इस्लामी क्रांति और समाज- 12
जॉर्ज टाउन वाशिंग्टन विश्व विद्यालय के एक प्रोफेसर जॉन लुईस एस्पोसिटो हैं।
उन्होंने ईरान की इस्लामी क्रांति के बारे में विभिन्न लेख और किताबें लिखी हैं। अमेरिकी विचारक जान लुईस एस्पोसिटा ने ईरान की इस्लामी क्रांति के बारे में जो किताबें लिखी हैं उनमें से एक द ईरानियन रिव्यूलेशन इट्स ग्लोबल इम्पैक्ट है। जान लुईस एस्पोसिटो ईरान की इस्लामी क्रांति के धार्मिक होने और इसी प्रकार ईरानी समाज के निर्माण में उसके प्रभाव और मध्यपूर्व में उसके राजनीतिक प्रभाव पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। जान लुईस एस्पोसिटा का मानना व कहना है कि ईरान में इस्लामी क्रांति की घटना ने सबको हतप्रभ कर दिया। राजनेताओं और अध्ययनकर्ताओं ने इस क्रांति की जटिल परिस्थिति को समझने का प्रयास किया किन्तु इस प्रकार के प्रयास का परिणाम यह रहा है कि अधिकांश अध्ययनकर्ताओं और राजनेताओं ने इस जटिल वास्तविकता को सामान्य दिखाने की कोशिश की है।
अमेरिकी विचारक जान लुईस एस्पोसिटा साफ- साफ इस विषय की ओर संकेत करते हैं कि ईरान में इस्लामी क्रांति और शाह की सरकार से मुकाबला शिया शिक्षा एवं आकांक्षा का परिणाम है। वह इस संबंध में लिखते हैं" ईरान में इस्लामी क्रांति की विचारधारा स्पष्ट रूप से ईरानी और शीया थी। हज़रत अली के सच्चे उत्तराधिकारी और उनके बेटे इमाम हुसैन को ख़िलाफत ग़स्ब करने वाले यज़ीद द्वारा कर्बला में 680 ईसवी में शहीद ईरान की इस्लामी क्रांति का एक महत्वपूर्ण कारण समझी जाती है और इस ऐतिहासिक घटना ने सामाजिक अन्याय के खिलाफ उठ खड़े होने की भूमि प्रशस्त की।
अमेरिकी विचारक व बुद्धिजीवी जान लुईस एस्पोसिटा ईरान की इस्लामी क्रांति के बारे में कहते हैं” ईरान ने पहली सफल राजनीतिक क्रांति दुनिया के सामने पेश की। यह वह क्रांति थी जो इस्लाम के नाम पर आई, अल्लाहो अकबर के नारे के साथ थी, शीया विचारधारा व आइडियालोजी और इसी प्रकार धार्मिक एवं ग़ैर धार्मिक नेतृत्व उसका आधार था। यह अमेरिकी विचारक कहता है कि ईरान की क्रांति पहली क्रांति थी जिसका मार्ग दर्शन धर्म ने किया। वह इस संबंध में लिखते हैं” आस्थायें, नेतृत्व और शीया शिक्षाओं ने ईरान की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और आरंभ से वह शीया इस्लाम और राजनीति के साथ थी। इस प्रकार से कि कहा जा सकता है कि इस क्रांति की आइडियालोजी इतिहास और शीया आस्थाएं रही हैं। शीया इस्लाम ने सिद्ध कर दिया कि जनता को तैयार करने का वह प्रभावी कारक है और संयुक्त मूल्यों को आधार बनाकर आंदोलन के केन्द्रों के दिशा निर्देशन का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। इसी तरह शीया इस्लाम ने एक विचारधारा व आइडियालोजी पेश की और उसके माध्यम से अत्याचारी के मुकाबले में अत्याचार से पीड़ित और वंचित लोगों के आंदोलन को वैधता प्रदान की। इस प्रकार से कि विभिन्न गुट उससे जुड़ कर सक्रिय हो गये। आयतुल्लाह इमाम खुमैनी, मुतह्हरी, तालेकानी और बहिश्ती ने शरीअती और बाज़रगान जैसे गैर धर्मगुरूओं के मुकाबले में क्रांतिकारी और सुधारवादी विचारधारा का प्रचार- प्रसार किया।
