इस्लामी क्रांति और समाज- 14
जेफ़री रोजर गुडविन उन विचारकों में से हैं जिन्होंने क्रांतियों विशेषकर ईरान की इस्लामी क्रांति की समीक्षा की है।
गुडविन न्यूयार्क विश्व विद्यालय में समाजशास्त्री और प्रोफेसर हैं। वह सामाजिक आंदोलनों, क्रांतियों और आतंकवाद के बारे में अध्ययन कर रहे हैं और इस समय सबसे अधिक वह आतंकवाद के विषय का अध्ययन कर रहे हैं। गुडविन उन विचारकों में से हैं जिनके विचारों पर ईरान की इस्लामी क्रांति ने प्रभाव डाला है। उन्होंने ईरान की इस्लामी क्रांति की समीक्षा में नेकी कोडे की समीक्षा से भी लाभ उठाया है और उनकी गणना ईरान की इस्लामी क्रांति की समीक्षा करने वाले चौथे दशक के विचारकों में होती है। जेफ़री रोजर गुडविन, जान फ्यूरन, जेक गोल्डस्एन और क्रराली जैसे विचारकों की गणना ईरान की इस्लामी क्रांति की समीक्षा करने वाले चौथे दशक के विचारकों में होती है।
ईरान की इस्लामी क्रांति की समीक्षा करने वाले पहले से तीसरे दशक के विचारक जनता और नेताओं की भूमिका को कोई विशेष महत्व नहीं देते थे और इस महत्वपूर्ण चीज़ व कारक की अनदेखी की जाती थी और यही चीज़ इस्लामी क्रांति के चौथे दशक के विचारकों के अस्तित्व में आने का कारण बनी और जेफ़री रोजर गुडविन इसी दशक के विचारकों में से हैं और वह जनता, आइडियालोजी और क्रांति की प्रक्रिया की प्रगति पर ध्यान देते हैं। इस दशक के विचारकों का कहना है कि क्रांति की प्रक्रिया की समीक्षा की जानी चाहिये और यह देखा जाना चाहिये कि जब क्रांति अस्तित्व में आती है और क्रांति के विवाद विस्तृत रूप धारण करते हैं तो क्या होता है? चौथे दशक के विचारक जब क्रांति की समीक्षा और उसका विश्लेषण करते हैं तो उनका विश्लेषण क्रांति की जड़ से आरंभ होता है यानी क्रांति किन कारणों से आई और उसके परिणाम क्या हुए। ये विचारक जनता, नेता, संस्कृति और आइडियालोजी जैसी महत्वपूर्ण चीज़ों के मध्य संबंध की ओर संकेत करते हैं।
जेफ़री गुडविन जब ढ़ांचे और जनता व नेता के मध्य संबंध की बहस करते हैं तो उनका मानना है कि यह संबंध एक पक्षीय नहीं बल्कि दोपक्षीय है। उनका कहना है कि जिस तरह ढ़ांचा जनता और ज़िम्मेदार को जन्म देखा है उसी तरह जनता और ज़िम्मेदार ढांचे को जन्म देते और उसे मज़बूती प्रदान करते हैं। दूसरे शब्दों में जेफरी रोजर गुडविन के विचारों को एलेक्ज़ेन्डर वेन्ट जैसे विचारकों की पंक्ति में रखा जा सकता है जिनका मानना है कि ढांचा और जनता व ज़िम्मेदार एक दूसरे से संबंध रखते हैं और दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।
ढ़ांचे और जनता व जिम्मेदारों के मध्य संबंध के बारे में जेफरी गुडविन का मानना है कि दोनों के मध्य जो संबंध है वह दोतरफा है और दोनों एक दूसरे पर प्रभाव डालते हैं और जिस तरह से ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले सरकारी और ग़ैर सरकारी ढांचा खत्म हो गया था और इसके खत्म होने में धर्मगुरूओं एवं बुद्धिजीवियों ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी उसी तरह इस्लामी क्रांति के बाद भी गम्भीरूप से ढांचे पर प्रभाव पड़ा।
अमेरिका के न्यूयार्क विश्व विद्यालय के प्रोफेसर और समाजशास्त्री गुडविन जान फ्यूरन जैसे बुद्धिजीवियों के विचारों से लाभ उठाते हुए ईरान की शाही सरकार के क्रिया- कलापों की आलोचना करते हैं और उनका मानना है कि शाही सरकार के क्रिया- कलाप ईरान में इस्लामी क्रांति के आने की भूमिका बने। इसी प्रकार उनका मानना है कि धर्मगुरू और बुद्धिजीवी जैसे समाज के विभिन्न वर्गों ने ईरान की इस्लामी क्रांति में मुख्य भूमिका निभाई है। उनका कहना है कि ईरान की इस्लामी क्रांति के अस्तित्व में आने में उद्मियों, व्यापारियों, छात्रों, सरकारी कर्मचारियों, विशेषज्ञों, महिलाओं, पुरुषों और समाज के औसत वर्ग के लोगों ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई और इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह था कि लोगों को कठिन आर्थिक समस्याओं का सामना था। इसी प्रकार वह कहते हैं कि निर्धनतम समाज के लोग भी और वह भी कठिन से कठिन परिस्थिति में क्रांति नहीं करते हैं और जहां के लोग क्रांति भी करते हैं तो वे हमेशा सरकारों पर नियंत्रण नहीं कर पाते हैं किन्तु जहां वे सरकारों को गिराने में सफल हो जाते हैं केवल वहीं लाभ उठा सकते हैं। इसी प्रकार जेफ़री गुडविन सरकार और संस्कृति के एक साथ होने के प्रभाव की ओर संकेत करते हैं। उनका कहना है कि ढांचा और जनता व ज़िम्मेदार जहां क्रांति के अस्तित्व में आने में प्रभावी हैं वहीं ईरान की इस्लामी क्रांति के आने में शीया धर्म भी प्रभावी रहा है।
