सृष्टि के रहस्य - 14
आपको अवश्य याद होगा कि हमने इस कार्यक्रम की पहली कड़ी में कहा था कि इंसानों के जीवन में कुछ बुनियादी और संयुक्त सवाल हैं जिनमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि सृष्टि का रचयिता कौन है?
इसी तरह आपको अवश्य याद होगा कि हमने इस बारे में चर्चा की थी कि इस्लाम धर्म में चिंतन – मनन करने पर बहुत बल दिया गया है और उसके पश्चात हमने यह भी कहा था कि इंसान को ब्रह्मांड और उसमें मौजूद वस्तुओं के बारे में सोचना चाहिये।
पवित्र कुरआन की आयतों में बारमबार ज़मीन, आसमान, पहाड़, समुद्र और दूसरी वस्तुओं की रचना की ओर संकेत किया गया है। महान ईश्वर ने इंसानों से उनकी रचना के बारे में चिंतन- मनन करने के लिए कहा है।
सबसे पहले हमने इंसान की रचना और मां के पेट में भ्रूण के पलने- बढ़ने की चर्चा की थी और उस चर्चा के अंत में यह सवाल किया था कि क्या इंसान की रचना में बहुत ही सूक्ष्मता से काम नहीं लिया गया है? सच में किसने भ्रूण के परिपूर्ण होने का सारा प्रबंध किया है और वह भी सारी ज़रूरत एवं आश्यकता के अनुसार? क्या पूरे इतिहास में इस प्रक्रिया का जारी रहना एक स्थाई चीज़ के होने का सूचक नहीं है?
इसी प्रकार इस कार्यक्रम की दूसरी कड़ी में हमने इंसान के शरीर के अंगों की बात की थी और वहां हमने यह बयान किया था कि आंख को रंगों, चेहरे और दूसरी चीज़ों को देखने के लिए बनाया गया है। अगर रंग और चेहरे इत्यादि होते परंतु उन्हें देखने के लिए आंख न होती तो उनका क्या फायदा होता? इसी प्रकार कान की रचना की गयी ताकि आवाज़ों को सुना जाये। अगर आवाज़ें होतीं पर कान न होता तो कष्ट पहुंचता और दिल तड़पता। इसी तरह इंसान के शरीर के दूसरे अंग हैं। जब हम शरीर के अंगों की चर्चा कर रहे थे तो इस नतीजे पर पहुंचे थे कि इंसान के शरीर के अंगों में और हमारे आस- पास जो चीज़ें हैं उनमें पूर्ण व सूक्ष्म ताल-मेल इस बात का सूचक है कि कोई चीज़ है जिसने सबको अस्तित्व प्रदान किया है।
इस कार्यक्रम की तीसरी कड़ी में हमने यह बयान किया था कि इंसान के शरीर के अंग किस प्रकार पूरे समन्वय के साथ काम करते हैं और इंसान बोलता, सुनता और समझता है। इस आधार पर इंसान के पास कोई रास्ता नहीं है किन्तु यह कि वह यह स्वीकार कर ले कि ये सब बिन सर्वशक्तिमान रचयिता के संभव ही नहीं है जिसने इंसान और उसके शरीर के अंगों की बेहतरीन रूप में रचना की है और महान व कृपालु ईश्वर ने छोटी सी छोटी चीज़ को भी दृष्टि में रखा है और उसने कान के भीतरी भाग को इस तरह घुमावदार बना रखा है कि आवाज़ टूट जाये और आवाज़ की तीव्रता कान के परदों को कोई नुकसान न पहुंचा सके। इसी प्रकार महान व सर्वज्ञानी ईश्वर ने इंसान की दोनों हथेलियों को बाल के बिना पैदा किया है ताकि उनके माध्यम से इंसान सर्दी, गर्मी, नर्मी आदि का आभास कर सके। अगर इंसान की हथेलियों पर बाल होते तो उसे बहुत सी समस्याओं का सामना होता। जैसे जब वह कोई चीज़ खाना चाहता तो न जाने उसकी हथेली के बालों में कितने वाइरेस होते और वह उसके शरीर में प्रवेश कर जाते और वह बीमार हो जाता।
