नूरुद्दीन अब्दुर्रहमान जामी- 5
नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी नवीं हिजरी क़मरी अर्थात 15वीं ईसवी शताब्दी के शायर, लेखक, विचारक और अपने समय के विख्यात भाषणकर्ता थे।
उन्होंने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें भी लिखी हैं और आज के कार्यक्रम में भी हम उनकी एक अन्य रचना से भी आपको परिचित करायेंगे।
दोस्तो जैसाकि हमने पिछले कार्यक्रम में कहा था कि नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी नवीं हिजरी क़मरी अर्थात 15वीं ईसवी शताब्दी के लेखक, शायर और प्रसिद्ध भाषणकर्ता थे। वह 817 हिजरी कमरी बराबर 1414 ईसवी में खुरासान प्रांत के विलायते जामे जम क्षेत्र में पैदा हुए थे। उनके पूर्वज इस्फहान नगर में रहते थे जो इस्फहान से खुरासान चले गये थे और खुरासान प्रांत के ख़रजेर्द जाम क्षेत्र में रहने लगे। नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी के पैदा होने से कुछ साल पहले उनके पिता अपने परिवार के साथ हेरात चले गये थे और वहीं बस गये। जामी ने आरंभिक शिक्षा ख़रजेर्द जाम में हासिल की। ख़रजेर्द जाम हेरात प्रांत का एक क्षेत्र था। नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी ने फारसी साहित्य और अरबी साहित्य के सर्फ व नह्वो जैसे विषयों का ज्ञान अपने पिता से हासिल किया। इसी प्रकार नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी ने हेरात और समरक़न्द के मदरसों में शिक्षा ग्रहण की। हेरात और समरक़न्द अपने समय में शैक्षिक व साहित्यिक केन्द्र समझे जाते थे। नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी ने अरबी, फारसी, तर्कशास्त्र, गणित और धार्मिक शिक्षा प्राप्त करके अपने समय के प्रसिद्ध व्यक्ति बन गये। उसके बाद उन्हें परिज्ञान व रहस्यवाद से रुचि हो गयी जिसके बाद वह तरीक़त नक्शबंदियां मत के अनुयाइ बन गये। नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी चूंकि अपने समय के महान विद्वान हो गये थे और उनका जो रहस्यवादी व्यवहार था उसके कारण समय के शासकों के निकट भी उनका विशेष स्थान था और अपने शैक्षिक एवं साहित्यिक ज्ञान और आध्यात्म के कारण बुढ़ापा आने से पहले ही उस समय उसमानी साम्राज्य से लेकर भारतीय उपमहाद्वीप के जिन जिन क्षेत्रों में फारसी भाषा बोली जाती थी वहां वह बहुत मशहूर हो गये थे और लोगों में उन्हें विशेष सम्मान प्राप्त था।
नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी का 18 मोहर्रम 898 हिजरी क़मरी अर्थात 1492 ईसवी शताब्दी में 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया और उस समय के खुरासान प्रांत के हेरात शहर में उन्हें उनके उस्ताद सादुद्दीन काशग़री की कब्र के बगल में दफ्न कर दिया गया। इस समय हेरात में नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी की कब्र तख्त मज़ार के नाम से प्रसिद्ध है।
“नफ़हातुल उन्स” अब्दुर्रहमान जामी की एसी किताब है जिसे तबक़ातुस्सूफीया किताब की एक दूसरी कापी कहा जा सकता है। इस किताब में अब्दुर्रहमान जामी ने हुजवेरी की “कश्फुल महजूब”, अबू सईद अबूल ख़ैर की “असरारुत्तौहीद” और इज़्ज़ुद्दीन काशानी की “मनाक़िबे अफ़लाकी और मिसबाहुल हिदाया जैसी किताबों से लाभ उठाया है। अब्दुर्रहमान जामी ने अपनी किताब “नफ़हातुल उन्स” की प्रस्तावना में ही लिख दिया है कि उन्होंने तबक़ातुस्सूफ़िया से लाभ उठाया है और यह भी लिखा है कि वह तबक़ातुस्सूफ़िया की