Dec २३, २०१८ १७:३० Asia/Kolkata

फ़्रेड हालिडे लंदन स्कूल ऑफ़ इक्नामिक्स में अंतर्राष्ट्रीय संबंध संकाय में शिक्षक हैं।

वे आयरलैंड की राजधानी डबिलन में पैदा हुए। हालिडे ने ऑक्सफ़र्ड यूनिवर्सिटी और लंदन और स्थित स्कूल ऑफ़ ओरिएंटल व अफ़्रीकन स्टडीज़ में शिक्षा हासिल की लंदन स्कूल ऑफ़ इक्नामिक्स से अपनी डॉक्ट्रेट पूरी की। हालिडे को लैटिन, यूनानी, फ़ारसी, अरबी, फ़्रांसीसी, जर्मन, स्पैनिश, रूसी और पुर्तोगीज़ भाषाओं पर कमान्ड था।

फ़्रेड हालिडे उन विचारकों में हैं जिन्हें ईरान के मामलों की अच्छी समझ थी चाहे वे इस्लामी क्रान्ति से पहले या बाद के हों। ईरान के मामलों की समझ की वजह से उन्होंने ईरान में इस्लामी क्रान्ति की सफलता से एक साल पहले 1978 में अपनी पहली किताब लिखी जिसका शीर्षक थाः "ईरानः तानाशाही और विकास"। इस्लामी क्रान्ति के घटने की वजह से फ़्रेड हालिडे ने अपनी किताब में नई घटनाओं के अनुसार बदलाव किया और उसे नए शीर्षक के साथ दोबारा प्रकाशित किया। (उनकी नई किताब का शीर्षक थाः "ईरान की क्रान्ति पर प्रस्तावना"। उनकी इस किताब का कई ज़बानों में अनुवाद हुआ। फ़्रेड हालिडे ने इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद कई बार ईरान का सफ़र किया। इन यात्राओं की वजह से वह ईरान की इस्लामी क्रान्ति को बेहतर ढंग से समझने और ईरान में घटने वाली घटनाओं की समीक्षा करने में सक्षम हुए। इसी वजह से फ़्रेड हालिडे ने ईरान की इस्लामी क्रान्ति और चार दूसरी क्रान्तियों फ़्रांस, रूस, चीन और क्यूबा की क्रान्ति का तुलनात्मक अध्ययन किया। उन्होंने ईरान की इस्लामी क्रान्ति और चारों क्रान्तियों के बीच अंतर और समानताओं को पेश किया।

           

फ़्रेड हालिडे के विचार पर ईरान की क्रान्ति का इतना असर हुआ कि वे ईरान की इस्लामी क्रान्ति को "क्रान्ति के इतिहास की सबसे आधुनिक क्रान्ति" कहते हैं। अपने इस विचार के पक्ष  में उन्होंने अनेक तर्क भी पेश किए हैं। उन्होंने जो तर्क पेश किए हैं उनमें से एक यह है कि आयतुल्लाह ख़ुमैनी अपने धार्मिक भाषणों से धार्मिक वर्ग और राष्ट्रवादी वर्ग दोनों को पहलवी शासन के ख़िलाफ़ एक पंक्ति में लाने में सफल हुए। दूसरा तर्क यह है कि ईरान की जनता जिस संख्या में आयतुल्लाह ख़ुमैनी के स्वागत में इकट्ठा हुयी वह मानव इतिहास का सबसे बड़ा जमघट था। हालिडे का एक और तर्क यह है कि ईरान में क्रान्ति के बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जो मानदंड है वह दुनिया में किसी दूसरी क्रान्तिकारी हुकूमत में नहीं है।

