Dec १५, २०१८ १६:०५ Asia/Kolkata

आज हम मुल्ला सद्रा के नाम से दुनिया में प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री और ईरान के प्रसिद्ध बुद्धिजीवी मुहम्मद बिन इब्राहीम क़ेवामी शीराज़ी पर चर्चा करेंगे।

शीराज़ ईरान के ऐतिहासिक शहरों में से एक है जो फ़ार्स प्रांत में स्थित है और पेर्सपोलिस के खंडहरों की वजह से जो सिकन्दर के हाथों तबाह हुए और जला दिए गये, और इस शहर में पैदा होने वाले बुद्धिजीवियों और परिज्ञानियों की जननी होने की वजह से प्रसिद्ध है। हाफ़िज़, सादी और मुल्ला सद्रा जैसे महान बुद्धिजीवी, कवि और शायर, इसी क्षेत्र से पैदा हुए हैं। शीराज़ सफ़वी शासन काल में स्वतंत्र प्रांतों में गिना जाता था और राजा के भाई इस क्षेत्र पर शासन करते थे।

मुल्ला सद्रा के पिता ख़ाजा इब्राहीम क़ेवामी, होशियार व बुद्धिमान राजनेता और बहुत अधिक मोमिन व ईश्वर से भय रखने वाले थे।  बताया जाता है कि वह शीराज़ सरकार में किसी मंत्रालय के पद पर असीन थे। उनके पास धन संपत्ति और समाज में स्थान के बावजूद उनके यहां कोई संतान नहीं थी और ईश्वर से लगातार मांगने के बाद ईश्वर की कृपा दृष्टि उन पर पड़ी और 9 जमादुउल अव्वल सन 980 हिजरी क़मरी को ईश्वर ने उनको एक पुत्र प्रदान किया जिसका नाम उन्होंने सदरूद्दीन मोहम्मद रखा। लोग उन्हें सद्रा के नाम से जानते थे। बाद में वे मुल्ला सद्रा के नाम से प्रसिद्ध हुए और यही नाम उनके असली नाम पर छा गया।

सद्रुद्दीन मुहम्मद, विस्तृत प्रांत फ़ार्स क्षेत्र के तत्कालीन मंत्री के एकलौते बेटे थे और उनका जीवन बहुत ही ठाट बाट वाला था। उस समय प्रचलित रिवाज के अनुसार बड़े और उच्च परिवार के लोग अपने ही घरों में विशेष टीचरों और अध्यापकों से पढ़ते थे। सद्रा बहुत ही होशियार व बुद्धिमान बालक था, पढ़ने की ललक, चाहत और जिज्ञासा उसमें कूट कूट कर भरी हुई थी। बहुत ही कम समय में उन्होंने अरबी और फ़ारसी साहित्य तथा सुलेखन से जुड़े पाठों को अच्छी तरह सीख लिया ।

यही नहीं इस होनहार बच्चे ने शिकार करना, घुड़सवारी और तलवार तथा तीर चलाने की कला भी सीख ली। गणित, खगोलशास्त्र और कुछ चिकित्सा विज्ञान भी सीखा और इसके साथ ही धर्मशास्त्र, इस्लामी नियम व क़ानून, तर्कशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र भी उन्होंने सिखा। यह सब ज्ञान उन्होंने युवा काल में ही हासिल कर लिये थे और अभी वह व्यवस्क नहीं हुए कि सभी ज्ञानों से थोड़ा बहुत हासिल कर चुके थे। जवानी की दहलीज़ पर क़दम रखते ही उनमें दर्शनशास्त्र विशेषकर परिज्ञान में विशेष रुचि पैद हो गयी। उनकी जवानी के हवाले से जीवनियों में जो मिलता है उससे पता चलता है कि वह परिज्ञान के साहित्य विशेषकर फ़रीदुद्दीन अत्तार, जलालुद्दीन मौलवी, इराक़ी के शेरों तथा इब्ने अरबी के सूफ़ीवाद से बहुत अधिक प्रभावित थे और उसमें रुचि रखते थे।

