अपनी देखभाल - 4
हमने बताया था कि अपनी देखभाल के लिए पहले अपने बारे में जानना बहुत ज़रूरी है।
अपनी देखभाल लोगों को अपने भीतर पाए जाने वाले नकारात्मक और सकारात्मक बिंदुओं को बदलने में सहायता करती है। बहुत से अवसरों पर यह आंतरिक भावनाओं को उचित ढंग से समझकर मनुष्य का मानवीय और आध्यात्मिक विकास भी करती है।
संसार में ऐसे भी लोग मौजूद हैं जो विगत की अपनी विफलताओं की क्षतिपूर्ति के लिए आंतरिक भावनाओं को या अनदेखा करते हैं या फिर उनको दबाते रहते हैं। इसके मुक़ाबले में ऐसे भी लोग पाए जाते हैं जो अपनी आंतरिक भावनाओं को बिल्कुल भी नहीं छिपाते बल्कि उन्हें अवैध ढंग से व्यक्त करते हैं जैसे लड़ाई, झगड़ा और अनैतिक कर्म आदि। यह दोनों ही शैलियां ग़लत हैं जो बाद में नैतिक समस्याओं का कारण बन सकती हैं। इसके समाधान का पहला चरण स्वयं को समझना और उसके बाद आत्म मंथन करना है।
अपने भीतर पाई जाने वाली विशेषताओं के कारण किसी भी विषय के बारे में लोगों की प्रतिक्रियाएं अलग-अलग होती हैं। उदाहरण स्वरूप किसी दुखद घटना पर एक व्यक्ति दुखी हो जाता है। दूसरा इन्सान इसी विषय पर क्रोधित हो जाता है। कोई व्यक्ति दुखद घटना पर चीख़ने-चिल्लाने लगता है जबकि दूसरा, उसी बात पर ख़ामोश रहता है। अपनी पहचान के लिए सबसे महत्वपूर्ण बिंदु अपनी भावनाओं को सही ढंग से समझकर उनको नियंत्रित करना है। यहां पर उल्लेखनीय बिंदु यह है कि अपनी भावनाओं पर नियंत्रण, उनको अनेदखा करने के अर्थ में नहीं है बल्कि उनकी सही पहचान करके उनका सही प्रयोग करने के अर्थ में है। भावनाओं पर नियंत्रण न करने के कारण मनुष्य को अपने जीवन में एसे बहुत से दुष्परिणाम झेलने पड़ सकते हैं जिनकी क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती।

यह अटल वास्तविकता है कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर भावनाएं पाई जाती हैं। भय, प्रसन्नता, उदासी, प्रेम, क्रोध, क्षमा करना, श्रद्धा और स्नेह जैसी विशेषताएं भावनाओं की सूचि में आती हैं। यह भावनाएं हमारे जीवन को पूरी तरह से प्रभावित करती हैं अतः इन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता। मनुष्य का जीवन भावना प्रधान होता है। बहुत से लोग भावनाओं से संचलित होते हैं। भावनाओं के वेग में बहने वाले व्यक्ति प्रशंसनीय नहीं हो सकते। बल्कि प्रशंसनीय वह है जो अपनी भावनाओं पर पूरा नियंत्रण रखात हो। जो भी व्यक्ति भावनाओं को नियंत्रित कर सकता है वह अपने जीवन को भी निश्चित रूप में नियंत्रित कर सकता है। अर्थात यह एसा व्यक्ति है जो अपनी इच्छा के अनुसार हर काम करता है न कि दूसरों की इच्छाओं के अनुसार। अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने वाले व्यक्ति को ही सफल व्यक्ति कहा जा सकता है।
हर इन्सान अपने दैनिक जीवन में विभिन्न प्रकार की भावनाओं का अनुभव करता है। हम अपनी भावनाओं के ही कारण हंसते और रोते हैं। इन भावनाओं को वास्तव में नियंत्रित रहना चाहिए। हमे एसा नहीं होना चाहिए कि भावनाओं में बहकर हम कोई एसा काम करें जिसे करने के बाद पछताना पड़े। पछतावा इस बात का प्रमाण है कि काम सही नहीं था। इस बात पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है कि जब कोई इंसान, विशेष प्रकार की भावना को बार-बार व्यवहारिक बनाता है तो मनुष्य के मन-मस्तिष्क पर वह हावी हो जाती है। बाद में मनुष्य उसको पूरा करने के लिए बाध्य हो जाता है। क्या आपने किसी एसे व्यक्ति को देखा है जो हमेशा क्रोधित रहता है या जिसका व्यवहार क्रोध भरा होता है? अगर आप ग़ौर करें तो पाएंगे कि अमुक व्यक्ति, क्रोधित पैदा नहीं हुआ था अर्थात वह जन्मजात क्रोधित नहीं है। यह एसे लोग हैं जो अपनी भावनाओं के नियंत्रण में आ गए हैं और अब क्रोध की भावना पूरी तरह से उनको अपने लपेटे में ले चुकी है।