विषयवस्तु को समय की प्रचलित भाषा में लिखना चाहते थे। जामी को आशा थी कि वह महत्वपूर्ण रहस्यवादियों की जीवनी लिखकर पढ़ने वालों से उनका अच्छा परिचय करा सकेंगे। जामी ने अपनी किताब में अधिकतर इन महान हस्तियों व रहस्यवादियों के विदित आचरण पर ध्यान दिया है और उनकी अध्यात्मिक विशेषताओं का बहुत कम उल्लेख किया है। “नफ़हातुल उन्स” में अब्दुर्रहमान जामी की शैली इन्साइक्लोपीडिया जैसी है। तबक़ातुस्सुफ़िया में जिन 120 लोगों की जीवनी बयान की गयी है उसका भी वर्णन जामी ने अपनी किताब में किया है और इसके अलावा भी उन 484 दूसरी हस्तियों की जीवनी बयान की है जिनका उल्लेख तबक़ातुस्सुफ़िया में नहीं था। कुल मिलाकर अब्दुर्रहमान जामी ने अपनी किताब “नफ़हातुल उन्स” में अपने समय तक की 614 हस्तियों की जीवनी बयान की है। जामी ने जीवनी को श्रेणीबद्ध रूप से बयान किया है। महिलाओं और पुरूषों की जीवनी अलग- अलग बयान की है। इसी प्रकार जामी ने जिन लोगों की जीवनी बयान की है उसे समय के लेहाज़ से लिखा और वर्गीकृत किया है।
जामी ने जब एक हस्ती की जीवनी लिखनी आरंभ की है तो सबसे पहले उसके पैदा होने और मरने की तारीख लिखी है। उसके पारिवारिक संबंध और शिक्षा के बारे में लिखा है। इसके बाद उस हस्ती के कथनों को बयान किया है। जामी ने अपनी किताब में घटनाओं को एतिहासिक दृष्टिकोण से पेश करने का प्रयास किया है और इन हस्तियों का जो अमली जीवन था उसी को बयान करने को प्राथमिकता दी है। इसी प्रकार जामी ने अपनी किताब “नफ़हातुल उन्स” में जिन हस्तियों की जीवनी बयान की है उनके या उनके कथनों के बारे में अपनी व्यक्तिगत राय नहीं दी है। इसी प्रकार जामी ने विवादास्पद विषयों के बारे में भी अपना व्यक्तिगत दृष्टिकोण पेश नहीं किया है। अधिकांश अवसरों पर उन्होंने केवल महान हस्तियों के कथनों को बयान किया है और खाजा अब्दुल्लाह अंसारी ने “तबक़ातुस्सुफिया” में जिन दृष्टिकोणों को बयान किया है उसके प्रति वह पूरी तरह वफादार हैं। जामी ने अपनी किताब लिखने में जिन स्रोतों व रचनाओं से लाभ उठाया है उनके प्रति वह पूरी तरह वफादार हैं और जहां ज़रूरी होता है वहां उसके नामों का वर्णन भी करते हैं। दूसरे शब्दों में उन्होंने एक ईमानदार लेखक की तरह अमल किया है।
अब्दुर्रहमान जामी की “नफ़हातुल उन्स” किताब की एक अन्य विशेषता इसमें शब्दों का प्रयोग बहुत हुआ है। इसमें बहुत से शब्द जहां प्राचीन विषय वस्तु से लिए गये हैं वहीं एसे भी शब्द हैं जिन्हें जामी ने खुद बनाया है।
जामी ने जिस प्रकार शब्दों का प्रयोग जिन अर्थों के लिए किया है न उनसे पहले किसी ने किया है और न उनके बाद। हां अगर हुआ है तो बहुत कम। जैसे अदब व शिष्टाचार का कान रखना यानी शिष्टाचार का ध्यान रखना। इस प्रकार शब्दों का प्रयोग जामी की “नफ़हातुल उन्स” में बहुत हुआ है।
अरबी भाषा के शब्दों का प्रयोग जामी की एक अन्य विशेषता है। यद्पि नफ़हातुल उन्स किताब प्राचीन विषय वस्तु की अपेक्षा अपने काल की प्रवाहपूर्ण फारसी भाषा में है परंतु उसमें अरबी भाषा के शब्दों का प्रयोग कम नहीं है। अध्ययन इस बात के सूचक हैं कि जो भी वजह हो “नफहातुल उन्स” के विभिन्न भाग एक दूसरे से भिन्न हैं। हो सकता है कि उसके कुछ भागों का अनुवाद किया गया हो या वे कहीं से ले लिये गये हों। उसके हर भाग में अरबी भाषा के शब्दों का प्रयोग समान नहीं है। जैसे किताब की भूमिका और उसके पहले भाग में जामी का प्रयास सूफी- सन्तों की परिभाषा की व्याख्या करना