युवा मुल्ला सद्रा की आरंभिक शिक्षा शीराज़ में ही हुई और उनकी शिक्षा का एक बड़ा भाग, उस समय सफ़वी शासन काल की राजधानी क़ज़वीन में पूरा हुआ। इस बारे में कुछ इतिहासकारों का यही कहना है। सफ़वी इतिहास पर नज़र रखने वालों का यह मानना है कि फ़ार्स का गवर्नर  राजा की मृत्यु के बाद जो उसका भाई था, राज गद्दी पर बैठा और वर्ष 985 हिजरी क़मरी अर्थात 1577 ईसवी को मजबूर होकर क़ज़वीन गया। बताया जाता है कि सद्रा के पिता भी शासक के मंत्री और सलाहकार के रूप में उसके साथ क़ज़वीन गये। यहीं पर सद्रा ने अनेक गुरुओं से विभिन्न प्रकार के ज्ञान हासिल किए। उन्होंने क़ज़वीन शहर में माध्यमिक शिक्षा ग्रहण की और उच्च स्तर पर पहुंच गये। मुल्ला सद्रा ने क़ज़वीन ने दो प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों और अपने काल की प्रसिद्ध हस्ती अर्थात शैख़ बहाई के नाम से प्रसिद्ध शैख़ बहाउद्दीन आमेली और मीर दामाद के नाम से प्रसिद्ध मीर मुहम्मद बाक़िर से शिक्षा प्राप्त की। यह दोनों प्रसिद्ध बुद्धिजीवी न केवल अपने काल के प्रसिद्ध बुद्धिजीवी थे बल्कि चार शताब्दी तक उनके जैसा बुद्धिजीवी इस दुनिया में आया ही नहीं। मुल्ला सद्रा ने इन दो महान हस्तियों से सीखा और फिर उन्हीं की भांति अपने समय बल्कि कई शताब्दियों तक के लिए अपने ज्ञान का सिक्का बिठा दिया।  

शैख़ बहाई न केवल यह कि इस्लामी शिक्षाओं विशेषकर धर्मशास्त्र, हदीस, तफ़सीर तथा परिज्ञान में दक्ष थे बल्कि खगोलशास्त्र, गणित, इन्जीनियरिंग, वास्तुकला, तथा चिकित्सा विज्ञान तक में दक्ष थे। वे पश्चिम के कुछ ज्ञान में भी दक्ष थे किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि सूफ़ीवाद की आस्था के आधार पर वह दर्शनशास्त्र और वादशास्त्र की शिक्षा नहीं देते थे क्योंकि सूफ़ीवाद इन ज्ञानों का विरोध करता है।

एक अन्य प्रसिद्ध बुद्धिजीवी मीर दामाद हैं वह अपने समय के सभी प्रचलित ज्ञानों में दक्ष होने के साथ साथ अन्य ज्ञानों में भी दक्ष थे और उनके ज्ञान का क्षेत्र धर्मशास्त्र तथा हदीस से अधिक दर्शनशास्त्र था।  वह दर्शनशास्त्र की दो प्रसिद्ध शाखाओं मश्शाई और इशराक़ी में अपना कोई उदाहरण नहीं रखते थे और स्वयं को इन दोनों क्षेत्रों में इब्ने सीना और फ़राबी के समपल्य तथा दर्शनशास्त्र के इन दो मतों का उस्ताद समझते थे।

मुल्ला सद्रा ने दर्शनशास्त्र और परिज्ञान की अधिकतर शिक्षा मीर दामाद से प्राप्त की और हमेशा उन्हें अपना वास्तविक उस्ताद, अगुवा और पथप्रदर्शक मानते थे। मुल्ला सद्रा ने प्रसिद्ध परिज्ञानी, गणित, और दर्शनशास्त्री मीर अबुल क़ासिम मीर फ़ेंदरेस्की आरिफ़ से भी शिक्षा ग्रहण की । मुल्ला सद्रा ने मेलल व नेहल नामक पुस्तक मीर अबुल क़ासिम मीर फ़ेंदरेस्की आरिफ़ से पढ़ी। इस पुस्तक में पूरब में पाए जाने वाले मतों, उनके विचारों और उनकी वास्तविकता पर चर्चा की गयी है।

