Dec १६, २०१८ १६:४५ Asia/Kolkata

आपको याद होगा कि पिछले कार्यक्रम में हमने इस बात का उल्लेख किया था कि पैग़म्बरे इस्लाम के दौर में महिलाएं विभिन्न वैज्ञानिक, सामाजिक व आर्थिक मंच पर सक्रिय रहती थीं और मस्जिद में उनकी मौजूदगी को अच्छी नज़र से देखा जाता था।

इस्लाम के उदय के आरंभिक दौर में महिलाओं की भागीदारी की स्पष्ट मिसाल पैग़म्बरे इस्लाम की पहली बीवी हज़रत ख़दीजा रहमतुल्लाह अलैह की मस्जिदुल हराम में मौजूदगी थी। जिस समय पैग़म्बरे इस्लाम नमाज़ के लिए खड़े होते थे तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम उनके दायीं तरफ़ और हज़रत ख़दीजा पैग़म्बरे इस्लाम के पीछे खड़ी होकर सामूहिक रूप से नमाज़ पढ़ती थीं जिसे नमाज़े जमाअत कहते हैं। इससे भी अहम घटना क़िबला बदलने के वक़्त की घटना है। उस समय सामूहिक नमाज़ में महिलाएं भी मौजूद थीं। जिस समय ईश्वर का आदेश आया कि क़िबला बैतुल मुक़द्दस के बजाए काबा हो जाए, उस समय जो महिला पुरुषों के पीछे खड़ी हुयी थीं, वे मर्दों के सामने हो गयी थीं इसलिए जल्दी से उनका स्थान बदला गया और वे पुरुषों के पीछे खड़ी हुयीं।

 

पैग़म्बरे इस्लाम की नज़र में मस्जिद में महिलाओं की मौजूदगी की अहमियत के बारे में यह कहना काफ़ी होगा कि पैग़म्बरे इस्लाम के दौर में महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश के लिए विशेष द्वार बनाया गया था। रवायत में है कि एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने मस्जिद के एक गेट की ओर इशारा किया और कहाः "इस द्वार को महिलाओं के लिए विशेष करना बेहतर रहेगा।" यह द्वार अभी भी बाबुन निसा के नाम से मौजूद है जिससे पैग़म्बरे इस्लाम के दौर में मस्जिद में महिलाओं की सक्रिय मौजूदगी का पता चलता है।

आज भी ज़्यादातर मस्जिदों में विभिन्न अनुष्ठानों व संस्कारों में भाग लेने के लिए महिलाओं के लिए विशेष जगह होती है। अलबत्ता मस्जिद में महिलाओं की मौजूदगी के संबंध में विभिन्न राष्ट्रों के अलग अलग क्रियाकलापों को देखा जा सकता है। जिन क्षेत्रों में सामाजिक मंच पर महिलाओं की मौजूदगी पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता दूसरे शब्दों में सामाजिक मंच पर उनकी मौजूदगी को बढ़ावा नहीं दिया जाता, वहां पर मस्जिदों में महिलाओं की मौजूदगी के बारे में भी ध्यान नहीं दिया जाता, इसलिए मस्जिद में उनके लिए स्थान को विशेष नहीं किया जाता। इस तरह का व्यवहार भारत में मस्जिदों में देखा जा सकता है। उत्तरी और पश्चिमी भारत में मस्जिद में महिलाओं की मौजूदगी का बहुत विरोध होता है।