इस कार्यक्रम की चौथी कड़ी में हमने खाने, पीने, सोने और विवाह आदि के बारे में बात की थी और उसके बाद यह सवाल किया था कि कौन सी चीज़ें हैं जो इंसानों को इन कार्यों के लिए प्रेरित व बाध्य करती हैं? भूख कारण बनती है कि इंसान भोजन की खोज में जाये और खाना खाकर और पानी पीकर वह स्वयं को तृप्त करे। इसी प्रकार भोजन करना और पानी पीना उसके अंदर शक्ति और उसके बढ़ने का कारण बनता है। इसी प्रकार थकावट इंसान के सोने और आराम करने का कारण बनती है और इंसान में फिर से ऊर्जा व स्फूर्ति आ जाती है। इसी प्रकार महान ईश्वर ने उसके शरीर में कामेच्छा की जो भावना पैदा की है वह भावना महिला और पुरुष के मध्य शारीरिक संबंध बनाने का कारण बनती है और उसका यह कार्य उसकी पीढ़ी के जारी व बाकी रहने का कारण बनता है। यही चीज़ दूसरे प्राणियों में भी देखी जा सकती है। वहां पर यह तर्क दिया गया कि महान ईश्वर ने इंसानों की पीढ़ी को जारी व बाकी रखने के लिए कामेच्छा की भावना को प्राकृतिक रूप दिया और उनमें इस काम के प्रति इच्छा व रुचि पैदा की। उदाहरण के तौर पर अगर इंसान भूख का आभास न करता और खाना खाने में आनंद का आभास न करता तो वह खाने की खोज में कभी न जाता और धीरे- धीरे उसके शरीर में मौजूद ऊर्जा खत्म हो जाती और उसका अंत हो जाता।
इस कार्यक्रम की पांचवीं कड़ी में हमने इंसानों और जानवरों में अंतर की समीक्षा की थी। उस कार्यक्रम में हमने यह बयान किया कि था भेड़, बकरी, गाय और घोड़े जैसे मवेशियों को महान ईश्वर ने इंसानों की सेवा के लिए पैदा किया और महान ईश्वर ने उन्हें इंसानों जैसी बुद्धि नहीं दी ताकि इंसान उन्हें अपनी सेवा में ले सकें।
इस कार्यक्रम की छठी कड़ी में हमने कीड़े- मकोड़ों की चर्चा की और उनमें से कुछ की ओर संकेत भी किया। उसके बाद हमने यह बताया था कि इंसान अगर अच्छी तरह से सोचे और चींटी जैसे प्राणी के जीवन पर ध्यान दे तो उसके लिए यह स्पष्ट हो जायेगा कि इस चींटी का रचयिता भी वही है जिसने जानवरों और वनस्पतियों की रचना की है। क्योंकि अगर हम ध्यान से देखें तो पायेंगे कि समस्त चीज़ों के अंगों के मध्य बहुत ही सूक्ष्म ताल मेल व समन्वय मौजूद है और यह गूढ़ ताल मेल इस बात का सूचक है कि इस प्रकार का तालमेल स्वतः नहीं हो सकता।
इस कार्यक्रम की सातवीं कड़ी में हमने कहा था कि इंसानों और दूसरे जानवरों में मूल अंतर बुद्धि और सोचने- समझने की शक्ति है। महान ईश्वर ने इंसानों को चिंतन- मनन की शक्ति दी है जबकि जानवरों को यह शक्ति नहीं दी है। उस कार्यक्रम में हमने यह भी कहा था कि बहुत से जानवरों की शारीरिक शक्ति इंसानों की शारीरिक शक्ति से बहुत अधिक होती है, बहुत से जानवर इंसानों की अपेक्षा बहुत तेज़ दौड़ और देख सकते हैं। इसी प्रकार हमने कहा था कि बहुत से जानवरों में सूंघने की शक्ति इंसानों की अपेक्षा बहुत अधिक होती है। इसी प्रकार हमने यह भी कहा था कि इंसान ने बहुत अधिक प्रगति कर ली है उसके बावजूद वह बहुत से जानवरों की अपेक्षा बहुत कम उम्र करता है। उस कार्यक्रम में हमने इस बात की ओर संकेत किया था कि जानवरों की जीवन शैली से इंसानों को क्या पाठ मिलता है और जानवरों की जीवन शैली इस बात की सूचक है कि किसी के निर्देशन के बिना यह जीवन शैली संभव ही नहीं है और उनकी जीवन शैली से इंसानों का लाभ उठाना इंसानों में महान ईश्वर द्वारा प्रदान की गयी बुद्धि से काम लेने का सूचक है।
इस कार्यक्रम की आठवीं कड़ी में हमने थोड़ी चर्चा पक्षियों की रचना के बारे में की थी और उसके बाद हमने यह सवाल किया था कि पक्षियों को किसने इस प्रकार से बनाया कि वे दानों को चुन सकें और अपनी चोंच में जमा करके उसे अपने बच्चों को खिलायें? पक्षी क्यों इस प्रकार का कष्ट सहन करते हैं? जबकि उनके पास चिंतन -मनन की शक्ति नहीं है और पक्षियों को अपने बच्चों से वह अपेक्षा नहीं है जो इंसानों को अपने बच्चों से होती है। जैसे इंसानो को अपेक्षा होती है कि उनके बच्चे बड़े होकर उनके गौरव और प्रतिष्ठा का कारण बनेंगे और बुढ़ापे में उनका सहारा बनेंगे। पक्षियों में अपने बच्चों से इस प्रकार की कोई अपेक्षा नहीं होती है। हां यह महान व कृपालु ईश्वर की असीम कृपादृष्टि है जिसने पक्षियों को इस प्रकार से पैदा किया है और वे अपने बच्चों को चाहते हैं और उन्हें भोजन देते हैं ताकि वे बड़े हो सकें।