जो लोग अपना आत्ममंथन करते रहते हैं और बुद्धि का उचित प्रयोग करते हैं उनको पता रहता है कि भावनाओं के भड़कने की स्थिति में किसी भी प्रकार की त्वरित प्रतिक्रिया बहुत बड़ी ग़लती होती है जो निश्चित रूप में पछतावे का कारण बनती है। एसे में किसी भी प्रकार की प्रतिक्रया देने से पहले आदमी को एक लंबी सांस लेनी चाहिए और फिर कुछ सब्र करना चाहिए। इतना करने के बाद ही अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए क्योंकि इस दौरान वह किसी हद तक अपनी भावना को नियंत्रित कर चुका होगा। उसे यह समझना चाहिए कि यह मामला भी अन्य मामलों की ही भांति अस्थाई है।
ईमान एक एसी विशेषता है जो सभी लोगों के लिए मुक्तिदाता है। यह जीवन के अच्छे और बुरे दोनो कालों में मनुष्य का सहायक है। अपने ईश्वर से निकट का संपर्क, इंसान के लिए समस्याओं के समय समाधान में सहायता करता है। ईमान के माध्यम से बहुत सी समस्याओं का समाधान बहुत ही सरलता से किया जा सकता है। अगर आपको किसी आर्थिक समस्या ने घेर लिया हो और कोई एसा धनवान व्यक्ति जिसपर आप भरोसा करते हैं, यह कहे कि घबराने की कोई बात नहीं है जो कुछ होगा उसे हम देख लेंगे तो फिर यह एक छोटा सा वाक्य, आर्थिक समस्या में ग्रस्त व्यक्ति के लिए बहुत बड़ा सहारा बन जाता है। इससे मनुष्य को बहुत शांति मिलती है और वह इसे एक उपहार के रूप में देखता है।
अब आप स्वयं ही सोचिए कि वह ईश्वर जो हर दृष्टि से संपन्न है, जिसे किसी की भी कोई आवश्यकता नहीं है, जो बिल्कुल भी कंजूस नहीं है, वही ईश्वर पवित्र क़ुरआन के सुरे ज़ोमर की आयत संख्या 36 में कहता है कि क्या ईश्वर, अपने बंदों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं है? अर्थात ईश्वर कह रहा है कि हे मेरे बंदों तुम्हारी हर प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मैं काफ़ी हूं। वास्तव में ईश्वर का यह कथन मनुष्य को बहुत शांति प्रदान करता है। एक अन्य स्थान पर पवित्र क़ुरआन में ईश्वर कहता है कि ईश्वर की याद या उसके स्मरण से हृदय को शांति मिलती है।
हमारे जीवन में जो भी घटनाएं घटती हैं, चाहें वे अच्छी हो या फिर बुरी, वह किसी उद्देश्य के दृष्टिगत मनुष्य के सामने आती हैं। जो लोग आत्मज्ञान रखते हैं वे बहुत आगे तक की बातों को समझ लेते हैं। इस प्रकार के लोग ईश्वर की ओर से दी गई विभूतियों को उचित ढंग से पहचानते हैं। इस बात को आरंभ में हमारे लिए समझना हो सकता है कि कुछ कठिन हो किंतु आत्मज्ञान की सहायता और समय गुज़रने के साथ हम उसको समझ सकते हैं। हमें यह बात अवश्य याद रखनी चाहिए कि कभी-कभी बहुत ही संवेदनशील परिस्थतियों में सामने आने वाली किसी दुखदाई बात के पीछे निश्चित रूप में कोई लक्ष्य छिपा होता है। इसके बारे में उसे भविष्य में अवश्य पता चलेगा।
अंत में इस बिंदु की ओर ध्यान देना आवश्यक है कि हमारा शरीर और हमारी आत्मा दोनों ही ईश्वरीय उपहार हैं जिसे ईश्वर ने हमें निःशुल्क प्रदान किया है। खेद की बात यह है कि अधिकांश लोग जब तक स्वस्थ्य रहते हैं उस समय तक वे अपने शरीर और स्वास्थ्य के प्रति चिंन्तित नहीं रहते। हालांकि हमारा आत्मज्ञान जो देखने में सादा लगता है वह हमें जीवन में अधिक से अधिक शांति के लिए मदद करता है साथ भी आत्म सुरक्षा के साथ हम अपने जीवन के स्तर को बहुत ऊंचा उठा सकते हैं।