यह स्थिति विभिन्न देशों में वहां की सांस्कृतिक स्थिति के मद्देनज़र अलग अलग तरह की है। अरब देशों में सांस्कृतिक भेदभाव के कारण सामाजिक मंचों पर महिलाओं की सक्रियता में कमी के कारण मस्जिदों में उनकी मौजूदगी बहुत कम दिखने में आती है। मलेशिया और इंडोनेशिया में विभिन्न रूपों में महिलाओं की मौजूदगी एक सामान्य सी बात है। इन देशों में महिलाएं मस्जिद में नमाज़ वग़ैरह में मौजूदगी को बहुत अहमियत देती हैं। वे पवित्र रमज़ान के महीने में अपना ज़्यादा वक़्त मस्जिदों में पवित्र क़ुरआन की तिलावत में गुज़ारती हैं। बहुत सी औरतें अपने परिवार वालों के साथ मस्जिद में आती हैं। रोचक बात यह है कि चीन जैसे देश में महिलाओं की विशेष मस्जिदे हैं जिनमें से कुछ में औरतें इमाम हैं। मिसाल के तौर पर चीन के गान्सू प्रांत के केन्द्र लान्जू शहर की लूलान मस्जिद, महिलाओं से विशेष मस्जिद है। लूलान मस्जिद की इमाम ताओ जीनलिंग द्वारा पेश किए गए आंकड़े के अनुसार, इस मस्जिद में हर दिन लगभग 30 औरतें नमाज़ पढ़ने आती हैं और जुमे की नमाज़ में यह तादाद 150 तक पहुंच जाती है। चीन के हुनान प्रांत की सामाजिक विज्ञान अकैडमी द्वारा किए गए शोध के अनुसार, चीन में मुसलमानों में महिला इमाम जमाअत की संख्या तेज़ी से बढ़ी है। चीन में मस्जिदों के बहुत से कार्यकर्ताओं का मानना है कि महिलाओं से विशेष मस्जिदों की शैक्षिक भूमिका ख़ास तौर पर महिलाओं के लिए इसलिए बहुत अहम हैं क्योंकि इस्लाम औरतों को परिवार व समाज की बुनियाद के तौर पर देखता है।      

 

चीन की सबसे पुरानी मस्जिदों में एक शियान चीनी जामा मस्जिद है। यह मस्जिद शाआनशी प्रांत के शीआन शहर में स्थित है। यह मस्जिद सबसे पहले तांग शासन श्रंख्ला के दौर में बनी और चौदहवीं शताब्दी में मींग शासन श्रंख्ला के काल में इसका पुनर्निर्माण हुआं। इस मस्जिद की वास्तुकला, मस्जिद की वास्तुकला और चीनी वास्तुकला का मिश्रण है। चौदहवीं ईसवी शताब्दी से अब तक इस मस्जिद का कई बार पुनर निर्माण हो चुका है। इस समय इस मस्जिद का बड़ा भाग सत्रहवीं और अट्ठारहवीं शताब्दी में मींग और कुइंग शासन काल का बना हुआ है।

इस मस्जिद की इमारत इस्लामी परंपरा के विपरीत बड़ी हद तक पंद्रहवीं शताब्दी के बौद्धधर्मियों के उपासना स्थल से बहुत मिलती जुलती है। अलबत्ता बौद्धधर्मी उपासना स्थलों के विपरीत, शियान जामा जस्जिद के बड़े भाग का रुख़ मक्के की ओर है। इस मस्जिद में एक के भीतर एक 5 आंगन है।

 

इस मस्जिद के पहले आंगन में लकड़ी की ताक़ है जो 9 मीटर की है। इस पूरे ताक़ पर सत्रहवीं शताब्दी में प्रचलित टाइल का सुदंर काम किया गया है।

दूसरे आंगन के मध्य में पत्थर का ताक़ है जिसके दोनों ओर 2 खंबे हैं। इनमें से एक खंबे पर दांग शासन काल के मशहूर सुलेखक के हाथ से कुछ लिखा हुआ है। इसी तरह दूसरा खंबा मींग शासन काल में प्रचलित सुलेखन की कला का नमूना पेश करता है। ये सुलेखन की कृतियां, चीन में सुलेखन कला के अनमोल नमूनों में गिनी जाती हैं। तीसरे आंगन में एक हॉल है जिसके खंबे विभिन्न काल के हैं। चौथे आंगन में मस्जिद की मुख्य इमारत है जिसमें मुख्य हॉल है। इस हॉल में 1000 लोग नमाज़ पढ़ सकते हैं।    

   

