इस्लामी क्रांति और समाज- 16
डाक्टर अली मीर सेपासी ने तेहरान विश्व विद्यालय से राजनीति शास्त्र में बीए तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में एमए किया जबकि समाज शास्त्र में अमरीकी विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री प्राप्त की है।
डाक्टर मीर सेपासी समाज शास्त्र में दक्ष हैं और वर्तमान समय में वे न्यूयार्क के गैलेटीन विश्वविद्यालय के मध्यपूर्व के शोध तथा समाज शास्त्र के विभाग के प्रोफ़ेसर हैं। वह ईरान और आधुनिक ईरान के विषय में अपने दृष्टिकोण बयान करते रहते हैं। मीर सेपासी वर्ष 2007 से 2009 तक अमरीका के कारनेगी शोध केन्द्र के शोधकर्ता भी रहे हैं।
डाक्टर मीर सेपासी के शोध अधिकतर आधुनिकीकरण, धर्म और समाज शास्त्र विशेषकर इस्लाम और आधुनिकीकरण के बीच संबंध के इतिहास पर ही होते हैं। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी हैं जिनमें कुछ के नामों के अनुवाद इस प्रकार हैः ईरानी आधुनिकिकरण पर अध्ययन, ईरान में आधुनिकता की नीति और आधुनिक विचार के बारे में बहस, इस्लामी राजनीति, ईरान और आधुनिक विचार, आशा व निराशा का दृष्टिकोण, आधुनिक ईरान में लोकतंत्र। इन पुस्तकों का ईरान के पढ़े लिखे वर्ग ने बहुत अधिक स्वागत किया। डाक्टर अली मीर सेपासी की जीवनी में आया है कि उन्होंने शोध और साहित्य के क्षेत्र में कई पुरस्कार जीते हैं जिनमें वर्ष 2001 में ईरान का सर्वश्रेष्ठ शोधकर्ता का भी पुरस्कार शामिल है। उनको तेहरान विश्वविद्यालय ने मानद उपाधि से सम्मानित किया है।
वर्ष 2000 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित ईरानी आधुनिकिकरण पर अध्ययन नामक पुस्तक ने वर्ष 2001 की बेहतरीन शोध का ईनाम जीता। इस पुस्तक में ईरान में आधुनिकिकरण ज़बरदस्त शोध किया गया है और इस पुस्तक में बताया गया है कि ईरान में आधुनिकिकरण, पश्चिम से प्रविष्ट हुआ है। इस देश ने कई सदियों के दौरान बहुत से उतार चढ़ाव देखे किन्तु ईरानियों ने सफ़वी शासन काल के बाद जो राजनैतिक पतन का दौर तय किया, क़ाजारी शासन काल के बीच में आधुनिकिकरण का सामना किया और इस काल में उन्होंने अपने पिछड़ेपन की भरपाई करने का प्रयास किया और इस प्रक्रिया को तीव्र करने के लिए उन्होंने कई नुस्ख़े आज़माए।
डाक्टर मीर सेपासी उन विचारकों में से हैं जिन्होंने ईरान की इस्लामी क्रांति की धार्मिक प्रवृत्ति सहित ईरान के बारे में प्रभावी दृष्टिकोण पेश किया। उन्होंने ईरान की इस्लामी क्रांति के बारे में विशेष दृष्टिकोण पेश किए हैं। उन्होंने ईरान की इस्लामी क्रांति में " क्रांति आने में सेक्युलरिज़्म की भूमिका" के आयाम से समीक्षा की। डाक्टर मीर सेपासी ईरान की इस्लामी क्रांति के बारे में कहते हैं कि इस्लामी क्रांति वह महत्पपूर्ण मोड़ है जिसने हमारे काल में सेक्युलरिज़्म के राजनैतिक संकट को पेश किया। दूसरे शब्दों में ईरान की इस्लामी क्रांति और ईरान के बारे में दृष्टिकोण रखने वाले दूसरे शोधकर्ताओं और बुद्धिजीवियों की भांति डाक्टर मीर सेपासी का भी मानना है कि ईरान में इस्लामी क्रांति का आना, पहलवी शासन के दृष्टिगत आधुनिकिकरण के मुक़ाबले में ईरानी जनता के मज़बूत विरोध और प्रतिक्रिया का परिणाम था जो जनता के बीच इस्लामी संस्कृति और शीया धर्म के प्रचार का कारण बनी।
