिरिक्त भी पेड़ों के कई लाभ हैं।
यदि कुछ पेड़ हमको फल नहीं देते तो इसका मतलब यह नहीं है कि वे बेकार हैं बल्कि यह पेड़ मनुष्यों के लिए बहुत से अन्य काम करते हैं जिनमें से एक मनुष्य को साफ हवा उपबल्ध कराना है। स्वच्छ हवा से मनुष्य को प्रभुल्लता मिलती है जिसके कारण वह स्वस्थ्य जीवन व्यतीत करता है। वनस्पतियों से कई प्रकार की दवाएं पाई जाती हैं। इनसे लोशन और क्रीमें भी बनाई जाती हैं।
इन सभी बातों के बावजूद क्या कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो यह कहे कि पूरी सृष्टि किसी बनाने वाले के बिना ही अस्तित्व में आ गई है? क्या ऐसा संभव है? जब ऐसा संभव नहीं है तो फिर उस सर्वशक्तिमान की प्रशंसा और सराहना की जानी चाहिए जिसने मनुष्य की आवश्यकता की सारी वस्तुएं उसके जन्म से पहले ही उपलब्ध करा दी हैं।