Dec १२, २०१८ १७:४४ Asia/Kolkata

हमने बताया था कि मस्जिदें, मुसलमानों के प्रतिदिन इकट्ठा होने का स्थान रही है ताकि वे ईश्वर की उपासना के साथ ही विचारों का आदान-प्रदान भी कर सकें।

वास्तव में इस्लाम के आरंभिक दिनों से ही न्याय, शिकायतों का निपटारा, अहम सामाजिक मामले, परामर्श, युद्ध की रणनीति, राजनैतिक शिष्टमंडलों से मुलाक़ात, अन्य क्षेत्रों में प्रतिनिधि भेजने के फ़ैसले, सार्वजनिक बैठकें, बीमारों व घायलों की देखभाल और सरकारी फ़ैसलों की घोषणा जैसे अहम काम मस्जिद में ही होते थे। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के स्वर्गवास के बाद भी काफ़ी समय तक यह स्थिति जारी रही और जिस क्षेत्र, शहर या देश में इस्लाम पहुंचता था, वहां पहला काम, एक मस्जिद का निर्माण होता था।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम मदीने में मस्जिद में उपासना के साथ ही धर्म की शिक्षा भी देते थे और सवाल करने वालों का जवाब देते थे। क़ुरआने मजीद की व्याख्या व अन्य इस्लामी ज्ञान और इसी तरह धार्मिक ज्ञान के मदरसे भी मस्जिद से निकले हैं। इस्लाम की आरंभिक शताब्दियों में मस्जिदें, नई नई सूचनाओं के आदान-प्रदान का केंद्र भी हुआ करती थीं। इसके बाद भी जब कभी समय के अनुसार कोई नई विचारधारा पेश की जाती तो मुसलमान मस्जिदों में उसके बारे में विचार विमर्श करके धर्म से हर प्रकार के संशय को दूर करने की कोशिश करते थे। वे तर्कसंगत ढंग से एक दूसरे के साथ और इसी तरह अन्य धर्मों के अनुयाइयों से बहस करते थे। इस दृष्टि से मस्जिद को विशेष स्थान प्राप्त था।

इस्लामी की प्रशैक्षिक व्यवस्था में एकांतवास और लोगों से अलग-थलग रहना स्वीकार्य नहीं था और इसके मुक़ाबले में तर्कसंगत सीमा तक सामूहिकवाद और सामाजिकता को मनुष्य के मन-मस्तिष्क के स्वास्थ्य का चिन्ह समझा जाता था। मस्जिदें, मुसलमानों को एक त्रित होने का निरंतर निमंत्रण दे कर उनके बीच सहयोग और अनुशासन की भावना को मज़बूत करती हैं। मस्जिद में एकत्रित होने वाले सभी नमाज़ियों का संयुक्त बिंदु, इस्लाम धर्म पर ईमान है। यह वह आस्था है जिसने उन्हें एक मज़बूत रस्सी की तरह एक दूसरे से जोड़ रखा है और इसने राष्ट्रियता, देश, भाषा, वर्ण और इसी प्रकार की दूसरी विशेषताओं के रंग को धूमिल कर दिया है।

 

जब चीन और उसकी ऐतिहासिक इमारतों की बात होती है तो अधिकतर लोगों के मन में चीन की दीवार या बड़े बड़े मठों की कल्पना उभरती है लेकिन इस बात की कल्पना थोड़ी मुश्किल है कि इस देश में पांच करोड़ मुसलमान रहते हैं और यहां 45 हज़ार से अधिक मस्जिदें हैं।

ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार वर्ष 31 हिजरी क़मरी के आस-पास हेजाज़ के मुसलमानों का एक प्रतिनिधिमंडल चीन के शासक के दरबार में पहुंचा और उसने इस्लाम का परिचय करवाया। चीनी शासक ने इस्लाम धर्म की थोड़ी सी ही जानकारी प्राप्त करके उसे कन्फ़्यूशस की शिक्षाओं के अनुकूल पाया अतः उसने इस्लाम की पुष्टि कर दी। इसके बाद उसने उस प्रतिनिधि मंडल के प्रमुख को जिसका नाम साद था, चीन में इस्लाम के प्रचार की अनुमति दे दी। इसी प्रकार उसने चांग आन  या शी आन शहर में, जो संसार की सबसे पुरानी राजधानी है, पहली मस्जिद के निर्माण पर सहमति जताई और इस प्रकार इस्लाम के प्रति अपना लगाव प्रकट किया। यूं पैग़म्बरे इस्लाम के मक्के से मदीने हिजरत के 80 साल बाद, चीन जैसे देश में जो मक्के से आठ हज़ार किलो मीटर की दूरी पर है, मस्जिद बनाई गई और आज इस देश में लगभग 45 हज़ार मस्जिदें हैं।