है और इस भाग में ध्यान योग्य सीमा तक अरबी भाषा के शब्दों का प्रयोग किया गया है। दूसरे शब्दों में मूल्यवान किताब “नफहातुल उन्स” में बहुत अधिक अरबी भाषा के शब्दों का प्रयोग किया गया है। इसमें बहुत से स्थानों पर पवित्र कुरआन की आयतों, हदीसों अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों और इसी प्रकार महान सूफी हस्तियों के कथनों और शेरों को बयान किया गया है। “नफहातुल उन्स” किताब की एक अन्य विशेषता यह है कि इसमें अरबी भाषा की कहावतों एवं मुहावरों का भी प्रयोग किया गया है और जामी ने अपनी किताब में शब्दों का प्रयोग विभिन्न अर्थों में बहुत अच्छी तरह किया है। इस काम को जामी की योग्यता का नतीजा समझना चाहिये। जामी ने जिन शब्दों का प्रयोग किया है अध्ययनकर्ता उसमें ध्यान देने से इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि लगभग हर शब्द का प्रयोग विभिन्न अर्थों में हुआ है। उदाहरण स्वरूप “अहल” शब्द का प्रयोग फारसी भाषा में विभिन्न अर्थों के लिए होता है। जैसे कभी कहते हैं कि मेरा अहल भूखा है यानी मेरी पत्नी या पत्नी और बच्चे भूखे हैं। इसी तरह “अहल” शब्द का प्रयोग कभी परिचित व महरम व्यक्ति के लिए होता है और इसके मुकाबले में नामहरम शब्द का प्रयोग किया जाता है। अहल शब्द का एक अर्थ रहने वाला भी है जैसे अहले तेहरान यानी तेहरान का रहने वाला। अहल शब्द का प्रयोग “नफहातुल उन्स” किताब में बारमबार इन अर्थों में हुआ है।
अब्दुर्रहमान जामी एक ओर अपने समय के लोगों की भाषा और संस्कृति से परिचित थे और दूसरी ओर वह अपने से पहले के लोगों की गद्य और पद्य में की गयी रचनाओं से अवगत थे और इस चीज़ से इनके लिए यह संभावना उत्पन्न हो गयी है कि उन्होंने अपनी किताबों में फारसी भाषा की प्राचीन विषय वस्तुओं और बोल चाल के सामान्य शब्दों का भी प्रयोग किया है। “नफहातुल उन्स” किताब का अध्ययन करने के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि इसमें जिन शब्दों का प्रयोग किया गया है वे लोगों की संस्कृति और ज़बान से लिये गये हैं। इस किताब में कई चीज़ों का अध्ययन किया जा सकता है। जैसे कहावतों व मुहावरों, शिष्टाचार और आम परम्परा आदि।
जामी की “नफहातुल उन्स” किताब में 60 से अधिक कहावतों एवं मुहावरों का प्रयोग किया गया है और उनमें से कुछ एसे हैं जिनका पुरानी किताबों में उल्लेख नहीं किया गया है। यही नहीं, उनमें से कुछ का उल्लेख कहावतों व मुहावरों की किताब “अमसालुल हेकम” में भी नहीं हुआ है।
इस किताब में लोगों के पेशों का इतना अधिक वर्णन किया गया है कि इस किताब को नवीं शताब्दी तक मानवशास्त्र के ध्यान योग्य स्रोत के रूप में देखा जा सकता है। इस किताब में एसे पेशों का उल्लेख किया गया है जिनका आज या तो नाम ही नहीं ही नहीं है या अगर हैं तो दूसरे रूप में हैं। “नफहातुल उन्स” किताब में उन परम्मरों और शिष्टाचारों का उल्लेख किया गया है जो जामी के ज़माने में और उनसे पहले प्रचलित थे। इनमें से कुछ परम्परायें व शिष्टाचार सार्वजनिक हैं जबकि कुछ सूफियों से विशेष हैं।
“नफहातुल उन्स” किताब की समीक्षा इस बात की सूचक है कि जामी लेखन की उस विशेष शैली को उत्पन्न करना चाहते थे जो उनके ज़माने में प्रचलित नहीं थी। लोगों की संस्कृति व भाषा का प्रयोग, अपने समय के और अपने से पहले वाले लोगों की तुलना में अरबी भाषा के शब्दों का कम प्रयोग आदि वे चीज़ें हैं जिन्होंने इस शैली के उत्पन्न करने में जामी की सहायता की है।