हालिडे ने एक लेख लिखा है जिसका शीर्षक है "ईरान की क्रान्तिः असंतुलिन विकास और धार्मिक रुझान"। इस लेख में उन्होंने ईरान में क्रान्ति का मुख्य कारण पूंजिवादी विकास और इस बदलाव की प्रक्रिया के ख़िलाफ़ जनधारणा के बीच टकराव को बताया है। उन्होंने इस्लामी क्रान्ति को एक आत्ममुग्ध हुकूमत के ख़िलाफ़ समाज के निचले स्तर से उठने वाली क्रान्ति बताया जिसमें सभी वर्ग शामिल हुए। हालिडे ने शाही शासन के ख़िलाफ़ ईरानी जनता के व्यापक प्रदर्शन को मानव इतिहास का सबसे बड़ा अनौपचारिक प्रदर्शन कहा। हालिडे के ईरान की इस्लामी क्रान्ति के बारे में जो विचार हैं उसमें एक अहम बिन्दु यह है कि वे इस क्रान्ति की सफलता को इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह के नेतृत्व और उनके साथ सहयोग करने वाले धर्मगुरुओं को मानते हैं। हालिडे इस बारे में कहते हैः "उन्होंने न सिर्फ़ यह कि क्रान्ति के फ़्रेमवर्क को पेश किया, बल्कि ऐसी विचारधारा को प्रचलित किया जिसके ज़रिए विभिन्न फ़ोर्सेज़ को संगठित करना मुमकिन हुआ।" इस विचारधारा के तीन मूल बिन्दु थे जिनका इमाम ख़ुमैनी अपने प्रवचनों में बारंबार उल्लेख करते थे। एक ईश्वर पर आस्था कि जिसका आधार इस्लाम था। इस आस्था ने समकालीन जगत और मानवता के अंतिम मोक्षदाता हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की अनुपस्थिति में एक इस्लामी हुकूमत की स्थापना का रास्ता समतल किया। ऐसी हुकूमत का गठन वरिष्ठ धार्मिक नेतृत्व के ज़रिए व्यवहारिक होता है और यह विशेषता इमाम ख़ुमैनी के पूरे जीवन पर चरितार्थ होती थी। इस विचारधारा का दूसरा बिन्दू दुनिया का दो वर्गों पीड़ितों व अत्याचारियों में विभाजन था। इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह क्रान्तिकारी आकांक्षा के साथ समाज के निर्धन व वंचित वर्ग पर ध्यान दिया। तीसरा बिन्दु तीसरी दुनिया के राष्ट्रवादी प्रतीकों में से एक प्रतीक इस्लामी छवि देना अर्थात पूरब और पश्चिम के दो शैतानों या दूनिया को लूटने वाली उन शक्तियों के ख़िलाफ़ संघर्ष था जो लंबे समय से ईरान पर अत्याचार कर रही थीं। इमाम ख़ुमैनी यह नहीं चाहते थे कि दुनिया के सभी लोग मुसलमान हो जाएं बल्कि वह मुसलमानों से चाहते थे कि वे विदेशियों के अतिग्रहण व भ्रष्टाचार से इस्लामी जगत को बचाएं। यह क्रान्ति इस्लाम के नाम पर धर्मगुरुओं के नेतृत्व से सफल हुयी और इस्लाम इस्लामी जगत पर हैरतअंगेज़ असर पड़ा।

फ़्रेड हालिडे ने अपने एक इंटरव्यू में जो उन्होंने इस्लामी क्रान्ति की सफलता के 20 साल बाद दिया, इमाम ख़ुमैनी के व्यक्तित्व की विशेषताओं और इस्लामी क्रान्ति पर उसके प्रभाव के बारे में अहम बिन्दुओं का उल्लेख किया है। वह कहते हैः"इमाम ख़ुमैनी के व्यक्तित्व में जादुई असर था जिसकी वजह से लोग उनकी तरफ़ खिंचते थे। आज क्रान्ति को 20 साल हो रहे हैं, इस्लामी जगत में बड़ी संख्या में मुसलमान इमाम ख़ुमैनी की एक सच्चे व्यक्ति के रूप में प्रशंसा करते हैं। मुझे याद है कि जिस वक़्त 83 साल की उम्र में उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली तो मैंने उनसे पूछा कि आपका क्या हाल है। उन्होंने जो कहा वह दूसरे नेता नहीं कहते। उन्होंने कहाः "मैं ठीक हूं और लोग मेरी ओर से चिंतित हैं, उनका शुक्रिया अदा करता हूं लेकिन एक बात कहना चाहता हूं कि यह पहली बार है जब मैं चारपयी पर लेटा।"