मीर सेपासी का यह मानना है कि ईरान की इस्लामी क्रांति ने 1960 और 1970 के दशक में सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में ईरानी समाज को पश्चिमी रंग में ढालने और उसके पुनर्निमाण का प्रयास शुरु किया किन्तु इस प्रकार का बर्ताव, स्वयं ईरानी समाज के ध्रुवीकरण और विदेशी संस्कृति की ओर जाने का कारण बना और इसके साथ ही यह चीज़ न केवल ईरान के शाह की अत्याचारी नीतियों में बदलाव का कारण न बनी बल्कि इससे यह अत्याचार और भी मजब़ूत हो गया। मीर सेपासी का मानना है कि ईरान के शाह की पुनर्निर्माण की नीतियों के कारण शहरों की ओर पलायन, असमानता, निर्धनता और समाज में अन्य दूसरी बुराईयां पैदा हुईं, इससे जनता में विरोध के स्वर तेज़ होने लगे और इस संबंध में उनकी चेतना बढ़ती गयी।
मीर सेपासी ने ईरान में आधुनिकवाद की नीति और मार्डनिज़्म की चर्चा नामक अपनी पुस्तक में सेक्युलरिज़्म संकट और इस्लामी क्रांति शीर्षक के अंतर्गत शाही शासन द्वारा ईरानी समाज को सेक्युलरिज़्म के महत्वपूर्ण विषय की ओर संकेत करते हैं। मीर सेपासी लिखते हैं कि पहले और दूसरे पहलवी शासन काल में आधुनिकवाद को स्वीकार करते हुए जनता की धार्मिक और पारंपरिक इच्छाओं की अनदेखी की गयी और साथ ही जनता को तेज़ी से आधुनिक करने के लिए पहलवी शासन की हिंसाओं, आधुनिकवाद से बढ़कर तानाशाही नीति का भी प्रदर्शन दिखाई दिया किन्तु दीर्घावधि में यह नीति, जनता द्वारा धार्मिक और पारंपरिक मान्यताओं की ओर पलटने के अतिरिक्त कोई अन्य परिणाम सामने नहीं आया।
न्यूयार्क के विश्वविद्यालय के इस ईरानी प्रोफ़ेसर ने अपनी पुस्तक के तीसरे अध्याय में यह महत्वपूर्ण सवाल भी उठाया है कि किस प्रकार ईरान में सेक्युलरिज़्म की प्रक्रिया बंद गली में पहुंच गयी और इसके परिणाम में ईरान में इस्लामी क्रांति क्यों अस्तित्व में आई? वास्तव में उनका यह मानना है कि ईरान में सेक्युलरिज़्म का न केवल स्वागत नहीं किया गया बल्कि ईरानी जनता द्वारा इसे पूरी तरह नकार दिया गया और इसके परिणाम में यह योजना पूरी तरह फ़ेल हो गयी। डाक्टर मीर सेपासी ईरान में सेक्युलरिज़्म के फ़ेल होने के कारणों का जवाब देते हुए ईरानी समाज में धार्मिक प्रवृत्ति और इस्लामी आदर्शों के पश्चिमवाद के आधुनिक आदर्शों पर प्राथमिकता की ओर संकेत करते हैं।