ईरान के पहलवी शासन काल में क्रांतिकारी भावनाओं के प्रचार- प्रसार और उनके गठित होने में धर्मगुरूओं विशेषकर स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने विशेष भूमिका निभाई थी। वह इस संबंध में लिखते हैं" राजशाही सरकार ने धार्मिक नेतृत्व का विरोध किया, धर्मगुरूओं को प्रताड़ित किया, उनके सामने बाधायें खड़ी की, जेल में डाला, देश निकाला दिया और यहां तक कि मृत्युदंड भी दिया परंतु सरकार धर्मगुरूओं की दिऩ- प्रतिदिन बढ़ती शक्ति को समित न कर सकी। जिस तरह वह ग़ैर धार्मिक विरोधियों को चुप कराने में सफल थी उसके मुकाबले में वह धार्मिक विरोधियों को चुप कराने में कम सफल रही। अमेरिकी विचारक व बुद्धिजीवी जान लुईस एस्पोसिटा का मानना है कि शीया वह शक्ति थी जिसे ईरान में दबा दिया गया था और धर्मगुरूओं एवं विद्वानों ने शाह की अत्याचारी सरकार के मुकाबले में इस शक्ति को जागरुक बना दिया।
अमेरिकी विचारक व बुद्धिजीवी जान लुईस एस्पोसिटो का कहना है कि लोगों को जागरूक बनाने के लिए धर्मगुरूओं ने मस्जिदों का प्रयोग महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में किया। इसी प्रकार अमेरिकी विचारक जान लुईस एस्पोसिटा का मानना है कि ईरानी आंदोलन में धर्मगुरूओं ने केन्द्रीय भूमिका निभाई है और मस्जिदें उनकी गतिविधियों का केन्द्र रही हैं। वह इस सबंध में लिखते हैं कि मस्जिद में धर्मगुरूओं की सक्रियता से संपर्क का एसा नैटवर्क अस्तित्व में आ गया था जो लोगों की जागरुकता का मार्ग प्रशस्त करता था।
ईरान की इस्लामी क्रांति का एक विषय मध्यपूर्व में राजनीतिक एवं ग़ैर राजनीतिक उसके प्रभाव हैं और यह वह विषय है जिसकी अमेरिकी विचारक ने समीक्षा की है। दूसरे शब्दों में अमेरिकी विचारक ईरान की इस्लामी क्रांति के प्रभावों पर विशेष दृष्टि रखते हैं। वह लिखते हैं कि दोस्त और दुश्मन दोनों का मानना है कि ईरान की इस्लामी क्रांति का इस्लामी और पश्चिमी जगत में ध्यान योग्य प्रभाव है। यह क्रांति कुछ लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत रही है।
अमेरिकी विचारक व बुद्धिजीवी जन लुईस एस्पोसिटो का मानना है कि क्षेत्र को जागरूक बनाने में ईरान की इस्लामी क्रांति की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। साथ ही उनका मानना है कि ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता का एक परिणाम मुसलमानों की शक्ति और गर्व की वापसी है। इसी प्रकार वह बल देकर कहते हैं कि ईरान की इस्लामी क्रांति का एक परिणाम इस्लामी जगत में विचार व आइडियालोजी के स्तर पर लोगों में जागरूकता है। यानी इस क्रांति से मिस्र में हसनुल बन्ना, सैयद क़ुतुब और पाकिस्तान में अबुल आला मौदूदी और भारत में अबुल हसन नदवी जैसे कुछ सुन्नी विद्वानों व विचारकों की आइडियालोजी पर गहरा प्रभाव पड़ा। इस क्रांति के परिणाम में बड़े पैमाने पर इमाम ख़ुमैनी और अली शरीअती के विचारों एवं किताबों का अनुवाद करके इस्लामी और ग़ैर इस्लामी दुनिया में वितरित किया गया। निःसंदेह हमने कोई गलत नहीं किया है अगर यह कहें कि ईरान की इस्लामी क्रांति के बाद पूरी दुनिया में मुसलमान पीढ़ी ने यह स्वीकार कर लिया कि राजनीतिक और सामाजिक सुधार के लिए इस्लाम के पास कार्यक्रम हैं।