वर्ष 1006 हिजरी क़मरी बराबर 1598 ईसवी सफ़वियों की राजधानी क़ज़वीन से इस्फ़हान शहर स्थानांतरित होने के बाद, शैख़ बहाई और मीर दामाद भी अपने शिष्यों के साथ इस्फ़हान चले गये और वहां पर शिक्षा दिक्षा में व्यस्त हो गये। उस समय मुल्ला सद्रा की आयु 26 या  27 साल से अधिक नहीं होगी, वह भी इस्फ़हान आ गये, वह पढ़ाई से मुक्ति प्राप्त कर चुके थे और वह दर्शनशास्त्र की नई नई गिरहें खोलने तथा नये मतों को प्राप्त करने में व्यस्त थे और इस तरह से उन्होंने अपने नये मत का आधार रखा।

 

मुल्ला सद्रा अपनी अद्वितीय स्मरण शक्ति के आधार पर ख़्वाजा मदरसे के प्रसिद्ध छात्रों में गिने जाने लगे।  वह जितना अधिक ज्ञान अर्जित करते थे, मदरसे के उस्तादों की नज़र में उनका सम्मान उतना ही बढ़ता जाता था क्योंकि वह भी उनकी शिक्षा और सीखने की शक्ति का लोहा मान चुके थे।

उस समय प्रचलित ज्ञान हासिल करने के बाद, भीतरी खींचातानी तथा कुछ धर्मगुरुओं के भारी दबाव के बाद जो उनके परिज्ञानी मत के विरोधी थे, मुल्ला सद्रा इस्फ़हान छोड़ने पर विवश हो गये। उन्होंने अपनी प्रतीक्षा पूरी करने के लिए पवित्र नगर क़ुम के निकट स्थित कहक नामक गांव में शरण लिया और दुनिया से कट कर जीवन व्यतीत करने लगे। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि वह इस गांव में 7 साल रहे जबकि कुछ का कहना है कि वह पंद्रह साल तक गुप्त जीवन बिताते रहे और दुनिया से कटकर उन्होंने आख़िरकार अपनी शिक्षा पूरी की और अपने लक्ष्य को हासिल कर लिया।

मुल्ला सद्रा अपने जीवन के इस काल के बारे में लिखते हैं कि मुझ पर वह रहस्य खुले जो तर्कों और कारणों से संभव नहीं थे बल्कि यूं कहूं कि जो मैंने इससे पहले बौद्धिक तर्कों के आधार पर हासिल किया था उसको विस्तार से मैंने अपनी आंखों से देखा और नज़रों से परखा।  धीरे धीरे मुल्ला सद्रा के ज्ञान का डंका क्षेत्र में फैल गया और ज्ञान के प्यासे दूर और निकट से उनके पास अपने ज्ञान की प्यास बुझाने आते थे।  इस अवसर पर फ़ार्स के गवर्नर अल्लाहवरी ख़ा ने शीराज़ में एक मदरसे की आधार शिला रखी जो ख़ान के मदरसे के नाम से प्रसिद्ध है और उन्होंने मुल्ला सद्रा से कहा कि वह अपने पैतृक स्थल लौट आएं और वहां पर शिक्षा दिक्षा में व्यस्त हो जाएं। मुल्ला सद्रा ने यह निमंत्रण स्वीकार कर लिया और उनकी उपस्थिति से ख़ान मदरसा अपने काल के प्रसिद्ध मदरसों में गिना जाने लगा। मुल्ला सद्रा के मरने के बाद तक ज्ञान के प्यासे वहां से अपनी ज्ञान की प्यास बुझाते रहे।