एक विचारक मुस्तफा अमीरबायर हैं। उन्होंने भी ईरान की इस्लामी क्रांति की समीक्षा की है। उनका और जेफ़री गुडविन दोंनों का कहना है कि ईरान की इस्लामी क्रांति के आने में शीया धर्म ने एक प्रभावी कारक व शक्ति के रूप में भूमिका निभाई है। इसी प्रकार दोनों विचारकों का कहना है कि ईरान में इस्लामी क्रांति आ जाने के बाद दिन- प्रतिदिन उसके सांस्कृतिक कारकों एवं परिणामों में वृद्धि होती गयी। अमीर बायेर और जेफ़री गुडविन दोनों का कहना है कि क्रांति में सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक आदि कारकों को दृष्टि में रखा जाना चाहिये। इसी प्रकार दोनों बल देकर कहते हैं कि यह उनका दृष्टिकोण नहीं है बल्कि यह एक व्यापक स्ट्रैटेजी है।
अमीर और जेफरी गुडविन के विचार इस बात के सूचक हैं कि ईरान की इस्लामी क्रांति में सांस्कृतिक प्रभावों ने गहरी व उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। गुडविन का कहना है कि क्रांतियों के अध्ययन में सरकारों की आइडियालोजी और सांस्कृतिक पहलुओं पर भी गंभीर रूप से ध्यान दिया जाना चाहिये। गुडविन का मानना है कि ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद भी ढांचा, जनता और ज़िम्मेदार लोग एक दूसरे पर प्रभाव डाल रहे हैं। गुडविन ने वर्ष 1993 में जान फ्यूरन के साथ एक लेख लिखा था जिसमें ईरान की इस्लामी क्रांति और निकारागुआ की क्रांति के परिणामों की समीक्षा की थी। वास्तव में जेफरी गुडविन के अध्ययन की एक विशेषता यह है कि उन्होंने मुस्तफा अमीर बायर और जान फ्यूरन जैसे उन विचारकों के साथ मिलकर ईरान की इस्लामी क्रांति के बारे में अध्ययन किया है जिन्हें किसी सीमा तक इस बात की जानकारी थी कि ईरान की इस्लामी क्रांति अस्तित्व में कैसे आई थी। जेफरी गुडविन और जान फ्यूरन अच्छी तरह इस विषय की ओर संकेत करते हैं कि ईरान में इस्लामी क्रांति आने से इस्लाम की छत्रछाया में सरकारी तंत्रों का पुनरनिर्माण किया गया और धार्मिक शिक्षाओं के परिप्रेक्ष्य में कानूनों व अधिकारों को व्यवहारिक किया गया।
यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि ईरान की इस्लामी क्रांति के अस्तित्व में आने और इसी प्रकार इस्लामी क्रांति के बाद ईरान के बारे में जेफरी गुडविन के कुछ दृष्टिकोणों पर टीका- टिप्पणी की जा सकती है। धर्मगुरूओं की भूमिका के बारे में उनका जो दृष्टिकोण है पहली टिप्पणी उससे संबंधित है। उनका मानना है कि धर्मगुरूओं ने लोगों की अप्रसन्नता का फायदा उठाया और शाही सरकार के खिलाफ गठबंधन बनाकर क्रांति के लिए भूमि प्रशस्त कर दी और शाह की सरकार में जो कर्मचारी और पदाधिकारी थे धर्मगुरूओं ने उनका स्थान ले लिया जबकि वास्तविकता यह है कि यह स्वयं ईरानी जनता और लोग थे जिन्होंने धर्मगुरूओं को अपने नेता के रूप में चुना था और लोगों तथा धर्मगुरूओं के मध्य एक प्रकार की वैचारिक निकटता उत्पन्न हो गयी थी और लोग शाह की अत्याचारी सरकार से मुकाबले में धर्मगुरूओं के साथ हो गये थे।
एक अन्य विषय यह है कि जेफरी गुडविन का मानना है कि ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद धर्मगुरूओं ने सरकार व शक्ति का नया ढांचा बना दिया और जो महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्तियां व हस्तियां थीं उन्हें किनारे ढकेल दिया गया। उनके इस विचार पर भी टिप्पणी की जा सकती है। उनके इस विचार की सबसे बड़ी वजह यह है कि वह ईरान में इस्लामी क्रांति के सफल जाने के बाद की स्थिति से अनभिज्ञ हैं क्योंकि ईरान में इस्लामी क्रांति के सफल हो जाने के बाद शक्ति को विभिन्न वर्गों में बांट दिया गया है। रोचक बिन्दु यह है कि ईरान में इस्लामी क्रांति के सफल होने के आरंभिक वर्षों में जो राजनेता और सरकारी पदाधिकारी थे वे लिबरल और उदारवादी थे। बाद के दशकों और वर्षों में भी धर्मगुरू दूसरे व्यक्तियों के साथ सत्ता में हैं। दूसरे शब्दों में सत्ता में धर्मगुरू और सामान्य लोग दोंनों हैं और सत्ता में जो धर्मगुरू हैं उनका चयन जनता ही अपने मतों से करती है। प्रिय श्रोताओ आज के कार्यक्रम का समय यहीं पर समाप्त होता है। अगले कार्यक्रम तक के लिए हमें अनुमति दें।