चीन में मस्जिदों का स्वरूप उनके निर्माण के समय के अनुसार है। जो मस्जिदें अधिक पुरानी हैं वे ज़्यादातर लकड़ी से बनाई गई हैं और उनमें इस्लामी प्रतीकों के साथ ही ड्रेगन और कछुए जैसे चीनी प्रतीकों को भी देखा जा सकता है। चीन के मुस्लिम वास्तुकार आरंभ में मस्जिदों के निर्माण में इस्लाम से पहले वाले धर्मों, जैसे बुद्धमत की शैली का अनुसरण करते थे लेकिन कुछ समय बाद वे इस्लामी वास्तुकला को आदर्श बना कर मस्जिदों का निर्माण करने लगे। समरूपता, चीनी वास्तुकला का एक अहम भाग है और चीन की मस्जिदों में भी इस विशेषता को देखा जा सकता है। इसी तरह एक दूसरे से जुड़े हुए बेल बूटों के चित्र जो नीचे से ऊपर चले जाते हैं, वे देखने वाली की दृष्टि मस्जिद के निचले हिस्से से लेकर उसके सबसे ऊपरी भाग तक ले जाते हैं और उसमें अनायास ही सम्मान की भावना पैदा कर देते हैं।

चीन की मस्जिदों का बाहरी भाग, पगोडा की तरह बनाया गया है और इनमें एक क़तार में बनाए गए और विभिन्न रंगों से रंगे हुए स्तंभ होते हैं। प्राचीन चीनियों का मानना था कि वर्गाकार आकार ज़मीन का चिन्ह हैं जबकि दायरे वाले आकार आकाश की निशानी होते हैं, जैसे चीनी मुसलमानों का मानना है कि काबा, अपने वर्गाकार रूप के साथ ज़मीन की एक निशानी है जो आसमान से जुड़ गई है। पगोडा शैली में, जो सुदूर पूर्व की वास्तु शैली है और स्तंभों और कई परतों वाली छतों के रूप में बनाई जाती है, रंग भी किसी न किसी वस्तु की निशानी होते हैं। लाल रंग, ज़मीन की निशानी है जबकि नीला रंग आसमान का प्रतिनिधित्व करता है।

इन मस्जिदों में न केवल इस्लामी वास्तुकला और पूर्वी वास्तुकला का संगम है जिससे एक नई और रोचक शैली अस्तित्व में आ गई है बल्कि इनमें चीनी व अरब वातावरण भी एक दूसरे से मिल गया है। इस प्रकार से कि नमाज़ की तैयारी की घोषणा अरबी और चीनी दोनों भाषाओं में की जाती है। नमाज़ के बाद इमाम अरबी भाषा में दुआ पढ़ता है और फिर कुछ आयतों की तिलावत करता है जिनका बाद में चीनी में अनुवाद किया जाता है।

 

ग्वांगज़ू शहर में स्थित ह्वाशेंग मस्जिद, जो लगभग 1300 साल पुरानी है, चीन की सबसे प्राचीन मस्जिदों में से एक है। अगर इस मस्जिद के बारे में ऐतिहासिक दस्तावेज़ सही हों तो यह न केवल चीन की बल्कि दुनिया की सबसे प्राचीन मस्जिदों में से एक है और दुनिया में बहुत कम ऐसी मस्जिदें होंगी जो इसके जितनी पुरानी हों। बहरहाल यह मस्जिद चीन की तांग शासन श्रंखला के ज़माने में मौजूद थी जिसका शासनकाल वर्ष 618 से 907 ईसवी तक था। यह मस्जिद विभिन्न कालों में होने वाले पुनर्निर्माण के साथ अब भी बड़ी मज़बूती के साथ अपने स्थान पर खड़ी है।