डाक्टर अली मीर सेपासी कहते हैं कि सेक्लुयरिज़्म की विचारधारा के कमज़ोर होने से राजनैतिक इस्लाम, उसकी संस्थाओं और उसके नेतृत्व के समर्थकों को अवसर से लाभ उठाने का मौक़ा मिल गया और उन्होंने ईरान के नाराज़ लोगों को एक मंच पर जमा कर दिया। उन्होंने एक राजनैतिक लोकतंत्र पर आधारित आंदोलन के नेतृत्व का नमूना पेश किया जिसमें जनता स्वयं ही ईरान, पहचान, सामाजिक एकता और नई शक्ति का आभास दिलाने लगी। राजनैतिक सेक्युलरिज़्म की नीति और उसके समर्थकों में इस्लामी नीति की विचारधारा और उसके समर्थकों के मुक़ाबले में टिकने की क्षमता नहीं थी इसीलिए उन्हें ठिकाने लगा दिया गया और इस्लामी विचारधारा मैदान मार ले गयी। मीर सेपासी इस्लामी क्रांति की सफलता में इस्लामी संस्कृति और विचारधाराओं को मुख्य कारण मानते हैं और इसपर नज़र किए बिना, इस्लामी क्रांति को समझ पाना संभव नहीं है, इस्लामी क्रांति की सफलता के इसी कारण पर बहुत कम ही ध्यान दिया गया है।
डाक्टर मीर सेपासी का यह मानना है कि धार्मिक विचारधाराओं के अतिरिक्त सेकल्युरिज़्म की कुछ विचारधाराओं ने भी पहलवी अधिकारियों के पुनर्निर्माण की योजना का विरोध किया। उनका कहना है कि पहलवी अधिकारियों के दृष्टिगत पुनर्निर्माण की योजना के इस्लामी और सेक्युल धड़ों के विरोध के कारण धीरे धीरे इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में इस्लामी विचारधारा सेक्युलरिज़्म विचारधारा पर जीत गयी। मीर सेपासी ने बल दिया कि शीया राजनैतिक संस्कृति के अधिक विस्तार और अपनी समस्याओं के एक मात्र समाधान के रूप में इस्लामी संस्कृति के जनता द्वारा भव्य स्वागत के कारण इस्लामी विचारधारा ने मैदान मार लिया।
डाक्टर मीर सेपासी ने जिन चीज़ों की आलोचना की है उनमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि शाह और शाह की ख़ुफ़िया एजेन्सी सावाक ने कभी भी धर्मगुरुओं को अपने लिए गंभीर ख़तरा नहीं समझा। यह दावा ऐसी हालत में सामने आया है कि सरकार के विरुद्ध जनता को एक जुट करने में धर्मगुरुओं विशेषकर इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व के ख़तरे को शाही सरकार भांप गयी थी और यही कारण है कि शाही सरकार ने धर्मगुरुओं विशेषकर इमाम ख़ुमैनी के विरुद्ध घोर अपराध किए और उनके साथ बुरे बर्ताव किए।
मुहम्मद रज़ा शाह के 37 वर्षीय काल में धर्मगुरुओं के साथ विभिन्न तरीक़े से बुरे बर्ताव किए गये। फ़रवरदीन 1340 हिजरी शम्सी में आयतुल्लाह बुरुजर्दी के हस्तक्षेप के बाद, शाह वरिष्ठ धर्मगुरुओं के केन्द्र को ईरान से इराक़ स्थानांतरित करना चाहता है। इस काल में शाह ने खुलकर धर्मगुरुओं के विरुद्ध मोर्चा संभाल लिया था। मुहम्मद रज़ा पहलवी कदापि नहीं चाहता था कि देश में कोई शक्तिशाली धर्मगुरु हो। धर्मगुरुओं विशेषकर ईरान में मौजूद धर्मगुरुओं के भारी विरोधी की अनदेखी करते हुए उसने धर्मगुरुओं का दमन किया और उनका अपमान किया। इमाम ख़ुमैनी पहलवी द्वितीय के काल में 15 वर्षों तक जेल में रहे या देश निकाला का जीवन व्यतीत किया। धर्मगुरुओं के मुक़ाबले में इस रवैये से पता चलता है कि मुहम्मद रज़ा शाह, जनता को सरकार के विरुद्ध खड़ा करने में धर्मगुरुओं की शक्ति विशेषकर इमाम ख़ुमैनी की ताक़त को गंभीरता से ले रहा था किन्तु उसने सही युक्ति अपनाने के बजाए धर्मगुरुओं के दमन का रास्ता चुना।