जियांग सू राज्य में स्थित यांग मस्जिद जिसे शीन्ख़ भी कहते हैं, चीन में मुसलमानों की चौथी सबसे मशहूर मस्जिद है। यह मस्जिद 1275 ईसवी में बनी जिसके बाद अनेक बार इसकी मरम्मत व पुनर्निर्माण हुआ। यांग जू शहर में चींग शासन काल में 6 मस्जिदे थीं। तीन मस्जिदें शहर के भीतर और बाक़ी शहर के बाहर थीं। शीन्ख़ मस्जिद बहुत बड़ी व पुरानी है। यांग जू मस्जिद का नाम शीन्ख़ पड़ने की दो वजह बतायी जाती हैं। एक यह कि इस मस्जिद के विभिन्न भागों में समरूपता एक सुंदर परिन्दे की तरह है। दूसरे यह कि इस मस्जिद का अग्र भाग सारस की तरह लगता है। अलबत्ता चीन में ऐसी और भी मस्जिदें और इमारते हैं जो सुंदर परिन्दों की तरह लगने की वजह से उनका विशेष नाम पड़ गया है। जैसे ग्वांगजू में ख़ुआए शिंग मस्जिद दिखने में शेर जैसी लगती है और उसे शीज़े कहते हैं। मस्जिद के भीतर आंगन में एक पेड़ तो 700 साल पुराना है। यह पेड़ 15 मीटर ऊंचा है।

ईदगाह मस्जिद इस्लामी वास्तुकला का बहुत अच्छा नमूना पेश करती है। इसे सन 1442 में बनाया गया और तबसे अब तक इस मस्जिद का कई बार निर्माण हो चुका है। ईदगाह का अर्थ होता है ईद की नमाज़ पढ़ने के लिए विशेष जगह। इस मस्जिद में ईदुल फ़ित्र और  ईदुल क़ुर्बान की नमाज़े होती हैं और इस दिन इस मस्जिद में लोग जश्न मनाते हैं। यह मस्जिद काशग़र या काशी शहर में स्थित है।  यह प्राचीन चीन के ऐतिहासिक शहरों में गिना जाता है।

 

ईदगाह मस्जिद का क्षेत्रपल 16800 वर्गमीटर है। मस्जिद में ताक़ की तरह नज़र आने वाले 38 बरामदे हैं। यह दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है। माहिरों का मानना है कि यह मस्जिद काश्ग़र की एक मस्जिद थी जिसे 1524 में मीर्ज़ा अबू बक्र नामक व्यक्ति ने विस्तृत किया। इसके बाद विभिन्न वर्षों में इसका पुनर्निर्माण व विस्तार हुआ। वर्ष 1874 में इस मस्जिद में निर्माण की दृष्टि से बुनियादी काम हुआ और मौजूदा रूप उसी दौर का है। आख़िरी बार सन 2000 में चीनी सरकार ने इस मस्जिद की मरम्मत करायी।

 

16800 वर्गमीटर पर फैली हुयी ईदगाह मस्जिद में प्रांगण, शबिस्तान, बड़ा द्वार और अनेक इमारतें शामिल हैं। मस्जिद का आंगन बहुत बड़ा है जिससे मुसलमानों को नमाज़ पढ़ने में बड़ी आसानी रहती है। आंगन के बाएं छोर पर दो हौज़ हैं जिनमें एक बड़ा और दूसरा छोटा है। मस्जिद का शबिस्तान मस्जिद के पश्चिमी छोर पर है।

 

शबिस्तान मस्जिद के छतदार भाग को कहते हैं जिसमें एक तरह के खंबे एक दूसरे के समानांतर होते हैं और इससे मस्जिद के प्रांगण में दाख़िल होते हैं। शबिस्तान की छत हल्के नीले रंग के खंबे पर टिकी है और खंबे इस तरह बनाए गए हैं कि समानांतर चतुर्भुज लगते हैं। छत और खंबों को बहुत ही सुंदर चित्रों से सजाया गया है। इस मस्जिद के शबिस्तान के दोनों ओर 20 कमरे हैं। ये कमरे मस्जिद में रहने वाले धर्मगुरु, धार्मिक छात्रों, शिक्षकों और दूसरे लोगों के लिए बनाए गए हैं। इन सभी कमरों में प्राकृतिक तरीक़े से कमरे को ठंडा और गर्म रखने वाले आफ़ताबगीर बने हुए हैं। आफ़ताबगीर गर्मी में कमरों को अपेक्षाकृत ठंडा और सर्दी में अपेक्षाकृत गर्म रखता है।

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