ह्वाशेंग का चीनी भाषा में अर्थ होता है फ़रिश्ते को याद करो। यह मस्जिद नूर टावर के नाम भी मशहूर है क्योंकि प्राचीन काल में इसकी बुलंद मीनार, ज़ूजियांग नदी में चलने वाली नौकाओं के लिए लाइट टावर का भी काम करती थी। बताया जाता है कि जब मल्लाह नूर टावर को देख लेते थे तो समझ जाते थे कि वे सिल्क रोड तक पहुंच गए हैं। इस मीनार को अज़ान देने और मौसम की स्थिति जानने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था। ह्वाशेंग मस्जिद का अब तक कई बार पुनर्निर्माण किया जा चुका है लेकिन इसकी मीनारें अब भी अपनी पुरानी स्थिति पर बाक़ी हैं और चीन में इस्लाम की प्राचीनता का प्रतीक बनी हुई हैं।

 

चीनी की अहम मस्जिदों में से एक मस्जिदे न्यूजी भी है। इसे चीन की सबसे अहम और प्राचीन मस्जिदों में समझा जाता है जो बीजिंग में स्थित है। इस मस्जिद का निर्माण चींग शासन श्रंखला के शासक कांग शी के ज़माने में वर्ष 996 ईसवी में करवाया गया था। एक हज़ार साल से भी पुरानी न्यूजी मस्जिद में 11 इमाम हैं और हर दिन यहां दो सौ से अधिक लोग जमाअत से नमाज़ पढ़ते हैं। जुमे के दिन यह संख्या एक हज़ार तक पहुंच जाती है। बीजिंग की मस्जिदों में न्यूजी मस्जिद का शुमार सबसे सुंदर व प्राचीन मस्जिदों में होता है। मस्जिद का बाहरी भाग चीन की प्राचीन परंपरागत शैली में लकड़ी से बना है।

इस मस्जिद में राजआदेश शिलालेख जैसे कई प्रकार के शिलालेखों और पुरात्व अवशेष मौजूद हैं। यह राजआदेश सन 1694 में क्विंग शासन श्रंखला के काल में जारी किया गया था। इस मस्जिद के सामने के दरवाज़े से प्रवेश के बाद एक छे कोणीय इमारत पर नज़र पड़ती है कि जिसे चांद देखने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इस इमारत के भीतर  ताक़ों से भरा रास्ता और भीतचित्रों से भरी एक दीवार है जो एक साथ मिल कर मस्जिद के मुख्य द्वारा कही जाती है। उसके बाद अस्ली हाल है जहां सामूहिक रूप से नमाज़ पढ़ी जाती है। मुख्य भाग के बाद छोटे छोटे कमरे और कोठरियां नज़र आती हैं जिन्हें इस्लामी शैली में सजाया गया है और चूंकि इस्लामी शिक्षा में मानव आकृति नहीं बनायी जाती, इस लिए सजावट के ज्योमितीय डिज़ाइनों और अरबी वर्णमाला के शब्दों का प्रयोग किया गया।

इस मस्जिद के केन्द्र में उसका मीनारा है जिसके ऊपरी भाग में जाकर अज़ान दी जाती है। भीतरी प्रांगण में इस्लामी शिक्षा भवन के अलावा कई इमारतें है मस्जिद के दक्षिणी भाग में एक वुज़ूखाना है अर्थात वह जगह जहां लोग पवित्र होते और वुज़ू करते हैं। निश्चित रूप से वर्तमान समय में चीन में पांच करोड़ से अधिक मुसलमान होने के बावजूद इस देश के मुसलमानों को कई प्रकार के प्रतिबंधों का सामना है। उदाहरण स्वरूप शिनक्यांग राज्य में सरकारी कर्मचारी, छात्र और शिक्षक रोज़ा नहीं रख सकते। कभी कभी तो राज्य के स्थानीय अधिकारी, मस्जिद में नमाज़ पढ़ाने वाले इमामों को, विरोध और आपत्ति की दशा में, सार्वाजनिक स्थानों पर नाचने तक पर मजबूर करते हैं। (HN)

 

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