अमेरिकी विचारक व बुद्धिजीवी जान लुईस एस्पोसिटो इसी प्रकार लिखते हैं कि ईरान की इस्लामी क्रांति आदर्श होने से अधिक प्रेरणादायक रही है। विश्व के बहुत से क्षेत्रों के मुसलमान अपने ईरानी भाईयों और बहनों के अनुसरण से खुश हो गये और अपने संघर्षों में उनका मनोबल ऊंचा हो गया। इस दृष्टि से ईरान की इस्लामी क्रांति, क्रांतिकारी प्रयासों का मार्गदर्शन करने से कहीं अधिक मुसलमान देशों में पहले से मौजूद रुझानों को मज़बूत कर दिया या उनमें गति प्रदान कर दी। यह ऐसी स्थिति में था जब कुछ देशों और व्यक्तियों व हस्तियों ने बहुत अधिक ईरान की इस्लामी क्रांति के खिलाफ दुष्प्रचार किया था और कहा था कि ईरान की इस्लामी क्रांति इस्लामी जगत में सांप्रदायिकता का प्रचार -प्रसार करती है किन्तु जान लुईस एस्पोसिटा ने वर्षों पहले इस आरोप का जवाब दे दिया था और उसे ईरान की इस्लामी क्रांति को गलत ढंग से समझने का परिणाम बताया था। इस अमेरिकी विचारक ने इस संबंध में लिखा है कि ईरान की इस्लामी क्रांति के बारे में एक गलत प्रचार यह किया गया कि यह शीया और सांप्रदायिक क्रांति है परंतु इस क्रांति ने अपने आरंभिक दिनों से ही यह संदेश दिया कि उसके संदेश पूरी दुनिया के लिए हैं। उदाहरण स्वरूप आयतुल्लाह खुमैनी ने बल देकर कहा था कि क्रांति की जड़ें इस्लामी सिद्धांतों में हैं और उसका संबंध पूरी दुनिया के अत्याचार से पीड़ित लोगों से है चाहे वे शीया हों या ग़ैर शीया। इस आधार पर ईरान की इस्लामी क्रांति के सफल होने के बाद से ही बहुत से मुसलमान छात्रों ने अपने सांप्रदायिक संबंध पर ध्यान दिये बिना इस क्रांति को अपना आदर्श करार दिया। बहुत से मुसलमानों ने उसे शैतानी शक्तियों और अमेरिकी साम्राज्य पर विजय बताया है।
इस्लामी क्रांति का एक प्रभाव ईरान के सामाजिक ताने- बाने पर है और यह वह विषय है जिसकी ओर अमेरिकी बुद्धिजीवी जान लुईस एस्पोसिटा संकेत करते और इस संबंध में लिखते हैं” नये ईरान ने इस्लामी क्रांति के पहले ही दशक में अपने जीवन को दो लक्ष्यों के साथ आरंभ किया। प्रथक, क्रांति को मज़बूत करना और दूसरों उसे देश की सीमाओं से बाहर पछंचाना। नई इस्लामी व्यवस्था के लिए एक संविधान बना जिसमें इस्लामी शिक्षाओं को ध्यान में रखते हुए संसदीय चुनाव कराने का प्रस्ताव दिया गया था। आयतुल्लाह खुमैनी को वरिष्ठ धर्मगुरू माना गया। परिणाम स्वरूप ईरानी समाज में ध्यान योग्य परिवर्तन हुआ।
जान लुईस एस्पोसिटो का मानना है कि ईरान की इस्लामी क्रांति में धार्मिक लोकतंत्र इस क्रांति की एक विशेषता है जिसकी जड़ें शीया धर्म में नीहित हैं। वह इस संबंध में लिखते हैं कि इस्लामी क्रांति जनांदोलन व लोकतांत्रिक थी। क्योंकि व्यवहारिक रूप से उसमें समाज के समस्त वर्गों के लोग शामिल थे और उन्होंने उसकी सहायता की। चूंकि इस्लामी लोकतंत्र समाज के अधिकांश लोगों की संस्कृति का समर्थक है इसलिए लोकतांत्रिक सरकार है। इस लोकतंत्र की जड़ शीया इस्लाम में है। पूरे इतिहास में शीया इस्लाम लोगों का समर्थक रहा है और यह कार्य शीया नेताओं और सामान्य लोगों के मध्य संपर्क का कारण रहा है।