फ़्रेड हालिडे इमाम ख़ुमैनी की शव यात्रा के संबंध में भी एक अहम बिन्दु की ओर इशारा करते हैं। वह कहते हैं कि इमाम ख़ुमैनी स्वर्गवास और उनकी शव यात्रा में जनसैलाब, ऐसे प्रभाव का प्रदर्शन था जो क्रान्ति, ख़ास तौर पर इमाम ख़ुमैनी का लोगों पर था।

फ़्रेड हालिडे के अध्ययन का एक अहम बिन्दु इस्लामी क्रान्ति के बाद का ईरान था। वास्वत में उनकी गिनती ऐसे विचारकों में होती है जिन्होंने इस्लामी क्रान्ति के बाद ईरान के आंतरिक बदलाव पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित किया। वे इस्लामी क्रान्ति की वैधता के बारे में एक इंटरव्यू में कहते हैः "इसकी वैधता एक स्वाधीन ईरान की स्थापना थी। यह देश कभी भी पूरी तरह उपनिवेश नही था, बल्कि हमेशा अर्धउपनिवैशिक रूप में बाक़ी था और शाह के शासन काल में विदेशियों के वर्चस्व में था। इमाम ख़ुमैनी ने ईरान को दुबारा उसकी शान वापस दिलायी। उन्होंने एक बार कहा थाः "मैं साम्राज्य की नाक रगड़ दूंगा।"। इस्लामी जगत में ईरान के साथ दुश्मनी और उन मामलों के बावजूद जो ईरान-इराक़ में जंग का सबब बने, धर्मगुरुओं ने लोगों में गौरव की भावना पैदा की और उनमें यह विश्वास पैदा किया कि वे अपनी संस्कृति की ख़ुद रक्षा कर सकते हैं। वह मुसलमान रहना चाहते हैं और प्राचीन ईरान की पौराणिक कथाओं व साहित्य से जुड़े रहने के साथ साथ आधुनिक युग का भी भाग बन सकते हैं।"

फ़्रेड हालिडे ईरान में जातीय विविधता की ओर इशारा करते हुए जातीय अल्पसंख्यकों के संबंध में इस्लामी गणतंत्र ईरान के व्यवहार की सफलता को बहुत बड़ी सफलता मानते हैं। उनका मानना है कि जातीय विविधता पूरी दुनिया में एक ख़तरा हो सकती है लेकिन ईरान में यह ख़तरा नहीं बन सकी।

फ़्रेड हालिडे की नज़र में इस्लामी क्रान्ति की एक और अहम उपलब्धि यह है कि इसने न सिर्फ़ यह कि एक अत्याचारी शासन का पूरी तरह पतन किया बल्कि पहली बार दुनिया में ऐसी व्यवस्था की बुनियाद रखने में सफल हुआ जिसमें प्रजातांत्रिक उसूलों के पालन, जनता द्वारा अपने भविष्य के निर्धारण की पुष्टि, लोगों की राय को अहमियत मिलने के साथ धार्मिक नियमों पर प्रतिबद्धता भी शामिल है। इस तरह गणराज्य और इस्लाम को मिलाया ताकि इनमे से कोई भी दूसरे के लिए ख़तरा पैदा न कर सके। यह बात हालिडे ने 23 फ़रवरी 2009 को लंदन स्थित शैख़ ज़ायद स्कूल ऑफ़ इक्नॉमिक्स ऐन्ड पॉलिटिक्स में आयोजित एक सभा में कहा जिसमें 400 छात्र मौजूद थे। हालिडे ने अपने इस भाषण का अंत इस जुमले से कियाः "अभी भी दुनिया इस्लामी गणतंत्र ईरान और इस अमहराष्ट्र की बात को नहीं समझ सकी है।"

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