इस कार्यक्रम की नवीं कड़ी में हमने मधुमक्खी और टिट्डी जैसे प्राणियों के जीवन पर लघु दृष्टि डाली थी। उस कार्यक्रम में हमने कहा था कि अगर इंसान अच्छी तरह चिंतन- मनन करे तो देखेगा कि इन प्राणियों के शरीर के विभिन्न अंगों के मध्य बहुत गूढ़ व जटिल समन्वय है और उनके अंदर पाया जाने वाला समन्य बतायेगा कि इस प्रकार का समन्वय अपने आप अस्तित्व में आ ही नहीं सकता।
इस कार्यक्रम की दसवीं कड़ी में हमने सूरज, चांद, आसमान और सूर्योदय और सूर्यास्त के बारे में चर्चा की थी और उसके बाद यह सवाल किया था कि क्या यह संभव है कि हज़ारों साल से सूरज, चांद और ज़मीन अपनी नियत कक्षा में घूम रहे हैं? अगर हम लोगों से यह कहें कि पार्को में पानी के जो फव्वारें हैं वे अपने आप अस्तित्व में आ गये हैं उन्हें किसी ने बनाया और लगाया नहीं है? तो हमारी इस बात पर लोग क्या कहेंगे? जब पानी का छोटा सा फव्वारा अपने आप अस्तित्व में नहीं आ सकता तो इतना बड़ा ब्रह्मांड वह भी इतने गूढ़ व सूक्ष्म समन्वय के बिना कैसे अस्तित्व में आ सकता है?
इस कार्यक्रम की 11वीं कड़ी में हमने ज़मीन के स्वरूप के बारे में चर्चा की थी और कहा था कि ज़मीन का स्वरूप बड़ा ही रोचक है। ज़मीन इस प्रकार शांत है मानो वह अपने स्थान पर स्थिर है और उसमें किसी प्रकार की गति नहीं है जबकि वह 16 हज़ार किलोमीटर से अधिक प्रतिघंटा की गति से चल रही है और लोग किसी प्रकार की गति के आभास के बिना उस पर रह रहे हैं, ऊंची- ऊंची इमारतों का निर्माण हो रहा है, हम आराम से सो रहे हैं और जीवन के समस्त कार्यों को अंजाम दे रहे हैं परंतु ज़मीन की गतिशीलता से हमें कोई नुकसान नहीं पहुंच रहा है जबकि वह अंडाकार है और वह वायुमंडल में लटकी हुई है। ज़मीन की रचना और उसकी विशेषताएं इस को बयान कर रही हैं कि इतना अच्छा, सुन्दर और गूढ़ समन्वय किसी महान शक्ति के बिना अस्तित्व में ही नहीं आ सकता और महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने ज़मीन में गुरूत्वाकर्षण की शक्ति पैदा की है ताकि हम ज़मीन में हर जगह आराम से खड़े हो सकें और वायुमंडल में लटक न जायें।
इस कार्यक्रम की 12वीं कड़ी में हमने पानी, बर्फ, पहाड़ और ज़मीन की खदानों के बारे में चर्चा की थी और इन सबके कुछ लाभों से आपको अवगत कराया था। हमने कहा था कि हर स्थान पर फैली नेअमतों को महान ईश्वर की कृपा व अनुकंपा समझना चाहिये और असंख्य नेअमतों के कारण हमें कृपालु व दयालु ईश्वर को याद करना चाहिये और इन नेअमतों से सही ढंग से लाभ उठाकर हमें अपने रचयिता का शुक्र अदा करना चाहिये।
इस कार्यक्रम की 13वीं कड़ी में हमने वृक्षों, वनस्पतियों और उनकी सृष्टि में मौजूद रहस्यों की चर्चा की थी और हम इस नतीजे पर पहुंचे थे कि हमें उस ईश्वर का शुक्र अदा करना चाहिये जिसने अपनी असीम कृपा से इन नेअमतों को हमारे लिए पैदा किया और उन्हें हमारे अधिकार में दिया।
अब हम इस कार्यक्रम की अंतिम और चौदहवीं कड़ी एक बार फिर आप सब प्रिय श्रोताओं से सृष्टि में चिंतन- मनन करने और उसके रहस्यों के समझने का आह्वान करते हैं। ब्रह्मांड और उसमें मौजूद वस्तुओं के बारे में चिंतन- मनन हमारे लिए न केवल महान रचयिता की निशानियों को स्पष्ट कर देगा बल्कि महान व असीम कृपालु ईश्वर की याद को हमारे दिलों में ज़िन्दा रखेगा। वह महान ईश्वर जिसने अपनी अपार क्षमता व शक्ति के साथ इन चीज़ों को पैदा किया है वास्तव में वह श्रेष्ठतम ढंग से शुक्र अदा किये जाने का पात्र है।